डेयरी व्यवसाय का वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधन

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डेयरी व्यवसाय की सफलता मुख्यता दुधारू पशुओं पर निर्भर करती है। इसलिए दुधारू पशुओं का रखरखाव उनका निवास स्थान, खानपान एवं स्वास्थ्य प्रबंधन समुचित होना चाहिए ताकि पशुपालक अपने दुधारू पशु से उसकी पूरी क्षमता से दूध उत्पादन एवं प्रजनन ले सके और डेयरी व्यवसाय से अधिक से अधिक लाभ उठा सकें। पशु का निवास स्थान स्वच्छ एवं आरामदायक होना चाहिए जिससे वातावरण के उतार चढ़ाव एवं बदलाव का पशु की किसी भी प्रकार की क्रिया एवं उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। पशु आवास के क्षेत्र में छायादार पेड़ों का होना अति आवश्यक है , क्योंकि पेड़ ही पहले माध्यम है जो वातावरण में उतार-चढ़ाव से पशु को बचाते हैं। पशु को रखने का स्थान मौसम के हिसाब से बदलते रहना चाहिए। गर्मी में  पशु को छाया में, बरसात में हवादार स्थान पर जोकि पंखे या एग्जास्ट के पंखे द्वारा ठंडी हवा दी जा सके एवं सर्दी में बंद मकान में रखना चाहिए ताकि उसे सर्दी ना लगे। ऐसा करने से पशु का स्वास्थ्य भी ठीक रहता है एवं पशु आहार भी ठीक मात्रा में खाता है और दूध उत्पादन पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ता है।

एक दुधारू गाय वह भैंस के लिए 3.4 से 4 वर्ग मीटर क्षेत्रफल का ढका हुआ तथा 7 से 8 वर्ग मीटर का खुला हुआ स्थान होना चाहिए तथा निवास स्थान को ऊंचाई, मध्यम ऊंचाई के पशु से 175 सेंटीमीटर तथा 220 सेंटीमीटर क्रमशः मध्यम तथा अधिक वर्षा वाले क्षेत्र में और दरमियानी शुष्क क्षेत्र में होनी चाहिए। यदि सभी दुधारू पशु एक साथ एक ही बाड़े में खुले रखे गए हैं तो ऐसी स्थिति में एक बाड़े में पशुओं की संख्या 50 से अधिक नहीं होनी चाहिए अन्यथा अधिक संख्या में न तो पशु को आहार उचित मात्रा में मिलेगा और नहीं पशु को आराम मिल सकेगा। पशु के बैठने का स्थान ऐसा होना चाहिए जिस पर पशु फिसल ना सके तथा मूत्र व गंदे पानी की निकासी के लिए “यू ” आकार की 20 सेंटीमीटर चौड़ी नाली होनी चाहिए। पशु के आवास में टूट-फूट नहीं होनी चाहिए ताकि वर्षा का पानी एवं सफाई का गंदा पानी बाड़े में ठहर सके। सर्दी के मौसम में पशु को आराम देने के लिए बिछावन का विशेष प्रबंध करना चाहिए। ऐसा करने से पशु की उत्पादकता बढ़ेगी और साथ ही साथ बीमारियां भी कम होंगी।

आहार एवं पेयजल
दुधारू पशुओं को साफ एवं स्वच्छ ताजा पानी पिलाना चाहिए। पशु को पानी की आवश्यकता वातावरण की दशा एवं उसको दिए गए आहार पर निर्भर करती है। हरे चारे में पानी की मात्रा अधिक होने से पशु कम पानी पीते हैं परंतु दुधारू पशुओं को गर्मियों में कम से कम 4 बार एवं सर्दी में 2 बार ताजा पानी जरूर पिलाएं। दुधारू पशु के उत्पादन का सीधा संबंध उसको दिए गए आहार से होता है क्योंकि पशु को दिया गया आहार उसके पालन, दुग्ध उत्पादन एवं गर्भाशय में पनप रहे बच्चे के काम आता है। यदि पशु गर्भित है तो प्रत्येक दुधारू पशुओं को समयबद्ध ताजा एवं स्वच्छ भरपेट चारा देना चाहिए अन्यथा उसके दूध उत्पादन पर इसका विपरीत असर पड़ेगा। सूखे एवं हरे चारों को मिलाकर देना चाहिए, विशेषकर जब बरसीम की पहली या दूसरी कटाई पशु आहार के लिए की गई हो क्योंकि इस परिस्थिति में बरसीम के पौधे में प्रोटीन एवं पानी की मात्रा ज्यादा होती है और इनमें  सैलूलोज की मात्रा कम रहती है। इस स्थिति में हरे चारे से पशु को अफारा होने की संभावना अधिक होती है तथा कभी-कभी बिना पचा हुआ हरा चारा पतले दस्त के रूप में गोबर के माध्यम से निकलता है और पशु आहार से मिलने वाली ताकत पशु को नहीं मिल पाती है इसीलिए प्रत्येक दुधारू पशु के हरे चारे में कम से कम 20% सूखा चारा होना अति आवश्यक है। यदि कम सूखा चारा पशु को दिया जाता है तब पशु के दूध में वसा की मात्रा कम होने की प्रबल संभावना रहती है। जैसे-जैसे दिए गए हरे चारे में सेल्यूलोज की मात्रा बढ़ती है तब पशु को सूखे चारे की मात्रा कम कर देनी चाहिए। इसके साथ साथ दुधारू पशु को पशुपालक संतुलित आहार अवश्य दें जिसमें खनिज तत्वों की मात्रा कम से कम 2% हो।

