पशुओं के लिए उचित संतुलित आहार व्यवस्था

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उत्तर भारत में भैंस का मुख्य रूप से दूध के लिये पालन किया जाता है। दूध उत्पादन और प्रजनन भैंस पालन में साथ-साथ चलने चाहिए। पशु आहार दूध उत्पादन और प्रजनन क्षमता दोनों को प्रभावित करता है। एक सफल भैंस पालक बनने के लिये ज्यादा दूध उत्पादन के अतिरिक्त भैंस भी 12-14 महीने में ब्याह जानी चाहिए। थोड़े ही किसान ऐसे है जिनकी भैंस 12 से 14 मास के अंतराल पर दोबारा ब्याती हैं। शुरू के तीन महीनों में भैंसो में दूध उत्पादन ज्यादा होता है, ऐसे में यदि उनको उचित मात्रा में संतुलित आहार न मिले तो शरीर में जमी हुई वसा, विटामिन व खनिज तत्व दूध उत्पादन के लिये प्रयोग कर लिये जाते है। इससे शरीर का भार कम हो जाता है। इसका सीधा प्रभाव दूध उत्पादन और प्रजनन क्षमता पर पड़ता है। इस कारण भैंस गर्मी में नहीं आती और धीरे-धीरे दूध देना बंद कर देती है। फिर से शरीर में वसा एवं अन्य आवश्यक तत्व जमा होने शुरू हो जाते है। जब यह तत्व काफी मात्रा में एकत्र हो जाते है। तब जाकर भैंस गर्मी में आती है। इस प्रकार भैंस का अगला ब्यांत आने तक 1.5 से 2 साल का समय लग जाता है। कई भैंसं तो इससे भी ज्यादा समय ले लेती है। ज्यादा दूध देने वाली भैंसों में यह प्रवृति और भी ज्यादा देखी गई है। ऐसा होने से भैंस पालन घाटे का व्यवसाय बन जाता है। संतुलित पशु आहार इस समस्या का काफी हद तक समाधान कर सकता है। हमें पता होना चाहिए कि संतुलित आहार क्या है, कब-कब और कितना खिलाना चाहिए।

और देखें :  दुधारू पशुओं में बाई-पास वसा आहार तकनीक एवं उससे लाभ

संतुलित पशु आहार क्या होता है?

संतुलित आहार उस खाद्य मिश्रण को कहते हैं जो पशुओं के शरीर को बनाये रखने के लिए तथा उनकी उचित बढ़ोतरी व दूध उत्पादन के लिए कई तरह के खाद्य पदार्थों द्वारा बनाया जाता है, जो किसी विशेष पशु की 24 घंटे की निर्धारित पोषण की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। जिसे 24 घंटों में एक पशु को खिलाया जाता है। इसमें सभी आवश्यक पोषक तत्व जैसे उर्जा, प्रोटीन, खनिज, विटामिन आदि उचित मात्रा और सही अनुपात में प्राप्त होते हैं। किसी भी एक खाद्य पदार्थ से सारे पोषक तत्व तो मिल जायेंगें परन्तु उसकी मात्रा और अनुपात शरीर की जरूरत के मुताबिक नहीं होगा। इसलिए पशुओं के संतुलित आहार में विभिन्न प्रकार के हरे चारे, कई प्रकार के अनाज, खल, इत्यादि उत्पाद को मिलाकर बनाया हुआ दाना मिश्रण तथा सूखे चारे के प्रयोग में लाये जाते हैं। इसे दो भागों में बाँटा जा सकता है।

अनुरक्षण राशन: पशु यदि कोई कार्य या उत्पादन न भी करे, फिर भी जीवित रहने के लिए आवश्यक शारीरिक क्रियाओं (जैसे भोजन पचाना, हृदय का कार्यशील रहना, श्वास लेना, रक्त का स्त्राव आदि) में भी ऊर्जा खर्च होती है। शारीरिक तन्तुओं की मरम्मत एवं स्वतः कार्य करने वाली माँसपेशियों द्वारा भी ऊर्जा खर्च होती है। पशु की खुराक का वह भाग जो उपरोक्त कार्यों में उपयोग होता है, अनुरक्षण राशन कहलाता है।

उत्पादन राशन: अनुरक्षण राशन के अतिरिक्त जो पोषक तत्व राशन में उपलब्ध होते है उनका उपयोग उत्पादन के लिए किया जाता है जैसे शरीर बढ़ोतरी, मोटापा, दुग्ध उत्पादन आदि। इसलिए प्रत्येक गाय/भैंस में दुग्ध उत्पादन राशन की आवश्यकता उसके दूध की मात्रा तथा वसा पर निर्भर करती है। भैंस की पूर्ण आवश्यकता ज्ञात करने के लिए उत्पादन राशन को अनुसरण राशन में जोड़ दिया जाता है।

संतुलित पशु आहार कैसा होना चाहिए?

