खेती-बाड़ी के साथ-साथ पशुपालन ग्रामीण आंचल में आजीविका का एक मुख्य साधन है। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो। शिक्षा प्राप्ति ही एक ऐसा साधन है जो मनुष्य को अन्धकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाता है। ज्ञान प्राप्ति की कोई भी आयु नहीं होती है उसे कभी भी कहीं भी प्राप्त किया जा सकता है। ज्ञान प्राप्ति के बिना कोई भी कार्य पूर्ण सफल नहीं हो सकता है। कई बार जाने-अनजाने में पशुपालकों को तकनीकी ज्ञान का अभाव होने के कारण अर्थिक हानि का सामना करना पड़ता है। अतः पशुओं से उचित आमदनी के लिए पशुपालन संबंधी सामान्य तकनीकी ज्ञान होना अतिआवश्यक है। यहां इस लेख में ऐसे ही बिंदुओं पर ध्यान केन्द्रित करने की कोशिश की गई जिनके बारे में ज्ञान होने के बावजूद भी पशुपालकों को उनकी मेहनत का पूरा लाभ नहीं मिलता है।
रोगी पशुओं की समय रहते पहचान करना आवश्यक
पशु बात नहीं कर सकते, लेकिन वे संवाद कर सकते हैं। देरी से उपचार आरंभ करने से उत्पादकता और जीवन की भी हानि हो सकती है, इसलिए उनके संवाद की पहचान करना बहुत महत्वपूर्ण है। एक बीमार पशु में रोग के लक्षणों में से एक या एक से अधिक दिखाई देते हैं तो, वह बीमार माना जा सकता है और पशु चिकित्सक की सलाह ली जा सकती है।
पशुओं का संक्रामक रोगों से करें बचाव
संक्रामक रोग पशुधन की मृत्यु होने वाले मुख्य कारणों में से एक है। संक्रामक रोग वर्ष के दौरान नियमित समय पर महामारी के रूप में होते हैं। टीकाकरण के माध्यम से इन्हें नियंत्रित किया जा सकता है। अब लगभग सभी प्रमुख संक्रामक रोगों के लिए टीके उपलब्ध हैं।
परजीवियों के प्रति लापरवाही न बरतें
अंतः एवं बाह्य परजीवियों की वर्ष भर होने वाली समस्या है जिसे कृमिनाशकों से नियंत्रित किया जा सकता है। पशुओं के रक्त, आंतरिक अंगों (आँतों, यकृत, आमाशय और फेफड़ों) और त्वचा पर अनेक जीव, कीड़े और कृमि रहते हैं। ये परजीवी पशुओं की उत्पादकता को कम कर देते हैं। इसलिए हर पशुपालक को पशु चिकित्सक की सलाह के अनुसार इन परजीवियों से अपने पशुधन की रक्षा के लिए प्रयास करना चाहिए। बाह्य परजीवियों (चिचड़ी, मक्खियों, पिस्सुओं, घुन और आंतरिक (गोल कृमि, हुकवर्म, और पत्ताकृमियों) के लिए भी प्रभावी दवाएं उपलब्ध हैं।
पशुओं का टीकाकरण अवश्य करवायें
टीकाकरण ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत निरोगी पशुओं को एक रोग विशेष के प्रति संक्रमण रोधी टीका लगाया जाता है। गलगोटू, मुंह-खुर पका रोग, लंगड़ी बुखार इत्यादि कई प्रकार के रोगों से बचाने के लिए पशुओं को पशुपालन विभाग द्वारा समय-समय पर टीके लगाये जाते हैं। टीका लगने के बाद पशुओं को हल्का बुखार, दुधारू पशुओं का एक-दो के लिए दूध कम हो सकता है, टीका लगने वाले स्थान पर सूजन हो सकती है जो अपने आप या थोड़ी दवा देने के बाद ठीक हो जाते हैं। लेकिन टीका न लगवाने के स्थिति में रोग आने के बाद कई बार पशु की मृत्यु भी हो जाती है। अतः समय पर अपने पशुओं का टीकाकरण करवा कर पशुधन को रोगरहित रखने हरसंभव प्रयास करते रहना चाहिए।
