भारत में बकरियों की प्रमुख नस्लें

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बकरी की विभिन्न नस्लों को उनके मुख्य उत्पाद जैसे मांस, दूध, रेशे, खाल आदि के आधार पर वर्गीकृत किया गया है। भारत बकरी आनुवंशिक संसाधनों का एक समृद्ध भंडार है, जिसमें 34 मान्यता प्राप्त बकरी की नस्लें हैं। परन्तु देश में अवैज्ञानिक व क्रॉसब्रीडिंग के कारण बकरियों की अधिकतर जनसंख्या अवर्णित हैं। भारतीय नस्लों में जमुनापारी, बरबरी व सिरोही दूध व मांस उत्पादन में बेहतर मानी जाती है, उसी तरह बोझा ढोने में भारत की गद्दी व चांगथागी नस्ले अच्छी मानी जाती हैं। भारत की भौगोलिक परिस्थितियों तथा जलवायु के अनुसार बकरी की नस्लों के वर्गीकरण हेतु देश को चार प्रमुख भौगोलिक इलाकों में बांटा गया है, उत्तरी ठंडा क्षेत्र, उत्तर-पश्चिमी शुष्क और अर्ध शुष्क क्षेत्र, दक्षिणी क्षेत्र तथा पूर्वोत्तर क्षेत्र।

1. उत्तरी ठंडा क्षेत्र

इस क्षेत्र में जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश तथा उत्तराखंड का पर्वतीय इलाका आता है। इन ठन्डे इलाको में बकरियां पश्मीना रेशे एवं मांस के उत्पादन के लिए पाली जाती हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में  जहां यातायात के लिए मोटर मार्ग नहीं है वहां गद्दी तथा चांगथागी नस्ल की बकरियां बोझा ढोने के काम में भी ली जाती हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में घास प्रचुर मात्रा में उपलब्ध रहती है, इसलिए इस क्षे त्र में बकरियों को अलग से कोई ख़ास राशन नहीं दिया जाता है। इस क्षेत्र की बकरियों की प्रमुख नस्लें निम्नलिखित हैं।

गददी (Gaddi): गद्दी नस्ल की बकरियां हिमाचल प्रदेश के चंबा ,कांगड़ा, कुल्लू घाटी, शिमला, तथा जम्मू कश्मीर के जम्मू के आसपास के इलाको में पाई जाती है। इस नस्ल का नाम गद्दी जनजाति के लोगों की वजह से पड़ा क्योंकि इस क्षेत्र के गद्दी जनजाति के गडरिया वर्ग के लोग इससे ज्यादा पालते हैं। वैज्ञानिक मौसन ने इस “वाइट हिमालय” का भी नाम दिया है। इस नस्ल को मांस, रेशे के लिए पाला जाता है तथा नर बोझा ढोने के काम भी आते हैं। वर्ष 2013 की पशुगणना के अनुसार लगभग 3.60 लाख गद्दी नस्ल की बकरियां भारत में मौजूद हैं। इस नस्ल की बकरियां मध्यम आकार की होती हैं नर का औसत वजन 28 किलोग्राम तथा मादा का औसत वजन 23 किलोग्राम होता है। इस नस्ल की बकरियों का रंग मुख्य रूप से सफेद होता है, हालांकि कुछ काले और भूरे रंग के मिश्रण भी पायी जाती हैं, तथा पूरा शरीर लंबे बालों से ढका रहता है। सींग लम्बे तथा ऊपर और पीछे की ओर मुड़े हुए होते हैं। कान 12 सेंटीमीटर तक लम्बे और नीचे की और लटके रहते हैं। इस बकरी के बाल रस्सी तथा कंबल बनाने के काम आते हैं। एक बकरी से एक दुग्धकाल में औसतन 50 किलोग्राम दूध देती है। गद्दी बकरियां से मांस उत्पादन भी अच्छा होता है।