  • संतुलित आहार रूचिकर होना चाहिए।
  • पेट भरने की क्षमता रखता हो।
  • सस्ता, गुणकारी, उत्पादक तथा बदबू और फफूद रहित होना चाहिए।
  • वह अफारा ना करता हो, दस्तावार भी न हो और उस आहार में हरे चारे का समावेश हो।

संतुलित आहार कैसे बनाया जाता है?

पशु भोजन की समस्त सामग्री दो स्त्रोतों से उपलब्ध होती है।

  1. चारा
  2. दाना मिश्रण

चारा

परिस्थितियों के अनुसार आप अपने पशुओं के लिए संतुलित आहार बनायें। जिन किसान भाईयो के पास हरा चारा उगाने के लिए जमीन और सिंचाई का साधन हो वे अपने पशुओं के लिए हरा चारा पूरे वर्ष उगायें। अच्छे गुण वाला हरा चारा पूरा वर्ष पशुओं को भर पेट खिलाया जाये तो दूध उत्पादन का खर्च बहुत कम हो जाता है तथा सभी आवश्यक पोषक तत्व प्रचूर मात्रा में उपलब्ध हो जाते हैं। दुधारू पशुओं में सामान्य वसा प्रतिशत बनाये रखने में चारे का विशेष महत्व होता है, साथ ही यह रूमेन के कार्य में अव्यवस्था आने से भी रोकता है।  हरे चारे से पोषक तत्व पशुओं को आसानी से मिल जाते है और उनमें विटामिन की मात्रा भी अधिक होती है। पशु भी इसे चाव से खाते है।

सधारणतया चारे तीन प्रकार के होते हैं

  • साधारण चारे जैसे ज्वार, बाजरा, मक्का, जई, हाथी घास, गिनी घास आदि।
  • दो दाने वाले या दलहनी चारे जैसे बरसीम, लूसर्न, लोबिया ग्वार आदि।
  • सूखे चारे जैसे गेहूँ का भूसा, ज्वार व बाजरा, कड़बी आदि।

नवम्बर-दिसम्बर और मई-जून के महीनों में चारे की कमी रहती है। जबकि अगस्त-सितम्बर और मार्च-अप्रैल में हरे चारे की उपज जरूरत से ज्यादा हो सकती है। जिनको कमी के महीनों के लिए सुखाकर; हे बनाकरद्ध या साइलेज ;आचार की तरहद्ध बना कर रख लें। हे बनाने के लिए बरसीम, रिजका या जई का चारा ले और साइलेज के लिए मक्का, ज्वार, जई आदि को इस्तेमाल करें।

और देखें :  दुधारू पशुओं की उत्पादन क्षमता बढ़ाने हेतु आहार व्यवस्था एवं खनिज मिश्रण का महत्व

दाना मिश्रण कैसे बनाते है ?

अच्छा पशु दाना सस्ते तथा साफ चीजों को मिलाकर बनाया जाता है। दूध देने वाले पशुओं के दानें में पाच्य प्रोटीन 15, कुल पाचनीय उर्जा 70, कच्ची प्रोटीन 20, रेशा 17, राख ज्यादा से ज्यादा 4, खनिज मिश्रण 2 एवं नमक 1 प्रतिशत होना आवश्यक है। उदाहरण के लिए मूँगफली या तील/बिनौलें/सरसों या अलसी का खल- 30-35 किलो, 55-60 किलो जौ, ज्वार, मक्का, जई, चना तथा 2 किलो खनिज मिश्रण व एक किलो सादा नमक लेकर चोकर, या छिलका एवं डी-ऑयल्ड राईस ब्रान के साथ 100 किलो दाना बना लें।

दुधारू पशुओं को कितना चारा और दाना देना चाहिये ?

यदि हरा चारा प्रचूर मात्रा में मिले तो 8 किलो प्रति दूध उत्पादन के लिए दाने की कोई जरूरत नहीं है। 5 किलो दूध देने वाले पशु को 30-35 किलो हरा चारा और 2-3 किलो भूसा चाहियें। हरे बरसीम में भूसा मिलाकर खिलाये नहीं तो अफारा होने का डर रहता है। 8 किलो से उपर दूध देने वाले पशुओं को एक किलो प्रति, ढ़ाई किलो गाय के दूध के लिए तथा दो किलो भैंस के दूध के लिए देना चाहिए। गाभिन गाय भैंसों को गर्भ में बच्चे की बढ़ोŸारी और गर्भकाल के बाद प्रचूर दूध उत्पादन के लिए अंतिम दो महीनों में अतिरिक्त दो किलो दाना देना चाहिये। काम करने वाले बैलों को 2-3 किलो और सांड को 4-5 किलो दाना प्रतिदिन देना चाहिए। 6 महीने से उपर के बछडे़-बछड़ियों को 10 से 15 किलो हरा चारा, 1-2 किलो दाना और 2 किलो भूसा दें।

हरे चारे के कमी के दिनों में पशुओं को संतुलित आहार कैसें दें ?

