पशुओं की बीमारियाँ

राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम (NADCP) का उद्देश्य, पशुपालकों की आमदनी दोगुना करना

माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 11 सितंबर 2019 को उत्तर प्रदेश के पंडित दीनदयाल उपाध्याय पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय  एवं गो-अनुसंधान संस्थान मथुरा में  राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम का इस उद्देश्य के साथ शुभारंभ किया था, कि खुरपका मुंह पका रोग अर्थात एफएमडी और संक्रामक गर्भपात अर्थात ब्रूसेलोसिस जैसी पशुओं की अति खतरनाक बीमारियों का समूल उन्मूलन किया जा सके। >>>

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रक्तमूत्रमेह: पर्वतीय क्षेत्र के गौवंशीय पशुयों की एक गंभीर बीमारी

ये पशु एक असंक्रामक, किन्तु चिरकारी रोग जिसे ‘रक्तमूत्रमेह’ या ‘हिमेचूरिया’ कहते हैं, का शिकार हो रहे हैं। यह रोग 4-5 वर्ष से अधिक की आयु वाले वयस्क और वृद्ध >>>

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रक्त परजीवी रोगों की रोकथाम व उपचार

रक्त परजीवी पशुयों को शारीरिक रूप से कमजोर करके उनकी उत्पादन तथा कार्यक्षमता को कम कर देते हैं।   यदि समय पर इलाज न कराया जाए तो पशुयों की मृत्यु भी हो जाती है। कुछ रक्त परजीवी तो बहुत ही घातक होते है, जिनके संक्रमण से पशुयों की मृत्युदर बहुत होती है। >>>

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नेजल सिस्टोसोमोसिस रोग- एक परिचय

नेजल सिसटोसोमोसिस या नेजल ग्रेनुलोमा या नकरा रोग, सिस्टोसोमा नेजेली नामक चपटा कृमि के कारण होता है। इस कृमि को खूनी फ्लूक भी कहा जाता हैं क्योंकि सिस्टोसोमा नेजेली कृमि प्रभावित पशुओं की नाक की शिरा में रहता है। इस रोग का प्रकोप गाय एवं बैल में, भैंस की अपेक्षा अधिक होता है। >>>

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बकरी की बीमारी- पी.पी.आर. महामारी

भारत वर्ष में बकरी पालन खासकर गरीब तथा सीमान्त पशुपालकों के लिए जीविका के प्रमुख साधन है। इसे लोग ए.टी.एम. की तरह उपयोग करते हैं, अर्थात जब भी किसान बन्धु को पैसे की जरूरत पड़ती है उसे उसी समय बेचकर पैसे प्राप्त कर लेते हैं। किसानों को बकरी बेचने के लिए कोई बाजार की आवश्यकता नहीं होती है। >>>

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बाढ़ की विभीषिका के बाद पशुओं में होने वाले रोग एवं उनसे बचाव

बाढ़ की विभीषिका अब प्रति वर्ष बिहार के लिए पर्याय बन गई है जो प्रति वर्ष बिहार के किसी न किसी हिस्से को तबाह कर रही है। इस वर्ष भी बाढ़ गंगा एवं अन्य नदियों के तटवर्ती बिहार के सभी जिलों में भयावह रूप लेकर आई है। तटवर्ती जिलों की आधी से अधिक आबादी और पशु बाढ़ से प्रभावित हैं। बाढ़ के समय पशुओं को बचाने के प्रयास किए गए हैं परन्तु बाढ़ के उपरान्त पशुओं में अनेक बिमारियों के होने की संभावना बनी रहती है। >>>

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रिपीट ब्रीडिंग (बार बार गाभिन कराने पर भी गर्भ न रुकना)

भारत एक कृषि प्रधान देश है। जिसने कृषि के साथ-साथ पशुपालन को एक संलग्न व्यवसाय के रूप में अपना रखा है। निरन्तर जनसंख्या बढने के कारण मानव जाति जंगलों को काटकर तथा कृषि योग्य भूमि मे घर बनाकर रहना शुुरु कर दिया है। >>>

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पशुओं में पीछा (शरीर) दिखाने की समस्या

मादा पशुओं में प्रजनन अंगों के योनि द्वार से बाहर आने से पशु एवं पशुपालकों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। शाब्दिक भाषा में इस समस्या को योनिभ्रंश कहते हैं, जबकि आम बोल-चाल की भाषा में फूल दिखाना, पीछा दिखाना, शरीर दिखाना, गात दिखाना इत्यादि नामों से जाना जाता है। >>>

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दुधारू पशुओं में ऋतुचक्र की समस्या: निदान एवं उपचार

हमारे देश की 60 से 70% आबादी कृषि एवं इनके सहायक उद्योगों से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुडी हुई हैं। पशु पालन कृषि का एक अभिन्न अंग है एवं यह किसानों की रीढ़ की हड्डी  है। अगर किसान पशु पालन को कृषि के साथ -साथ एक इकाई के रूप में रखता है तो वह अति विषम परिस्थितियो का भी सामना कर सकता है। पशु पालक अपने पशुओं की प्रजनन क्षमता पर पूरी तरह से निर्भर रहता है। >>>

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नीलर्सना (ब्लूटंग) रोग कारण और लक्षण

पशुओं में कई प्रकार के रोग होते हैं जिन्हें दो प्रमुख वर्गाे में बाँटा जा सकता हैः संक्रामक रोग- जो जीवाणु, विषाणु, कवक, और परजीवी कारकों से होते हैः असंक्रामक रोग जो कि पशु की शारीरिक क्षमता, पोषक तत्वों की कमी, विषाक्तता तथा उत्पादन से जुड़ी समस्याओं के कारण होते है। >>>

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कोरोना महामारी के समय में पशुओं में गलघोटू एवं मुँह-खुर रोग टीकाकरण का महत्व

आज संपूर्ण विश्व कोरोना वायरस के संक्रमण का न केवल दंश ही झेल रहा है बल्कि इससे जनहानि भी हो रही है। इस महामारी के संक्रमण से पीड़ित व्यक्ति का कोई खास उपचार भी दिखायी नहीं दे रहा है और इसी कारण से भविष्य में इसकी खतरे की घंटी सुनाई देने से संपूर्ण विश्व इससे होने वाले संभावित खतरे से सहमा हुआ है। इस महामारी के समय जनहानि के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मंदी भी छायी हुई है जिसके निकट वर्षों में भी संभलने की आशा प्रतीत नहीं हो रही है। >>>

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पशुधन क्षेत्र में एंटीबायोटिक दवाओं का व्यापक उपयोग: पारिस्थितिकी एवं स्वास्थ्य पर इसका प्रभाव

प्रतिजीवी (एंटीबायोटिक) ऐसे रसायन होते हैं जो जीवाणुओं को मारते हैं एवं जीवाणुओं के संक्रमण को रोकने के लिए उपयोग किए जाते हैं। वे प्रकृति में मिट्टी के बैक्टीरिया और कवक द्वारा निर्मित होते हैं। 1940 के दशक से चिकित्सा में प्रतिजीवी उपयोग की शुरुआत के बाद से एंटीबायोटिक्स आधुनिक स्वास्थ्य सेवा में केंद्रीय रहा हैं। >>>

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डेयरी उद्योग को आर्थिक नुकसान में थनैला का योगदान: जाँच वं प्रबंधन

डेयरी गायों में थनैला (Mastitis) एक विकट समस्या हैं जो कम उत्पादन के साथ दूध की गुणवत्ता के माध्यम से महत्वपूर्ण आर्थिक नुकसान का कारण है। Mastitis डेयरी पशुओ की बीमारी  हैं जो एक सदी से अधिक समय से पहचानी जाती हैं और अभी भी जारी है जो डेयरी उद्योग को आर्थिक नुकसान का एक प्रमुख कारण है। >>>