टीकाकरण और कृमिनाशकों के महत्व जानकारी अतिमहत्वपूर्ण
- टीकाकरण कार्यक्रम के अनुसार निर्धारित रूप में प्रदान किया जाना चाहिए ।
- सभी पशुओं को टीकाकरण से कम से कम एक सप्ताह पूर्व कीटनाशकों का छिड़काव और कृमिनाशक की दवा दी जानी चाहिए। यह पशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है ।
- सभी पशुओं को एक साथ (छोटे-बड़े स्वस्थ या कमजोर) टीका लगाया जाना चाहिए।
- टीके के नाम, बीमारी का नाम जिसके लिए इसका उपयोग किया गया हो, उत्पादन करने वाली फर्म, बैच नंबर, निर्माण और समाप्ति की तिथि सहित टीके के बारे में सभी जानकारी बनाए रखी जानी चाहिए।
- टीकाकरण के बाद भूख, बुखार और दूध उत्पादन में कमी सामान्य लक्षण हैं। यह प्रभाव अस्थायी हैं और इनके लिए किसी उपचार की आवश्यकता नहीं होती है ।
- टीकाकरण के तुरन्त बाद पशु को तनाव में नहीं रखा जाना चाहिए। उन्हें पौष्टिक आहार खिलाना और विश्राम करने देना चाहिए।
- पशु को टीका लगाए जाने तक टीके को ठंडी श्रृंखला में बनाए रखा जाना चाहिए ।
नियमित रूप से कृमि निवारक और समय पर टीकाकरण द्वारा, उत्पादकता घाटे के एक प्रमुख कारण से बचा जा सकता है। लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि जब भी पशु बीमारी के लक्षण दिखाता है तो पशुओं के स्वास्थ्य देखभाल के लिए समय पर कार्यवाही करने की आवश्यकता है। बड़े पैमाने पर टीकाकरण अभियान संक्रामक रोगों को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ।
एंटीबायोटिक दवाओं के हानिकारक उपयोग को समझें
आमतौर पर पशु के थोड़ा सा भी बीमार होने की स्थिति में नजदीकी पंजीकृत या अपंजीकृत एवं अकुशल पशुचिकित्सक से उसका इलाज करवाता है। लेकिन ऐसे भी बहुत से पशुपालक हैं जो स्वयं ही अपने पशु का इलाज करते हैं और जाने-अंजाने में उसे एंटीबायोटिक्स या रोगाणुरोधी औषधियां देते हैं। लेकिन हमें इस बात को भी बौद्ध होना चाहिए कि यही औषधियां पशु उत्पादों में उत्सर्जित होती हैं और ऐसे संदूषित उत्पाद मानवता और पर्यावरण के लिए घातक होते हैं। यह स्थिति अकुशल चिकित्सकों से और भी अधिक गंभीर हो जाती है। अतः पशु के बीमार होने की स्थिति में ऐसी औषधियों के उपयोग से बचना चाहिए और मानवता एवं पर्यावरण हितैषी बनना चाहिए। बीमार पशुओं का इलाज केवल कुशल एवं पंजीकृत पशु चिकित्सक से करवना चाहिए।
प्रतिस्थापना हेतु नवजात बछड़ियों और कटड़ियों की देखभाल भी आवश्यक
प्रसव के बाद जैसे ही बच्चा खड़ा होता है तो उसे उसकी मां का पहला दूध अर्थात खीस पिलाना चाहिए। खीस में बहुत अधिक मात्रा में रोगाणुओं से लड़ने के तत्व होते हैं अर्थात यह रोगाणु प्रतिरोधी का कार्य करता है और बच्चे को संक्रमण से बचाता है। बच्चे को समय पर अर्थात 10 से 30 दिन के अंदर सिंगरहित करवा देना चाहिए।
पहचान और रिकॉर्ड रखने के लिए पशुओं की टैगिंग अवश्य करवायें
कान में टैंग डालने की प्रक्रिया को टैगिंग कहते हैं। विश्वभर में यह पशुओं की पहचान का सबसे आसान और लोकप्रिय तरीका है। कान में टैग डालने से पशुओं का आसान पर्यवेक्षण, प्रबंधन और सटीक रिकॉर्ड रखने से उनके रखरखाव की सुविधा हो जाती है। कान में टैग डालने के बाद यदि उस स्थान पर मवाद हो जाती है तो उसकी सफाई करके कीटाणुनाशक दवा लगानी चाहिए।