चांगथांगी (Chang Thangi): चांगथांगी नस्ल की बकरियां जम्मू कश्मीर के कारगिल, लेह लद्दाख तथा हिमालय कि लाहुल वह स्पीती घाटियों के इलाको में पाई जाती है। इनको कश्मीरी या पश्मीना बकरियों के नाम से भी जाना जाता है। इनका नाम लद्दाख के चांगथाग इलाके के नाम पर पड़ा जहां ये बहुतायत में पायी जाती हैं। वर्ष 2013 की पशुगणना के अनुसार लगभग 2 लाख चांगथांगी नस्ल की बकरियां भारत में मौजूद हैं। इस नस्ल की बकरियां बहुत ठन्डे तापमान में यहां तक की -40 डिग्री C तापमान पर भी रह जाती हैं। चांगथागी बकरियों से मुलायम उच्च कोटि का रेशा पश्मीना प्राप्त होता है जिसकी बाज़ार में काफ़ी अच्छी कीमत मिल जाती है। इस नस्ल को पश्मीना तथा मांस के लिए पाला जाता है तथा नर बोझा ढोने के काम भी आते हैं। इस नस्ल की बकरियां मध्यम आकार की होती हैं और नर तथा मादा का औसत वजन 21 किलोग्राम होता है। इस नस्ल की बकरियों का रंग मुख्य रूप से सफेद होता है, हालांकि कुछ काले और भूरे रंग के मिश्रण भी पायी जाती हैं, तथा पूरा शरीर लंबे बालों से ढका रहता है। सींग ऊपर की ओर उठे हुए बाहर की ओर से घुमावदार होते हैं यह आधी गोलाई में लंबे तथा बाहर की ओर निकले रहते हैं। हर वर्ष एक बकरी से 150 से 215 ग्राम तक पशमीना प्राप्त होता है।

चेगू (Chegu): चेगू नस्ल की बकरियां हिमाचल की लाहुल वह स्पीती घाटियों, किन्नौर और चंबा के इलाको में पाई जाती है। वर्ष 2013 की पशुगणना के अनुसार लगभग 36 हज़ार चेगू नस्ल की बकरियां भारत में मौजूद हैं। प्रायः इन का रंग सफेद होता है परन्तु सफ़ेद के साथ भूरा लाल भी हो सकता है। सींग ऊपर की ओर उठे हुए तथा घुमावदार होते हैं। इनके नर का औसत वजन 39 किलोग्राम तथा मादा का 25 किलोग्राम वजन होता है। हालांकि इन बकरियों से भी मुलायम रेशा पश्मीना प्राप्त होता है लेकिन इनको मुख्य रूप से मांस उत्पादन के लिए पाला जाता है। साल में एक बकरी से 100 -120 ग्राम पश्मीना मिल जाता है। चांगथांगीे की तरह चेंगू की रेशा व मांस के लिए पाली जाती है साथ में थोड़ा दूध उत्पादन भी होता हैं, ये बकरियां एक दुग्धकाल में 60-70 किलोग्राम तक दूध देती हैं।

2. उत्तर-पश्चिमी शुष्क और अर्ध शुष्क क्षेत्र

इस क्षेत्र के मुख्य प्रदेशों में राजस्थान,पंजाब,हरियाणा पश्चिमी उत्तर प्रदेश ,मध्य प्रदेश तथा गुजरात के शुष्क और अर्धशुष्क क्षेत्र आते हैं। इस क्षेत्र में खेती के लिए जमीन कम या वर्षा कम होती है। इस क्षेत्र के शुष्क व अर्थ शुष्क क्षेत्रों में ऐसी झाड़ियां चारा वृक्ष तथा घास पाई जाती है जो बकरियों के लिए काफी उपयोगी होती है। यह क्षेत्र बकरियों के हिसाब से बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इस इलाके में बकरियों की सबसे ज्यादा नस्लें पाई जाती है। इस क्षेत्र की बकरियों की प्रमुख नस्लें निम्नलिखित हैं।

