परिचय
प्रतिजीवी (एंटीबायोटिक) ऐसे रसायन होते हैं जो जीवाणुओं को मारते हैं एवं जीवाणुओं के संक्रमण को रोकने के लिए उपयोग किए जाते हैं। वे प्रकृति में मिट्टी के बैक्टीरिया और कवक द्वारा निर्मित होते हैं। 1940 के दशक से चिकित्सा में प्रतिजीवी उपयोग की शुरुआत के बाद से एंटीबायोटिक्स आधुनिक स्वास्थ्य सेवा में केंद्रीय रहा हैं। प्रतिजीवी दवाओं का निर्माण और उपयोग व्यापक रूप से मानव और पशु-चिकित्सा में बैक्टीरिया के संक्रमण के इलाज के लिए किया जाता है। इसके अलावा कृषि फसल और पशु उत्पादन उद्योग में भी एंटीबायोटिक का व्यापक उपयोग हो रहा हैं। अब, हालांकि, बैक्टीरिया के संक्रमण का इलाज करना मुश्किल हो रहा है। घटती हुई एंटीबायोटिक प्रभावशीलता इसका मुख्य कारण हैं। एंटीबायोटिक प्रतिरोध स्थलीय या जलीय वातावरण में एक गंभीर स्वास्थ्य खतरे का प्रतिनिधित्व करता है। आधुनिक अध्ययनों से पता चला हैं कि रोगाणुरोधी (एंटीबायोटिक) के अति प्रयोग और दुरुपयोग ने एंटीबायोटिक प्रतिरोधी सूक्ष्मजीवों का चयन किया है पशु-चिकित्सा में उपयोग किए जाने वाले एंटीबायोटिक दवाओं के लिए जीवाणु प्रतिरोध का विकास और प्रसार एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है।
पशुओं की बीमारियों के उपचार के लिए एंटीबायोटिक्स का अधिक मात्रा में उपयोग से एंटीबायोटिक्स पशु अपशिस्ट द्वारा खेतों, जलाशयों एवं वातावरण में फैल जाता हैं जो एक या अधिक एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधी बैक्टीरिया को उत्पन्न करता हैं। कृषि भूमि पर पुनर्नवीनीकरण किए गए सीवेज कीचड़ में विभिन्न एंटीबायोटिक्स और एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया हो सकते हैं। एंटीबायोटिक अवशेषों के संपर्क में आने के बाद एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया का चयन और जठरांत्र संबंधी मार्ग के लिए चुने गए प्रतिरोधी बैक्टीरिया से एंटीबायोटिक-प्रतिरोध जीन का क्षैतिज हस्तांतरण, उन तंत्रों का प्रतिनिधित्व करता है जिनके द्वारा पर्यावरणीय जीवाणु आबादी में एंटीबायोटिक प्रतिरोध बैक्टीरिया की संख्या बढ़ती है। वैश्विक अर्थव्यवस्था की प्रकृति मानव, पशुधन और वन्यजीवों के साथ-साथ उनके संभावित एंटीबायोटिक प्रतिरोध-जीन की संख्या बढ़ती है। चीन जैसे मांस पर निर्भर देशों में एंटीबायोटिक की खपत में वृद्धि और एंटीबायोटिक प्रतिरोध के प्रतिभास पर प्रत्यक्ष परिणाम के साथ जानवरों के खेतों में एंटीबायोटिक प्रतिरोध में वृद्धि हुई है। पशुधन से जुड़े क्षेत्रों में एंटीबायोटिक का उपयोग हमारे देश में भी अधिक मात्रा हो रहा हैं जो एंटीबायोटिक प्रतिरोध को जन्म दिया हैं और यह एक महत्त्व पूर्ण समस्या के रूप में उभर रहा है। विकास और आराम दायक जीवन शैली ने एंटीबायोटिक की खपत को बढ़ा दिया हैं जिससे अब हमें सजग होकर विवेक के साथ प्रकृति को ध्यान में रखकर अपने जीवन को उन्नत बनाते हुए एंटीबायोटिक में कटौती के साथ अपना लगाव प्रकृति से रखना होगा। भारत में स्वच्छता इसके विकास को अग्रसर करेगा। यह देश की आर्थिक स्थिति को बढ़ाने के साथ ही कई क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करने का बेहतर तरीका है।
एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग
एंटीबायोटिक का चिकित्सीय उपयोग
