पशुओं के नवजात शिशुओं का प्रबंधन

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सही अर्थों में नवजात शिशु की देखरेख उसके जन्म से पूर्व ही मादा के गर्भ से शुरू हो जाती है। अतः पशु के ब्याने के 3 महीने पहले से ही उसको समुचित चारा दाना आवश्यकतानुसार देना चाहिए।

  • नवजात पशु के नाक  तथा मुंह से श्लेष्मा को निकाल देना चाहिए जिससे कि वह सामान्य रूप से सांस ले सके। यदि बच्चा सामान्य रूप से सांस ना ले रहा हो तो पिछले घुटने पकड़कर उल्टा लटका देना चाहिए ताकि श्लेष्मा अथवा बलगम अपने आप बाहर निकल जाए या नाक में घास की पत्ती डालने से पशु  छीकने लगता है और श्लेष्मा नाक से बाहर निकल जाती है।

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  • इसके पश्चात बच्चे को उसकी मां के पास छोड़ देना चाहिए। सामान्यता मां बच्चे को चाट कर उसे साफ एवं सूखा कर देती है। *यदि पशु बच्चे को नहीं चाटता है तो बच्चे को किसी मोटे कपड़े या साफ बोरी से रगड़ कर साफ़ करें तथा सुखाएं।
  • नवजात बच्चे के शरीर पर थोड़ा सा नमक छिड़क दे, जिससे पशु बच्चे को चाटना शुरू कर दें। शरीर चाटने से बच्चे को सांस लेने में सहायता मिलती है।
  • साधारण नाभि सूत्र अर्थात अमबलाईकल कार्ड अपने आप टूट जाती है। वहां पर टिंचर आयोडीन अवश्य लगाएं। अगर नाभि सूत्र जुड़ी हुई हो तो उसे नये ब्लेड से 3 से 5 इंच रखकर काट दे और  धागे से बांध कर उस पर टिंक्चर आयोडीन अथवा बीटाडीन लगाएं, जिससे किसी तरह की बीमारी न लग पाए। टिंचर आयोडीन 1 सप्ताह तक लगाते रहें। *नवजात बच्चे को जन्म के तुरंत बाद खींस पिलानी चाहिए।
  • नवजात बच्चा यदि अपने आप खड़ा नहीं होता है तो उसे सहारा देकर खड़ा करें तथा मां के थन के पास ले जाकर दो चार बार खीस को उसके मुंह में दें, जिससे कि उसे खींस का स्वाद मिले और वह अपनी मां के थन से खींस पीने लगे।
  • इसे पिलाना अति आवश्यक है क्योंकि खींस मे इम्यूनोग्लोबुलीन होता है जो कि नवजात बच्चों को कई प्रकार की बीमारियों से सुरक्षा प्रदान करता है। परंतु खीस आवश्यकता से अधिक नहीं पिलाना चाहिए। खीस दिन में तीन से चार बार उसके शारीरिक वजन के 10वे भाग की दर से पिलानी चाहिए। खीस पिलाने के 4 से 6 घंटे के अंदर बच्चों का मल विसर्जन अपने आप हो जाता है।
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  • अगर किसी कारणवश ऐसा नहीं हो पाता है तो आधा चम्मच अरंडी का तेल पिलाना चाहिए।
  • नवजात बच्चों को ठंडी हवा और खराब मौसम से बचाएं तथा गर्म स्थान में रखें जिससे कि उसे निमोनिया ना हो परंतु उनके रखने का स्थान साफ सुथरा व हवादार तथा फर्श पर बिछावन अवश्य होना चाहिए। जब बच्चा 8 से 10 दिन का हो जाए तो उसे सूखा चारा, भूसा, हरा चारा खिलाएं इससे बच्चे को कब्ज नहीं होती है और पाचन सही रहता।
  • जब बच्चा लगभग 15 दिन का हो जाए तब उसे अंत: क्रमी नाशक औषधि पिलानी चाहिए इससे बच्चा स्वस्थ रहेगा तथा उसकी वृद्धि अच्छी होगी। *जब बच्चा 3 से 4 माह का हो जाए तो उसे छूत की बीमारियों के टीके अवश्य लगवाने चाहिए।
  • जब बच्चा एक माह का हो जाए तो उसे प्रतिदिन 100 ग्राम संतुलित पशु आहार देना चाहिए। दूसरे महीने से 200 ग्राम तीसरे महीने से 300 ग्राम चौथे महीने से 400 ग्राम पांचवे महीने से 700 ग्राम छठे महीने से 1 किलोग्राम संतुलित पशु आहार प्रतिदिन देना चाहिए। संतुलित पशु आहार 2 साल की अवस्था तक लगभग 1 किलोग्राम प्रति दिन देना चाहिए। समय-समय पर छूत की बीमारियों के बचाव हेतु टीका लगवाना नितांत आवश्यक है।
  • 2 से 3 वर्ष की अवस्था में पशुधन बीमा करवाएं। गर्वित होने की अवस्था में पहले 3 माह पर आहार की मात्रा 1.5 किलोग्राम प्रति दिन 4 से 7 माह तक 2 किलोग्राम प्रति दिन इसके पश्चात ब्याने तक 3 किलोग्राम प्रति दिन संतुलित आहार खिलाना चाहिए।
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