लंपी स्किन डिजीज

5
(564)

गोवंश में फैलने वाले ठेकेदार त्वचा रोग (लंपी स्किन डिजीज) का खतरा देश प्रदेश में मडराने लगा है। इसका ज्यादा प्रभाव इस समय उत्तर प्रदेश के पड़ोसी राज्य राजस्थान में देखने को मिल रहा है। पशुपालकों ने बचाव को लेकर ध्यान नहीं दिया तो एक दूसरे मवेशी के संपर्क में आने से फैलने वाली विषाणु जनित यह बीमारी पूरे उत्तर प्रदेश में भी फल सकती है। इससे मवेशियों की दिक्कत बढ़ेगी ही, रोग की जद में आने वाले दुधारू मवेशियों के चलते दूध उत्पादन भी प्रभावित होगा जिससे पशुपालकों को आर्थिक क्षति भी उठानी पड़ेगी।

हालांकि इस रोग से पशु मृत्यु दर 10/ से कम है पशुपालकों से आग्रह है की एलएसडी से भयभीत ना होकर बताए जा रहे तरीकों से पशुओं का बचाव व उपचार करें। ढेलेदार त्वचा रोग लंपी स्किन डिजीज (एलएसडी) गोवंश में होने वाला विषाणु जनित संक्रामक रोग है जोकि पॉक्स फैमिली के वायरस जिससे पशुओं में पार्क्स (माता) रोग होता है। लंपी स्किन डिजीज का प्रथम आरम्भ एवं प्रसार ऐतिहासिक रूप सेए एलएसडी अफ्रीका तक ही सीमित रहा हैए जहां यह पहली बार 1929 में खोजा गया था। लेकिन हाल के वर्षों में यह अन्य देशों में फैला है। 2015 में तुर्की और ग्रीस जबकि 2016 में इसने बाल्कनए कॉकेशियान देशों और रूस में तबाही मचाई। जुलाई 2019 में बांग्लादेश पहुंचने के बाद सेए यह एशियाई देशों में फैल रहा है। फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन (एफएओ) के एक जोखिम मूल्यांकन रिपोर्ट के अनुसार यह बीमारी 2020 के अंत तक सात एशियाई देशों चीन भारत नेपाल ताइवान भूटान वियतनाम और हांगकांग में फैल चुकी है। इसके अलावाए दक्षिण.पूर्व एशिया के कम से कम 23 देशों में एलएसडी का खतरा मंडरा रहा है।

भारत में दुनिया के सबसे अधिकए 303 मिलियन मवेशी हैं यहां यह बीमारी सिर्फ 16 महीनों के भीतर 15 राज्यों में फैल चुकी है अगस्त 2019 मेंए ओडिशा से एलएसडी का पहला संक्रमण रिपोर्ट हुआ था। अध्ययन से पता चलता है कि देश में वायरस पहले से ही म्यूटेट हो सकता है।भारत मे संक्रमण एवं प्रसार भारत में यह बीमारी कहां से शुरु हुईए इसे ले कर निश्चित नहीं हैं। संभवतरू ये प्रसार सीमा पार से अवैध तरीके से लाये जाने वाले मवेशियों के माध्यम से हुआ हो। एफएओ के एक स्टडी के मुताबिकरू श्बांग्लादेश में पशु प्रोटीन की आपूर्ति और मांग के बीच अंतर और भारत में पशुधन की कीमतों में असमानता को देखते हुए पशुओं के अनौपचारिक निर्यात की घटनाएं देखी गई है। भारत से नेपाल के कई जिलों में पशु भेजे जाते हैए खास कर बिहार की सीमा से पैदल आ जा कर भी ये काम किया जाता है। संभवतः यह भी संक्रमण फैलने का कारण बना हो। बेमौसम बारिश और बाढ़ इनके विकास के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करेंगेए जिससे इस संक्रामक रोग के वाहक बने वैक्टर जल्द खत्म नहीं किए जा सकेंगे।

और देखें :  केंद्रीय मंत्री श्री परशोत्तम रुपाला ने दार्जिलिंग और कलिम्पोंग जिलों के पशुओं में लम्पी रोग (एलएसडी) के बढ़ते मामलों पर त्वरित कार्रवाई का निर्देश दिया

कैसे फैलता है

संक्रमण ढेलेदार रोग गाय एवं भैस में पॉक्स विषाणु कैंप्री पॉक्स वायरस के संक्रमण से होता है। संक्रमण हस्तांतरण विषाणु के वाहक जैसे किलनी मच्छरए मक्खीए लारएजूठे जल एवं पशु के चारे के द्वारा फैलता है। संक्रमित पशु के शरीर पर बैठने वाली किलनीए मच्छर व मक्खी जब स्वस्थ पशु के शरीर पर पहुंचता हैए तो संक्रमण उसके अंदर भी पहुंच जाता है। सिर और गर्दन के हिस्सा में काफी तेज दर्द होता है। इस दौरान पशुओं की दूध देने की क्षमता भी कम हो जाती है। बीमार पशुओं को एक दूसरे जगह ले जाने या उसके संपर्क में आने वाले स्वस्थ पशु भी संक्रमित हो जाते हैं। गायों और भैंसों के एक साथ तालाब में पानी पीने व नहाने और एकत्रित होने से भी रोग का प्रसार हो सकता हैकब फैलता है यह रोग इस बीमारी का प्रकोप गर्म एवं आंध्र नमी वाले मौसम में अधिक होता है मौजूदा समय में जिस तरह से गर्मी व उमस बढ़ रहा है। उससे रोग फैलने का खतरा भी बढ़ा रहा है। हालांकि ठंडी के मौसम में स्वतः इसका प्रभाव कम हो जाता है।