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प्राय: यह देखने में आता है कि अधिकांश पशुपालक अपने पशुओं को खनिज लवण एवं नमक आहार में नहीं देते हैं। खनिज लवण एवं नमक दुधारू पशुओं में देना अत्यावश्यक है क्योंकि दूध में काफी मात्रा में इनका स्राव होता है। यदि यह पशु को आहार के माध्यम से नहीं दिए गए तो पशु स्वास्थ्य एवं प्रजनन पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा। जिन पशुओं को खनिज लवण नहीं दिया जाता ऐसे पशुओं का दूध उत्पादन कम होता है और पशु गर्मी या मद मे कम आते हैं। यदि दुधारू पशु पूर्ण रूप से हरे चारे पर रखा गया है और वह 5 किलोग्राम दूध देता है तब उसे दाना देने की जरूरत ही नहीं है परंतु जैसे जैसे दूध बढ़ता है या अधिक दूध देने वाले पशु है ऐसी स्थिति में गाय को प्रति 3 किलोग्राम दूध एवं भैंस मैं प्रति ढाई किलोग्राम दूध के लिए एक किलोग्राम दाना देना चाहिए। यदि पशु गर्भित है तब इस स्थिति में अतिरिक्त दाना गर्भधारण राशन के रूप में पशुपालक अपने पशुओं को अवश्य दें। जिन स्थानों पर पशुपालक अधिक मात्रा में हरा चारा अपने पशु को नहीं दे सकते ऐसे स्थानों पर सूखे चारे एवं दाने से ही आहार संतुलित किया जा सकता है। परंतु कम से कम 5 से 10 किलोग्राम हरा चारा यदि पशु को रोजाना मिल जाए तो पशु को विटामिन ए की कमी नहीं होगी तथा पशु का स्वास्थ्य एवं उसकी प्रजनन क्षमता बनी रहेगी। हरे चारे का मुख्य उद्देश्य पशु को  बीटा कैरोटीन की आपूर्ति करना है जो कि शरीर में विटामिन ए में बदल जाता है तथा शारीरिक क्रियाओं को संतुलित करता है। इसलिए जिन स्थानों पर हरा चारा बिल्कुल भी उपलब्ध नहीं है ऐसे स्थानों पर पशु आहार में विटामिन ए देना चाहिए।

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दुधारू पशुओं का स्वास्थ्य एवं रखरखाव
दुधारू पशुओं का रखरखाव अन्य श्रेणी के पशुओं से अलग है क्योंकि थोड़ी सी असावधानी दुधारू पशुओं के उत्पादन पर सीधा प्रभाव डालती है इसलिए पशुपालक निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें-

