असामान्य या कठिन प्रसव (डिस्टोकिया) के कारण एवं उसका उपचार

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ब्याने के समय मां स्वयं बच्चे को बाहर नहीं निकाल पाए और बच्चा बीच में ही फंस जाए तो इसे कठिन प्रसव (Dystocia) कहते हैं। ब्याने की तीन अवस्थाएं होती हैं-

  1. गर्भाशय ग्रीवा का शिथिल होकर चौड़ा होना
  2. गर्भाशय के संकुचन बढ़ना व बच्चे का बाहर आना
  3. जेर का बाहर आना

कठिन प्रसव अर्थात डिस्टोकिया का मतलब यह है कि ब्याने की पहली व दूसरी अवस्था में समय अधिक लगे और बच्चे को बाहर निकालने के लिए बाहरी सहायता की जरूरत पड़े।

 

कठिन प्रसव से होने वाली हानि:

  1. नवजात बच्चे के मरने की संभावना अधिक हो जाती है।
  2. यदि बच्चा जीवित पैदा होता है तो काफी समय तक सामान्य नहीं हो पाता है।
  3. मां के मरने की संभावना अधिक हो जाती है।
  4. यदि मां जीवित रह जाए तो दूध की मात्रा कम रहती है।
  5. गर्भाशय में संक्रमण होने एवं प्रजनन क्षमता कम होने की संभावना अधिक हो जाती है।

कठिन प्रसव के कारण:

  1. मूल कारण
  2. तात्कालिक कारण

मूल कारण:

यदि मूल कारणों पर ध्यान दिया जाए तो काफी हद तक कठिन प्रसव होने से बचाया जा सकता है। इसके मुख्य कारण निम्न है:

  1. आनुवंशिक
  2. पोषण व रखरखाव
  3. संक्रमण
  4. चोट

सामान्यता गर्भाशय में बच्चे के अगले दोनों पैर मां के मूत्र मार्ग की ओर फैले हुए रहते हैं तथा इन पर बच्चे का मुंह रखा होता है। और पिछले दोनों पैर भी मूत्र मार्ग की ओर ही मुड़े हुए होते हैं। इस स्थिति को एंटीरियर नॉर्मल प्रेजेंटेशन कहां जाता है तथा यह स्थिति लगभग 95% पशुओं में पाई जाती है। बच्चे के पिछले पैर मूत्र मार्ग की ओर एवं अगले पैर तथा मुंह मां के मुख की ओर होने की अवस्था को भी सामान्य स्थिति ही माना जाता है तथा इस स्थिति को पोस्टीरियर नॉरमल प्रेजेंटेशन कहते हैं।

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उपरोक्त स्थितियों के अतिरिक्त जब अन्य स्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं तब सामान्य प्रसव के होने में कठिनाई उत्पन्न हो जाती है।

कठिन प्रसव के तात्कालिक कारणों को दो भागों में विभाजित किया जाता है।

  1. मातृ जन्य, कठिन प्रसव
  2. शिशु जन्य कठिन प्रसव

मातृ जन्य, कठिन प्रसव के कारण:

  1. हारमोंस के अभाव या असंतुलन में गर्भाशय ग्रीवा का न फैलना तथा गर्भाशय के संकुचन की क्षीणता या उसकी अनुपस्थिति।
  2. गर्भाशय ग्रीवा या गर्भाशय की ऐठन या गर्भाशय का पलट जाना अथवा अंटा लग जाना।
  3. पेल्विक बोन का फ्रैक्चर अथवा असामान्य होना जिसके कारण बर्थ कैनाल संकरी हो जाती है।
  4. गर्भाशय या पेल्विक कैविटी में शोथ या ट्यूमर आदि का होना।
  5. गर्भाशय ग्रीवा, योनि और योनि द्वार का संकरा होना।
  6. योनि में वसा का अत्याधिक जमाव।
  7. गर्भाशय की जड़ता होना।

उपरोक्त प्रथम कारण की चिकित्सा ऑक्सीटॉसिन की 20 से 25 इंटरनेशनल यूनिट अथवा एपीडोसिन 48 मिलीग्राम, बेटामेथासोन 40 मिलीग्राम एवं क्लोप्रोस्टेनोल सोडियम 500 माइक्रोग्राम अंत:पेशी सूची वेध द्वारा देकर की जा सकती है, तथा शेष कारणों का निवारण स्थिति के अनुसार  सेफर्श प्लांक विधि (गर्भाशय में  अंटा लगने  पर) अथवा सिजेरियन ऑपरेशन करके ही किया जा सकता है।

शिशु जन्य कठिन प्रसव के कारण:

  1. बच्चे की असामान्य स्थितियां अर्थात असामान्य प्रेजेंटेशन, पोजीशन एवं पोस्चर।
  2. बच्चे का असामान्य बड़ा आकार।
  3. बच्चे के शरीर का असामान्य होना जैसे दो सिर होना 4 से अधिक पैरों का होना बच्चे का दैत्याकार रूप में होना इत्यादि।
  4. बच्चे के शरीर में रोगों का होना जैसे सिर में पानी भरा होना,जलोदर, पूरे शरीर में पानी भरा होना अर्थात ऐनासारका, थोरेक्स में पानी भरा होना अर्थात हाइड्रोथोरेक्स तथा बच्चे के किसी अंग में ट्यूमर होना आदि।
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बच्चे की असामान्य स्थितियां:

इसमें बच्चे की प्रसव काल की सामान्य स्थिति न होकर बच्चे की गर्दन का मुड़ जाना, अगला एक या दोनों पैर बच्चे की गर्दन पर चले जाना, अगले 1 या दोनों पैरों का पीछे की ओर मुड़ जाना, बच्चे का पेट मां की कमर की ओर हो जाना, बच्चे का पेट या पीठ अनुप्रस्थ स्थिति में होना आदि।

उपरोक्त स्थितियों में से अधिकतर स्थितियों को पशु चिकित्सक अपने सामान्य विवेक से ही हाथों की सहायता से व्यवस्थित करके बच्चे को बाहर निकाल सकता है। इसको बाहर निकालते समय आई हुक से गर्दन में कंधे से या पैर बांधकर खींचा जा सकता है। केवल अनुप्रस्थ स्थितियां तथा बच्चे के मर जाने के बाद की स्थिति में बच्चे को फिटोनॉमी द्वारा काट काट कर टुकड़ों में निकालना पड़ता है।

बच्चे का बड़ा आकार होने पर अथवा जीवित बच्चा  होने पर सिजेरियन ऑपरेशन किया जाता है। बच्चे का शरीर असामान्य होने या उसमें रोग या ट्यूमर होने आदि की अवस्था में अधिकतर मामलों में बच्चे को काटकर टुकड़ों में ही निकाला जाना संभव हो पाता है।

कठिन प्रसव के निवारण तथा जेरी निकालने के उपरांत मां की परिचर्या तथा चिकित्सा विशेष रुप से 5 से 7 दिन तक की जानी चाहिए। इसे प्रतिजैविक औषधि, टॉनिक, बेटामेथासोन, कैल्शियम आदि उचित मात्रा में दिया जाना अति आवश्यक होता है।

नोट: उपरोक्त स्थितियों में नजदीकी पशु चिकित्सा अधिकारी से उपचार कराना उचित होगा किसी अनजान व्यक्ति से उपचार कराने में मां एवं नवजात दोनों की मृत्यु का खतरा रहता है।

संदर्भ: वेटनरी आबसट्रेट्रिक्स एंड जेनाइटल डिसीजेज, द्वारा एस जे रॉबर्टस

इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।
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