अगर आप दुग्ध उत्पादन हेतु भैंस पालन शुरू करने जा रहे हैं तो इन पांच महत्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखें। इन बातों को ध्यान में रखकर ही आप बेहतर दूध उत्पादन कर सकते हैं जिससे अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है।
- अच्छी नस्ल की भैंस का होना: सबसे महत्वपूर्ण बात भैंस की नस्ल है, भैंस का दुग्ध उत्पादन तभी अच्छा होगा अगर भैंस की नस्ल अच्छी होगी। भारत में भैंस पालन के लिए मुर्रा नस्ल की भैंस पलने की सलाह दी जाती है। मुर्रा भैंस अन्य भैंस प्रजातियों से अधिक दूध देती है। मुर्रा नस्ल के पशु भारी-भरकम डील-डौल वाले होते हैं। गहरा काला रंग और लम्बी पूंछ मुर्रा भैंस की प्रमुख पहचान है। इनके सींग छोटे और अन्दर की ओर कसकर मुड़े होते हैं, पूंछ लंबी पैरों तक, गर्दन और सिर पतला, भारी लेवा और थन लंबे होते हैं।त्वचा अन्य भैंसों की तुलना में नरम, कम बाल के साथ चिकनी होती है।
- संतुलित आहार का होना: दूसरी बात अच्छी नस्ल होने के साथ-साथ संतुलित आहार भी आवश्यक है अन्यथा संतुलित आहार न मिलने पर दूध उत्पादन पशु की क्षमता के अनुसार नहीं मिल पाता। यदि भैंस 10 लीटर दूध देती है तो पूरे दिन में भैंस को लगभग 4-5 किलोग्राम संतुलित दाना, भूसा लगभग 3-4 किलो तथा लगभग 20-25 किलो हरा चारा देना चाहिए।
अगर 100 किलोग्राम संतुलित दाना बनाना हो तो निम्नलिखित पांच चीजों की आवश्यकता पड़ती है।
- अनाज (35-40 किलो)- मक्का, जौ, गेंहू, बाजरा आदि कोई एक या विभिन्न का मिश्रण जो भी उपलब्ध हो और सस्ता हो।
- चोकर (25-30 किलो)- गेंहू का चोकर, चना की चूरी, दालों की चूरी, राइस ब्रेन आदि कोई एक या विभिन्न का मिश्रण जो भी उपलब्ध हो और सस्ता हो।
- खल (30-35 किलो)- सरसों की खल, मूंगफली की खल, बिनौला की खल, अलसी की खल आदि कोई एक या विभिन्न का मिश्रण जो भी उपलब्ध हो और सस्ता हो।
- नमक (1 किलो)
- खनिज मिश्रण (2 किलो)
- आरामदायक बाड़ा: तीसरी बात भैंसों का बाड़ा आरामदायक बनाया जाना चाहिए जो सर्दी, गर्मी और बरसात आदि प्रतिकूल मौसम से भैंस को बचाने के साथ साथ हवादार भी हो। फर्श कच्चा हो तथा फिसलने वाला नहीं होना चाहिए। बाड़े में मच्छर हो तो मच्छर दानी या अन्य कोई उपाय करके भैंस को मच्छरों से बचानेके उपाय करने चाहिए। अगर पशु को आरामदायक बाड़ा मिलेगा तो दूध उत्पादन भी अच्छा होगा।
- भैंस हर साल बच्चा दे: भैंसपालन में चौथी बात यह है कि भैंस हर साल बच्चा दे। अगर भैंस ने हर साल बच्चा नहीं दिया तो भैंस पर आने वाला रोजाना का खर्चा नुकसान में गिना जायेगा। इसके साथ 2 से 2.5 साल मैं भैंस का वजन 350 किग्रा हो जाना चाहिए और वो नए दूध हो जानी चाहिए। अगर बच्चा नहीं दे रही है तो उसको पशुचिकित्सक को जरुर दिखा लेना चाहिए।
- रोग नियंत्रण: पांचवी बात भैंस को रोगों से बचाकर रखे क्योंकि पशु स्वस्थ्य नहीं होगा तो उससे अच्छा दूध उत्पादन नहीं किया जा सकता। इलाज से बेहतर बचाव होता है, इसलिए जरूरी है की भैंस को पेट के कीड़े की दवा, खुरपका-मुंहपका, गलाघोटू एवं उस स्थान पर होने वाली बीमारियों के टीके समय समय पर लगाते रहें। साथ ही पशु को साफ़ पानी पिलायें एवं साफ़ सफाई का ध्यान रखे। किसी भी रोग के लक्षण दिखने पर तुरंत इलाज कराएं।
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