पशुओं के अंतिम तीन महीने तथा प्रसव काल की अवधि जोखिम भरी होती है, इसलिए पशुपालकों को पशुओं के ब्याने के समय और उसके तुरंत बाद की सावधानियों की जानकारी होना अति आवश्यक है ताकि संभावित जोखिमों को टाला जा सके।
पशुओं में प्रसव समीप होने के लक्षण
- पशु का अयन विकसित एवं आकार में बड़ा हो जाता है।
- योनि से स्राव होता है।
- सैक्रोसियाटिक लिगामेंट ढीले पड़ जाते हैं, जिससे पूंछ के दोनों ओर गड्ढे पड़ जाते हैं।
- प्रसव प्रारंभ होने के करीब पशु बार-बार उठता बैठता है।
- प्रसव के करीब पशु की भूख भी कम हो जाती है।
- प्रसव से 1 महीने पूर्व तक पशुओं को कृमि नाशक दवा जैसे फेनबेंडाजोल या पायरेंटल पामोएट दी जा सकती है।
- गर्भाशय में बच्चा दो द्रव से भरी थैलियों से घिरा रहता है जिसमें पहली थैली को एलनटॉयस तथा दूसरी थैली को एमनियोटिक थैली कहते हैं।
प्रसव के 3 चरण होते हैं। गाय, भैंस, प्रसव के पहले चरण में 2 से 24 घंटे का समय ले सकती है तथा प्रसव का पहला चरण पहली मुतलेंडी फूटने के साथ ही समाप्त हो जाता है। प्रथम चरण में गर्भाशय ग्रीवा परिपक्व होकर उसका मुंह खुल जाता है एवं बच्चा अपनी सामान्य प्रेजेंटेशन पोजीशन एवं पोसचर को अख्तियार करता है तथा गर्भाशय के संकुचन का प्रारंभ हो जाता है। अक्सर देखा गया है कि पहली थैली/ मुतलेंडी फूटते ही पशुपालक, अति उत्साहित हो जाते हैं तथा बच्चे को जल्दी से जल्दी बाहर निकालना चाहते हैं।
प्रसव के दूसरे चरण में आधे से 2 घंटे का समय लग सकता है अतः पहले मूतलेंडी के फूटने के बाद कुछ समय इंतजार करना चाहिए, अक्सर पशुपालक को जब बच्चे की दोनों टांगे मुतलेंडी के साथ योनि द्वार पर दिखाई देती है, तो पशुपालक बिना रुके मुतलेंडी को फाड़कर टांगो को खींचता है एवं इस प्रकार एक सामान्य प्रसव कठिन/ असामान्य प्रसव में परिवर्तित हो जाता है।
ऐसा भी देखा गया है कि मुतलेंडी के फूटने पर लिसलिसा पदार्थ बच्चे के चारों ओर लिपटा होता है, अतः बच्चे की टांग खींचने पर वह फिसलती हैं और पशुपालक अपनी पकड़ बनाने के लिए हाथों पर रेत या मिट्टी लगाकर बच्चे की टांगों को खींचता है। ऐसा करना बिल्कुल ही वर्जित है क्योंकि इससे संक्रमण का खतरा हो सकता है। पशुपालकों को समझना चाहिए कि ऐसा करने से बच्चेदानी अर्थात गर्भाशय में संक्रमण हो सकता है तथा ऐसे पशु में बाद में गर्भाशय शोथ/मेट्राइटिस की समस्या से ग्रसित हो जाते हैं।
बछड़े के योनि द्वार से पूर्णतया बाहर निकलने पर बछड़े के नाक और कान को साफ कर देना चाहिए, तथा एक बार उसकी पिछली टांगे पकड़ कर उल्टा लटका दें, ताकि उसकी नासिका एवं फेफड़ों में भरा पानी बाहर निकल जाए। प्रसव पूर्ण होने के पश्चात बच्चे को गाय,भैंस के आगे रख देना चाहिए और गाय भैंस को अपने नवजात बछड़े को चाटने देना चाहिए।
