पशुओं में जननहीनता के कारण एवं लक्षण

4.8
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जननहीनता

पशुओं में प्रजनन की क्षमता कम हो जाती है।

कारण

1. शरीर रचना संबंधी कारक

(अ) शरीर रचना संबंधी आनुवांशिक कारण

1. अनुपस्थिति डिम्बाशय
2. अल्पविकसित डिम्बाशय
3. अंतर्लिगंता
4. श्वेत ओसर रोग
5. भग अविवरता
6. अपसामान्य वोल्फीयन या गार्टनर वाहिनी
7. द्विमुखी ग्रीवा

(आ) शरीर रचना संबंधी अनानुवांशिक कारण

1. डिम्बाशय श्लेष्मपुटी आंसजन
2. गर्भाशय आसंजन
3. प्रसव कालिक जनननाल अभिघात

    • मूलाधार विदर
    • प्रसवकालिक भग विदार वया खरोंच
    • अल्पविकसित डिम्बाशय
    • सम्पूर्ण ग्रीवा

4. जननांग ट्यूमर

2. हार्मोन संबंधी कारण

1. अमदकाल
2. अस्पष्ट मद कला
3. पुटीय डिम्ब ग्रन्थी

3. संक्रामक कारण

1. ट्राईकोमोनिएसिस
2. विब्रोसिस/कमपाईलोवेक्ट्रीयसिस
3. ब्रुसैलोसिस
4. लैप्टोस्पाइसेसिस
5. लिस्टीरियोसिस
6. यक्ष्मा
7. संक्रामक योनि शोध एवं भग शोध

4. विकृतिजन्य कारण

(अ) विकृत डिम्बाशय

1. डिम्बाशय ट्यूमर
2. डिम्बाशय शोध
3. पराडिम्बग्रन्थि पुटी

(आ) विकृत डिम्ब वाहिनी

1. जल डिम्ब वाहिनी
2. पूय डिम्ब वाहिनी

(इ) विकृत गर्भाशय

1. अर्न्तगर्भाशय पेशी शोध
2. पूय गर्भाशयता
3. परगर्भाशय संयोजी ऊतक शोध
4. श्वेत पटल गर्भाशय पेशीशोध
5. गर्भाशय में फोड़ा
6. गर्भाशय में ट्यूमर
7. श्लेष्मा गर्भाशयमा तथा जल गर्भाशयता
8. गर्भाशय अतिकिरेटिनीकरण