सिरोही (Sirohi): सिरोही नस्ल की बकरियां राजस्थान के राजसामंद, उदयपुर, चित्तौड़गढ़, सिरोही, भीलवाड़ा और अजमेर जिले में पाई जाती है। इनका नाम राजस्थान के सिरोही जिले के नाम पर पड़ा। राजस्थान के ज्यादातर गुर्जर पशुपालक इस नस्ल को ज्यादा पालते हैं। सिरोही बकरियां राजस्थान की कठिन भौगोलिक परिस्थितियों को सहने के अनुकूल है। वर्ष 2013 की पशुगणना के अनुसार लगभग 18 लाख सिरोही नस्ल की बकरियां भारत में मौजूद हैं। इनका शरीर बड़ा होता है तथा नर का औसत वजन 42 किलोग्राम तथा मादा का 35 किलोग्राम वजन होता है। इनका रंग भूरा होता है तथा कुछ बकरियों के शरीर पर हलके या गाड़े भूरे या सफेद धब्बे पाए जाते हैं जो इस नस्ल को एक पहचान देती है। इस नस्ल के कान लम्बे और पत्ते की तरह चपटे और नीचे की ओर लटके रहते हैं, सींग छोटे घुमावदार ऊपर की ओर बढ़े हुए होते हैं। इस नस्ल के गले में लटकते हुए तथा एक मांसल भाग कलंगी होता है जो इस नस्ल की एक खास पहचान है। सिरोही नस्ल की बकरियां मुख्य रूप से मांस तथा दूध के लिए पाली जाती है एक दुग्धकाल में 80 किलोग्राम तक दूध देती हैं।

और देखें :  भेड़ बकरियों में पी.पी.आर. रोग: लक्षण एवं रोकथाम

मारवाडी (Marwadi): मारवाड़ी नस्ल की बकरियां राजस्थान के पाली, नागौर, जोधपुर, जालौर, जैसलमेर, बीकानेर तथा बाड़मेर के इलाकों में पाई जाती है। इस नस्ल को बाड़मेरी के नाम से जाना जाता है। इस नस्ल का नाम राजस्थान के मारवाड़ इलाके के नाम पर पड़ा जो इस नस्ल का मुख्य क्षेत्र है। मारवाड़ी नस्ल की बकरियां मध्यम आकार की तथा शरीर लंबे काले बालों से ढका रहता है। इनका रंग गहरा काला होता है, कान चपटे, मध्यम आकार के तथा नीचे की ओर मुड़े रहते हैं, नर बकरे के सींग छोटे नुकीले तथा पीछे की ओर मुड़े हुए होते हैं। इनका शरीर बड़ा होता है तथा नर का औसत वजन 39 किलोग्राम तथा मादा का 31 किलोग्राम वजन होता है। वर्ष 2013 की पशुगणना के अनुसार लगभग 53 लाख मारवाड़ी नस्ल की बकरियां भारत में मौजूद हैं। मारवाड़ी नस्ल की बकरियां मुख्य रूप से मांस तथा दूध के लिए पाली जाती है एक दुग्धकाल में 85 किलोग्राम तक दूध देती हैं।

जखराना (Jakhrana): जखराना नस्ल की बकरियां राजस्थान के अलवर जिले के इलाकों में पाई जाती है।  इस नस्ल का नाम राजस्थान के अलवर जिले के जखराना गाँव के नाम पर पड़ा जो इस नस्ल का मुख्य क्षेत्र है। जखराना नस्ल की बकरियां आकार में बड़ी तथा काले रंग की होती हैं। उनके मुँह पर तथा कानो पर सफेद रंग के धब्बे पाए जाते हैं, कान चपटे व मध्यम आकार के होते हैं, सिर संकरा वह उठा हुआ होता है। सींग मध्यम नुकीले तथा ऊपर से पीछे की ओर मुड़े हुए होते हैं। इनका शरीर बड़ा होता है तथा नर का औसत वजन 58 किलोग्राम तथा मादा का 45 किलोग्राम वजन होता है।  वर्ष 2013 की पशुगणना के अनुसार लगभग 9 लाख जखराना नस्ल की बकरियां भारत में मौजूद हैं। जखराना नस्ल की बकरियां मुख्य रूप से मांस तथा दूध के लिए पाली जाती है एक दुग्धकाल में 152 किलोग्राम तक दूध देती हैं।

