आज संपूर्ण विश्व कोरोना वायरस के संक्रमण का न केवल दंश ही झेल रहा है बल्कि इससे जनहानि भी हो रही है। इस महामारी के संक्रमण से पीड़ित व्यक्ति का कोई खास उपचार भी दिखायी नहीं दे रहा है और इसी कारण से भविष्य में इसकी खतरे की घंटी सुनाई देने से संपूर्ण विश्व इससे होने वाले संभावित खतरे से सहमा हुआ है। इस महामारी के समय जनहानि के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मंदी भी छायी हुई है जिसके निकट वर्षों में भी संभलने की आशा प्रतीत नहीं हो रही है।
इस कोरोना महामारी के कारण भारत सहित अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छायी मंदी के दौर में कुछ है जिसे बचाकर रखा जा सकता है और वह है कि जनता अपना धैर्य न खोये और धैर्यपूर्वक सरकार द्वारा सुझाये गये दिशा-निर्देशों के अनुसार अपना कार्य करती रहे। इस समय भारत में गेंहूँ कटाई चरम पर है अर्थात किसान अपनी जी-जान से राष्ट्रहित में अन्न के भण्डार भर रहा है। यदि किसान उत्पादित अन्न बेचकर आमदनी करते हैं तो पशुओं से उत्पादित दूध एवं उसके उत्पाद जैसे कि घी, दही, लस्सी बेचकर न केवल अपने घर का गुजारा अच्छे से करते हैं बल्कि किसी खास अवसर पर पशुओं को बेचकर भी अपना काम चलाते हैं। इसीलिए पशुओं को पशुधन भी कहा जाता है।
आज इस विश्व व्यापी कोरोना महामारी के दौर में यह आवश्यक हो जाता है कि फसल कटाई के साथ-साथ अपने पशुधन रूपी पशुओं को बचाये रखना बहुत आवश्यक है। इस समय गर्मी का मौसम है और मुँह-खुर पका रोग एवं गलघोटू रोग की रोकथाम हेतू लगाये जाने वाले टीके का समय भी है। जैसा कि यह ज्ञात होगा कि इन दोनों रोगों के पशुओं में होने से पशु हानि एवं आर्थिक दोनों ही होते हैं। अब यह सर्वविधित है कि कोरोना वायरस तो इस समय विश्व व्यापी होकर तबाही मचा रहा है और कहीं ऐसा न हो जाए कि पशुओं के यह दोनों रोग ‘मुँह-खुर पका एवं गलघोटू रोग’ रही-सही कसर भी न छोड़े। अतः पशु पालक इस समय अपने पशुओं को इन दोनों रोगों से बचाने के लिए पशुपालन विभाग के कर्मियों का सहयोग देकर अपने पशुओं को बचाने की दिशा में कार्य करें ताकि हम सभी का भविष्य उज्जवल रह सके। आईये मुँह-खुर पका एवं गलघोटू रोगों से होने वाले नुकसान से बचने एवं कोरोना वायरस के संक्रमण को ध्यान में रखते हुये अपने पशुओं को इन दोनों रोगों से बचाने की मुहिम में शामिल होकर राष्ट्रहित में कार्य करें।
गलघोटू (HS) एवं मुँहखुर (FMD) रोग, दोनों ही घातक रोग हैं जिनसे न केवल पशुपालकों को आर्थिक हानि होती है बल्कि इन रोगों के कारण उनके पशुधन की हानि भी होती है। ये दोनों रोग गाय, भैंस, भेड़, बकरी, सुअरों को प्रभावित करते हैं। ये दोनों ही रोग छूत के रोग हैं अत: ये दोनों ही रोग पशुओं में बहुत ही तेजी से फैलते हैं।
गलघोटू रोग
गलघोटू रोग सूक्ष्म जीवाणुओं से होता है जिसके कारण प्रभावित पशुओं में मृत्यु दर 50 से 100% तक पहुँच जाती है। एकदम तेज बुखार (103 – 107⁰ F तक) होना एवं पशु की एक घंटे से लेकर 24 घंटे के अन्दर मृत्यु होना या पशुपालक को बिना लक्षण दिखाए मृत मिलना।
अत्याधिक लार बहना, नाक से स्राव बहना एवं साँस लेने में तकलीफ होना जिससे पशु के गले से घर्र-घर्र की आवज आती है जिसे आमतौर घरूड़वा कहा जाता है, आँखें लाल होना, चारा चरना बंद करना एवं उदास होना, अति तीव्र लक्षणों में देखा गया है की पशु का मुँह चारे या पानी के स्थान पर स्थिर हो जाता है। गलघोटू रोग के कारण भारत में प्रतिवर्ष 5255 करोड़ का नुकसान होता है।
