खुरपका मुँहपका रोग (एफ.एम.डी.) के लक्षण एवं बचाव

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मुंहपका खुरपका रोग (Foot and Mouth Disease, FMD) फटे खुर (Cloven Footed) वाले पशुओं का अत्यन्त संक्रामक एवं घातक विषाणुजनित रोग है। यह गाय, भैंस, भेंड़, बकरी, सूअर आदि पालतू पशुओं एवं हिरन आदि जंगली पशुओं को को होती है। FMD रोग किसी भी उम्र के पशुओ एवं उनके बच्चों में हो सकता है। इसके लिए कोई भी मौसम निश्चित नहीं है तथा यह रोग कभी भी फैल सकता है। हालांकि बड़े पशुओ की इस बीमारी से मौत तो नहीं होती फिर भी दुधारू पशु सूख जाते हैं। एक बार पशु के इस रोग की चपेट में आ जाने के बाद कोई इलाज नहीं है इसलिए रोग होने से पहले ही उसके टीके लगवा लेना फायदेमन्द है।

खुरपका मुँहपका रोग
Photograph by dr. D. Denev, FMD RzCC BY-SA 3.0

इस रोग के आने पर पशु को तेज बुखार हो जाता है। बीमार पशु के मुंह, मसूड़े, जीभ के ऊपर नीचे ओंठ के अन्दर का भाग खुरों के बीच की जगह पर छोटे-छोटे दाने से उभर आते हैं, फिर धीरे-धीरे ये दाने आपस में मिलकर बड़ा छाला बनाते हैं। समय पाकर यह छाले फल जाते हैं और उनमें जख्म हो जाता है।

पशु जुगाली करना बंद कर देता है। पशु के मुंह से लगातार लार गिरती है। पशु सुस्त पड़ जाते है और खाना पीना छोड़ देता है। खुर में जख्म होने की वजह से पशु लंगड़ाकर चलता है। पैरों के जख्मों में मक्खियों की वजह से कीड़े भी पड़ जाते हैं और पारो में दर्द की वजह से पशु लंगड़ाने लगता है। दुधारू पशुओं में दूध का उत्पादन एकदम गिर जाता है। वे कमजोर होने लगते हैं। समय पाकर व इलाज होने पर यह छाले व जख्म भर जाते हैं परन्तु संकर पशुओं में यह रोग कभी-कभी मौत का कारण भी बन सकता है। यह छूत की बीमारी है तथा एक पशु से दुसरे पशुओ में फ़ैल सकती है।

और देखें :  पशुओं में होनें वाले अपच/ बदहजमी रोग एवं उससे बचाव

मुख्य लक्षण

  • प्रभावित होने वाले पैर को झाड़ना (पटकना)
  • पैरो में सूजन (खुर के आस-पास)
  • लंगड़ाना
  • अल्प अवधि (एक से दो दिन) का बुखार
  • खुर में घाव होना एवं घावों में कीड़े (Maggots) पड़ जाना
  • कभी-कभी खुर का पैर से अलग हो जाना
  • मुँह से लगातार लार गिरना
  • जीभ, मसूड़े, ओष्ट आदि पर छाले पड़ जाते हैं, जो बाद में फूटकर मिल जाते है
  • उत्पादन क्षमता में अत्यधिक कमी हो जाना
  • बैलों की कार्य क्षमता में कमी
  • प्रभावित पशु स्वस्थ्य होने के उपरान्त भी महीनों हांफते रहता है
  • बीमारी से ठीक होने के बाद भी पशुओं की प्रजनन क्षमता वर्षों तक प्रभावित रहती है।
  • गर्भवती पशुओं में गर्भपात की संभावना बनी रहती है

उपचार

  • निकटतम सरकारी पशुचिकित्सा अधिकारी को सूचित करें।
  • प्रभावित पशुओं के रोग का पता लगने पर तुरंत उसे अलग करें।
  • मुँह में बोरो ग्लिसेरीन (850मिली ग्लिसेरीन एवं 120 ग्राम बोरेक्स) लगाए।
  • प्रभावित पैरों को फिनाइल-युक्त पानी से दिन में दो-तीन बार धोकर मक्खी को दूर रखने वाली मलहम का प्रयोग करना चाहिए।
  • इस दौरान पशुओं को मुलायम एवं सुपाच्य भोजन दिया जाना चाहिए।
  • पशु चिकित्सक के परामर्श पर दवा देनी चाहिए।
और देखें :  रक्त परजीवी रोगों की रोकथाम व उपचार

सावधानी

  • प्रभावित पशु को साफ एवं हवादार स्थान पर अन्य स्वस्थ्य पशुओं से दूर रखना चाहिए। पशुओं की देखरेख करने वाले व्यक्ति को भी हाथ-पांव अच्छी तरह साफ कर ही दूसरे पशुओं के संपर्क में जाना चाहिए।
  • प्रभावित पशु के मुँह से गिरने वाले लार एवं पैर के घाव के संसर्ग में आने वाले वस्तुओं पुआल, भूसा, घास आदि को जला देना चाहिए या जमीन में गड्ढा खोदकर चूना के साथ गाड़ दिया जाना चाहिए।

टीकाकरण

‘‘इलाज से बेहतर है बचाव’’ के सिद्धांत पर छः माह से ऊपर के स्वस्थ पशुओं को खुरहा-मुँहपका रोग के विरूद्ध टीकाकरण करवाना चाहिए। तदुपरान्त 8 माह के अन्तराल पर टीकाकरण करवाते रहना चाहिए।

इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।
और देखें :  पशुओं में क्षयरोग (ट्यूबरक्लोसिस) एवं जोहनीजरोग (पैराट्यूबरक्लोसिस) के कारण, लक्षण एवं बचाव

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