पशुओं के आवास का कीटाणुशोधन भी करें
कीटाणुशोधन का अर्थ है किसी स्थान से रोगजनक सूक्ष्मजीवों का विनाश ताकि पशुओं के बांधने की जगह संक्रमण मुक्त हो जाए। कीटाणुशोधन को भौतिक, रासायनिक और गैसीय उत्प्रेरकों की मदद से किया जा सकता है। रासायनिक कीटाणुनाशक पशु चिकित्सा पद्धति में व्यापक रूप से उपयोग किए जाते हैं, क्योंकि उनके जलीय घोल तैयार करना आसान है। रासायनिक कीटाणुनाशक सस्ते हैं और व्यापक स्तर पर कार्य करते हैं। यह अच्छे कीटाणुनाशक होते हैं जो न तो दाग और न ही अन्य सामग्री को नुकसान पहुंचाते हैं और अवांछनीय गंध से भी मुक्त होते हैं। कीटाणुशोधन के लिए निम्नलिखित रासायनों का उपयोग किया जा सकता है:
- बोरिक एसिड (4-6 प्रतिशत), सोडियम हाइड्रोक्साइड (1, 2 और 5 प्रतिशत) और कैल्शियम हाइड्रॉक्साइड (चूने का पानी, बुझा हुआ चूना) आमतौर पर पशु पशु आवास की कीटाणुशोधन के लिए बाजार में उपलब्ध हैं।
- फॉर्मलडिहाइड (5-10 प्रतिशत) का उपयोग पशु घरों का फर्श धोने के लिए किया जा सकता है।
- ग्लूटारएल्डेहाइड 2 प्रतिशत जलीय घोल उपकरणों के कीटाणुशोधन के लिए उपयोगी है।
- क्वाटरनरी अमोनियम यौगिक सेवलोन डिटर्जेंट और साबुन हैं, मुख्य रूप से कपड़े धोने के लिए उपयोग किया जाता है। ये तेल, गंदगी और अन्य कार्बनिक पदार्थों को हटाते हैं।
- ब्लीचिंग पाउडर (कैल्शियम हाइपोक्लोराइट), कॉपर सल्फेट (5 मि.ग्रा. प्रति लीटर) और पोटेशियम परमैंगनेट (1-2 मि.ग्रा. प्रति लीटर) आमतौर पर कीटाणुनाशक होते हैं। कैल्शियम ऑक्साइड का उपयोग मृत पशुओं को गड्डे में दबाने में किया जाता है।
- 5 प्रतिशत फेनाइल के साथ मिश्रित बुझा हुआ चूने का उपयोग आमतौर पर कीटाणुनाशक के रूप में दीवारों की सफेदी में किया जाता है।
- 25 लीटर पानी के साथ 1 किलो ब्लीचिंग पाउडर (क्लोरीनयुक्त चूना) का उपयोग किया जा सकता है जो बहुत अच्छी गन्ध पैदा करता है।
- फेनॉल (0.5 से 5 प्रतिशत) और सोडियम कार्बोनेट (2.5-4 प्रतिशत) का उपयोग पशु आवास की इमारतों के लिए किया जा सकता है।
नये अथवा खरीदे गये पशुओं का संगरोध अवश्य
संगरोध (क्वारंटाइन) स्पष्ट रूप से स्वस्थ पशुओं को अन्य खासतौर पर नये खरीदे गये पशुओं जिन में संक्रमण का जोखिम होता है, से अलग रखने की प्रक्रिया है। संगरोध अवधि रोगोद्भवन अवधि पर निर्भर करती है। व्यवहारिक तौर पर उचित अवधि के रूप में 30 से 40 दिनों की न्यूनतम अवधि स्वीकार्य होती है लेकिन रेबीज और आंतों की टीबी जैसी बीमारियों के मामले में यह अवधि 6 महीने तक की होती है। आम तौर पर नए खरीदे गए पशुओं और मेले से लौटे पशुओं को संगरोध आवास में रखा जाना चाहिए। संगरोध के लिए फार्म के द्वार पर शेड का निर्माण किया जाना चाहिए। नये खरीदे गये या मेले से वापिस आये पशुओं से बाह्य परजीवी हटाने के लिए उन्हें 25-26वें दिन बाह्य परजीवी नाशक के घोल से नहलाना चाहिए।
बीमार पशुओं का पृथक्करण अवश्य करें
पृथक्करण किसी भी संक्रामक रोग के प्रकोप की स्थिति में पीड़ित और स्पष्ट रूप से स्वस्थ पशुओं से संपर्क से अलग रखने की प्रक्रिया है। ऐसे अलग किये गये रोगी पशुओं को अलग बाड़े में स्वस्थ पशुओं से दूर रखा जाना चाहिए। यदि अलग बाड़ा उपलब्ध नहीं है तो अलग किये गये पशुओं को शेड के एक छोर पर बांधा जाना चाहिए और जहां तक संभव हो सके स्वस्थ पशुओं से दूर रखें। ऐसे रोगी पशुओं की देखभाल करने वाले और उनके लिए उपयोग किये जाने वाले उपकरण भी अलग-अलग होने चाहिए। यदि व्यावहारिक कारणों से यह संभव नहीं है तो रोगी पशुओं को स्वस्थ पशुओं के बाद ही देखना चाहिए। पृथक्करण पशुओं में उपयोग के बाद उपकरण अच्छी तरह से कीटाणुरहित करने चाहिए। देखभाल करने वाले व्यक्तियों को एंटीसेप्टिक लोशन से अपने हाथ, पैर और गमबूट धोने चाहिए और अपने कपड़े बदल कर उन्हें भी कीटाणुनाशक से धोना चाहिए। अलग किये गये पशुओं के पूरी तरह ठीक होने के बाद एक निश्चित अवधि पर ही स्वस्थ पशुओं के साथ रखना चाहिए।
आवश्यक है संतुलित आहार
किसी भी जीव के लिए आहारीय सेवन अतिआवश्यक है लेकिन पशुपालन में संतुलित आहार का विशेष महत्व है। पालतु पशुओं को हर प्रकार की खाद्य-सामग्री उनको खाने के लिए पशुपालक द्वारा ही प्रदान की जाती है। आहार में मौजूद तत्वों जैसे कि शर्करा, प्रोटीन, वसा, खनिज या विटामिन की कमी होने से पशु के कमजोर, उत्पादन में कमी, बीमार, गर्भ न ठहरना इत्यादि समस्याएं हो जाती हैं जिनसे पशुपालकों को आर्थिक हानि भी उठानी पड़ती है। पालतु पशुओें को हरा एवं सूखा चारा उचित मात्रा में प्रदान करने के साथ-साथ उनको सांद्र आहार (कंसनट्रेट फीड) भी खिलाना आवश्यक है। अतः नजदीकी पशु चिकित्सक से संपर्क करके आवश्यकतानुसार अपने पशुओं के संतुलित आहार की सलाह अवश्य लेनी चाहिए।
सफल पशुपालन के लिए पानी का उचित प्रबंधन
पशुओं के आवास में पशुओं के की उचित आहार व्यवस्था के साथ-साथ पानी की उपलब्धता का भी ध्यान रखना बहुत आवश्यक है। डेयरी कार्यों में वैसे भी पानी की अधिक आवयकता होती है और खासतौर से ग्रीट्ठ ऋतु में पशुओं को पीने के साथ-साथ नहलाने के लिए पानी उचित मात्रा में अवश्य होना चाहिए।
सही प्रजनन- प्रतिवर्ष एक बच्चा
पशुपालन में पशु प्रजनन एक धुरी का कार्य करता है जिसमें पशु अपनी संतान वृद्धि करके पशुपालकों की आर्थिक वृद्धि करते हैं। समय पर प्रजनन के लिए पशुओं को संतुलित आहार देना चाहिए। ‘प्रति मादा से प्रतिवर्ष एक बच्चा’ प्रत्येक पशुपालक का लक्ष्य होना चाहिए और आवश्यकता होने पर नजदीकी पशु चिकित्सालय से संपर्क अवश्य करना चाहिए।
लाभदायक पशुपालन के लिए पशु की नस्ल का सही चयन
पशुपालन व्यवसाय में पशुओं की नस्ल का चयन बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। खासतौर डेयरी व्यवसाय में, दूधारू पशुओं को दुग्ध उत्पादन के लिए पाला जाता है। यही बात अण्डा और मांस करने वाले पशुओं के बारे में भी लागू होती है। हमेशा स्मरण रखना चाहिए कि हर नस्ल का पशु अच्छा एवं अधिक दुग्ध अथवा अण्डा या मांस उत्पादन नहीं कर सकता है। इसलिए पशु की नस्ल का चयन करते समय पशुपालकों को सावधानी अवश्य बरतनी चाहिए।
मादाओं का समय पर कृत्रिम गर्भाधान करवाएं
मदकाल में आयी मादाओं में मद के सही लक्षणों जैसे कि रंभाना, खाना-पीना कम करना, अन्य पशुओं को सूंघना एवं उन पर चढ़ना, योनि से तरल चिपचिपा एवं पारदर्शी पदार्थ निकलना, योनि के बाह्य अंगों में सूजन आदि का ज्ञान होना अतिआवश्यक है। ऐसी मादाओं को 12 से 24 घण्टे के अंदर ही पंजीकृत विभागीय सेवा प्रदाता से कृत्रिम गर्भाधान करवाना चाहिए। कृत्रिम गर्भाधान केवल सरकार द्वारा पंजीकृत सांड/झोटे के वीर्य तृण से ही करवाना चाहिए।
पशु उत्पादों में मिलावट करने से बचें
हमेशा स्मरण रखें कि भले ही क्वांटीटी अर्थात मात्रा कम ही क्यों न हो लेकिन कभी भी क्वालिटी अर्थात गुणवत्ता में कमी नहीं आनी चाहिए। क्वालिटी ही एक ऐसी चीज है जिसकी कभी कमी नहीं होती है, इसी के साथ ही क्वांटीटी रूपी उत्पादन बढ़ता है। क्वालिटी में कमी तो क्वांटीटी रूपी उत्पादन में घटा होते देर नहीं लगती है। डेयरी व्यवसाय में भी यही बात लागू होती है। यदि दूध और इसके उपोत्पादों की गुणवत्ता होगी तो पशुपालकों को उचित दाम मिलने के साथ-साथ मुनाफा में भी बढ़ोतरी होती है। यदि दूध में पानी या किसी और चीज की मिलावट करेंगे तो व्यवसाय के लिए हानिकारक हो सकता हैं। पशु उत्पादों में मिलावट करने से आपका मुनाफा तो बढ़ सकता है लेकिन मिलावट करने पर उपभोक्ता उत्पादों को नापसंद करने लगेंगे व आपके खिलाफ शिकायत भी हो सकती है।
पशु उत्पादों के मूल्य संवर्धन की और भी ध्यान दें
संवर्धन ऐसी प्रक्रिया है जिसमें उत्पादक मूल उत्पाद न बेच कर उपउत्पाद तैयार करके बाजार या उपभोगता को बेचता है। ऐसा करने से उत्पादक को अतिरिक्त और अच्छी आमदनी मिलती है। जैसा कि पशुपालक दूध निकाल कर उसे बेचने की बजाय उसकी दही, घी, पनीर या छाछ तैयार करके बेचता है तो उसकी आमदनी में बढ़ोतरी होती है।
छोटी-छोटी मशीनों के उपयोग से बनायें लाभकारी व्यवसाय
हमेशा ही मानव जीवन आगे बढ़ता रहा है, उसने अपने अपने कार्य को आसान करने के लिए यंत्रों का सहारा लिया है। हम छोटे उपकरणों से बड़े उपकरणों की ओर बढ़ रहे हैं लेकिन हमें यह ज्ञात होना चाहिए कि छोटे उपकरणों जैसे कि पशु आहार के लिए ग्राइंडिंग मशीन और मिक्सर के उपयोग से घर या फार्म पर संतुलित आहार तैयार करके सस्ता आहार बनाया जा सकता है। इसी प्रकार पशु उत्पादों के मूल्य संवर्धन के लिए क्रीम सेपरेटर मशीन, खोया बनाने की मशीन का उपयोग किया जा सकता है। बड़े ट्रैक्टर के स्थान पर छोटे ट्रैक्टर से भी अच्छा कार्य लिया जा सकता है। अतः पशुपालकों को मंहगे उपकरणों की होड़ से बचकर सस्ते एवं उपयोगी यंत्रों का उपयोग करना चाहिए।
जोखिम दर को कम करने के लिए पशुओं का बीमा भी कराना