(उ) विकृत योनि

1. योनि शोध
2. पुटीय योनि
3. ट्यूमर

(ऊ) विकृत भग एवं प्रधान

1. भग एवं प्रधाण शोध
2. पुटीय प्रधाण
3. ट्यूमर

5. पोषण संबंधी कारक

(अ) अल्प पोषण संबंधी कारक

1. विटामिन अल्पता
2. खनिल अल्पता

(आ) अतिपोषण संबंधी कारक

6. अन्य कारक

1. जलवायु संबंधी कारक
2. मानसिक कारक

7. शरीर रचना संबंधी कारक

(अ) आनुवांशिक कारक

  1. अनुपस्थित अथवा अविकसित डिम्ब ग्रन्थि- यह पशुओं में बहुत ही कम पाई जाती है। इसमें एक या दोनों डिम्बग्रन्थियां अनुपस्थिति हो सकती है। जननांग अविकसित तथा ऋतुचक्र के लक्षण पूर्णतः अनुपस्थित होते हैं।
  2. अल्पविकसित डिम्बग्रन्थिया- डिम्बाशय का अल्प विकसन एक पार्श्विक तथा द्विपार्श्विक दोनों प्रकार का हो सकता है जो अप्रजननशीलता उत्पन्न करता है। अल्पविकसित डिम्बाशय पतला, रज्जुवत्, मटर के दाने के बराबर अथवा वृक्करूपी परन्तु चिकनी सतह वाला तथा निष्क्रिय होता है। द्विपार्श्विक अल्प विकसन में जननांग बहुत छोटे तथा अल्पविकसित होते हैं। ऐसा पशु ऋतु काल के लक्षण प्रकट नहीं करता है।
  3. उभय लिंगता या अंतलिंगता या फ्रीमार्टिन- एक साथ उत्पन्न होने वाले नर तथा मादा बच्चों में 92 प्रतिशत मादा बांझ होती है। उनके जननांग अपसामान्य होते हैं। ऐसे पशु को अंतर्लिगी कहते हैं।
  4. श्वेत ओसर रोग- यह रोग अधिकतर शार्टहानस्ल की श्वेत ओसरों में पाया जाता है। इस रोग से ग्रस्त बछियों में अग्र योनि, ग्रीवा तथा गर्भाशय का भू्रणीय विकास रूक जाता है तथा अपसामान्य रूप में विकसित योनिच्छद की उपस्थिति के कारण योनि नलिका भी रूक जाती है। ऐसे पशुओं में डिम्बाशय सामान्य होता है। अतः ऋतुचक्र भी सामान्य होता है।
  5. भग अविवरता- इसमें भग छोटी होती है इसलिए प्रसव कष्टदायक होता है। पशु में ऋतु चक्र, मदकला के लक्षण इत्यादि सामान्य होते हैं तथा गर्भधारण हो सकता है।
  6. अपसामान्य वोल्फीयन या गार्टनर वाहिनी- ये नलिकायें श्लेष्मा के नीचे योनि की निचली सतह पर पाई जाती है। ये दो होती हैं। परन्तु इनका परिस्पर्शन कठिन होता है। कभी-कभी इनमें गर्भाशय ग्रीवा की ओर के पशु के साथ-साथ पुटियां बन जाती हैं। इन पुटियों का आकार छोटे से लेकर क्रिकेट की गेंद के बराबर हो सकता है। इन नलिकाओं में संक्रमण भी उत्पन्न हो सकता है। जिससे फोड़े ट्यूमर इत्यादि उत्पन्न हो जाते हैं। बड़े-बड़े पुटक उपस्थित होने पर मैथुन में बाधा उत्पन्न होती है।
  7. द्विमुखी ग्रीवा- यह दशा कभी-कभी उत्पन्न होती है। यह विकृति प्रायः गर्भाशय ग्रीवा के बाह्य द्वार के पीछे की ओर के ऊतक की एक बंधनी के रूप में प्रकट होती है। कुछ मामलों में गर्भाशय ग्रीवा के वास्तविक दोहरे बाहरी द्वार हो सकते हैैं तथा इन्हें पृथक करने वाली ऊतक बंधनी गर्भाशय ग्रीवा के बाहरी भाग में कुछ दूरी तक जा सकती है।
और देखें :  पशुओं में जनन क्षमता को लम्बे समय तक बनाये रखना

(आ) आनुवांशिक कारक

  1. डिम्बाशय श्लेष्म पुटी आसंजन- बांझ डेरी पशुओं में डिम्बाशय तथा श्लेष्म पुटी का आसंजन अधिकतर पाया जाता है। आसंजन एक पार्श्वीय तथा द्विपार्श्वीय हो सकता है। द्विपार्श्वीय आसंजन में डिम्बक्षरण नहीं हो पाता है। डिम्ब वाहिनी से शुक्राणुओं का स्थानान्तरण नहीं हो पाता है। जिससे निषेचन असंभव होता है। डिम्बवाहिनी के सम्मिलित होने पर उसके अवकोशिका या ल्यूमैन में तन्तु विक्षति हो जाती है। उसका मार्ग अवरूद्ध हो जाता है। मार्ग अवरूद्ध होने से डिम्बवाहिनी में स्त्राव एकत्रित होता रहता है। इस अवस्था को जन डिम्ब वाहिनी कहते हैं। यह स्त्रावा जब एक पुटी का रूप धारण कर लेता है तो अक्सर सवंमित हो जाता है, जिससे पूय बनता है। इस अवस्था को सपूय डिम्ब वाहिनी कहते हैं। त्रस्त पशु ऋतु काल के लक्षण प्रदर्शित करता है परनतु सामान्य गर्भाधान के बावजूद भी वह गर्भधारण नहीं करता है।
  2. गर्भाशय आसंजन- सीजेरियन आपरेशन के पश्चात् गर्भाशय का आसंजन वपा, आंत या उदर गुहा की भित्ति से हो सकता है। गर्भाशय के फट जाने पर भी एक इसी प्रकार की विक्षति उत्पन्न हो सकती है।
  3. प्रसव कालिक जननकाल अभिघात- डेरी पशुओं में शिशु बड़े आकार का होने पर वह आसानी से बाहर नहीं निकलता। उसे बलपूर्वक बाहर खींचने से जनन नाल में घाव, खरोंच, विदार इत्यादि हो जाते हैं। जिनके कारण पशु बांझ हो सकता है। यह दशा निम्न अवस्थाओं को सम्मिलित करती है:

मूलाधार विदार- बच्चे को खींचते समय मूलाधार में बड़ा छिद्र बन जाता है जो गुदा तक पहुंच सकता है। इस छिद्र द्वारा गर्भाशय में वायु प्रवेश करती रहती है। कभी-कभी योनि भित्ति या गुदा संवरणी विदरित हो जाने पर मलाशय से गोबर इत्यादि योनि में पहुंचता रहता है। पशु की भग से श्लेष्मिक स्त्राव आता रहता है। पशु के स्वास्थ्य, ऋतु चक्र पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, परन्तु गर्भाधारण नहीं हो पाता। इसे ठीक करने का एक मात्र उपाय शल्य चिकित्सा है।

प्रसवकालिक भग विदार या खरोंच- घाव, खरोंच लगने से भग संवरणी पूर्ण रूप से बन्द नहीं हो पाती जिससे योनि तथा गर्भाशय में हवा भर जाती है। यह मूलाधार विदार से कम हानिकारक होते हैं। प्राकृतिक गर्भाधान से पशु गर्भधारण नहीं करते, परन्तु गर्भाशय में वीर्य डालने पर गर्भधारण हो जाता है।

और देखें :  मादा पशुओं में गर्भ निर्धारण की विधियां

ग्रीवा सिरोसिस- कष्ट प्रसव के समय ग्रीवा में खरोंच लगने से ग्रीवा में तनुमयता होने के कारण उसका मार्ग अवरूद्ध हो जाता है जिससे ब्याते समय बच्चाा बाहर नहीं निकल पाता। इस दोष के कारण पशु में अप्रजननशीलता उत्पन्न नहीं होती, परन्तु प्रसव के समय कठिनाई अवश्य होती है।

सम्पूर्ण योनि तंतुमयता- योनि में खरोंच लगने से उसमें तंतुमयता हो जाती है, जिससे जनननाल का मार्ग संकुचित या अवरूद्ध हो जाता है, अतः प्रसव के समय कठिनाई होती है।

4. जननांग ट्यूमर- मादा के डिम्बाशय पर कभी-कभी ट्यूमर बन जाते हैं। जो गर्भवती तथा गर्भ रहित दोनों प्रकार की मादा में पाये जा सकते हैं। शुरू में ट्यूमर के कारण डिम्बाशय से बहुत मात्रा में ईस्ट्रोजन उत्पन्न होता है जिससे पशु कामोन्मादक महसूस होता है तथा बाद में अमदमाल के लक्षण प्रकट करता है।

हार्माेन संबंधी कारक

अमद काल- इस दशा में पशु ऋतुकाल में नहीं आती है। अमदकाल स्वयं कोई बीमारी या विकार नहीं है वरन् यह अन्य बीमारियों का लक्षण है। प्रसव एवं गर्भित कराने के समय के अनुसार अमदकाल दो प्रकार का होता है।

प्रसवोत्तर अमदकाल- ब्याने के बाद तथा गर्भित कराने से पहले, यदि कोई मादा अमदकाल के लक्षण प्रदर्शित करती है तो उसे प्रसवोत्तर अमदकाल कहते हैं।

गर्भकालिक अमदकाल- गाभिन होने के बाद मादा ऋतुकाल में नहीं आती है, इसे गर्भकालिक अमदकाल कहते हैं। यह क्रियात्मक पीत पिण्ड के कारण होता है।

दीर्घस्थायी पीत पिण्ड- यह क्रियात्मक पीत पिण्ड नहीं होता। यह स्थायी पीत पिण्ड गर्भाशय की बीमारियों के कारण उत्पन्न होता है। सपूय गर्भाशयता, श्लेष्म गर्भाशयता, मसृणित भू्रण तथा पशु ऋतु काल में नहीं आता है।

अस्पष्ट मदकाल के कारण अमदकाल- गाय/भैंसों में मदकाल के अस्पष्ट लक्षण होने पर अमदकाल का भ्रम रहता है। अस्पष्ट मदकाल प्रसव के 60 दिन के बीच अधिक होता है।

