पशुओं में पेट के कीड़े एक बड़ी समस्या है। पशुओं में परजीवी संक्रमण से पशुपालक को भारी आर्थिक हानि उठानी पड़ सकती है। परजीवी भारत जैसे उष्णकटिबंधीय जलवायु वाले देशों में एक बड़ी समस्या है। पशु मिट्टी और घास से परजीवी से संक्रमित होते हैं। डिवार्मिंग (Dewarming) का मतलब कृमिनाशक दवाओं से पशुओं के पाचन तंत्र से विशेष रूप से पेट, आंत और यकृत से परजीवी कीड़े को हटा देना है। डिवार्मिंग पशुओं को रोगों के प्रति अधिक प्रतिरोधी बनाता है। यह पशुओं को तेजी से बढ़ने में मदद करता है, और पशुओं में बेहतर दूध, मांस और अंडे का उत्पादन करने में सहायक होता है। मांस के लिए पाले जाने वाले पशुओं के पेट में कीड़ें होने से उनका वजन नहीं बढ़ता है और दुग्ध उत्पादन करने वाले पशुओं का दुग्ध उत्पादन गिर जाता है जिससे पशुपालक को आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ता है।
अगर पशु परजीवी कृमि मुक्त होगा तो पशुपालन अवश्य ही मुनाफे का सौदा होगा। क्योंकि अगर पशु के पेट में कीड़ें होंगे तो जो भी आहार पशु ग्रहण करता है उसका अधिकतम हिस्सा परजीवी कीड़ें खा जायेंगे।कुछ अंदरूनी परजीवी कीड़े जैसे फीता कृमि, गोलकृमि आदि पशु के पेट में रह कर उस का आहार व खून पीते हैं, जिससे पशु कमज़ोर हो जाता है, पशु की रोगों के प्रति प्रतिरक्षा कम हो जाती है तथा अन्य बीमारियों का शिकार भी हो जाता है।अगर पशु के पेट में कीड़े हो तो विभिन्न रोगों से बचाव के लिए लगाये गए टीको का प्रभाव भी पूरी तरह नहीं हो पाता क्योंकि बीमारियों के प्रति प्रतिरक्षा विकसित नहीं हो पाती।
पशु के पेट में कीड़ें होने के लक्षण
- पशु सुस्त एवं कमजोर हो जाता है।
- पशु का वजन कम हो जाता है।
- पशु की हड्डियाँ दिखने लग जाती हैं।
- पशु का पेट बड़ा हो जाता है।
- चारा व दाना खाकर भी शरीर की वृद्धि तथा उत्पादन कम हो जाता है।
- पशु में दस्त होते हैं तथा कभी कभी रक्त या कीड़े भी दिखते है।
- पशु मिट्टी खाता है।
- पशु के शरीर की चमक कम हो जाती है तथा बाल खुरदुरे दिखते हैं।
- पशु में खून की कमी हो जाती है, एनीमिया हो जाता है।
- पशु का उत्पादन कम हो जाता है।
- मादा पशुओं में गर्भ धारण करने में कठिनाई हो जाती है।
- युवा पशु आमतौर पर वयस्क पशु की तुलना में आंतरिक परजीवी के लिए अधिक संवेदनशील होते हैं।
पशुओं की पेट में कीड़ो से सुरक्षा कैसे की जाय?
- पशुओं को हर तीन महीने में एक बार पेट के कीड़ें की दवा अवश्य दी जानी चाहिए।
- नियमित रूप से गोबर की जांच कराते रहे। यदि जांच में पेट के कीड़े की पुष्टि हो तो पशुचिकित्सक की सलाह पर पशु को उचित कृमिनाशक दवा दें।
- पशुओं में बीमारियों के टीकाकरण से पहले कृमिनाशक दवा अवश्य दें।
- एक ही कृमिनाशक दवा को बार बार ना दें अन्यथा कीड़े उस दवा के प्रति प्रतिरक्षा विकसित कर सकते हैं। हर तीन महीनो में अलग अलग कृमिनाशक दवा उपयोग करें।
- साफ़ सफाई का उचित ध्यान रखें।
- गाभिन पशुओं को दवा न दें। यदि बहुत आवश्यक हो तो पशुचिकित्सक की सलाह पर ही उचित दवा दें।
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए। |
बहुत अच्छी जानकारी है पशुपलको के लिये अवश्य देखना चाहिये हर पशु पालक को देखना चाहिए अच्छी जानकारी के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद