भारत एक कृषि प्रधान देश है। जिसने कृषि के साथ-साथ पशुपालन को एक संलग्न व्यवसाय के रूप में अपना रखा है। निरन्तर जनसंख्या बढने के कारण मानव जाति जंगलों को काटकर तथा कृषि योग्य भूमि मे घर बनाकर रहना शुुरु कर दिया है। इसके फलस्वरुप खेती योग्य भूमि की निरन्तर कमी होती जा रही है। पशुपालकों के अथक प्रयास से भारत देश लगभग 188 मिलियन टन दुग्ध उत्पादन कर विश्व में प्रथम स्थान पर विराजमान है और लगातार सर्वाधिक दुग्ध उत्पादन कर रहा है। उन्नत पशुपालन व्यवसाय के लिए यह आवश्यक है कि हमारे दुधारू पशु सही समय पर गर्मी में आए एवं गाभिन हो। यदि पशु गर्मी में आने पर गाभिन कराने केे पश्चात 21 दिनों में दुबारा गर्मी में आ जाए तो यह पशुपालकों के लिए चिंता का विषय है। यह स्थिति न सिर्फ दुग्ध उत्पादन को कम करती है, पशुओं से प्राप्त होने वाले बछड़ों/बछिया की संख्या को घटाती है अपितु अतिरिक्त चारे एवं पशु आहार से पशुपालक को आर्थिक हानि पहुँचाती है।
मादा पशुओं को बार-बार गाभिन कराने के बावजूद भी गर्भ न रुकना एक बहुत बड़ी समस्या है। रिपीट ब्रीडिंग की प्रभाव सीमा भैंसों में 20-25 प्रतिशत तक देखी गई है। बार-बार कृत्रिम सेंचित कराने पर भी गर्भ न रुकने की समस्या भी मुख्यतः दो कारणों से हो सकती है।
- नवजात भ्रूण की मृत्यु
- समय पर निषेचन न हो पाना
यह समस्या मादा के जननांगों की संरचना, जन्मजात विकार, शुक्राणु, अण्डाणु एवं भ्रूण में विकार, जननांगों में किसी प्रकार की चोट व रोग, हार्मोन का असंतुलन, संक्रामक कारक, पोषक तत्वों की कमी, प्रबन्ध सम्बन्धित कारक आदि में से किसी भी वजह से उत्पन्न हो सकती है।
जननांगों की संरचना
- अंडाशय का छोटा होना।
- जननग्रंथियों की अनुपस्थिति।
- जनननलिका का अवरुद्ध होना।
- योनि के रास्ते में किसी भित्तीय झिल्ली का पाया जाना।
- बच्चेदानी मेे इन्डोमेट्रियल ग्रंन्थि का न होना।
- ग्रीवा (सरविक्स) का अनुपस्थित होना।
- ग्रीवा मे दो मुख का होना।
- अंड़ाशय तथा अंडवाहिनी में घाव।
- बच्चेदानी का किसी अन्य भाग से जुड जाना।
- बच्चा देते समय जनन रास्ते मे चोट लग जाना।
- गुदा एवं भग के बीच के भाग का फट जाना।
- व्याने के समय भग का छिल जाना।
- ग्रीवा का मोटा हो जाना।
- योनि का मोटा हो जाना।
- मादा जनन अंगों में कैंसर हो जाना।
हार्मोन का असंतुलनः ऋतु चक्र विशेष हार्मोन्स के प्रभाव से संचालित होता है। इन हार्माेन्स के स्राव से किसी भी प्रकार के गर्भाधान से पशु के ऋतु चक्र में असमानता व जनन में अयोग्यता पायी जाती है।
संक्रामक कारकः प्रसव के तुरन्त पश्चात तथा पशुु के गर्मी का समय इस प्रकार के संक्रमण का उपयुुक्त समय है क्योकि इसी समय पशु की जनन नलिका खुली होती है। कृत्रिम गर्भाधान के दौरान उपयोग मेे लाये जाने वाले सामानो की सफाई ठीक से न होने पर तथा प्रसव के उपरान्त साफ सफाई न रखने पर विभिन्न प्रकार के जीवों का संक्रमण बच्चेेदानी में हो जाता है। जिससे बु्रसेलोसिस, विव्रियोसिस, ट्राइकोमोनिएसिस, इन्डोमेट्राइटिस, पायोमेट्रा आदि र¨ग उत्पन्न हो जाता है।
पोषक तत्वों की कमीः प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन तथा मिनरल की कमी सेे पशु व्याने के बाद गर्मी में देर से आता है तथा गर्भधारण दर घट जाती है। विटामिन ए की कमी से गर्भपात, कमजोर या मृत बछड़ों का जन्म और जेर रुकने की समस्या हो जाती है। विटामिन बी की कमी से एनीमिया हो जाता है जो पशुओं में बाॅझपन उत्पन्न करता है। फास्फोंरस, कैल्सियम तथा मैग्नीशियम की कमी से पशु यौवन में देर से आता है तथा मरे हुए बच्चे पैदा होते है। कापर तथा आयरन की कमी से पशु देर से यौवन मे आता है। तथा आयोडीन की कमी से गर्भपात, मृत बछडों का जन्म आदि की समस्या रहती है। सीलिनियम की कमी से जेर का रुकना, बच्चेदानी में शोथ तथा ओवरी पर गाॅठ बनने की समस्या हो जाती है।
प्रबन्धकीय कारकः गर्मी का पता ठीक से न लग पाना तथा कृत्रिम गर्भाधान का समय पर न होना रिपीट ब्रीडिंग का कारण बनता है।
उपचार
जननांगों की जाॅच तथा पशु के स्राव की जाॅच पशु चिकित्सक से करवाना अति आवश्यक है जिससे उचित इलाज किया जा सकता है। जननांगों में संक्रमण की अवस्था में उसके स्राव का एंटीबायोटिक सुग्राही परीक्षण करवाकर उपयुक्त एंटीबायोटिक को गर्भाशय में डालना चाहिए। आजकल के वर्षों में निम्न स्तर के गर्भाशय पेशी शोथ की चिकित्सा के लिए कुछ प्रतिरोधक क्षमतावर्धक दवाओं जैसे- लाइपोपोलीसेकराइड्स तथा लेवामीसोल का प्रयोग प्रभावी ढंग से किया जा रहा है। यदि पशुओं में रिपीट ब्रीडिग निम्नस्तरीय गर्भाशय पेशीशोथ के कारण है तो इन दवाओं का प्रयोग लाभदायक सिद्ध हो सकता है। यदि देर से डिम्बक्षरण की वजह से मादा पशु बार-बार गर्मी पर आती है तो ऐसी स्थिति में कोरुलान (1500-3000 आई0यू0) का इंजेक्शन समय से डिम्बक्षरण कराने में असरदार पाया गया है। अच्छी प्रबंध व्यवस्था से रिपीट ब्रीडिग की समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है। पशु को संतुलित आहार देना चाहिए, समय पर कृमिनाशक दवापान कराना बीमारी से बचाव के लिए टीका लगाना तथा दिन में दो बार सुबह-शाम पशुओं का गर्मी के लक्षणों के लिए ध्यान देना तथा उपयुक्त समय पर उच्च गुणवत्ता वाले वीर्य से गर्भाधान कराने पर इस समस्या की प्रभाव सीमा को काफी कम कर सकते हैं।
The content of the articles are accurate and true to the best of the author’s knowledge. It is not meant to substitute for diagnosis, prognosis, treatment, prescription, or formal and individualized advice from a veterinary medical professional. Animals exhibiting signs and symptoms of distress should be seen by a veterinarian immediately. |
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