पशुपालन की असावधानी के कारण अमदकाल- यदि मदकाल 18-24 घण्टे की बजाय 8-12 घण्टे का होता है तो पशुपालक को मदकाल का पता नहीं चलता। पशु पालक अमदकाल के भ्रम में रहा आता है। गाय/भैंसों में मदकाल कभी-कभी सिर्फ 5-8 घण्टे का ही होता हे। इस कठिनाई के निराकरण का एक मात्र उपाय पशुपालकों का मदकाल के लक्षणें से अच्छी तरह परिचित होना है।

रचनात्मक दोषों से उत्पन्न होने वाली अनुत्पादक रोगों की सामान्य जानकारी

पशुओं में सफल प्रजनन हेतु पशु की मेंटिग क्षमता, गर्भधारण क्षमता एवं एम्ब्रियों की पालन क्षमता एवं पशु की ब्याने की क्षमता होना आवश्यक है। प्रजनन कार्य का प्रभावित करने वाले कारकों में संरचनात्मक, आनुवांशिक दोष एवं क्रियाशील दोष मुख्य होते हैं।

संरचनात्मक दोष- संरचनात्मक दोष प्रजनन अंगों की बनावट को प्रभावित करते हैं एवं अधिकांशतः आनुवांशिक होते हैं, जिनको प्यूवर्टी से पहले पहचान पाना मुश्किल होता है। पशुओं में आवेरी फैलो विपन, ट्यूव, गर्भाशय, सर्विक्स, योनि आदि अंगों में रचनात्मक दोष पाये जा सकते हैं।

और देखें :  दुधारू पशुओं में बढ़ती बांझपन की समस्या एवं उसका समुचित प्रबंधन

अण्डाशय के दोष- अण्डाशय का अविकसित होना, अर्द्ध विकसित होना, एक पक्षीय अथवा दोनों तरफ पाया जा सकता है। यह आनुवाशिकीय होते हैं। ओवरी का साइज अति छोटा है। पशु गर्मी में नहीं आता है।

फ्रीमार्टिन- इस दोष के मादा पशुओं की ओवरी अविकसित एवं अति छोटे साइज की होती है। योनि का विकास भी पूण्र नहीं होता है। योनि के बाह्य छोर पर बालों का गुच्छा पाया जाता है। पशु गर्भकाल में नर बच्चे के साथ विकसित होता है। गर्भकाल के पूर्ण होने पर जुड़वां के रूप में पैदा होने का इतिहास साथ होता है अथवा गर्मी में ही नर बच्चे के मर जाने पर अकेले मादा भी पैदा हो सकती है। ऐसे पशुओं को प्रजनन हेतु उपयोग नहीं किया जा सकता है।

व्हाइट हिफर डिसीज- ठस दोष में गर्भाशय अविकसित होता है जिसका कोई हिस्सा गायब हो सकता है। पशु गर्मी में आता है किन्तु गर्भ धारण नहीं करता है। ऐसे पशुओं की चिकित्सा नहीं करनी चाहिए एवं प्रजनन कार्य में उपयोग नहीं करना चाहिए।

इम्परफोरेट हाइमन दोष- इस दोष में पशु के गर्भाशय के बाद योनि में मूत्र निकास छिद्र के पूर्व एक झिल्ली पायी जाती है। सामान्यतः यह झिल्ली प्यूवर्टी के पूर्व की स्वतः ही टूट कर खत्म हो जाती हैं परन्तु संरचनात्मक दोष के कारण यह झिल्ली कुछ पशुओं में अपेक्षाकृत मजबूत होने के कारण नहीं टूटती है। गर्मी के स्त्राव ठीक किया जा सकता है। परन्तु ऐसे पशुओं को प्रजनन कार्य में उपयोग न किया जाये तो ठीक हैं। क्योंकि ऐसे पशुओं में प्रसव भी कठिनाई पूर्ण ही होता है।

ओवेरियो-बर्सल एन्डी एडहीसन- सामान्यतः गर्मी में आने पर पशु की ओवरी से अण्डाणु निकल कर उसके ऊपर कीप के आकार के वर्सा द्वारा फैलोपियन ट्यूब में आता है।

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