हमारे समाज में श्वान पालकों की संख्या के साथ-साथ, श्वनों की मांग बढ़ती जा रही है, जिसे पूरा करने के लिए इनका प्रजनन नियमित व सामान्य होना अति आवश्यक है। श्वानो के स्वास्थ का सीधा संबंध उनके शरीरिक विकास व प्रजनन से होता है। श्वान पालक हमेशा से ही अपने श्वानों के स्वास्थ के प्रति संवेदनशील व जागरूक रहे है। श्वनों में कई प्रकार की समस्याएं पाई जाती है जो कि प्रजनन से संबंधित है जिनसे बचाव व उनका निराकरण संभव है।
श्वानों मे सामान्यतः पाई जाने वाली समस्याएँ निम्न प्रकार है
मिथ्या गर्भावस्था
मिथ्या गर्भावस्था मादा श्वान में सामान्यतः पाई जाने वाली अवस्था है। जो कि प्रोलेक्टिन नामक हॉर्मोन की अधिकता की वजह से उत्पन्न होती है। इस अवस्था में मादा श्वान गर्भावस्था में ना होते हुए भी गर्भावस्था के लक्षण जैसे उदर का बढ़ना, आक्रामक व्यवहार हो जाना,स्तनों से दुग्ध स्त्राव आना, गड्ढा खोदना, किसी भी अचेतन वस्तु के लिए मातृत्व भाव का होना इत्यादि दर्शाती है । जिसकी जाँच अल्ट्रासोनोग्राफी विधि की सहायता से की जा सकती है। यह एक स्वयं सीमित अवस्था है जो कि दिखावटी प्रसव के बाद स्वयं टीक हो जाती है, यदि स्तनों से दुग्ध स्त्राव अधिक मात्रा में आ रहा हो व अधिक आक्रामक व्यवहार हो तब उपचार की आवश्यकता होती है जिसके लिए पशु चिकित्सक से उचित सलाह लें व उपचार कराएं। साथ ही एक सप्ताह तक प्रभावित मादा श्वान को रात्री के समय पानी न दें, जिससे स्तनों से दुग्ध स्त्राव में कमी आती है।
पायोमेट्रा
बहुत से श्वान पालक मादा श्वानों से बच्चे (पिल्ले) नहीं चाहते इस वजह से उनके मदकाल में आने पर नर श्वान से संयोग नहीं करवाते जिससे कि हॉर्मोन्स में असंतुलन उत्पन्न हो जाता है जिसके कारण गर्भाशय में संक्रमण होने से व मदकाल के समय गर्भाशय में संक्रमण जाने के कारण मवाद इकट्ठा होने लग जाता है। इस अवस्था को पायोमेट्रा कहा जाता है। जो की खुला हुआ व बन्द प्रकार का होता है। खुले प्रकार के पायोमेट्रा में योनि से मवाद बाहर आना जैसे लक्षण व बन्द प्रकार के पायोमेट्रा मे उदर का बढ़ना, भूख में कमी व पीछे के पैरों में शरीर भार न ले पाना इत्यादि है। कई बार मादा श्वान सामान्य से अधिक मात्रा में पानी पीना जैसे लक्षण भी दर्शाती है। इस अवस्था की जाँच अल्ट्रासोनोग्राफी विधि की सहायता से की जा सकती है। अधिक मात्रा में संक्रमण होने पर इसके दोबारा होने की संभावना बढ़ जाती है व इसका उपचार काफी देर तक चलता है व शल्यचिकित्सा ही एकमात्र उपचार बचता है।
इससे बचने के लिए मादा श्वानों के मदकाल पर आने पर नियमित नर श्वान से संयोग करवाए। प्रायः देखा गया है कि पयोमेट्रा की अवस्था मादा श्वानों में आधिक आयु में भी देखी जाती है तब अधिक आयु के कारण इलाज व शल्यचिकित्सा में कठिनाइयाँ आती है। यदि श्वान पलकों को बच्चे (पिल्ले) नहीं चाहिए तो पशु चिकित्सक से सलाह लेकर शल्यचिकित्सा द्वारा अंडाशय व गर्भाशय निकलवा सकते है।
प्रजनन संक्रामक योनि कर्क रोग
ये श्वानों में पाया जाने वाला सामान्य कर्क रोग (ट्यूमर) है, ये एक प्रजनन के द्वारा फैलने वाला कर्क रोग है जो कि संभोग के दौरान संक्रमित नर या मादा से असंक्रमित नर व मादा में फैलता है । यह कर्क रोग (ट्यूमर) मादा श्वान की आंतरिक योनि में व नर श्वान के शिशन में पाया जाता है। इसलिए श्वान पलकों को नर व मादा को परसपर संयोग करवाने के पूर्व अच्छी तरह जांच परख कर लेना चाहिए। इसके लक्षणों में लगातार योनि से रक्त स्त्राव का आना है, मादा श्वानों में ये कई बार मदकाल से भ्रमित कर देता है, इसके लिए रक्त स्त्राव की अवधि देखी जाती है, मदकाल के समय सामान्यतः 09 से 10 दिन तक रक्त स्त्राव होता है व योनि की जांच की जाती है जिसमें कर्क रोग (ट्यूमर) का पता लगाया जाता है जिसकी बाह्य सतह अनियमित होती है।अधिक अवधि होने पर ट्यूमर योनि से बाहर दिखाई देने लगता है। सटीक परीक्षण योनि कोशिका अध्ययन व हिस्टोपेथोलॉजी विधि द्वारा किया जाता है। पशुचिकित्सक की सलाह ले उपचार शीघ्र प्रारंभ करना चाहिए। मादा श्वान के गले पर एलीजाबेथ कॉलर बांधे ताकि मादा श्वान योनि को बार- बार चांटे नहीं। इसके इलाज में किसी प्रकार की लापरवाही नहीं करनी चाहिए व उपचार पूरा कराना चाहिए अन्यथा कर्क रोग पुनः हो सकता है।
प्रसव के समय कठिनाई
प्रसव के लिए आवश्यक संकुचनों की कमी जिसके कारण सामान्य प्रसव में असमर्थता होती है। श्वानों में सामान्यतः प्राथमिक गर्भशायी संकुचनों की कमी देखी जाती है। जिसके निदान के लिए पशु चिकित्सक से उचित सलाह ले मादा श्वान का जल्द इलाज प्रारंभ करवाना चाहिए । यदि संकुचन प्रारभ नहीं होते तो बच्चों को शल्य क्रिया द्वारा निकाल जाता है।
कई बार बच्चा योनि द्वार में फस जाता है जिसे बाहरी सहायता द्वारा खींच कर बाहर निकाला जाता है व असमर्थ होने पर बच्चों को शल्य क्रिया द्वारा निकाल जाता है।
योनि का बाहर निकलना
आंतरिक योनि कई बार सामान्य से अधिक विकसित हो जाती है व कई बार बाहर भी दिखने लगती है। इसकी सतह बहुत चकनी होती है। श्वान पलकों को चाहिए कि उस पर बर्फ से सिकाई करे व ऑइन्ट्मेन्ट को अच्छी तरह पूरी सतह पर लगाए। मादा श्वान के गले पर एलीजाबेथ कॉलर बांधे ताकि मादा श्वान योनि को बार- बार चांटे नहीं व पशुचिकित्सक की उचित सलाह लें।
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए। |
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