पशुओं का बीमा पशुपालकों को उनके पशुओं की मृत्यु उपरांत आर्थिक सुरक्षा प्रदान करता है। पशुओं के बीमा के लिए उनको कान में टैग डाला जाता है जिसके गुम या गिर जाने पर पुनः डलवाना चाहिए अयन्था ऐसी स्थिति में पशु की मृत्यु होने पर क्लेम नहीं मिलता है। इसी के साथ बीमा का भुगतान करने वाली कंपनी को पशु का चिकित्सा चार्ट भी उपलब्ध करवाना होता है जिसको केवल पंजीकृत पशु चिकित्सक ही दे सकता है। अतः पशुपालकों को अपने बीमार पशुओं का इलाज केवल भारतीय पशु चिकित्सा परिषद के द्वारा पंजीकृत पशु चिकित्सक से ही करवाना चाहिए। स्मरण रहे कि सरकार द्वारा संचालित हर पशुचिकित्सालय में भारतीय पशु चिकित्सा परिषद से पंजीकृत चिकित्सक की ही तैनाती होती है।
सरकारी सेवाओं का लाभ अवश्य उठाना चाहिए
किसी भी राष्ट्र की दशा का आंकलन उसके नागरिकों की स्थिति से पता चलता है। किसी भी नागरिक को लाभ होने का सीधा सा अर्थ होता है कि राष्ट्र के सकल घरेलु उत्पादन में बढ़ोतरी होना है। इसीलिए सरकार की तरफ से नागरिकों के उत्थान के लिए विभिन्न योजनाओं को क्रियान्वित किया जाता है। देश में पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने बहुत से पशु पशुचिकित्सालय खोलने के साथ-साथ विभिन्न योजनाओं को शुरू किया हुआ है। अतः पशुपालकों को इन योजनाओं को लाभ लेने के लिए अपने नजदीकी पशु पशुचिकित्सालय में कार्यरत कर्मचारियों से अवश्य मिल कर लाभ उठाना चाहिए।
योजनाओं का उचित उपयोग करें
नागरिकों के रोजगार प्रदान और आय बढ़ाने के लिए सरकार प्रति वर्ष विभिन्न प्रकार की योजनाओं का सृजन करती है। लेकिन कुछ पशुपालक इन योजनाओं खासतौर से ऋण संबंधी योजनाओं को सही ढंग से क्रियान्वयन में नहीं लाते हैं। ऐसा करने से पशुपालकों सहित राष्ट्र को आर्थिक हानि उठानी पड़ती है। अतः पशुपालन व्यवसाय कर रहे पशुपालकों या इस व्यवसाय को शुरू करने वाले नागरिकों को सरकार की विभिन्नाओं का सही उपयोग कर उचित लाभ उठाना चाहिए।
पंजीकृत पशु चिकित्सक से ही बीमार पशुओं का इलाज करवायें
किसी भी राष्ट्र में बीमार पशुओं का इलाज करने के लिए सरकार द्वारा पंजीकृत चिकित्सक ही मान्य होते हैं। भारत में यह कार्य भारतीय पशु चिकित्सा परिषद या इसके द्वारा अनुमोदित राज्य पशु चिकित्सा परिषद करती है। बिना पंजीकरण के चिकित्सा करना गैर-कानूनी घोषित है। ऐसा करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही का प्रावधान भी है। पशुपालकों को एक बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि बीमाकृत पशुओं का मृत्योप्रांत क्लेम लेने के लिए केवल पंजीकृत पशु चिकित्सक से ही अपने बीमार पशुओं का इलाज करवाना चाहिए अन्यथा उनको क्लेम का भुगतान नहीं किया जाता है।
शव का निस्तारण
मृत पशु के शव के सुरक्षित निपटान का प्राथमिक उद्देश्य अन्य अतिसंवेदनशील पशुओं या मनुष्यों को बीमारी के फैलने से रोकना सुनिश्चित करना है। मृत पशुओं के शव का निस्तारण करके उन्हें हड्डा-रोड़ी में ले जाया जाता है या उन्हें खाल सहित मिट्टी के नीचे गहरे गड्डे में दबा दिया जाता है। गहरे गड्डे में मिट्टी से दबाने से पहले शव के ऊपर पर्याप्त मात्रा में चूना या कीटाणुनाशक भी डालना चाहिए। मृत पशुओं के शव का निस्तारण करते उसके पैर ऊपर की ओर होने चाहिए। शव उठाने के बाद मृत्यु वाले स्थान को कीटाणुनाशक घोल से साफ करना चाहिए।