बीटल (Beetal): बीटल नस्ल की बकरियां पंजाब के गुरदासपुर, अमृतसर और फिरोजाबाद के इलाकों में पाई जाती है। इस नस्ल का नाम पंजाब के गुरदासपुर जिले की बटाला तहसील के नाम पर पड़ा है। बीटल नस्ल की बकरियां मध्यम आकार की होती है इनके शरीर का रंग भूरा है या सफेद धब्बेदार होता है, कान लंबे तथा नीचे की ओर लटके होते हुए होते हैं, बकरे के सींग छोटे ओर मुड़े हुए होते हैं। इनका शरीर बड़ा होता है तथा नर का औसत वजन 57 किलोग्राम तथा मादा का 45 किलोग्राम वजन होता है। वर्ष 2013 की पशुगणना के अनुसार लगभग 3.70 लाख बीटल नस्ल की बकरियां भारत में मौजूद हैं। बीटल नस्ल की बकरियां मुख्य रूप से मांस तथा दूध के लिए पाली जाती है, इस नस्ल का दुग्ध उत्पादन काफी अच्छा मन जाता है, एक दुग्धकाल में 150-200 किलोग्राम तक दूध देती हैं।

बारबरी (Barbari): बारबरीनस्ल की बकरियां राजस्थान के भरतपुर तथा उत्तर प्रदेश के हाथरस, इटावा, एटा, आगरा, मथुरा और अलीगढ के इलाकों में पाई जाती है। ऐसी मान्यता है की इस नस्ल की उत्पत्ति पूर्वी अफ्रीका के सोमालिया के बरबेरिया में हुई थी इसलिए इसका नाम बारबरी पड़ा।बारबरी यह आकार में मध्य में भूरे सफेद तथा कत्थई धब्बो के साथ सफेद रंग की होती हैं। इनके कान छोटे नुकीले तथा ऊपर की ओर उठे हुए होते हैं इनके सिंग मध्यम आकार के तथा पीछे की ओर मुड़े होते हैं। इनका शरीर बड़ा होता है तथा नर का औसत वजन 36 किलोग्राम तथा मादा का 20 किलोग्राम वजन होता है। वर्ष 2013 की पशुगणना के अनुसार लगभग 20 लाख बारबरी नस्ल की बकरियां भारत में मौजूद हैं। बारबरी नस्ल की बकरियां मुख्य रूप से मांस तथा दूध के लिए पाली जाती है एक दुग्धकाल में 80-100 किलोग्राम तक दूध देती हैं।

जमुनापारी (Jamunapari): जमुनापारी नस्ल की बकरियां उत्तर प्रदेश के इटावा के इलाकों में पाई जाती है। इस नस्ल का नाम यमुना नदी के नाम पर पड़ा जिसके आसपास इस नस्ल का मुख्य क्षेत्र है। जमुनापारी एक बड़े आकार की बकरी है इसका रंग सफेद होता है। कुछ बकरियों के गले में सिर पर धब्बे होते हैं, इन बकरियों के नाक उभरी हुई होती है तथा बालों के गुच्छे होते हैं जिसे रोमननोज कहते हैं। इनके कान 30 सेंटीमीटर तक लंबे तथा लटके रहते हैं। सींग छोटे व तलवार की तरह चपटे होते हैं और पीछे की ओर मुड़े होते हैं। पिछले पैरों पर लंबे बाल होते हैं। इन बकरियों का उदर विकसित तथा थन काफी लंबे भारी होते हैं। इनका शरीर बड़ा होता है तथा नर का औसत वजन 45 किलोग्राम तथा मादा का 38 किलोग्राम वजन होता है। वर्ष 2013 की पशुगणना के अनुसार लगभग 16 लाख जमुनापारी नस्ल की बकरियां भारत में मौजूद हैं। जमुनापारी नस्ल की बकरियां मुख्य रूप से मांस तथा दूध के लिए पाली जाती है एक दुग्धकाल में 200 किलोग्राम तक दूध देती हैं।

मेहसाणा (Mehsana): मेहसाणा नस्ल की बकरियां गुजरात के मेहसाणा, पाटन, साबरकांठा, बनासकांठा, गांधीनगर और अहमदाबाद के इलाकों में पाई जाती है। इस नस्ल का नाम गुजरात के मेहसाणा जिले के नाम पर पड़ा जो इस नस्ल का मुख्य क्षेत्र है।  यह मध्यम आकार की होती है, इनका रंग भूरा काला होता है तथा कान के आधार के पास सफेद धब्बे पाए जाते हैं। कान सफेद पत्तो की तरह तथा नीचे की ओर गिरे रहते हैं। कानों की पूरी सफेदी पर काले धब्बे होते हैं। सिंग नुकीले तथा हल्के ऊपर की ओर मुड़े रहते हैं, नाक उभरी हुई होती है, जिसे रोमननोज कहते हैं, शरीर पर लगभग 10 सेंटीमीटर लंबे बाल होते हैं। नर का औसत वजन 37 किलोग्राम तथा मादा का 32 किलोग्राम वजन होता है। वर्ष 2013 की पशुगणना के अनुसार लगभग 5 लाख मेहसाणा नस्ल की बकरियां भारत में मौजूद हैं। मेहसाणा नस्ल की बकरियां मुख्य रूप से मांस तथा दूध के लिए पाली जाती है एक दुग्धकाल में 200-300 किलोग्राम तक दूध देती हैं।

और देखें :  Jamunapari Breed of goat (जमुनापारी)

सुरती (Surti):  सुरती नस्ल की बकरियां गुजरात के नवसारी, नर्मदा, सूरत, वलसाद, भरूच, वड़ोदरा के इलाकों में पाई जाती है। इस नस्ल का नाम गुजरात सूरत जिले के नाम पर पड़ा जो इस नस्ल का मुख्य क्षेत्र है। सुरती नस्ल की बकरियां मध्यम आकार की नस्ल है जिसे ज्यादातर शहरी इलाकों में पाला जाता है क्योंकि यह ज्यादा लंबी दूरी तक नहीं चल सकती है, इसके शरीर का रंग सफेद होता है, सींग छोटे में नीचे मुड़े होते हैं। नर का औसत वजन 29 किलोग्राम तथा मादा का 31 किलोग्राम वजन होता है। वर्ष 2013 की पशुगणना के अनुसार लगभग 2.5 लाख सुरती नस्ल की बकरियां भारत में मौजूद हैं। सुरती नस्ल की बकरियां मुख्य रूप से दूध के लिए पाली जाती है, अयन काफी विकसित होता है तथा थन कीपाकार होते हैं। एक दुग्धकाल में 300 किलोग्राम तक दूध देती हैं।

कच्छी (Katchi): कच्छी नस्ल की बकरियां गुजरात के पाटन, कच्छ, मेहसाना और  बनासकांठा के इलाकों में पाई जाती है। इस नस्ल का नाम गुजरात के कच्छ इलाके के नाम पर पड़ा जो इस नस्ल का मुख्य क्षेत्र है।  इनका रंग काला व गले, मुहं और कानो पर सफेद धब्बे पाए जाते हैं। नाक उभरी हुई होती है, कान लंबे वह नीचे लटके रहते हैं।सींग मोटे नुकीले घुमावदार तथा ऊपर की ओर उठे रहते हैं। नर का औसत वजन 47 किलोग्राम तथा मादा का 40 किलोग्राम वजन होता है।  वर्ष 2013 की पशुगणना के अनुसार लगभग 3.8 लाख कच्छी नस्ल की बकरियां भारत में मौजूद हैं। कच्छी नस्ल की बकरियां मुख्य रूप से मांस तथा दूध के लिए पाली जाती है एक दुग्धकाल में 100-140 किलोग्राम तक दूध देती हैं।

