देश के सभी जिलों में 1 अक्टूबर 2018 से 20 वीं पशुगणना

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देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के सभी जिलों में 1 अक्टूबर से 20 वीं पशुगणना आयोजित की जाएगी। यह गणना सभी गांवों और शहरी वार्डों में की जाएगी। परिवारों, घरेलू उद्यमों/गैर-घरेलू उद्यमों और संस्थानों के पास उपलब्ध जानवरों की विभिन्न प्रजातियां (गाय, भैंस, मिथुन, याक, भेड़, बकरी, सुअर, घोड़ा, टट्टू, खंभे, गधे, ऊंट, कुत्ते, खरगोश और हाथी) तथा कुक्कुट पक्षियों (पक्षी, बतख, इमू, टर्की, बटेर और अन्य कुक्कुट पक्षियों)  को गिना जाएगा।

पशुगणना पशुपोषण डेरी पशु गाय हरा चारा

अखिल भारतीय पशुगणना पाँच वर्षो के अन्तराल पर पूरे देश में आयोजित की जाती हैं। माननीय प्रधान मंत्री के डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के तहत पशुगणना प्रथम बार सम्पूर्ण भारत वर्ष में पेपर (अनुसूची) के स्थान पर टेबलेट के माध्यम से की जाएगी।ऑनलाइन आंकड़े स्थानांतरित करने के लिए राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) द्वारा एक मोबाइल एप्लिकेशन सॉफ्टवेयर पहले ही विकसित किया जा चुका है। यह अपेक्षा की जाती है कि टैबलेट के माध्यम से पशुगणना के आंकड़े संग्रह, आंकड़े की गणना और रिपोर्ट में लगने वाले समय को कम करने तथा सूचना की विश्वसनीयता बढाने में मददगार साबित होगा।

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पशुगणना विभिन्न प्रजातियों की नस्ल-वार विश्वसनीय जानकारी के माध्यम से विलुप्तप्राय स्वदेशी नस्लों के निर्धारण के लिए महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करेगी और उनके संरक्षण के लिए प्रयास करने हेतु नीतियां तैयार करने में मील का पत्थर साबित होगी। इस पहलू को ध्यान में रखते हुए, 20 वीं पशुगणना नस्ल-वार की जायेगी, जो नस्ल सुधार के लिए नीतियां तथा कार्यक्रमों को तैयार करने में सहायक होगी। पशुधन और पक्षियों  की नस्ल-वार जानकारी प्रत्येक सर्वेक्षण इकाई से एकत्र की जाएगी। राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (NBAGR) द्वारा पंजीकृत पक्षियों समेत विभिन्न प्रमुख प्रजातियों की नस्लें पशुधन जनगणना में शामिल की जाएंगी। इसके अतिरिक्त मछुआरे से सम्बंधित नवीनतम आंकड़े केवल पशुगणना 2003 के अनुसार उपलब्ध है। इसलिए, मत्स्यपालन जो कि पशुपालन का एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटक है को भी 20 वीं पशुगणना में सम्मिलित किया गया है।

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यह प्रक्रिया ब्रिटिश भारत में 1919-20 में पशुधन से सम्बन्धित सूचनायें एकत्र करने हेतु सीमित क्षेत्रों में शुरू की गयी थी। आजादी के बाद प्रथम पशुगणना वर्ष 1951 में आयोजित की गयी थी तथा उसके पश्चात हर पाँचवे वर्ष यह गणना आयोजित की जाती हैं । पशुगणना का मुख्य उद्देश्य देश में पशु तथा पक्षियों की गणना करना है ताकि पशुपालन क्षेत्र के नीति/कार्यक्रम तैयार किये जा सके, उनका प्रभावी क्रियान्वयन किया जा सके तथा उनके प्रभाव का अनुश्रवण और मूल्यांकन किया जा सके।

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