जब किसी स्वस्थ पशु की आकस्मिक मृत्यु होती है तो उसमें विषाक्तता का संदेह उत्पन्न होता है। यह विषाक्तता कोई जहरीला रसायन खाने से अथवा चारे के साथ जहरीले पौधे खाने से होता है। पशुपालकों को मुख्य विषाक्तताओं की जानकारी होना आवश्यक है ताकि वे अपने पशुओं का इनसे बचाव कर सकें।
1. नाइट्रेट एवं नाइट्राइट की विषाक्तता
कुछ पौधों में नाइट्रेट की मात्रा अधिक होती है ऐसा चारा खाने से पशुओं में विषाक्तता हो सकती है। यह विष,जाै, मक्का, शलगम, चुकंदर, गोभी एवं आलू के पत्तों में पाया जाता है। नाइट्रेट युक्त खाद्य पदार्थ खाने एवं पानी पीने से भी यह विषाक्तता होती है।
प्रभावित पशु: नाइट्रेट विषाक्तता से जुगाली करने वाले पशु जैसे गाय, भैंस, भेड़ एवं बकरी प्रभावित होते हैं जबकि नाइट्राइट विषाक्तता से सूअर, घोड़े, कुत्ते प्रभावित होते हैं।
विष के प्रभाव का प्रकार:
- रोमनथिका के , परजीवी द्वारा नाइट्रेट पहले नाइट्राइट और बाद में अमोनिया में परिवर्तित होते हैं। अमोनिया के उपयोग से परजीवी प्रोटीन बनाते हैं परंतु नाइट्रेट की अधिक मात्रा खाने से अमोनिया रक्त में घुल जाती है एवं उससे विषाक्तता होती है।
- नाइट्रेट सीधे हीमोग्लोबिन से संलग्न होकर शरीर के ऊतकों को प्राण वायु से वंचित करता है जिससे उतको का ऊर्जा चपापचाय बाधित होता है, और दूसरा यह रक्त वाहिनियों की, दीवार की मांसपेशियों को शिथिल करके रक्त प्रवाह का अवरोध उत्पन्न करता है।
लक्षण: तीव्र विषाक्तता में सांस लेने में तकलीफ होना, पशु का हांफना, पशु को कमजोरी होना, चलने में लड़खडाहट का होना, कपकपी एवं मृत्यु हो जाना इसके मुख्य लक्षण हैं। दीर्घकालीन विषाक्तता में गर्भित पशुओं में गर्भपात, बांझपन, मरे हुए बच्चे पैदा होना आदि लक्षण मिलते हैं।
शव परीक्षण: श्लेष्मल-आवरणो, का रंग नीला होना खून एवं अवयवों का रंग गहरा बादामी होता है । विभिन्न अंगों पर रक्त रिसने के निशान मिलते हैं। पहचान करने हेतु चारा, रोमनथिका द्रव, खून एवं पानी का नमूना विष विज्ञान प्रयोगशाला को भेजकर जांच कराना चाहिए।
उपचार: उपचार के लिए तुरंत नजदीकी पशु चिकित्सक से संपर्क करें। मिथाईलीन ब्लू दवा रक्त की नस द्वारा दी जाती है।
2. यूरिया की विषाक्तता
यूरिया की खाद का प्रयोग फसलों एवं चारे की पैदावार बढ़ाने हेतु सबसे अधिक किया जाता है। जुगाली करने वाले पशुओं के लिए यूरिया प्रोटीन का सबसे सस्ता स्रोत है। पशुओं को खिलाने के लिए यूरिया का प्रयोग दो प्रकार से किया जाता है:
- यूरिया सीरा ब्लॉक के रूप में
- पशु खाद्यों पर इसका छिड़काव करके
प्रभावित पशु: यूरिया की विषाक्तता से जुगाली करने वाले पशु सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। घोड़े यूरिया को काफी मात्रा में पचा लेते हैं जबकि सूअरों में इसका कोई असर नहीं होता है।
विषाक्तता के कारण
- पशु खाद्य में निर्धारित मानक 3% से ज्यादा यूरिया खिलाने से
- अच्छी तरह से दाने में ना मिलाने से।
आकस्मिक रूप में यूरिया के ज्यादा मात्रा में खा लेने से इसका प्रभाव: रोमनथिका में मौजूद परजीवी यूरिया को अमोनिया एवं पानी में परिवर्तित करते हैं। इस अमोनिया से प्रोटीन बनती है परंतु अधिक यूरिया खाने से ज्यादा तेजी से अमोनिया बनकर रक्त में अवशोषित हो जाती है। अमोनिया केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को उत्तेजित करता है तथा विभिन्न अंगों को क्षतिग्रस्त करता है।