हरे चारे की कमी या सूखा पड़ने पर आप सूखे चारे का उपचार कर के पशुओं को खिला सकते हैं। सूखे चारे के रूप में अपने देश में अधिकतर गेंहू का भूसा, धान का पुआल और ज्वार, बाजरा के डंठल का उपयोग होता है। इन चारों में पाचक उर्जा और प्रोटीन की मात्रा बहुत कम है और ये चारे पशु शरीर के बनाये रखने की क्षमता भी नहीं रखते। इसलिये इनका उपचार कर के खिलाना जरूरी है। इसके दो तरीके है –

पहली विधि: शिरा-10 किलो, यूरिया-2 किलो, खनिज मिश्रण-1 किलो, विटामिन मिश्रण-50 ग्राम लेकर 10 लीटर पानी में मिलाकर घोल तैयार करें। उसे 90 किलो सूखे चारे में अच्छी तरह मिलाकर पशुओं को खिलायें।

दूसरी विधि: यूरिया चार किलो को 60 लिटर पानी में मिलाकर अच्छी तरह 100 किलो भूसे पर छिड़काव करें और इस चारे की 3-4 सप्ताह के लिए पोलिथिन की चादर से ढ़क कर रख दें। इसके बाद रोज खिलाने की मात्रा को निकाल कर कुछ देर के लिए खुला छोड़ दें। फिर पशुओं को खिलायें। इस तरह से उपचारित भूसों में पशु के शरीर को बनाये रखने की क्षमता होती है तथा 2-3 लिटर तक दूध भी लिया जा सकता है।

और देखें :  डेयरी पशुओ में बांझपन की समस्या एवं उसका समाधान

पशुओं के राशन में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना जरूरी है:

  • दुधारू पशुओं की आवश्यक पौष्टिक तत्वों की मात्रा जहाँ तक सम्भव हो, हरे चारे से पूरी की जाये जिससे कम से कम दाना मिश्रण की आवश्यकता पड़े और दूध उत्पादन पर कम खर्च हो। 5-6 किलोग्राम दूध देने वाली भैंस को 50-60 किलोग्राम बरसीम खिलाकर या दलहनी (ग्वार, लोबिया) और (ज्वार, मक्का, बाजरा) चारे मिलाकर खिलाने से भी आवश्यक तत्व प्राप्त किये जा सकते हैं।
  • हरे चारे के साथ 3-4 किलोग्राम भूसा/कड़बी को खिलाने से आवश्यक शुष्क पदार्थ पूरे किये जा सकते है।
  • विभिन्न पदार्थों की उपलब्धता व उनकी कीमत को ध्यान में रखकर हम संतुलित व सस्ता दाना तैयार कर सकते है। दाना बनाने में काम आने वाले विभिन्न पदार्थों को उस समय खरीद कर भंडार में रख लें जब इनका मौसम हो और ये बाजार में बहुतायत में और सस्ती दरों पर उपलब्ध हों।
  • दुधारू भैंसों को घी/तेल नाल द्वारा देने से कोई लाभ नहीं होता। इसके विपरीत लागत में वृद्धि हो जाती है।
  • सूखाग्रस्त या कम सिंचाई वाले क्षेत्रों में जब ज्वार की बढ़वार कम हो या पत्ते पीले पड़ गये हों तो भैंसों को नहीं खिलानी चाहिए। यह जहरीली हो सकती है। अगर चारे की फसल पर कीडे़ मारने की दवाई का छिड़काव किया गया है तो उसे छिड़काव से 15 दिन बाद ही पशुओं को खिलायें।
  • गर्मियों के मौसम में पशुओं को छाया में रखकर भरपूर मात्रा में पानी भी पिलाना बहुत आवश्यक है।
  • दाना दलिया किया हुआ होना चाहिए लेकिन बारीक पिसा हुआ न हो।
  • साइलेज हमेशा दूध निकालने के बाद खिलायें। इससे दूध में साईलेज की बदबू नहीं आयेगी।
  • चारा दाना पशु को डालते समय ध्यान रखें कि कोई नुकिली वस्तु जैसे कील या लकड़ी का कोई टुकड़ा हो तो निकाल दें।
  •  पशुपालकों को यह सलाह दी जाती है कि ऐसा न सोचे कि बिनौला खिलाने से अधिक मक्खन निकलता है और दूध बढ़ता है। बिनौले की जगह बिनौले का खल खिलाना ज्यादा लाभप्रद है। इससे पशु को ज्यादा प्रोटीन मिलता है। ग्वार की जगह ग्वार चूरी दाने में मिलाकर लाभप्रद है। ग्वार चूरी ग्वार से सस्ती और अधिक पौष्टिक है।
  • किसान भाई रिजका को घोडे़ का चारा मानते हैं और इसे दूध घटाने वाला भी मानते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है, पशुओं को रिजका थोड़ा-थोड़ा खिलाकर आदत डालें तो दूध नहीं घटता हैं।

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