संक्रामक रोग घरेलू जानवरों की कई प्रजातियों में एक सामान्य समस्या हैं। नतीजतन, पशु-चिकित्सकों को उपचार के दौरान संक्रामक विरोधी दवाओं की आवश्यकता होती है। आधुनिक एंटीबायोटिक दवाओं की शुरुआत से पहले मैटलो-कार्बनिक यौगिक, विभिन्न जीवाणुरोधी रंजक और अन्य कीमोथेरेप्यूटिक एजेंट उपचार के लिए किये जाते थे। 1930 के दशक के उत्तरार्ध में सल्फोनामाइड्स एंटीबायोटिक के शुरू होने के कुछ समय बाद उन्हें गोजातीय स्तन की सूजन के खिलाफ प्रभावी उपचार के के रूप में मान्यता दी गई थी। बाद में जानवरों के अन्य जीवाणु संक्रमणों की एक विस्तृत स्पेक्ट्रम के खिलाफ उपयोग किया जाने लगा। इसी तरह, पेनिसिलिन के विभिन्न रूपों की शुरूआत ने पालतू और चिड़ियाघर के जानवरों की सभी प्रजातियों में उनके व्यापक अनुप्रयोग का नेतृत्व किया। जैसे-जैसे एंटीबायोटिक युग विकसित हुआ,एंटीबायोटिक जैसे टेट्रासाइक्लिन, क्लोरैमफेनिकॉल, बैसीट्रैसिन, स्ट्रेप्टोमाइकिन्स, नेओमाइसिन, केनामाइसिन, जेंटामाइसिन, पॉलीमाइनिन, ग्रिसोफ्लविन, निस्टैटिन, एम्फोटेरिसिन ब्रोमिन, एरिथ्रिन ब्रिस, एरिथ्रिन और सेमिसिन्थेटिक पेनिसिलिन को जल्द ही पशु-चिकित्सा में एक महत्वपूर्ण स्थान मिला और आज व्यापक मात्रा में एंटीबायोटिक का उपयोग हो रहा हैं जो खाद्य पदार्थो में अवशिष्ट के रूप में उपलब्ध होता जिससे पर्यावरण और स्वास्थ्य को नुकसान हो रहा हैं।
एंटीबायोटिक का पशु आहार में उपयोग
डेयरी और पोल्ट्री उद्योगों में एंटीबायोटिक दवाओं का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जा रहा है। एंटीबायोटिक के अपशिष्ट दूध में मिले है। एंटीबायोटिक्स पशुओ को चारा में मिलाकर खिलाया जा रहा हैं जो पशु शरीर प्रणालियों के माध्यम से जानवरों के मूत्र में 70%-90% एंटीबायोटिक अपरिवर्तित या सक्रिय चयापचयों के रूप में उत्सर्जित होता हैं। जानवरो के उत्सर्जित पदार्थ खाद के रूप में उपयोग किया जाता। खाद में उपलब्ध एंटीबायोटिक्स की मात्रा कम होती हैं जो जीवाणुओं को मारने के लिए कम प्रभाव प्रभावशाली होता हैं परन्तु एंटीबायोटिक्स प्रतिरोध उत्तपन करने के लिए पर्याप्त होता है। जिससे प्रतिरोध वाले जिन बैक्टीरिया उत्तपन करता है। जीवाणुओं में उभरे हुए प्रतिरोध जीन और प्रतिरोधी बैक्टीरिया सीधे मिट्टी, जमीन और सतह के पानी, वातावरण, दूषित फसलों के माध्यम से प्रसारित होते हैं जो स्वस्थ जानवरों और मनुष्यों के लिए संकट पैदा कर सकते हैं। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक जो लोग चिकन के शौक़ीन हैं। उनमें बैक्टीरिया रेसिस्टेंस की मात्रा ज्यादा पाई गई है। क्योकि चिकन को जल्दी बढ़ा करने के लिए पोल्ट्री फार्म मालिक जानवरों को एंटीबायोटिक के टीके लगाते हैं ताकि चिकन की उम्र बढ़े और वह बीमार न हों एंटीबायोटिक के अवशेष चिकन से मानवो में चला जाता हैं।
जानवरों पर एंटीबायोटिक्स अवशेषों का प्रभाव
पशुधन में एंटीबायोटिक अनुप्रयोग ने बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य और उत्पादकता में योगदान दिया है परन्तु इसने प्रतिरोधी उपभेदों के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आज पूरी दुनिया एंटीबायोटिक की इस कदर आदी हो चुकी है कि अब बहुत से बैक्टीरिया पर एंटीबायोटिक बेअसर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की महानिदेशक डॉक्टर मार्गरेट चैन ने 2019 में संयुक्त राष्ट्र को आगाह किया था कि हमें एंटीबायोटिक के अनियंत्रित उपयोग को रोकना होगा। जानवरों को समय-समय पर एंटीबायोटिक्स खिलाया जाता है।