मुँहखुर रोग
मुँहखुर रोग बहुत ही सूक्ष्म विषाणु से होता है। यह रोग पशुओं में अत्याधिक तेजी से फैलने वाला रोग है, तथा कुछ ही समय में एक झुण्ड या गाँव के अधिकतर पशुओं को संक्रमित कर देता है। इस रोग से पशुधन के उत्पादन में अत्याधिक कमी आती है और साथ ही राष्ट्र से पशुओं के उत्पादों के निर्यात पर भी बहुत बुरा असर पड़ता है।
मुँहखुर रोग से भारत में हर वर्ष लगभग 12000 – 14000 हजार करोड़ रूपये का नुकसान उठाना पड़ता है। इस रोग से प्रभावित पशुओं को तेज बुखार हो जाता है, उनके मुँह से अत्याधिक गाढ़ी लार बहती है, जीभ, मसूड़ों एवं पैरों के तलवों में छाले पड़ जाते हैं, खुरों के बीच में घाव होना, खाना-पीना बन्द, दुग्ध उत्पादन में अत्याधिक कमी, गर्भपात, छोटे पशुओं में अत्याधिक ज्वर होने के बाद बिना किसी लक्षण की मृत्यु इत्यादि लक्षण होते हैं।
साधारणत: युवा पशुओं में मुँहखुर रोग जानलेवा होता है लेकिन व्यस्क पशुओं में नहीं, पशुओं में मृत्यु आमतौर पर गलगोटू रोग होने से होती है। इसी प्रकार मुँहखुर रोग वर्षाकाल में आने से पशुओं की स्थिति गम्भीर हो जाती है। सर्दी के मौसम में मुँहखुर रोग होने की संभावना अधिक होती है लेकिन इस मौसम में गलगोटू रोग भी देखने को मिलता है। अत: वर्षा शुरू होने पहले अप्रैल-मई एवं सर्दी शुरू होने से पहले अक्तूबर-नवम्बर के महीने में अपने पशुओं का टीकाकरण करवा लेना चाहिए।
उपचार से बचाव अच्छा
मुँहपका-खुरपका एवं गलगोटू रोगों से ग्रसित पशुओं का उपचार आसान नहीं है। जहाँ मुँहपका-खुरपका रोग में पशु का उत्पादन अत्याधिक कम होता तो वहीं गलगोटू रोग के कारण ज्यादातर पीढ़ित पशुओं की मृत्यु हो जाती है। इसलिए टीकारकण इन रोगों की रोकथाम सबसे कारगर नियन्त्रण है। सभी पशु पालकों को इस रोग के प्रति जागरूकता दिखाने की आवश्यकता है तभी इन रोगों की रोकथाम संभव है। हरियाणा राज्य में इन दोनों रोगों की रोकथाम के लिए सयुंक्त टीका लगाया जा रहा है।
पशुओं में पहले रोग नहीं आया ये आपका सौभाग्य है,
लेकिन वहम् न पालें कि रोग नहीं आया तो टीकाकरण क्यों करवाएं अपने पशुओं का।
याद रखिये एक भी पशु छूटा तो सुरक्षा चक्र टूटा,
आपका तो नुकसान होगा ही लेकिन दूसरों के नुकसान के भी भागीदार आप बनेंगें।
स्मरणार्थ विचार
- पशु पालक अपने सभी पशुओं (चार महीने की उम्र से ऊपर) को यह टीका अवश्य लगवाएं। यह टीका 6 माह के अंतराल पर वर्ष में दो बार लगाया जाता है।
- हर पशु को 6 महीने में एक बार पेट के कीड़ों की दवाई पशु चिकित्सक की सलाहानुसार अवश्य देनी चाहिए।
- नये खरीदे गये पशुओं को कम-से-कम दो सप्ताह तक अलग बांध रखना चाहिए और उनके खाने-पीने का प्रबंधन भी अलग ही रखना चाहिए।
- पशुओं को पूर्ण आहार देना चाहिए जिसमें खनिज मिश्रण एवं विटामिन की मात्रा पूर्ण रूप से दी जानी चाहिए।
- अपने दूधारू एवं ग्याभिन पशुओं में भी टीकाकरण अवश्य करवाएं।
- यदि टीकाकरण के बाद गर्दन में सूजन आ जाती है तो टीकाकरण वाले स्थान पर बर्फ के टुकड़े से मालिश करें।
सुणों-सुणों अपने पशुआँ नै,
संक्रमण तै बचाऔ रै,
एक भी पशु छूट ना जावै,
टीकाकरण कराओ रै..!
