प्रस्तावना
बटेर पालन का व्यवसाय मुर्गी पालन से काफी मिलता जुलता है। लेकिन मुर्गी पालन की तुलना में कम खर्च, कम मेहनत और ज्यादा मुनाफा देने वाला होता है। बटेर का मांस और अंडा दोनों ही सेहत के द्रष्टि से अत्यंत लाभकारी है। इन गुणों के अलावा बटेर के मांस की बाज़ार में मांग उसके स्वाद के कारण है।
बटेर पक्षियों की नस्ले
- पूरी दुनिया में बटेर की लगभग 18 प्रजाति उपलब्ध है, इनमे से अधिकांश भारत की जलवायु में पाली जा सकती है।
-
- वाइट बेस्टेड:- यह भारतीय प्रजाति है जो मांस उत्पादन के लिए उचित है।
- होल वाइट :- यह अमरीकी प्रजाति है यह भी मांस उत्पादन के लिए अच्छी मानी जाती है।
- ब्रिटिश रेंज, इंग्लिश वाइट, तक्सेड़ो, मंचूरियन गोलन, फिरोंन :- ये सभी अधिक अंडे देने वाली प्रजाति है।
- शारीरिक बजन :- 130-250 ग्राम (5 सप्ताह में )
- प्रतिवर्ष अंडे देने की क्षमता – 240-305 अंडे
- बटेर के एक अंडे का वजन 8-14 ग्राम होता है।
- बटेर पालन आजकल ग्रामीण व्यवस्था में उत्तम व्यवसायिक पालन की श्रेणी में आता है।
बटेर पालन के लाभ
- बटेर आकार में छोटे होने के कारण इनके आवास के लिए कम जगह की आवश्यकता होती है।
- बटेर कम अवधि में तैयार होने की वजह से इनमे टीकाकरण की आवश्यकता नहीं होती है तथा बीमारियां न के बराबर होती है।
- बटेर जल्दी परिपक्व हो जाते हैं। मादा बटेर 6-7 सप्ताह में ही अंडे देना शुरू कर देती है तथा बाज़ार में बटेर की 5 सप्ताह के बाद से ही बेचने की अवधि हो जाती है।
- मुर्गी के मांस की तुलना में बटेर का माँस अधिक स्वादिष्ट होता है साथ ही इसमें तुलनात्मक रूप से वसा कम पाई जाती है जो कि स्वास्थ्य के लिए अच्छा है।
- बटेर का आकार छोटे होने के कारण मुर्गी पालन की तुलना में ज्यादा संख्या में बटेर पालन कर सकते हैं।जहाँ हम 1000 मुर्गे पलते हैं वहां 6000 बटेर पाल सकते हैं।
- आज के युवा के लिए बटेर पालन अच्छा रोजगार का अवसर प्रदान करवा सकता है।
बटेर पालन में आवास व्यवस्था
- आवास में बिछावन प्रणाली और पिंजरा विधि से बटेर पालन किया जाता है। इसमें पिंजरा विधि का उपयोग अधिक लाभप्रद और सुविधाजनक होता है।
- चूजा आवास :- चूजा आवास के लिए पिंजरों की आवश्यकता नहीं होती है। चूजा आवास में खिड़कियाँ और रोशनदार होना बहुत जरुरी हैं।
- बटेर के चूजों को दो सप्ताह तक लगभग 28-30 घंटे प्रकाश की आवश्यकता होती है। ब्रीडिंग के पहले सप्ताह के दौरान तापमान लगभग 35 डिग्री पर बनाए रखना चाहिए। इसके लिए इलेक्ट्रिक ब्रूडर की जरुरत पड़ती है। जब तक 3-4 सप्ताह में चूजों के पूरी तरह पंख नहीं निकल जाते तब तक इस तापमान को लगभग 3.5 डिग्री सेल्सीअस तक कम किया जा सकता है। दो सप्ताह की आयु के बाद पक्षियों को पिंजरों में रखा जा सकता है।
- 100 बटेरों के लिए पिंजरे की लम्बाई, चौड़ाई, ऊंचाई — 2.5×1.5 x0.5
- 200 बटेरों के लिए पिंजरे की लम्बाई, चौड़ाई, ऊंचाई — 3×2 x2
- मांस उत्पादन के लिए तैयार किये जा रहे बटेर को प्रतिदिन केवल 8 घंटे कम तीव्रता वाला प्रकाश देना चाहिए। यह यौन परिपक्वता के लिए पर्याप्त नहीं है जिससे पक्षी लड़ने और सम्भोग पर ऊर्जा खर्च नहीं करते है और अधिक तेजी से मोटे होते है।
बटेर पालन में आहार व्यवस्था
चूजों को ब्रूडर में रखने से पहले कागज या पेपर बिछाकर उसमे ब्रूडर फीड या चारे से पेपर को ढक देना चाहिए , लगभग एक सप्ताह के बाद पेपर हटा लेना चाहिए और फीड को कुंड में डालकर खिलाना चाहिए क्योकि एक सप्ताह के बाद चूजे खाना सीख जाते हैं। फीड या चूजे के खाने में 27% प्रोटीन होना चाहिए तथा पीने के लिए स्वच्छ पानी होना चाहिए।
वयस्क बटेर के लिए (१किलोग्राम के बटेर के लिए ) कुल 2-2.5 किलो आहार की जरुरत होती है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए संतुलित और स्वच्छ आहार की जरुरत होती है। एक वयस्क बटेर के लिए प्रतिदिन 20-35 ग्राम आहार की आवश्यकता होती है। आहार में लगभग 24% प्रोटीन और 2.5-3.5% कैल्शियम होना चाहिए। पिसा हुआ चूना या रोल ग्रिट 5 सप्ताह की आयु के बाद आहार में जोड़ा जा सकता है जिससे बटेर में अंडे के उत्पादन की क्षमता बढे।
बटेर पक्षियों में प्रजनन
सामान्य रूप से बटेर 5-7 सप्ताह की आयु में प्रजनन के लिए परिपक्व हो जाते हैं। बटेर को अधिकतम अंडा उत्पादन और उर्वरता बनाये रखने के लिए प्रतिदिन 14-18 घंटे प्रकाश की आवश्यकता होती है। अच्छे उत्पादन को बनाये रखने के लिए शरद ऋतु, सर्दियों और बसंत के महीने में प्रकाश की व्यवस्था करनी चाहिए।
व्यावसायिक बटेर पालन के लिए नर एवं मादा का अनुपात 1:5 रखना चाहिए यानि 5 मादाओ में एक नर। मादा बटेर 6-7 सप्ताह की आयु में ही अंडे देना शुरू कर देती है। 8 सप्ताह की आयु में ही लगभग 50 %तक अंडे देने की क्षमता ये पक्षी प्राप्त कर लेते हैं। इस प्रकार बटेर पालन को उच्च गुणवत्ता वाले व्यवसाय के रूप में अपनाकर पशु पालक अपनी आय में सालाना इजाफा कर सकते है।
Be the first to comment