पशुपालक भी रखें अपने स्वास्थ्य का ध्यान
यदि आप पशुपालन करते हैं तो तो आपको अपने स्वास्थ्य का भी उचित ध्यान रखना चाहिए अन्यथा आप प्राणीजन्य रोगों अर्थात पशुओं से लगने वाले रोगों का शिकार हो सकते हैं। टीबी, ब्रुसेलोसिस, बर्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू, साल्मोनेलेसिस, कोलाई बेसिलोसिस आदि अनेक रोग इसके उदाहरण हैं। पशुओं के मल में पैदा होने वाले जीवाणु और उन पर बैठने वाली मक्खियां आपको बहुत बीमार कर सकती हैं। अतः अपने आपकी स्वच्छता बनाये रखने के साथ-साथ पशुओं और उनके आवास की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
नियमित रूप से चिकित्सक से जांच करवायें
यदि पशु कभी बीमार होता है, या आपको वह कुछ सुस्त दिखाई देता है तो तुरंत उसे पंजीकृत चिकित्सक को ही दिखायें। ऐसा हो सकता है की उसका स्वास्थ्य अधिक खराब हो। कभी भी पशु के बीमार होने पर स्वयं उसका इलाज करने की कोशिश न करें, यह आपके पशु के लिए हानिकारक साबित हो सकता है। इसी प्रकार पशु पालकों को भी अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहना चाहिए और पंजिकृत चिकित्सक से ही उपचार करवाना चाहिए।
पशु उत्पादों का सही उपयोग करें
पशुओं को उनके मूल उत्पादों जैसे कि दूध, अण्डा, मांस के लिए पाला जाता है। लेकिन उनके द्वारा उत्पादित अन्य उत्पाद जैसे कि मल-मूत्र के उपयोग की तरफ कोई भी ध्यान नहीं दिया जाता है। पशुओं के मल-मूत्र का उपयोग बायोगैस बनाने में भी करना चाहिए। पशुओं के मल-मूत्र का उपयोग कृषि उत्पादन में किया जा सकता है जिसके पशुपालकों और कृषकों को समय-समय पर उनके सही उपयोग के बारे में पशुपालन और कृषि विभाग से समय-समय पर प्रशिक्षण लेना चाहिए।
रिकॉर्ड का रखरखाव
पशुपालन में रिकॉर्ड का रख-रखाव अतिआवश्यक है। रिकॉर्ड न होने की स्थिति में पशुओं में होने वाली समस्याओं का सही पता नहीं चलता है और पशुपालकों को आर्थित हानि होने के साथ-साथ कई बार पशु हानि भी उठानी पड़ती है। अतः प्रतिदिन का लेखा-जोखा एक रजिस्टर में रखना आवश्यक है। लेखा-जोखा रखने के लिए उनकी पहचान रखना आवश्यक है जिसके लिए उनके कान में टैग लगवाना महत्वपूर्ण है जिसे पशुपालन विभाग द्वारा निःशुल्क लगाया जाता है।
वास्तव में ‘ज्ञान ही वह शक्ति है’ जो हमारे जीवन में बहुत महत्व रखता है क्योंकि यह एक शारीरिक रुप से कमजोर व्यक्ति को भी विश्व का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति बनाने की क्षमता रखता है। पशुपालकों का अपरिपूर्ण ज्ञान उनको आर्थिक हानि पहुंचाने के साथ-साथ उनके स्वास्थ्य और परिवेश को भी हानि पहुंचाता है। हमें यह विधित होना चाहिए कि ज्ञान की कोई भी सीमा नहीं है। यह किसी को कम तो किसी अधिक होता है। इसको जितना प्राप्त किया जाये उतना ही बढ़ता जाता है जो उसके स्वयं, परिवार, राष्ट्र और पर्यावरण के लिए अच्छा होता है। अतः पशुपालकों को समय-समय पर ज्ञान वृद्धिशील होना चाहिए जो उन्हें पशुपालन में होने वाले असामयिक नुकसान से बचाने में सहायक सिद्ध होगा।
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