9 सितंबर, 2019: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली और कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा संयुक्त रूप से पी. सुब्रह्मण्यम सभागार, राष्ट्रीय कृषि विज्ञान केंद्र परिसर, पूसा, नई दिल्ली में आज पराली प्रबंधन पर राष्ट्रीय किसान सम्मेलन का आयोजन किया गया। पुरुषोत्तम रूपाला, केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण राज्य मंत्री ने इस मौके पर स्पष्ट किया कि दो फसलों के बीच अल्पतम समय और उस दौरान श्रम के अभाव ने पराली जलाने की परंपरा को जन्म दिया। इसे जल्दबाज़ी में शुरू किया गया कदम बताते हुए उन्होंने किसानों को इसके दूरगामी कुप्रभाव के बारे में बताया।
श्री रूपाला ने पराली प्रबंधन के लिए सरकार द्वारा दी जा रही सुविधाओं, मसलन कस्टम हायरिंग सेंटर, अनुदान आदि के बारे में बताया। उन्होंने जमीनी स्तर पर सरकार की योजनाओं को सफल बनाने के लिए भाकृअनुप, विस्तार केंद्रों, अटारी और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के अधिकारियों की सराहना की। उन्होंने उम्मीद जताई कि किसान इस समस्या से निजात पाने में बराबर सहयोग करेंगे। मंत्री ने भाकृअनुप के अधिकारियों से किसानों के अनुभवों को फिल्मा कर उसे सभी प्रांतों में बाँटने का आग्रह किया ताकि जागरूकता का प्रसार-प्रचार हो सके। इस अवसर पर उन्होंने आए हुए सभी किसानों को पराली नहीं जलाने के लिए शपथ ग्रहण भी दिलवाया।
श्री सूर्य प्रताप शाही, कृषि मंत्री, उत्तर प्रदेश ने पराली जलाने के नुकसान, पराली प्रबंधन के उपयोग, इसके लाभ और सरकार द्वारा किसानों को दिए गए मशीनरी मदद का जिक्र करते हुए कहा कि क्षेत्रीय संस्थानों के प्रबंधन और भाकृअनुप के जागरूकता कार्यक्रम व सहयोग के फलस्वरूप पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और दिल्ली में पराली जलाने के दर में भारी गिरावट आया है।
श्री शाही ने कहा कि पराली जलाने से न केवल पर्यावरण को खतरा है बल्कि मानवीय स्वास्थ्य के साथ-साथ मिट्टी की उर्वरक क्षमता में भी कमी होती है। उन्होंने आँकड़ों और तथ्यों का हवाला देते हुए पराली प्रबंधन के मामले में उत्तर-प्रदेश सरकार द्वारा उठाए गए प्रशंसनीय कदम का जिक्र किया और किसानों से संकल्प लेने का आग्रह करते हुए कहा कि फसल अवशेष प्रबंधन किसानों की आय में वृद्धि कर सकता है। संजय अग्रवाल, सचिव, कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग, भारत सरकार ने इस अवसर पर सरकार द्वारा किसानों के हित में चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं और सुविधाओं के बारे में बताया।
डॉ. त्रिलोचन महापात्र, महानिदेशक (भा.कृ.अनु.प.) एवं सचिव (कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग) ने अपने स्वागत संबोधन में कृषि-हित में कार्य करने वाले कृषि विभागों, भाकृअनुप अधिकारियों/वैज्ञानिकों और किसानों को उनके उल्लेखनीय कार्य के लिए सराहा। उन्होंने आँकड़ों के साथ बताया कि हमारे प्रयासों और किसानों के सहयोग से लगभग 4500 गाँवों में पराली को नहीं जलाया गया।
डॉ. महापात्र ने कहा कि पराली प्रबंधन से उत्पादन में बढ़त, आय में वृद्धि एवं स्वास्थ्य में सुधार का दर बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि इस योजना में लगभग 100 सार्वजनिक संस्थान शामिल हैं जिनमें कृषि विज्ञान केंद्र, भाकृअनुप संस्थान, राज्य कृषि विभाग, कृषि विश्वविद्यालय आदि शामिल हैं। महानिदेशक ने पंजाब के उत्तर-पश्चिमी राज्यों, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और दिल्ली में स्थायी और मापनीय इन-सीटू फसल अवशेष प्रबंधन प्रथाओं के कार्यान्वयन के सुझाव और मार्गदर्शन के लिए माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा गठित उच्च स्तरीय टास्क फोर्स को रेखांकित किया।
डॉ. राजबीर सिंह, निदेशक, भाकृअनुप-अटारी; श्री अश्विनी कुमार, संयुक्त सचिव (बीज/एम एंड टी), कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग और श्री मनमोहन कालिया, सह-निदेशक, कृषि (अभियांत्रिकी), पंजाब सरकार ने पराली से संबंधित विषयों पर प्रस्तुतीकरण दी। इस मौके पर उन किसानों को पुरस्कृत किया गया जिन्होंने पराली प्रबंधन में अपना उत्कृष्ट योगदान दिया है और अधिकारियों को प्रशंसा-प्रमाण पत्र वितरित किया गया। साथ ही, भाकृअनुप-अटारी द्वारा प्रकाशित पुस्तक का विमोचन भी किया गया।
इस अवसर पर श्री बिम्बाधर प्रधान, अतिरिक्त सचिव एवं वित्त सलाहकार (भा.कृ.अनु.प.); श्रीमती डॉली चक्रवर्ती, अपर सचिव, कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग; डा. ए. के. सिंह, उप महानिदेशक (कृषि विस्तार) भाकृअनुप और डॉ. के. अलगुसुंदरम उप महानिदेशक (कृषि अभियांत्रिकी) भी मौजूद रहे। सम्मेलन में 1500 से अधिक किसानों ने अपनी उपस्थिति दर्ज की। श्री अश्विनी कुमार, संयुक्त सचिव (बीज/एम एंड टी), कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग ने गणमान्य अतिथियों को आभार प्रस्तुत किया।
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