गोहिलवाड़ी (Gohilwadi): गोहिलवाड़ी नस्ल की बकरियां गुजरात के पोरबंदर, राजकोट, जूनागढ़, भावनगर और अमरेली के इलाकों में पाई जाती है। इस नस्ल का नाम गुजरात के गोहिलवाड़ इलाके के नाम पर पड़ा जो की काठियावाड़ के अंतर्गत आता है।  शरीर का रंग मुख्यता काला होता है। बाल मोटे और लंबे होते हैं कान गोलाई आकार के नीचे की ओर लटके रहते हैं। उनके सींग मोटे हल्के मुड़े रहते हैं। नर का औसत वजन 52 किलोग्राम तथा मादा का 42 किलोग्राम वजन होता है। वर्ष 2013 की पशुगणना के अनुसार लगभग 1.6 लाख गोहिलवाड़ी नस्ल की बकरियां भारत में मौजूद हैं। गोहिलवाड़ी नस्ल की बकरियां मुख्य रूप से मांस तथा दूध के लिए पाली जाती है एक दुग्धकाल में 200-240 किलोग्राम तक दूध देती हैं।

झालावाड़ी (Zalawadi): झालावाड़ी नस्ल की बकरियां गुजरात के सुरेंद्रनगर और राजकोट के इलाकों में पाई जाती है, इसके अतिरिक्त मेहसाना, अहमदाबाद और भावनगर के कुछ इलाकों में भी पायी जाती है। इस नस्ल का नाम गुजरात के झालावाड़ इलाके के नाम पर पड़ा जो जो की काठियावाड़ के अंतर्गत आता है और अब सुरेंद्रनगर के नाम से जाना जाता है। यह मध्यम आकार की है काले लंबे मोटे बाल वाली नस्लें है। इनके कान लंबे पती के आकार में खुले हुए होते हैं इनके सींग छोटे सीधे स्क्रू की तरह तथा ऊपर की ओर उठे रहते हैं। अयन अच्छी तरह से विकसित होते हैं। नर का औसत वजन 38 किलोग्राम तथा मादा का 33 किलोग्राम वजन होता है। वर्ष 2013 की पशुगणना के अनुसार लगभग 3.9 लाख झालावाड़ी नस्ल की बकरियां भारत में मौजूद हैं। झालावाड़ी नस्ल की बकरियां मुख्य रूप से मांस तथा दूध के लिए पाली जाती है एक दुग्धकाल में 250-290 किलोग्राम तक दूध देती हैं।

3. दक्षिणी क्षेत्र

इस इलाके में केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु राज्य आते हैं। यह क्षेत्र मध्य प्रायद्वीप में अर्ध-शुष्क है और तट के साथ गर्म और आर्द्र है। इस इलाके में पाई जाने वाली बकरियों की सभी नस्लें अच्छी मांस देने वाली होती हैं। इस क्षेत्र की बकरियों की प्रमुख नस्लें निम्नलिखित हैं।

संगमनेरी (Sangamneri): संगमनेरी  नस्ल की बकरियां महाराष्ट्र के पुणे, अहमदनगर और नासिक के इलाकों में पाई जाती है। इस नस्ल का नाम महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के संगमनेर इलाके के नाम पर पड़ा है। यह मध्यम आकार की होती है। इनका रंग मुख्य रूप से सफ़ेद होता है परन्तु सफेद के साथ काला व भूरे का मिश्रण भी कई बार पाया जाता है। बाल छोटे व खुरदरे होते हैं। इनके कान मध्यम आकार के नीचे की और लटके रहते हैं। सींग ऊपर व पीछे की ओर मुड़े रहते हैं। नर का औसत वजन 39  किलोग्राम तथा मादा का 32 किलोग्राम वजन होता है। वर्ष 2013 की पशुगणना के अनुसार लगभग 1.6 लाख संगमनेरी  नस्ल की बकरियां भारत में मौजूद हैं। संगमनेरी नस्ल की बकरियां मुख्य रूप से मांस तथा दूध के लिए पाली जाती है एक दुग्धकाल में 70 किलोग्राम तक दूध देती हैं।

