नवजात पशुओं की देखभाल

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पारम्परिक रूप से पशु पालन में डेयरी व्यवसाय कृषि की द्वितीयक स्वरूप के परे एक संगठित उद्योग के स्वरूप को प्राप्त है। आज किसान दुग्ध व्यवसाय को व्यापार व आर्थिक उन्नति का आधार बनाया है। इस कारण से आज इसमें तकनीकी का समावेश प्रत्येक स्तर पर हुआ है। जैसे कि दुग्ध का उत्पादन, गुणवत्तायुक्त दुग्ध उत्पादन, दुग्ध दूहान की विधि, दुग्ध देने की अवधि, बछड़ा उत्पादन में नियमितता, चारे की लागत, श्रम लागत और पशु प्रबन्धन आदि। समावेशी रूप से दुग्ध उत्पादन पर प्रजनन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। नियमित प्रजनन जो पशुपालन का मूल मन्त्र है “प्रतिवर्ष एक बछड़ा“ हेतु पशु का पोषण व उसके स्वास्थ की देखभाल अत्यन्त महत्वपूर्ण है।

बछड़े के जन्म होने से दो महीने पहले से ही गाभिन पशु को अच्छा खाना खिलाना व प्रबन्धन के कार्यक्रम शुरू कर देना उचित होता है। नवजात बछड़े का पूर्ण विकास गर्भावस्था के अन्तिम दो महीनों के भीतर ही होता है। गाभिन पशु के उचित प्रबन्धन का प्रभाव ना केवल उसके स्वयं के स्वास्थ्य परन्तु ब्यॉत के तुरन्त बाद के प्रथम दूध कोलेस्ट्रम(खीस) में पाये जाने वाले एन्टीबाडीज की गुणवत्ता और मात्रा पर भी पड़ता है और जिसका सीधा असर नवजात बछड़े के स्वास्थ्य पर पड़ता है। जन्म के बाद बछड़े को स्वच्छ वातावरण में ध्यानपूर्वक पाला जाना चाहिए और अगर संभव हो तो भविष्य में बेहतर विकास के जिये नवजात बछड़े का प्रबन्धन व देखभाल एक बहुत ही महत्वपूर्ण क्रिया है जो एक कुशल व्यक्ति द्वारा की जानी चाहिए।

गर्भाशय में बच्चा पूरी तरह से मां पर निर्भर रहता है और मां से ही संपूर्ण पोषण मिलता है लेकिन जन्म के बाद खुले वातावरण में आने के बाद उसकी आवश्यकता अधिक हो जाती है। जन्म के समय गर्भनाल के टूट जाने से मां व बच्चे का जुड़ाव भी टूट जाता है जिसके जरिए वह ऑक्सीजन व पोषण प्राप्त करता था। कुछ नवजात बच्चों में तो जन्म के बाद फेफड़े पूरी तरह से काम नहीं कर पाते हैं और सांस लेने में दिक्कत आती है। ऐसा अधिकतर कठिन प्रसव के बाद होता है। कठिन प्रसव के समय, बच्चे के अधिक समय तक फॅसे रहने  से ऐसी समस्या अधिक होती है ऐसे में कृत्रिम श्वास देना आवश्यक होता है।

नवजात बछड़े/बछिया की जन्म के शुरूआती घण्टों में निम्नलिखित क्रियायें किया जाना अतिआवश्यक है:

  1. जन्म के बाद नवजात बच्चे को सामान्य पोषण करने के लिए जन्म के तत्काल बाद बछड़े/बछिया की नाक और उसका मूहॅ साफ करना चाहिए। बच्चे को साफ घास या बोरी पर ढलान में रखे ताकि सिर नीचे रहे। कुछ क्षण के लिए ऊंचा कर ले या पिछले भाग को ऊंचा उठा ले ताकि नाक में जमा म्यूकस बाहर आ सके।
  2. यदि सांस लेने में तकलीफ हो तो नवजात बछड़े/बछिया की पसलियों को दबाकर धीरे धीरे मालिश करें जिससे उसे सांस लेने में आसानी रहे। इसके लिए जीभ को पकड़कर आगे पीेछे हिलाकर भी सहायता कर सकते हैं इसके उपरान्त भी यदि हालत गंभीर हो तो अतः शिरा सूची वेध विधि से, एड्रीनलीन या कोरामिन इंजेक्शन लगाना चाहिए। जब ब्याने के समय बच्चा बाहर निकालने में दिक्कत आती है और अधिक समय तक योनि , योनि मार्ग या गर्भाशय में फॅसा रहता है, तो इससे प्लेसेंटा की रक्त सप्लाई में मुश्किल होती है और ऐसे बछड़ों को जन्म के बाद सांस लेने में दिक्कत होती है और कुछ बच्चें तो मर भी जाते है। यदि 2 से 3 मिनट मंें स्वंय सांस लेना शुरू नहीं करता है तो बच्चे को बचने की संभावना बहुत कम हो जाती है। यदि प्रसव सामान्य होता है तो जन्म के बाद 30 सेकेंड में नवजात बच्चा स्वतः ही सांस लेना शुरू कर देता है कभी-कभी सिर तथा गर्दन तक का भाग बाहर आ जाता है और फिर बाकी भाग आने में देरी होती है तो पूरी तरह बाहर आने से पहले ही श्वसन शुरू हो जाता है। नवजात बछड़े की जन्म के तुरंत बाद बछड़ा सबसे पहले एक गहरी सांस लेता है जिससे काफी हवा अंदर जाती है और फेफड़े सक्रिय होते है। जब बछड़ा पहली सांस ले लेवे तो पसलियों के स्थान पर 5 से 10 बार हथेलियों से दबायें ताकि फेफड़ों में आवश्यकतानुसार हवा चली जाए और फेफड़े काम करना शुरू कर दें। बच्चें के जिंदा रहने की संभावना तभी ज्यादा रहती है जब वह जल्दी से जल्दी खुद ही श्वसन शुरू कर दें। जो भी नवजात पैदा हो उसके नाक का रास्ता साफ करें, और नाक में से म्यूकस या जेर का कोई भाग हो तो साफ करें। इसके लिये एक सिरिंज से नाक मंे जमा तरल या म्यूकस खींच खींच कर रास्ता साफ करंे ताकि शीध्र सामान्य श्वसन शुरू हो सके। यदि हो सकें तो पिछले पैरों को पकड़कर पैदा होने के तुरन्त बाद बछड़े की नाक व मुॅह साफ करें फिर बछड़े/बछिया के पूरे शरीर को अच्छी तरह सूखी तौलिया से साफ करें इससे बछड़े में रक्त का संचार होता है और स्फूर्ति आती है।
  3. मुंह में दो उंगलिया डालें और उन्हें उनकी जीभ पर रखें जिससे म्यूकस बाहर आ सकें।
  4. जन्म के बाद गर्भनाल यादि अपने आप नही टूटती है तो गर्भनाल को दो इंच की दूरी पर धागे के साथ बांध दे। बची हुई नाल को साफ कैंची या नई ब्लेड से काटकर उस पर टिंक्चर आयोडीन लगाएं जिसे कि नाल में संक्रमण को रोका जा सकें। किसी भी प्रजाति में जनम के समय खिंचाव से गर्भनाल टूट जाती है, और लगभग दो इंच भाग लटका रहता है। यादि गर्भनाल नही टूटती है तो नई ब्लेड या चाकू या कैंची से काट लें और एंटीसेप्अिक लोशन या ट्यूब सप्ताह भर तक प्रतिदिन लगाएं। घोड़ी के नवजात में ऐसा करने पर एंटी टॉकसाइड इंजेक्शन अवश्य लगवाएं।
  5. मौसम को ध्यान में रखकर सर्दी गर्मी से बच्चे का बचाव करना चाहिए।
  6. जन्म के समय आधे घण्टे के भीतर नवजात पशु को खींस पिलाना चाहिए। खींस की मात्रा बच्चे के वजन के दसवें भाग के बराबर होनी चाहिए। बच्चे को प्रतिदिन मॉ का पहला दूध या खींस हर 06 घंटे बाद पिलाना उत्तम होना है। खीस में इम्यूनोग्लोबुलीन अधिक मात्रा में होते है जो कि बच्चे में रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करते है। इसके अतिरिक्त इसमें विटामिन ए भी अधिक मात्रा में होता है। जोकि बछड़े की वृद्वि के लिए जरूरी है। जिसके कारण बछड़े का पहला गोबर अर्थात मुकोनियम भी आसानी से बाहर निकल जाता है। जन्म के तुरन्त बाद मॉ अपने नवजात बछड़े को पूरी तरह से अपनी खुरदरी जीभ से चाटती है जिससे नवजात की त्वचा का रक्त संचार तेज होता है। गाय बच्चे को चाट कर बच्चे की त्वचा पर चिपका हुआ सारा म्यूकस साफ कर देती है और बछड़ा अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश करता है और माू के थन को ढूंढता है।
  7. जन्म के 21 दिन तक कृमीनाशक दवा अवश्य दे देना चाहिए। उसके उपरान्त 06 से 08 माह तक महीने में एक बार पेट के कीड़े की दवा अवश्य देना चाहिए।
  8. बछड़ा/बछिया जैसे ही 01 महीने का हो जाए उसे कोमल घास और 100 ग्राम शिशु आहार प्रतिदिन देना चाहिए। 04 महीने की आयु होने पर और चिकित्सक से संपर्क करके आवश्यक टीके लगवा लेना चाहिए। नवजात बछड़े बछियों को सुरक्षित वातावरण में रखना चाहिए।
और देखें :  गाय एवं भैंस के नवजात बच्चों की मृत्यु के मुख्य कारण:

नवजात बछड़ों/बछियों की विशेष देखभाल के लिए कुछ तकनीकी युक्त प्रबन्धन के तरीके अपनाने चाहिए जोकि इस प्रकार हैं:

और देखें :  गाभिन पशु का ग्रीष्म एवं वर्षा ऋतु में पोषण एवं प्रबन्धन

आवास प्रबन्धन

बछड़ों को धूप, बारिश और अन्य खराब मौसम से बचाने हेतु तथा आश्रय प्रदान करने के लिये आवास की आवश्यकता होती है। बछड़ोे के पालन में यह जरूरी है कि एक खुला व्यायाम मांडक सीधे उसका आश्रय तथा खिलाने के घर के साथ संवाद स्थापित करने के लिए प्रदान किया जाना चाहिए, साथ ही पीने का स्वच्छ पानी उनके लिए हमेशा उपलब्ध होना चाहिए। एक बछड़े के बेहतर प्रबन्धन और देखभाल के लिए 4 से 6 वर्ग फिट फर्श की जगह प्रदान करनी चाहिए।

आहार प्रबन्धन

कोलोस्ट्रम दूध (खीस) पिलाना

बछड़े को जन्म देने के बाद गाय जो पहला दूध देती है उसे बछड़े को अवश्य प्राप्त करना चाहिए जिसे कालोस्ट्रम कहा जाता है। बछड़े के जन्म से पहले तीन दिन तक उसे प्रतिदिन 2-2.5 लीटर के बीच काफी कोलोस्ट्रम खिलाना सुनिश्चित किया जाना चाहिए। अतिरिक्त कालोस्ट्रम झुण्ड में अन्य बछड़ो को सामान्यतः पिलाये जाने वाले दूध की मात्रा के बराबर खिलाया जा सकता हैं। अगर एक गाय के ब्याने से पहले दूध निकाला जा चुका है तो जहॉ तक सम्भव हो तो कुछ कोलोस्ट्रम बाद में बछड़ोें को खिलाने के लिये जमा कर रख दें। इनमें कुछ भी बर्बाद नही किया जाना चाहिए।