डेयरी व्यवसाय में रोगनिरोधी और वृद्धि को बढ़ावा देने वाले एजेंटों के रूप में एंटीबायोटिक दवाओं का अवशेष है जो प्रतिरोधी बैक्टीरिया को उत्पन्न किया हैं। डेयरी पशु भी प्रतिरोधी के संचरण का मनुष्यों और पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा पैदा करता है। ये प्रतिरोधी बैक्टीरिया जानवर में प्रसारित तथा अन्य जानवरों को प्रेषित में होते हैं। इस प्रकार एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया के एक उपनिवेशण का गठन करते हैं। ये जीवाणु पशु के आंतों तथा मांसपेशियों में पनपता है जिसके परिणामस्वरुप जानवर के अपशिस्ट में अक्सर प्रतिरोधी बैक्टीरिया होते हैं। प्रतिरोधी बैक्टीरिया मानव से मानव में स्थानांतरण कई माध्यम से संभव है जो मनुष्यों एवं पशुओ के लिए खतरे पैदा कर रहे हैं।
मिट्टी के पारिस्थितिकी-तंत्र
पानी और मिट्टी में एंटीबायोटिक दवाओं की बढ़ती मात्रा इन वातावरणों में सभी सूक्ष्मजीवों के लिए एक संभावित खतरा पैदा करती है।एंटीबायोटिक्स एंजाइम गतिविधि और विभिन्न कार्बन स्रोतों को चयापचय की क्षमता को बदलकर मिट्टी के सूक्ष्मजीवों को प्रभावित करते हैं। मृदा मैट्रिसेस में एंटीबायोटिक सांद्रता नैनोग्राम से लेकर मिलीग्राम प्रति किलोग्राम मिट्टी तक होती है एंटीबायोटिक्स मिट्टी के सूक्ष्मजीवों की प्रचुरता को भी प्रभावित कर (पिन्ना ईट आल., 2012) सकते हैं। एंटीबायोटिक मिट्टी के स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है नए अध्ययनों से पता चला हैं कि एंटीबायोटिक्स मिट्टी की समग्र सूक्ष्मजीवों के आबादी, एंजाइम गतिविधि कार्बन और नाइट्रोजन खनिज और विनिमय स्थल के लिए उद्धरणों के साथ प्रतिस्पर्धा को प्रभावित करते हैं।
मिट्टी की जैवविविधता में गिरावट
एंटीबायोटिक्स, हार्मोन तथा उर्वरक जैसे संश्लिष्ट कृषि निवेशों का अत्यधिक उपयोग मिट्टी एवं जलीय जैव-विविधता में गिरावट आ रही हैं। मिट्टी में,एंटीबायोटिक दवाओं से मिट्टी के माइक्रोबियल समुदाय स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है। जिससे मिट्टी को गुणवत्ता,पोषकता एवं उत्पादन क्रियाशीलता कम होती जा रही हैं।
एंटीबायोटिक्स एवं आंत माइक्रोबायोम
एंटीबायोटिक्स न केवल बैक्टीरिया पर कार्य करते हैं जो संक्रमण करते हैं परन्तु आंत के लाभकारी निवासी माइक्रोबायोटा को भी प्रभावित करता है हालांकि इस दुष्प्रभाव को लंबे समय से पहचाना गया है। अनुक्रमण प्रौद्योगिकियों में प्रगति ने विस्तृत अध्ययन को सक्षम किया कि कैसे एंटीबायोटिक्स आंत में माइक्रोबायोम को बदल देते हैं आंत माइक्रोबायोटा की रचना प्रत्येक समुदाय के व्यक्तियों में भिन्न होता है जो समय के साथ स्थिर होता है। रेलमैन और सहयोगियों ने 2008 में, तीन स्वस्थ व्यक्तियों में अध्ययन किए और दिखाया कि सिप्रोफ्लोक्सासिन के उपचार के बाद जीवाणु की संख्या एक तिहाई कम हो जाती हैं। हालांकि अधिकांश जीवाणुओं उपचार के बाद का प्रतिलाभ हो जाता है, परन्तु कई जीवाणु छह माह के बाद भी प्रतिलाभ नहीं कर पाते।
एंटीबायोटिक्स का आंत माइक्रोबायोटा पर प्रभाव
चयापचय पर प्रभाव के अलावा एंटीबायोटिक्स आंत माइक्रोबायोटा को प्रभावित करता है साथ ही मेजबान (होस्ट) कोशिका की प्रतिरक्षा प्रणाली के विकास को प्रभावित करने की क्षमता के कारण कई ऑटोइम्यून और एलर्जी को जन्म देता है । कोशिकाओं की संख्या और जीन प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं को विनियमित करते हैं। अतिसंवेदनशील चूहों में टाइप-1 मधुमेह की घटना, मेटाबोलाइट्स में परिवर्तन तथा एसीटेट का चयापचय और प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित करता है। आंत्र में सूजन के साथ आंत्र रोग के विकास का खतरा, जीवाणु प्रतिरोध के उद्भव, मानवों और पशुओं में एंटीबायोटिक दवाओं से होने की सम्भावना अधिक बढ़ जाती हैं। इसके अलावा, प्रतिरोधी रोगाणुओं और जीनों में उत्त्परिवर्तन के परिणामस्वरूप मानव और पशुओ की मृत्यु हो सकती है। यह अनुमान लगाया गया कि प्रति वर्ष 20 लाख से अधिक अमेरिकी लोग एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया से संक्रमित होते हैं जिसमें 23,000 की मृत्यु जाती हैं। रोगाणुरोधी प्रतिरोध एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती है जिसे उच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्र के रूप में भारत सरकार- इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च द्वारा मान्यता प्राप्त है। एंटीबायोटिक्स की बढ़ती खपत प्रमुख कारको में से एक हैं। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च और नेशनल सेंटर फॉर डिसीज़ कंट्रोल से प्राप्त जानकारी के आधार पर WHO की जानकारी के अनुसार 2050 तक प्रति वर्ष 20 लाख भारतीयों की की मौत एंटी-बायोटिक प्रतिरोध से हो सकती है।
हम क्या कर सकते हैं ?
एंटीबायोटिक दवाओं के तर्कसंगत उपयोग के बारे में स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और समुदाय के बीच जागरूकता उत्पन्न करना चाहिए। संक्रमण नियंत्रण दिशानिर्देशों और प्रथाओं को मजबूत करने और एंटीबायोटिक दवाओं के तर्कसंगत उपयोग को बढ़ावा देना चाहिए। एंटीबायोटिक दवाओं के विकल्प के रूप में प्राकृतिक औषधीय पौधों को उपयोग करना चाहिए।
एंटीबायोटिक का विकल्प : फाइटोकेमिकल्स
फाइटोकेमिकल्स, जिसे फाइटोबायोटिक्स या फाइटो के रूप में भी जाना जाता है पौधों से प्राप्त प्राकृतिक जैव सक्रिय यौगिक होते हैं जो औषधीय पौधों में पाए जाते हैं जैसे सिनामलडिहाइड (2 ई)-3‑ फेनिलप्रोप‑2)एनल), दालचीनी का एक घटक, हल्दी, शिमला मिर्च ,काली मिर्च और लहसुन आदि अनेको पौधों में एंटीबायोटिक्स गुण पाए जाते हैं। प्रति व्यक्ति एंटीबायोटिक उपयोग में कटौती करे और धरती, जल, वायु को एंटीबायोटिक्स प्रदुषण से बचाये क्योंकि शुद्ध जल, वायु, मिटटी एवं जीवाणु आदि अच्छे स्वास्थ्य की के मूल तत्त्व हैं।
निष्कर्ष
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सुझाव दिया है कि एंटीबायोटिक का उपयोग देख रेख में होना चाहिए। पंजीकृत पशु-चिकित्सा अधिकारी और संबंधित स्वास्थ्य विशेषज्ञ के अनुमति से इसका उपयोग करना चाहिए। किसानों के बीच एंटीबायोटिक दवाओं के बारे में जागरूकता बढ़ानी चाहिए क्योंकि इसका दुरुपयोग मानव, जानवरों, पर्यावरण और खाद्य सुरक्षा को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है। अतः यह जानना जरुरी है की एंटीबायोटिक का कितना चिकित्सीय उपयोग करना चाहिए जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायकहो और जीवाणुओं को हानि न पहुचाये। एंटीबायोटिक प्रतिरोधी जीवाणुओं की वृद्धि के बारे में बढ़ती चिंताएं पशुधन और मनुष्यों के लिए नई वैक्लपिक एंटीबायोटिक औषधियों के विकास के वारे में अधिक अनुसन्धान की आवश्यकता को प्रेरित किया है जिससे प्रतिरोध की समस्या कम से कम उत्तपन हो। पर्यावरणीय एंटीबायोटिक प्रदूषण एक ऐसी समस्या है जो निकट भविष्य में अधिक ध्यान देने की जरुरी हैं क्योंकि एंटीबायोटिक की खपत अभी भी दुनिया भर में बढ़ रही है।
References
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