मालाबारी (Malabari): मालाबारी  नस्ल की बकरियां केरल के कालीकट, गन्नौर, मालपुरा और वायनाड के इलाकों में पाई जाती है। इस नस्ल का नाम केरल के मालाबार इलाके के नाम पर पड़ा जो इस नस्ल का मुख्य क्षेत्र है। मुख्य रंग सफ़ेद होता है पर काला और सफेद के मिश्रण में भी पाया जाता है। नर के मुंह के नीचे दाड़ी नुमा बालों का गुच्छा लटका रहता है। सींग छोटे से पीछे की ओर मुड़े होते हैं, कान मध्यम आकार है, तथा पूरी तरह नीचे लटके हुए नहीं होते हैं। नर का औसत वजन 39 किलोग्राम तथा मादा का 31 किलोग्राम वजन होता है। वर्ष 2013 की पशुगणना के अनुसार लगभग 5.6 लाख मालाबारी  नस्ल की बकरियां भारत में मौजूद हैं। मालाबारी  नस्ल की बकरियां मुख्य रूप से मांस तथा दूध के लिए पाली जाती है एक दुग्धकाल में 43 किलोग्राम तक दूध देती हैं।

और देखें :  बकरी पालन एवं मूल्य संवर्धन से उद्यमिता विकास विषय पर दो दिवसीय कार्यशाला

उस्मानाबादी (Usmanabadi): उस्मानाबादी  नस्ल की बकरियां महाराष्ट्र के उस्मानाबाद, सोलापुर, और अहमदनगर के इलाकों में पाई जाती है। इस नस्ल का नाम महाराष्ट्र के उस्मानाबाद इलाके के नाम पर पड़ा जो इस नस्ल का मुख्य क्षेत्र है। ऊंचाई में दूसरे नस्लों से अपेक्षाकृत ऊंची होती है। तथा रंग काला होता है कभी-कभी काले और सफेद में भूरे धब्बे भी पाए जाते हैं। कान मध्यम लंबाई के होते हैं। इनके बकरों में सींग पाए जाते हैं।लेकिन बकरियों को 50% संख्या में सींग नहीं होते हैं। नर का औसत वजन 34 किलोग्राम तथा मादा का 32 किलोग्राम वजन होता है। वर्ष 2013 की पशुगणना के अनुसार लगभग 24.8 लाख उस्मानाबादी  नस्ल की बकरियां भारत में मौजूद हैं। उस्मानाबादी नस्ल की बकरियां मुख्य रूप से मांस तथा दूध के लिए पाली जाती है एक दुग्धकाल में 40-70 किलोग्राम तक दूध देती हैं।

कनीआड़ू (kanni Adu): कनीआड़ू नस्ल की बकरियां तमिलनाडु प्रदेश के तुथुकुंडी,  विरुधुनगर व त्रिनेवल्ली के इलाकों में पाई जाती है। इस नस्ल का नाम इसके मुहं के दोनों और सफ़ेद रंग की पट्टी की वजह से पड़ा। यह ऊंचे कद की होती हैं, इसका रंग काला होता है तथा मुहं के दोनों और सफेद रंग की पट्टी होती है। कुछ बकरियों में गले के दोनों तरफ सफ़ेद रंग के धब्बे भी पाए जाते हैं। कान मध्यम आकार के होते हैं। सींग पीछे और बहार की ओर मुड़े होते हैं। इस नस्ल के बकरे मध्यम आकार (15-25cm) के सींग होते हैं और बकरियों में छोटे आकार (<15cm) के होते हैं। नर का औसत वजन 34 किलोग्राम तथा मादा का 28 किलोग्राम वजन होता है। वर्ष 2013 की पशुगणना के अनुसार लगभग 6.9 लाख कनीआड़ू नस्ल की बकरियां भारत में मौजूद हैं। कनीआड़ू नस्ल की बकरियां मुख्य रूप से मांस के लिए पाली जाती हैं।

4. पूर्वोत्तर क्षेत्र

इस इलाके में बिहार, पश्चिम बंगाल ,उड़ीसा, असम और देश के अन्य उत्तर-पूर्वी राज्य आते हैं। इस इलाके में नमी ज्यादा रहती है। यह पूर्वी राज्यों के कुछ हिस्सों को छोड़कर ज्यादातर गर्म और नम इलाके है, जो उप-शीतोष्ण और आर्द्र हैं। इस इलाके में बकरियों की ज्यादा नस्लें नहीं है, इस क्षेत्र की बकरियों की प्रमुख नस्लें निम्नलिखित हैं।