प्रचलित मिथक
हरियाणा राज्य में प्रतिवर्ष अप्रैल एवं अक्तुबर माह में रोमंथी पशुओं खासतौर पर गाय एवं भैसों को मुँह-खुर पका एवं गलघोटू रोग से बचाने के लिए टीकाकरण किया जाता है और अप्रैल माह में ग्रीष्म ऋतु होने के कारण वातावरण का तापमान भी बढ़ने लगता है। इसी समय गेहूँ की फसल कटाई भी शुरू हो जाती है। गेहूँ की सूखी फसल को जलने से बचाने के लिए ग्रामीण आँचल में बिजली की आपूर्ति भी कम हो जाती है जिस कारण खेत में खड़ी चारे की फसल खासतौर पर बरसीम को भरपूर मात्रा में पानी नहीं मिलने के कारण उसमें विषाक्तता बढ़ने लगती है। अतः यह वह समय है जब पशुओं में टीकाकरण किया जाता है और चारे के खेतों में पानी की कमी हो जाती है। पशुओं में बरसीम विषाक्तता होने की परिस्थिति में आमतौर पर पशु स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा लगाये टीके का नाम हो जाता है जबकि अक्तुबर माह में लगाये जाने वाले इसी टीके के दौरान पशुओं में बरसीम जैसी विषाक्तता के लक्षण देखने को नहीं मिलते हैं। अतः पशुपालकों को सलाह दी जाती है कि टीकाकरण अभियान को इस विषाक्तता से जोड़कर न देखें और अपने पशुओं को घातक रोगों से बचाने के लिए पशु स्वास्थ्य कर्मियों का सहयोग करें।
सभी पशुपालक इस अभियान में कोरोनावायरस के संक्रमण को जानते हुए भी अपने पशुओं को सुरक्षित रखने के लिए टीकाकरण करने वाली टीम का सहयोग करें।
याद रखें, यदि टीका लगने के बाद पशु का थोड़ा-बहुत दूध कम भी हो जाता है तो दूध 2-3 दिनों में दोबारा से पूरा हो जाता है ,लेकिन पशु की मृत्यु होने पर उस पशु से एक बूंद भी दूध नहीं मिलता है।
अत: टीका लगवाने में ही भलाई है ताकि असमय हानि न होने पाए।
पशुओं में टीकाकरण करते समय वैश्विक कोरोनावायरस महामारी से बचने के लिए सरकार द्वारा दी गई हिदायतों का पालन करें। व्यक्तिगत साफ-सफाई रखना, चेहरे को फेस मास्क या कपड़े से ढकना, हाथों को साबुन-पानी से धोना या हैंड सेनेटाइजर से साफ करना, एक-दूसरे से एक मीटर से ज्यादा दूरी पर रहना आदि बातों को ध्यान रखें।
संदेश निरहंकार पशुओं के टीकाकरण को स्थगित करने का अनुरोध आज के दिन का सबसे बड़ा स्वांग है। समर्पित पशु चिकित्सका कर्मियों के रूप में, दीन पशुओं की सेवा हमारा पहला और महत्वपूर्ण कर्तव्य है। हमारे अनमोल पशु स्वास्थ्य और पशुधन को सुरक्षित और संरक्षित करने की आवश्यकता है। किसी भी दिखावा करने वाले सज्जन द्वारा टीकाकरण को रोकने की अनुचित और अव्यवसायिक मांग अत्यधिक अव्यवहारिक है। यदि उचित सामाजिक दूरी और स्वच्छता बनाई रखी जाती है, तो टीकाकरण के माध्यम से कोरोना नहीं फैलता है। मैं बहुत संजीदा हूँ कि मेरे पशु स्वास्थ्य कर्मियों की टीम सावधानी से और गर्व के साथ अपना कार्य कर रही है। अत: लोग इस तरह के प्रश्न न पूछकर अपनी कर्तव्यनिष्ठा से इस कार्य को राष्ट्रहित में करने का सहयोग देने की कोशिश करें। मैं अपने कर्तव्य के साथ खड़ा हूँ और आप सभी से आग्रह करता हूँ कि पशुओं के अधिकारों की लड़ाई को मजबूत करने के लिए मुझसे हाथ मिलाएं। डा. ओ.पी. छिकारा, महानिदेशक, |
डरो ना कोरोना से, समझो कोरोना के वार को । |
The content of the articles are accurate and true to the best of the author’s knowledge. It is not meant to substitute for diagnosis, prognosis, treatment, prescription, or formal and individualized advice from a veterinary medical professional. Animals exhibiting signs and symptoms of distress should be seen by a veterinarian immediately. |
Very very informative doc saab ??