रोग के लक्षण

त्वचा पर ढेलेदार  गांठ की तरह उभार बन जाता हैए यह पूरे शरीर में दो से पांच सेंटीमीटर व्यास के नोड्यूल (गांठ) के रूप में पनपता है। खास कर सिरए गर्दन लिंब्स और जननांगों के आसपास के हिस्से में इन गांठो का फैलाव होता है बीमारी के होने के बाद कुछ ही घंटों के अंतराल पर पूरे शरीर में गांठ बन जाती है इसके साथ ही मवेशियों के नाक एवं आंख से पानी निकलने लगता है। शरीर का तापमान बढ़ जाता है। मवेशी बुखार की जद में आ जाते हैं। यदि पशु गर्भवती है तो गर्भपात भी हो सकता है ज्यादा संक्रमण से ग्रसित हो तो निमोनिया होने के कारण पैरों में सूजन भी आ सकता है स्वास्थ्य पर असरबीमारी से ग्रसित मवेशी के शरीर पर पढ़ने वाले गांठ जब तक खड़े रहते हैं तब तक जकड़न में दर्द बना रहता हैए पर यह गाँठ पक कर फूटने के बाद घाव बन जाता है। जिसमें मक्खियां आदि बैठने की वजह से कीड़े तक लग जाते हैं। घाव व बुखार से पशु कमजोर हो जाता है, इससे दुग्ध उत्पादन भी प्रभावित होता है।

और देखें :  गौवंश की महामारी: लंपी स्किन रोग

प्रसार पर लापरवाही

एलएसडी की संक्रामक प्रकृति और अर्थव्यवस्था पर इसके बुरे प्रभावए जैसे दूध उत्पादन में कमीए गर्भपात और बांझपन आदि को देखते हुएए वर्ल्ड ऑर्गेनाइजेशन फॉर एनीमल हेल्थ ने इसे नोटीफाएबल डिजीज  कानूनन सरकारी अधिकारियों तक इसकी रिपोर्ट करना घोषित किया है। इसका मतलब है कि किसी देश को रोग के किसी भी प्रकोप के बारे में ओआईई को सूचित करना होगाए ताकि उसके प्रसार को रोका जा सके। फिर भी, देश में एलएसडी के वास्तविक प्रसार या किसानों के आर्थिक नुकसान को ले कर पशुपालन और डेयरी विभाग (डीएएचडी) के पास कोई वास्तविक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। अनुमान बताते हैं कि दिसंबर 2019 में सिर्फ केरल में कम से कम 5ए000 मवेशी एलएसडी संक्रमण के शिकार हुए।

कैसे करें नियंत्रण व बचाव

वायरस जनित रोग का अभी कोई भी इलाज नहीं हैए इसका टीकाकरण ही रोकथाम एवं निबंध नियंत्रण का सबसे प्रभावी साधन है त्वचा में द्वितीय संक्रमण का उपचार गैर स्टेरॉयडल एंटी इनफॉर्मेटरी और एंटीबायोटिक दवाओं के प्रयोग से रोग पर नियंत्रण किया जा सकता हैए संक्रमित पशु को एक जगह बांधकर रखेंए उन्हें स्वास्थ्य पशुओं के संपर्क में न आने दें। स्वस्थ पशुओं का टीकाकरण कराएं तथा बीमार पशुओं को बुखार एवं दर्द की दवा तथा लक्षण के अनुसार उपचार करें। पशु मंडी या बाहर से नए पशुओं को खरीद कर पुराने पशुओं के साथ ना रखेंए उन्हें कम से कम 15 दिन तक अलग क्वॉरेंटाइन में रखे। जूनोटिक रोग पशुओं से मानव में संक्रमणद्ध नहीं है एलएसडीवायरस जनित यह रोग जूनोटिक डिजीज की श्रेणी में नहीं आता है लिहाजा पशुपालक इससे अकारण भयभीत न होए बीमार पशु के दूध को ऊबाल करके सेवन करने से इस बीमारी का इंसान के शरीर पर इसका कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ेगा। सोशल मीडिया पर चल रही इस रोग की भ्रांति से पशुपालक सतर्क रहें। पशुओं में अगर इस बीमारी के लक्षण दिखते हैं तो तुरंत नजदीकी पशु चिकित्सालय में संपर्क करें और उसका उचित उपचार कराएं

और देखें :  एल.एस.डी. या गांठदार/ ढेलेदार त्वचा रोग/ लंपी स्किन डिजीज

यह लेख कितना उपयोगी था?

इस लेख की समीक्षा करने के लिए स्टार पर क्लिक करें!

औसत रेटिंग 5 ⭐ (564 Review)

अब तक कोई समीक्षा नहीं! इस लेख की समीक्षा करने वाले पहले व्यक्ति बनें।

हमें खेद है कि यह लेख आपके लिए उपयोगी नहीं थी!

कृपया हमें इस लेख में सुधार करने में मदद करें!

हमें बताएं कि हम इस लेख को कैसे सुधार सकते हैं?

Authors

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*