कृत्रिम रूप से कोलोस्ट्रम तैयार करना

यदि गाय का कोलोस्ट्रम नहीं निकल रहा है तो दूसरी गाय या भैंस का फ्रोजन कोलोस्ट्रम दें। यदि यह भी नहीं प्राप्त हो तो निम्न फार्मूले के अनुसार बच्चे का पोषण करना चाहिए।

संघटक मात्रा
हल्का गर्म पानी 275 मि.ली.
साबुत अण्डा 01
अरण्डी का तेल 03 मि.ली.
विटामिन ए 10000 आई0यू0
गर्म सम्पूर्ण दूध 525 मि.ली.
आरोमाईसिन 80 मिली.ग्राम.

नोट: उपर्युक्त फार्मूले के अनुसार मिश्रण को तैयार कर 40 डिग्री तापमान पर नवजात को पिलाना चाहिए यह मात्रा दिन में 03 बार देनी चाहिए। जन्म के चौथे दिन के बाद से 03 महीने की उम्र तक नवजात को सम्पूर्ण दूध देना चाहिए।

सम्पूर्ण दूध पिलाना

पूरा दूध पिलाते समय बछड़ो को नीचे दी गई भोजन सूची के अनुसार खिलाया जाना चाहिए। तीन महीने बाद बछड़ो की मुख्य भोजन के पहले का खाद्य (स्टार्टर) तथा अच्छी गुणवत्ता की उपलब्ध फलियॉ या हरी घास खिलाई जा सकती है।

बछड़े की आयु अनुमानित शरीर का वजन (कि,ग्रा,) दूध की मात्रा (कि.ग्रा.) स्टार्टर की मात्रा (ग्राम)
4 दिन से 4 सप्ताह 25 2.5 कम मात्रा में
4-6 सप्ताह 30 3.0 50-100
6-8 सप्ताह 35 2.5 100-250
8-10 सप्ताह 40 2.0 250-350
और देखें :  पशुओं में उष्मीय तनाव– प्रभाव एवं बचाव

स्वास्थ्य प्रबन्धन

स्वास्थ्य प्रबन्धन की रणनीति “रोकथाम इलाज से बेहतर” की होनी चाहिए। बछड़े के सबसे घातक रोग बछड़ा परिमार्जन, निमोनिया, दस्त और खुरपका मुॅहपका। बाह्य एंव अन्तःपरजीवी भी महत्वपूर्ण है। कृमिनाशक का उपयोग नियमित रूप से किया जाना चाहिए। कृमिनाशक साल में दो बार दिया जाना चाहिए एक बार बरसात के मौसम (अप्रैल-मई) की शुरूआत में और एक बार बरसात (अक्टूबर-नवंबर) के मौसम के अंत में। अगर बछड़े त्वचा रोगों से प्रभावित हो जाता है तो नुगुवन गैमिक्सन को बाह्य परजीवी तथा आईवरमैक्टीन, फेनबेन्डाजोल, एलवेन्डाजोल आदि को लीवर फ्लूक, टेप वर्म तथा गोल कृमि के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इसकेे अतिरिक्त निम्न उपायों को बछड़ों को रोग मुक्त करने के लिए उपयोग में लाया जाना चाहिए।

  1. बछड़ो को जन्म के तुरन्त बाद कोलोस्ट्रम पिलाया जाना चाहिए।
  2. पशु घर को साफ एंव शुष्क रखा जाना चाहिए।
  3. बछड़े को मादा से अलग रखा जाना चाहिए।
  4. बछड़े के शरीर को गंदे पदार्थो से साफ रखा जाना चाहिए।
  5. दूध और अन्य खाद्य सामग्री की पर्याप्त मात्रा में आपूर्ति की जानी चाहिए।
  6. बीमार बछड़े को स्वस्थ बछड़े से अलग रखा जाना चाहिए।
  7. जरूरत के अनुसार नियमित टीकाकरण एंव कृमिनाशक का प्रयोग किया जाना चाहिए।

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