बछड़े के खड़े होने के पश्चात उसे मां का खीस/ कोलोस्ट्रमअवश्य पिलाएं ऐसा करने से उसे रोग प्रतिरोधक क्षमता प्राप्त होती है, जो जीवन पर्यंत उसे विभिन्न रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करती है। बछड़े को यदि मॉ का दूध स्वयं पीने में दिक्कत हो तो उसे सहायता करें। अधिक कोलोस्ट्रम या खीस एक साथ नहीं पिलाएं बल्कि थोड़ा थोड़ा करके पिलाएं। यदि नवजात बछड़ा इधर-उधर दौड़ता है तो उसे ऐसा करने दें।
कई पशुपालक गाय की जेर गिरने से पहले खीस नहीं पिलाते हैं जो कि अत्यंत हानिकारक है। बछड़े के खीस पीने से, ऑक्सीटॉसिन हार्मोन का स्राव होता है, जिससे जेर बाहर निकलने में सहायता मिलती है। ब्याए हुए हुए पशु को पौष्टिक एवं ऊर्जा युक्त आहार दें जैसे कि तेल, गुड़,गेहूं का चोकर, अदरक, मेथी तथा काला जीरा भी दे सकते हैं। दो से 3 दिन तक ऐसा सुपाच्य भोजन ही दें क्योंकि इस समय पशु का पाचन कमजोर होता है।
ब्याई हुए पशु का खींस पूरा नहीं निकालना चाहिए ऐसा करने से, दुग्ध ज्वर नामक बीमारी हो सकती है। प्रसव की तीसरी अवस्था में पशु का जेर बाहर निकलता है उसके पश्चात भी गर्भाशय में संकुचन होते रहते हैं जिससे कि गर्भाशय लगभग 40 से 45 दिन में अपनी पूर्व अवस्था में आ जाता है। जेर के गिरने के पश्चात उसे दूर ले जाकर गड्ढे में गाड़ दें ताकि गाय उसे खा न ले।
नवजात बछड़े की नाभि नाल यदि नहीं टूटी है तो थोड़ी दूर पर दो जगह बांधकर बीच से कैंची से काट दें तथा उस पर टिंचर आयोडीन अथवा बीटाडीन लगा दें। ब्याने के 3 से 4 दिन बाद सामान्य दाना जिसमें गेहूं का चोकर, दाल की चुनी व खल देना आरंभ कर सकते हैं।हरा चारा यदि उपलब्ध हो तो आवश्यक रूप से खिलाना चाहिए। लगभग 50 ग्राम नमक भी पशु को देना चाहिए। यदि पशु में पहले के प्रसव में कैल्शियम की कमी देखी गई हो तो कैल्शियम की जेल 3 दिन तक अवश्य पिलाना चाहिए।
कुछ पशु ब्याने के तुरंत बाद अपने बछड़े को लेकर काफी अधीर हो जाते हैं। पशुपालक ऐसे पशुओं का ध्यान रखें कि वह बछड़े को गाय से ज्यादा दूर नहीं ले जाएं और स्वयं का भी ध्यान रखें अन्यथा पशु उन्हें चोटिल कर सकता है ।
बछड़े के मरने की स्थिति में भी कुछ पशु अत्याधिक अधीर हो जाते हैं वह अपना दूध नहीं उतारते तथा ग्वाले को दूध निकालने नहीं देते ऐसे पशुओं से धीरे-धीरे प्रेम का बर्ताव करें तथा यदि कोई दूसरा बछड़ा उपलब्ध हो तो उस गाय के योनि का स्राव, बछड़े पर लगाकर, गाय के पास ले जाकर उसे गाय द्वारा अपनाने का प्रयास करें यदि ऐसा प्रयास भी सफल ना हो सका तो चिकित्सक से सलाह लें।
गाय के मरने की स्थिति में नवजात बछड़े को दूध चिकित्सक की सलाह से पिलाएं बछड़े को उसके बजन का 10 प्रतिशत दूध बोतल से दिन में दो से तीन बार 3 हफ्ते तक पिलाना चाहिए।
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए। |
मेरे यहाँ लगभग हर गाय या भैंस बच्चे को जन्म देने के कुछ दिनों बाद मर जाती हैं, जबकि उनमें कोई रोग या अन्य कोई लक्षण नहीं दिखते। ऐसा क्यों होता है?
दूसरा प्रश्न ये है कि आम आदमी अपने पशुओं का Insurance कहाँ और कैसे करवाएं?