एल.एस.डी. या गांठदार/ ढेलेदार त्वचा रोग/ लंपी स्किन डिजीज

5
(454)

भारत सरकार के मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय में तकनीकी सलाहकार (राष्ट्रीय गोकुल मिशन) के पद पर कार्यरत डॉ. चंद्रशेखर गोदारा ने बताया कि लंपी स्किन बीमारी या ढेलेदार त्वचा रोग एक वायरल बीमारी है (एलएसडी) जो कि गायों और भैंसों में अत्यधिक संक्रामक होती है अन्य पशुओं या मनुष्यों को प्रभावित नहीं करती है। लंपी स्किन बीमारी (Lumpy Skin Disease) सबसे पहले 1929 में अफ्रिका में मिली थी।  लम्पी स्किन डिजीज देश में सबसे पहले पं. बंगाल में रिपोर्ट हुई थी। इसके बाद बिहार, ओडिसा में रिपोर्ट हुई।

क्या है लंपी स्किन बीमारी एवं उसके लक्षण

डॉ. चंद्रशेखर गोदारा ने बताया कि राजस्थान ही नहीं, महाराष्ट्र, झारखंड, छत्तीसगढ, ओडिसा, केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना, प. बंगाल आसाम, मध्यप्रदेश, गुजरात सहित दूसरे राज्यों में भी लम्पी स्किन डिजीज के मामले तेजी से बढ़ रहे है।  लंपी स्किन बीमारी एक वायरल बीमारी है, जिसमें गाय भैंस या बैल के शरीर पर गांठे होने लगती है. ये गांठें मुख्य रुप से इन पशुओं के जननांगों, सिर, और गर्दन पर होती है. उसके बाद वो पूरे शरीर में फैलती है. फिर धीरे धीरे ये गांठें बड़ी होने लगती है. वक्त के साथ ये गांठें घाव का रुप ले लेती है. इस पीड़ा से ज्यादातर पशुओं को बुखार आने लगता है. दूधारु पशु दूध देना बंद कर देते है. कई गायों का इस पीड़ा से गर्भपात भी हो जाता है. और कई बार मौत भी हो जाती है।

और देखें :  गौ पशुओं में लंपी स्किन डिजीज: लक्षण एवं रोकथाम

एक पशु से दूसरे पशु में कैसे फैलती है

ये एक वायरल बीमारी है. जो एक पशु से दूसरे पशु में पहुंचती है. जब शरीर पर गांठें और घाव होते है तो उस पर मच्छर और मक्खियां बैठती है. इन घावों से उठकर मच्छर दूसरे पशुओं के शरीर पर बैठते है. उनका खून चूसते है. तो ये बीमारी उस पशु में भी पहुंच जाती है. इसके अलावा बीमारी पशु के झूठे पानी और चारे को दूसरा पशु खाता है. तो लार की वजह से एक से दूसरे में ये बीमारी पहुंच जाती है।

और देखें :  लंपी स्किन डिजीज

रोग का इलाज

  1. गाँठदारत्वचा रोग वायरल संक्रमण है, इसलिए बीमारी होने से रोकने के लिए टीकाकरण ही रोकथाम व नियंत्रण का सबसे प्रभावी साधन है ।
  2. पशुओं में हुए इस रोग के कारण सम्भावित द्वितीयक संक्रमणों की रोकथाम के लिए उपचार के तौर पर दर्द एवं सूजन निवारक दवाओं के प्रयोग के साथ साथ एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग किया जा सकता है।
  3. रोगाणुरोधी औषधियों से प्रतिदिन घावों की सफाई करनी चाहिए।

रोकथाम और नियंत्रण: प्रबंधन में सुधार।

  1. गाँठदार त्वचा रोग का नियंत्रण और रोकथाम निम्न रणनीतियों पर निर्भर करता है, जो निम्नलिखित हैं – ‘आवाजाही पर नियंत्रण (क्वारंटीन), टीकाकरण और प्रबंधन’।
  2. फार्म और परिसर में सख्त जैव सुरक्षा उपायों को अपनाएं जैसे पशुशाला या पशु डेयरी में लोगों और अन्य पशुओं की आवाजाही पर नियंत्रण (क्वारंटीन)
  3. नए जानवरों को अलग रखा जाना चाहिए और त्वचा की गांठों और घावों की जांच की जानी चाहिए और बीमार पशुओं का वेटरनरी डॉक्टर से उपचार करवाएं।
  4. प्रभावित जानवर को चारा, पानी और उपचार के साथ झुंड से अलग रखा जाना चाहिए, ऐसे जानवर को चरने वाले क्षेत्र में नहीं जाने देना चाहिए।
और देखें :  केंद्रीय मंत्री श्री परशोत्तम रुपाला ने दार्जिलिंग और कलिम्पोंग जिलों के पशुओं में लम्पी रोग (एलएसडी) के बढ़ते मामलों पर त्वरित कार्रवाई का निर्देश दिया
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।

यह लेख कितना उपयोगी था?

इस लेख की समीक्षा करने के लिए स्टार पर क्लिक करें!

औसत रेटिंग 5 ⭐ (454 Review)

अब तक कोई समीक्षा नहीं! इस लेख की समीक्षा करने वाले पहले व्यक्ति बनें।

हमें खेद है कि यह लेख आपके लिए उपयोगी नहीं थी!

कृपया हमें इस लेख में सुधार करने में मदद करें!

हमें बताएं कि हम इस लेख को कैसे सुधार सकते हैं?

Author

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*