  • पशु का निवास स्थान स्वच्छ एवं हवादार होना चाहिए तथा उसके मल मूत्र को निकालने का विशेष ध्यान देना चाहिए। बैठने के स्थान को फिनायल के घोल से धोना चाहिए इससे बीमारी फैलाने वाले कीटाणुओं की संख्या कम रहेगी तथा थनों के रोग कम होंगे।
  • दुधारू पशु को दूध दुहने से पहले जरूर स्नान कराएं इससे पशु में स्वच्छता तो रहेगी ही साथ ही साथ उसके शरीर में परजीविओं का प्रकोप भी कम रहेगा। समय-समय पर पशु को परजीवियों के प्रकोप से बचाने के लिए परजीवी रोधक एवं परजीवी नाशक औषधि का पशु चिकित्सक की सलाह से सही मात्रा में नहलाने से पूर्व प्रयोग करना चाहिए। इससे परजीविओं से फैलने वाले जानलेवा रोग पशु को नहीं होंगे।
  • दुधारू पशु को आहार के बाद आराम करने के लिए अलग स्थान होना चाहिए, जहां पर पशु आराम कर सके। यदि यह संभव नहीं है तब पशु के बैठने के स्थान की सफाई एवं सूखे रखने का विशेष ध्यान देना चाहिए। यदि ऐसा प्रबंध नहीं किया गया है तब पशु हर समय खड़ा रहेगा तथा खुरो के विकारों से पीड़ित हो जाएगा। यही एक मुख्य कारण है स्थान की कमी के कारण पशुओं के एक ही स्थान पर बंधे रहने के कारण, पशु आजकल खुरो के रोग से पीड़ित हैं। इसका प्रभाव पशु के उत्पादन पर भी पड़ता है।
  • प्रसूति के बाद प्रजनन अंगों के विकारों का भी दुधारू पशुओं के उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है तथा इन रोगों में पशु कम खाता है जिसका असर उसके शरीर एवं उत्पादन पर पड़ता है। इसीलिए प्रजनन संबंधी विकारों की सही जांच करा कर पशु का यथासंभव उपचार कराना चाहिए।
  • प्रत्येक दुधारू पशु को समय-समय पर संक्रामक रोगों से बचाने के लिए टीकाकरण कराना चाहिए जिससे पशुपालक का केवल पशु ही नहीं बचेगा बल्कि इलाज में कम खर्च होगा। रोग अन्य पशुओं में नहीं लगेगा तथा पशु पूरी क्षमता से दूध देगा।
  • दुधारू पशुओं में समय-समय पर वाहय एवं अंत: परजीविओं की रोकथाम एवं इलाज के लिए प्रयोगशाला में गोबर का परीक्षण कराते रहना चाहिए तथा आवश्यकतानुसार और चिकित्सक की सलाह से औषधि देनी चाहिए अन्यथा पशु को दी गई खुराक का कोई लाभ नहीं होगा।
  • दुधारू पशुओं के खुरो का विशेष ध्यान देना चाहिए अन्यथा पशु खुरों के नए विकारों से पीड़ित होगा तथा लंगड़ाएगा। इन विकारों से पशु कम खाता है और कमजोर हो जाता है। मूल रूप से पशुओं के शरीर में नकारात्मक शक्ति संतुलन उत्पन्न हो जाता है जिसका असर उसके उत्पादन एवं प्रजनन दोनों पर पड़ता है।
  • दुधारू पशु का समय-समय पर संक्रामक रोगों के रोगाणु का परीक्षण करके यथासंभव उपचार कराना चाहिए। दूध दुहने के सही तरीके से दूध दुहना चाहिए, इससे प्रत्येक गाय या भैंस के उत्पादन में 10 से 15% की बढ़ोतरी होगी। दूध उतारने वाले टीके अर्थात ऑक्सीटॉसिन का प्रयोग कदापि नहीं करना चाहिए अन्यथा पशु को नुकसान हो सकता है।
  • दुधारू पशु का एक भी मद चक्र खाली नहीं जाना चाहिए और कम से कम ब्याने के 60 से 90 दिन में दुधारू पशु को गर्भ धारण कर लेना चाहिए। इससे पशुपालक को प्रतिवर्ष बच्चा भी अपने मादा पशु से मिलेगा तथा पशु अपने जीवन काल में अधिक दूध देगा।
  • दुधारू पशु को अगले व्यॉत की सुरक्षा एवं अधिक उत्पादन के लिए, 2 से 3 महीने का शुष्क समय अर्थात ड्राई पीरियड अवश्य देना चाहिए क्योंकि इस आहार से मिलने वाली शक्ति गर्भाशय में बच्चे की बढ़ोतरी एवं पशु के अगले बयात में दूध की क्षमता को बनाए रखने के लिए प्रयोग होती है।
  • दूध दुहने, से पहले एवं  बाद में , थनों को 1% पोटेशियम परमैंगनेट या 2% आयोडोफोर के घोल से धोएं, ताकि थनों में जीवाणुओं का प्रवेश रुक सकें, एवं स्वच्छ दुग्ध का उत्पादन हो सके।
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