यह रोग मूत्र तंत्र का ऐसा रोग है जिसमें पीड़ित पशु पेशाब करने में दर्द महसूस करता है तथा रूक रूक कर थोड़ा थोड़ा पेशाब करता है।
कारण
यह अधिकतर जीवाणु संक्रमण के कारण होता है। सामान्य पशु में जीवाणु पेशाब के साथ बाहर निकल जाते हैं। यदि पेशाब के निकास में कोई भी कठिनाई हो तो मूत्राशय में मूत्र एकत्र हो जाता है। मूत्राशय में संक्रामण के प्रविश्ठ हो जाने पर मूत्राशय षोध का विकास हो जाता है। यह दषा मूत्राशय के आघात पहुचने पर भी उत्पन्न होती है। जीवाणु का प्रवेश मुख्य रूप से मूत्र नली द्वारा होता है।
लक्षण
पशु बार बार कम मात्रा में पेशाब करता हैं। पेशाब करने में उसे दद्र होता है, जिसके कारण पशु सिमट सा जाता है। पशु उसी अवस्था में खड़ा रहता है जिसमें कि उसने मूत्र उत्सर्जन किया था। रोगी पशु खाना कम कर देता है तथा उसमें हल्का बुखार भी रहता है।
उपचार
ग्रसित पशु में लगातार 7-14 दिन तक दिन में दो बार एन्टीबायोटिक देनी चाहिए। यह संक्रमण को रोकने तथा समाप्त करने में लाभकारी होती हैं। साथ ही में मूत्राशय का सूजन कम करने के लिए भी दवाई करनी चाहिए। इस रोग से पीड़ित पशुओं को अधिक जल की मात्रा दी जानी चाहिए ताकि उचित मूत्र उत्सर्जन हो सके।
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए। |
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Authors
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पशु चिकित्साधिकारी, राजकीय पशु चिकित्सालय, देवरनियाँ बरेली, उत्तर प्रदेश
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सहायक प्राध्यापक, पशुधन उत्पाद, प्रौद्योगिकी विभाग, पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविद्यालय, गोविंद बल्लभ पन्तनगर कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, पन्तनगर, ऊधम सिंह नगर, उत्तराखण्ड
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