बिहार के आर्द्रभूमि मात्स्यिकी प्रबंधन पर एक दिवसीय कार्यशाला सह प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन

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20 नवम्बर 2019: बिहार के मन एवं चौर में मात्स्यिकी विकाश के उद्देश्य से केन्द्रीय अन्तर्स्थलीय मात्स्यिकी अनुसन्धान संस्थान, बैरकपुर, कोलकाता, पश्चिम बंगाल एवं बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, पटना के संयुक्त तत्वाधान में बिहार वेटरनरी कॉलेज प्रांगन में “बिहार के अर्द्रभूमि मात्स्यिकी प्रबंधन पर एक दिवसीय कार्यशाला सह प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन” किया गया । इस कार्यक्रम का उद्घाटन कृषि-सह-पशुपालन एवं मत्स्य संसाधन मंत्री डॉ प्रेम कुमार ने किया इस अवसर पर विभागीय सचिव डॉ एन विजयलक्ष्मी,  कुलपति, बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय डॉ रामेश्वर सिंह, निदेशक, केन्द्रीय अन्तर्स्थलीय मात्स्यिकी अनुसन्धान संस्थान, बैरकपुर, कोलकाता, पश्चिम बंगाल डॉ बसंत कुमार दास, निशात अहमद, संयुक्त निदेशक (मात्सिकी) मौजूद  थे।

इस अवसर पर डॉ प्रेम कुमार ने कहा की कृषि बिहार की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए खेती के साथ-साथ अन्य विकल्पों पर भी कार्य किए जा रहे हैं इसमें मत्स्य पालन पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है । बिहार राज्य आर्द्रभूमि मन एवं चौर, टैंक, तालाब, और नदियों के रूप में विशाल जलीय संपदा से संपन्न हैं। बिहार में लगभग 9 लाख 41 हजार हेक्टेयर आर्द्रभूमि है जिसमें से पांच लाख हेक्टेयर बाढ़ कृत जलक्षेत्र (मन चौर) राज्य के सबसे महत्वपूर्ण मत्स्य संसाधन है इनमें मत्स्य उत्पादन की असीम संभावनाएं हैं जिसका विकास राज्य सरकार की प्राथमिकता है। इसके लिए कृषि रोड मैप में व्यापक प्रावधान किए गए हैं। कृषि रोड मैप में 3000 हेक्टेयर के आर्द्रभूमि को विकसित करने का लक्ष्य रखा गया है इसके लिए 75 करोड़ का प्रावधान किया गया है। प्रधानमंत्री विशेष पैकेज में भी इसके लिए योजनाएं ली गई है, हरियाली मिशन के तहत 10 करोड रुपए विभाग को स्वीकृत किया गया है। जल जीवन हरियाली कार्यक्रम में भी मनरेगा तथा लघु जल संसाधन विभाग द्वारा इसके विकास की योजना ली गई है।

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पुराने समय से ही मछुआरों के परिवार की आजीविका इन आर्द्रभूमि में मछली पकड़ने पर निर्भर रही है इस जलीय संपदा में मातिस्यिकी के विकास की अपार संभावनाएं हैं । जिसके लिए राज्य के किसानों के लिए विभिन्न योजनाएं चलायी जा रही है जैसे अनुसूचित जाति जनजाति के लिए 90% अनुदान पर मत्स्य विपणन हेतु आइस बॉक्स युक्त मोपेड, थ्री व्हीलर फोर व्हीलर वाहन उपलब्ध कराया जा रहा है। मत्स्य नर्सरियों में मत्स्य बीज एवं चारा 90% अनुदान पर दिया जाएगा। मत्स्य बीज उत्पादन एवं बीज वितरण पर 50% अनुदान दी जाएगी। अति पिछड़ी जातियों के लिए मत्स्य हैचरी निर्माण के लिए 90% अनुदान, तालाब व अन्य जल स्रोतों आर्द्रभूमि के विकास के लिए 90% अनुदान। बाजार में मछली बेचने हेतु मोपेड थ्री व्हीलर फोर व्हीलर वाहन पर 90% अनुदान अति पिछड़ी जातियों को भी मिलेगा या पहली बार हुआ है।