लक्षण: पशु का अशांत रहना, दांत चबाना, सांस लेने में तकलीफ होना, मुंह में झाग जमा हो जाना, पेट में दर्द होना एवं पेट फूलना आदि लक्षण दिखाई पड़ते हैं। पशु पीड़ा से कराहता है, होंठ पूंछ मैं कपकपी होती है। पशु लड़खड़ाने लगता है, और काफी परेशान होने एवं चिल्लाहट के बाद उसकी मृत्यु हो जाती है।
शव परीक्षण: रोमनथिक़ा खोलने पर अमोनिया की गंध आती है। पेट व फेफड़ों में पानी भर जाता है। श्वास नली का सोथ, जिगर के आकार में वृद्धि होना रंग पीला पड़ना एवं टूटना। आंतों में रक्त का रिसाव होना व पानी भरना।
उपचार: पशुओं को यूरिया खिलाना बंद कर देना चाहिए। सिरका ठंडे पानी में पिलाएं तथा फूले हुए पेट से गैस निकाले। संदेहास्पद दाना रोमनथिका का द्रव, रक्त का नमूना विष विज्ञान प्रयोगशाला में जांच कराएं।
रोकथाम और बचाव: पशुओं को थोड़ी मात्रा में यूरिया खिलाना शुरू करें ताकि वे यूरिया पचाने में अभ्यस्त हो जाएं। निर्धारित मात्रा 3% से अधिक यूरिया ना खिलाए दाने में यूरिया अच्छी तरह से मिलाने के बाद ही खिलाएं।
3. जिंक एवं एलमुनियम फास्फाइड की विषाक्तता
जिंक फास्फाइड रसायन चूहे मारने की सबसे सस्ती एवं कारगर दवा है। जिसका सबसे अधिक प्रयोग किया जाता है। यह दवा आटे में या किसी खाद्यान्न में मिला कर दी जाती है। इससे अधिकतर कुत्ते और बिल्ली में विषाक्तता होती है। अल्युमिनियम फास्फाइड रसायन का उपयोग खाद्यान्नों के भंडारण में होता है।
कारण: चूहे मारने की दवा खाने से या जानबूझकर पशुओं के दाना चारे में मिलाने से। इन रसायनों से पेट के अम्लीय वातावरण से फास्फीन गैस बनती है जो विषाक्तता करती है। दाना चारा खाने के पश्चात यह रसायन खाने से ज्यादा विषाक्तता होती है। फास्फीन गैस से जिगर गुर्दे एवं आंतों के ऊतकों एवं रक्त वाहिनीयों के आवरण को भी क्षति पहुंचती है।
लक्षण: विष खाने के 1 घंटे के भीतर ही विषाक्तता के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। पशुओं की भूख मर जाती है और वह सुस्त हो जाते हैं। सांस लेने की दर और गहराई बढ़ती है। पेट में दर्द होता है व पेट फूलता है तथा पशु को चक्कर आते हैं। सांस लेने में परेशानी, कपकपी, बेसुध हो कर मृत्यु हो जाती है। कुत्तों में इधर उधर दौड़ना व दांत कट कटाने के लक्षण देखने को मिलते हैं।
शव परीक्षण: रोमनथिका/ पेट खोलने पर एसिटिलीन गैस की गंध आना फेफड़ों में खून जमा होना जलीय शोथ, यकृत गुर्दों में खून भरना, आंतों की सूजन फेफड़ों के आवरण में से पानी बहना आदि देखने को मिलता है। पहचान हेतु पशु के पेट का तरल पदार्थ, यकृत का नमूना विष विज्ञान प्रयोगशाला को विश्लेषण के लिए भेजें।
उपचार: इस विषाक्तता के लिए कोई विशेष उपचार नहीं है। 5% सोडियम बाइकार्बोनेट के घोल से पेट की धुलाई एवं कैल्शियम बोरोग्लूकोनेट के इंजेक्शन से उपचार किया जाता है।
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए। |
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