पशुपालन

पशुओं की देखभाल में बरते जाने वाली विशेष सावधानियां (वर्षा ऋतु में)

बरसात के मौसम में हमें अपने पशुओ का खास/विशेष ध्यान रखना चाहिए। इस मौसम में एक तरफ जहाँ हमें तथा हमारे पशुओ को गर्मी से राहत मिलती है, वही दूसरी तरफ इस मौसम में पशुओ के बीमार होने का खतरा बढ़ जाता है। इस मौसम मे वातावरण में अधिक आर्द्रता तथा तापमान में उतार चढ़ाव के कारण पशुओ पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। >>>

डेरी पालन

हरियाणा का काला सोना : मुर्राह भैंस

मुर्राह नस्ल विश्व की सबसे अधिक दुग्धोत्पादन करने वाली भैंस है जिसको हरियाणा राज्य का गौरव कहा जाता है। उच्च विक्रय दाम होने के कारण मुर्राह भैंस को हरियाणा का काला सोना कहते हैं। दिल्ली के आसपास होने के कारण इसे दिल्ली नस्ल भी कहते हैं। >>>

पशुओं की बीमारियाँ

गायों-भैंसों में योनि बाहर निकलने की समस्या एवं घरेलु उपचार

मादा गायों एवं भैंसों में योनि का शरीर से बाहर निकलना, पशुओं के लिये तो बहुत ही कष्टदायी होता है जबकि पशुपालकों को भी अपने पशु के इलाज के लिए बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है। आमतौर पर इस समस्या को शरीर दिखाना, पीछा निकालना, फूल दिखाना, गात दिखाना इत्यादि कहा जाता है लेकिन शाब्दिक रूप से इस समस्या को योनि भ्रंश कहते हैं। >>>

पशुओं की बीमारियाँ

कोविड-19 के संक्रमण काल के अंतर्गत, पशुपालकों हेतु कोविड-19 से बचाव हेतु महत्वपूर्ण दिशा निर्देश/ सलाह

पशु आवास गृह में आगंतुकों के आवागमन को प्रतिबंधित करें। पशुशाला में कर्मचारियों की संख्या कम रखें। पशुपालकों को पशु आवास गृह में जाने से पूर्व मुंह पर मास्क पहनना चाहिए। >>>

डेरी पालन

दुधारू पशुओं में वर्गीकृत वीर्य / लिंग निर्धारित वीर्य/ सेक्स सीमेन एवं उसके उपयोग से प्रजनन क्रांति

पशुपालकों की इच्छा के अनुरूप संतति प्राप्ति हेतु कृत्रिम गर्भाधान में उपयोग किए जाने वाले वीर्य को सेक्सड सीमेन कहा जाता है। प्रायः कृत्रिम गर्भाधान में सामान्य वीर्य के उपयोग से 50% नर तथा 50% मादा संतति उत्पन्न होती है परंतु वर्गीकृत वीर्य के उपयोग से 90% मादा तथा 10% नर संतति उत्पन्न होती हैं। >>>

पशुओं की बीमारियाँ

असामान्य या कठिन प्रसव (डिस्टोकिया) के कारण एवं उसका उपचार

ब्याने के समय मां स्वयं बच्चे को बाहर नहीं निकाल पाए और बच्चा बीच में ही फंस जाए तो इसे कठिन प्रसव (Dystocia) कहते हैं। ब्याने की तीन अवस्थाएं होती हैं >>>

डेरी पालन

गाय की उत्पादन क्षमता में वृद्धि हेतु प्रतिवर्ष एक बच्चा प्राप्त करने हेतु सलाह

अपनी  गाय से प्रतिवर्ष एक बच्चा एवं भैंस से हर 13 महीने पर एक बच्चा प्राप्त करने के लिए और अत्यधिक दुग्ध उत्पादन हेतु पशुपालक बंधु निम्न बिंदुओं पर ध्यान दें >>>

पशुपालन

गर्मियों में पशुओं पर शीतलन प्रणाली का प्रभाव

पशु का शारीरिक तापमान, जब उनके सामान्य शारीरिक तापमान से अधिक हो जाता है, तब वे गर्मी अनुभव करते है। गर्मी में उत्पन्न तनाव के दौरान, पशुओं के लिये सामान्य दूध उत्पादन या प्रजनन क्षमता बनाये रखना मुश्किल होता है। गर्मी तनाव के समय पशु अपने शारीरिक समायोजन द्वारा शरीर का तापमान नियमित बनाये रखते हैं। >>>

पशुपालन

गाय/भैंस की खरीदारी में समझदारी

गाय एवं भैंस पालन वर्तमान परिदृश्य में रोजगार का अच्छा साधन है। दूध तथा दूध से बनने वाले सामानों की मांग कभी घटती नहीं है। हमेशा बाजार में इन सभी चीजों की मांग बनी रहती है। गो /भैंस पालन में रोजगार करने से पहले दुधारू गाय भैंस का चयन की जानकारी आवश्यक है। चयन करने के पहले इन बिंदुओं पर ध्यान देना बहुत आवश्यक है। >>>

पशुपालन

हरियाणा राज्य में स्वदेशी गायों का सरंक्षण एवं विकास (गौसंवर्धन)

भारत में हरियाणा का दुग्ध उत्पादन में एक महत्वपूर्ण स्थान है। वर्ष 2017–18 में 89.75 लाख टन वार्षिक दुग्ध उत्पादन के साथ, राज्य में प्रति व्यक्ति प्रति दिन की >>>

पशुओं की बीमारियाँ

नेजल सिस्टोसोमोसिस रोग- एक परिचय

नेजल सिसटोसोमोसिस या नेजल ग्रेनुलोमा या नकरा रोग, सिस्टोसोमा नेजेली नामक चपटा कृमि के कारण होता है। इस कृमि को खूनी फ्लूक भी कहा जाता हैं क्योंकि सिस्टोसोमा नेजेली कृमि प्रभावित पशुओं की नाक की शिरा में रहता है। इस रोग का प्रकोप गाय एवं बैल में, भैंस की अपेक्षा अधिक होता है। >>>

डेरी पालन

गाय व भैंसों के लिए सन्तुलित आहार

शरीर को सुचारू रूप से कार्य करने के लिए पोषण की आवश्यकता होती है, जो उसे आहार से प्राप्त होता है। अन्य जीवधारियों की तरह गाय व भैंसों को भी जीवन प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलाने के लिए खाद्य पदार्थों की आवश्यकता होती है। गाय व भैंस शाकाहारी होते हैं एवं चारा ही इनका मुख्य भोजन होता है। >>>

पशुओं की बीमारियाँ

दुधारू पशुओं में ऋतुचक्र की समस्या: निदान एवं उपचार

हमारे देश की 60 से 70% आबादी कृषि एवं इनके सहायक उद्योगों से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुडी हुई हैं। पशु पालन कृषि का एक अभिन्न अंग है एवं यह किसानों की रीढ़ की हड्डी  है। अगर किसान पशु पालन को कृषि के साथ -साथ एक इकाई के रूप में रखता है तो वह अति विषम परिस्थितियो का भी सामना कर सकता है। पशु पालक अपने पशुओं की प्रजनन क्षमता पर पूरी तरह से निर्भर रहता है। >>>