गंजाम (Ganjam): गंजाम नस्ल की बकरियां उड़ीसा के समुद्री तट वाले दक्षिणी जिलों नयागढ़, खुर्दा, गजपति, रायागडा व गंजाम के इलाकों में पाई जाती है। इस नस्ल की उत्पत्ति गोला जनजाति के लोगो ने की, इस नस्ल का नाम उड़ीसा के गंजाम इलाके के नाम पर पड़ा जो इस नस्ल का मुख्य क्षेत्र है। इसका रंग काला या भूरा होता है परन्तु कई बकरियां काले भूरे धब्बेदार भी पाई जाती है। कान मध्यम आकार के तथा सींग लंबे व ऊपर की ओर उठकर नीचे की ओर मुड़े होते हैं। नर का औसत वजन 35 किलोग्राम तथा मादा का 29 किलोग्राम वजन होता है। वर्ष 2013 की पशुगणना के अनुसार लगभग 3 लाख गंजाम नस्ल की बकरियां भारत में मौजूद हैं। गंजाम नस्ल की बकरियां मुख्य रूप से मांस के लिए पाली जाती है और एक दुग्धकाल में 65 किलोग्राम तक दूध भी देती हैं।

ब्लैक बंगाल (Black bengal): ब्लैक बंगाल नस्ल की बकरियां पश्चिमी बंगाल में पाई जाती है परन्तु पड़ोसी राज्यों जैसे बिहार, झारखंड, ओड़िसा था पूर्वी राज्यों जैसे आसाम त्रिपुरा आदि राज्यों में भी पाई जाती है। इस नस्ल का नाम पश्चिमी बंगाल के नाम पर पड़ा जो इस नस्ल का मुख्य क्षेत्र है। ऊंचाई में यह छोटे कद की होती है, इसका रंग काला होता है पर कभी कभी सफ़ेद, और हल्का लाल रंग भी पाया जाता है। बकरे बकरी दोनों में सींग पाए जाते हैं, सींग छोटे होते हैं और उपर या पीछे की तरफ मुड़े होते हैं। साल से डेढ़ साल की उम्र में पहली बार ब्याह जाती है और साल में दो बार बच्चे देती है। नर का औसत वजन 32 किलोग्राम तथा मादा का 20 किलोग्राम वजन होता है। वर्ष 2013 की पशुगणना के अनुसार लगभग 1 करोड़ 74 लाख ब्लैक बंगाल नस्ल की बकरियां भारत में मौजूद हैं। ब्लैक बंगाल नस्ल की बकरियां मुख्य रूप से मांस के लिए पाली जाती है तथा एक दुग्धकाल में 100-140 किलोग्राम तक दूध भी देती हैं।

आसाम हिल्स (Assam hills): आसाम हिल्स नस्ल की बकरियां आसाम और मेघालय के इलाकों में पाई जाती है। इस नस्ल का नाम आसाम के नाम पर पड़ा जो इस नस्ल का मुख्य क्षेत्र है। इनका रंग मुख्य रूप से सफ़ेद होता है परन्तु कभी कभी काले धब्बे भी पाए जाते हैं। पैर छोटे होते हैं, तथा शरीर लंबा होता है। सींग छोटे, सीधे तथा नुकीले होते हैं। साल से डेढ़ साल की उम्र में पहली बार ब्याह जाती है और साल में दो बार बच्चे देती है। नर का औसत वजन 20 किलोग्राम तथा मादा का 18 किलोग्राम वजन होता है। वर्ष 2013 की पशुगणना के अनुसार लगभग 11 लाख आसाम हिल्स नस्ल की बकरियां भारत में मौजूद हैं। आसाम हिल्स नस्ल की बकरियां मुख्य रूप से मांस के लिए पाली जाती है एक दुग्धकाल में 10 किलोग्राम तक दूध भी देती हैं।

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