सरकार का प्रयास है कि राज्य के मत्स्य पालक भाई बहन मछुआरा परिवार की आमदनी कई गुना बढ़ाया जा सके इसके लिए मछुआरों का निबंधन भी किया जा रहा है साथ ही मछुआरा आवास, हजार मछुआरों के लिए निर्माण कराया जा रहा है। मछुआरों के निबंधन से संबंधित सभी योजनाओं का ऑनलाइन क्रियान्वयन हो रहा है साथ ही तालाबों की जीपीएस टैगिंग की जा रही है।

सचिव, पशुपालन एवं मत्स्य संसाधन विभाग डॉ एन विजयलक्ष्मी ने कहा की राज्य में मत्स्य संसाधन के क्षेत्र में भारी वृद्धि हुई है, राज्य में मत्स्य की जरुरत के अनुरूप उत्पादन करने में हम सक्षम हो पायें है। बिहार में संभावनाएं होने के बावजूद बाहर से मछलियों का आयात हो रहा था जिसे हमने चुनौती के रूप में स्वीकार किया जिसका परिणाम यह है की मांग के अनुरूप उत्पादन हो रहा है। पीएम पैकेज के तहत मत्स्य संसाधन ने 1100 हेक्टेयर में मछली पालन का टारगेट लिया है। उन्होंने आगे कहा की किसान सरकार के योजनाओं को समझे और आवेदन देकर योजनाओं का लाभ उठायें। हमें उत्पादन नहीं बल्कि उत्पादकता के तरफ बढ़ना है, किसान फीडिंग प्रैक्टिस, पोंड मैनेजमेंट और मत्स्य पालन के बारीकियों को समझे। महिलाओं को इस क्षेत्र से जुड़ने की जरुरत है, ताकि वे भी स्वावलंबी बन सके, ओरनामेंटल फिशरीज में महिलाएं बेहतर करेंगी, नए तकनीक से आमदनी कैसे बढ़ेगी इस पर ध्यान दिया जाये। युवाओं को भी इस क्षेत्र से जोड़ने का प्लान किया जा रहा है “फिश ऑन मील्स” से फिश रेसिपी और फिश की ब्रांडिंग की जाएगी साथ ही फिश फेस्टिवल जैसे आयोजन से हम खुद को नेशनल और इंटरनेशनल मार्केट में प्रेजेंट कर सकते है।

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निदेशक, केन्द्रीय अन्तर्स्थलीय मात्स्यिकी अनुसन्धान संस्थान, बैरकपुर, कोलकाता, पश्चिम बंगाल डॉ बसंत कुमार दास ने कहा की बिहार में हमारी पाच परियोजनाएं चल रही है जिसके फलस्वरूप मत्स्य पालन में तीन गुना वृद्धि हुई है, जो किसान मछली पालन से जुड़े हुए है उनका  50 दिन का कार्य दिवस अब बढकर 150 दिन का हो गया है।  उन्होंने कहा की आने वाले दिनों में भी ऐसे आयोजन किये जायेंगे ताकि प्रदेश मत्स्य पालन में कीर्तिमान स्थापित करे।

निशात अहमद, संयुक्त निदेशक (मात्सिकी) ने मत्स्य पालन पर सरकार द्वारा चलाये जा रहे योजनाओं के बारे में किसानों को जागरूक किया।

विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ रामेश्वर सिंह ने कहा की प्रदेश में पानी का बहुत बढ़िया श्रोत है, उसका सबसे बढ़िया उपयोग मछली पालन है। किसान मत्स्य पालन से जुड़कर अपनी आर्थिक स्तिथि मे सुधार कर सकते है। उन्होंने औद्योगिकीकरण पर चिंता जताते हुए कहा की वाटर बॉडीज को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है, जो पुरे विश्व के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है।

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इस कार्यक्रम में बिहार के कई जिलों से सैकड़ो किसान और मत्स्यपालको ने भाग लिया और मत्स्य पालन पर प्रशिक्षण प्राप्त किया, कार्यक्रम में डॉ. रमण कुमार त्रिवेदी, डॉ के.जी मंडल सहित अन्य मौजूद थे।

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