डेयरी पशुओं में प्रजनन क्षमता सुधार के लिए मद के लक्षणों की पहचान भी आवश्यक

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प्रजनन ऐसी क्रिया जिसके द्वारा मादा के जननांगों में नर द्वारा प्राकृतिक तौर पर संभोग अथवा कृत्रिम रूप में नर वीर्य सेचन के बाद गर्भधारण होता है और मादा नये जीव अर्थात ‘संतान’ को जन्म देती है। डेयरी पशुओं की लाभप्रदता आनुवंशिक रूप से उच्च उत्पादक मादा संतान के उत्पादन पर निर्भर करती है। सफल गर्भाधान एवं पूर्ण रूप से गर्भ धारण करने योग्य होने के लिए मादा पशुओं के शारीरिक विकास के साथ-साथ उसके जनननांगों का विकास भी बहुत आवश्यक है।

मादा जनननांगों की सरंचना

प्रजनन संबंधी समस्याओं के समाधान तथा उचित प्रबंधन के लिए पशुओं के जननेन्द्रिय अंगों की रचना तथा उनके कार्यों का ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है। डेयरी पशुओं (गाय/भैंसों) के जननांगों में निम्नलिखित भाग सम्मिलित होते हैं।

  1. भगोष्ठ: इसको योनि द्वार भी कहते हैं जो गुदा के नीचे स्थित होती है। यह जननांगों का बाहर से दिखायी देने वाला दीर्घ वृत्ताकार (Elliptical) द्विखण्डी भाग है जो अन्दर की ओर यह योनि से जुड़ा होता है। यह त्वचा के बड़े उभार हैं जिसके बाहर दिखायी देने वाले भाग पर बाल होते हैं। इनकी अन्दर की सतह पर छोटी-छोटी ग्रन्थियां होती हैं। मद में आयी गाय/भैंस में भगोष्ठ का आकार बढ़ जाता है व उन पर स्थित बाल खड़े हुए दिखायी देते हैं। यह योनि एवं मूत्र नली के बाहरी भागों को ढक कर रखता है जो मादा प्रजनन अंगों एवं मूत्र मार्ग के बाहरी संक्रमण को रोकने में सहायक होता है।
  2. योनि: भगोष्ठ के बाद अन्दर की ओर योनि (Vagina) होती है जो अनैच्छिक मांसपेशियों (Involuntary muscles) से बनी होती है। इसकी आंतरिक सतह श्लेष्मा झिल्ली (Mucous membrane) से ढकी रहती है। योनि का बाहरी छिद्र एक पतली श्लेष्मा झिल्ली से ढका होता है जिसे सतीच्छद (Hymen) कहते हैं। कभी-कभी सतीच्छद योनि के बाहरी छिद्र को पूर्ण रूप से ढके रहता है। इस स्थिति को छिद्रहीन सतीच्छद (Imperforate hymen) कहते हैं। योनि मादा प्रजनन तंत्र का प्रमुख भाग है क्योंकि यह नर से सेमिनल द्रव व वीर्य ग्रहण करती है तथा मद स्राव को बाहर निकलने में भी मदद करती है। मद में आयी हुई गाय/भैंस की योनि से श्लेष्मा निकलता है जो उसके गर्भाधान करवाने का लक्षण होता है।
  3. ग्रीवा: ग्रीवा (Cervix), योनि एवं गर्भाशय के बीच एक सख्त एवं संकरी नली होती जो योनि एवं गर्भाशय को आपस में जोड़ती है। इसे गर्भाशय का प्रवेश द्वार भी कहते हैं। ग्रीवा में योनि की अपेक्षा कई गुणा ऊतक (Tissues) होते हैं जिस कारण यह सख्त होती है। इसकी छल्ले जैसी आकृति होती है जिन्हें गर्भाशय ग्रीवा के छल्ले कहते हैं। यह योनि की अपेक्षा कम चिकनी होती है। अमदकाल में अवरूधप्रायः अर्थात बन्द जैसी होती है लेकिन मदकाल के समय इसमें थोड़ा सा लचीलापन आ जाने से खुल जाती है। प्राकृतिक संभोग के समय यह योनि से शुक्राणुओं को गर्भाशय तक पहुंचाने में सहायक होती है। गर्भावस्था के दौरान उत्पादित श्लेष्मा ग्रीवा में यह गाढ़े श्लेष्मा को एक प्लग बनाती है। यह गर्भाशय संक्रमण को रोकने में सहायक होती है।
  4. गर्भाशय : गर्भाशय (Uterus) के दो भाग होते हैं – अखण्डी गर्भाशय एवं 2. द्विखण्डी गर्भाशय। मदकाल के समय गर्भाशय में सख्तपन (Tonicity) आ जाता है।
    • अखण्डी गर्भाशय: यह ग्रीवा एवं द्विखण्डी गर्भाशय के बीच अनैच्छिक माँसपेशियों से बना गर्भाशय का सबसे मोटा एवं मुख्य भाग है। ग्रीवा की ओर इसका आकार पतला जबकि अग्रभाग मोटा होता है। यह भाग गर्भाशय को मजबूती प्रदान करता है।
    • द्विखण्डी गर्भाशय : शरीर में अखण्डी गर्भाशय दो भागों में विभाजित हो जाता है जिसे द्विखण्डी गर्भाशय (Uterine horns) कहते हैं।
  5. डिंब वाहिनियाँ (Oviducts): गर्भाशय के द्विखण्डी भागों के दोनों ओर से निकलती है। इनकी लम्बाई लगभग 10 सेंमी. और मोटाई लगभग आधा सेंमी. होती है। डिंब ग्रंथियों की ओर इनका आकार एक कीप (Funnel) की तरह का होता है लेकिन यह डिंब ग्रंथियों से जुड़ा नहीं होता है। इस कीप का अंतिम छोर लंबी-लंबी अंगुलियों की तरफ होता है जिनको झल्लरिका कप (Fimbrial cup) कहते हैं। इनका प्रमुख कार्य डिंब ग्रंथियों से निकले अण्डे को घेरकर उसे डिंबवाहिनियों मे भेजना होता है। यह नलियाँ मांसपेशियों से बनी, तथा इनके अंदर की दीवार एक झिल्ली की बनी होती है जिसको श्लेष्मा झिल्ली (Mucous membrane) कहते है।
  6. डिंब ग्रंथियाँ: इनको अण्डाशय भी कहते हैं। ये द्विखण्डी गर्भाशय के दोनों ओर होती हैं। ये देखने में बादाम के आकार की लगभग 5 से.मी. लम्बी और 2 से.मी. चौड़ी होती हैं। इनके ऊपर ही डिंब वाहिनियों क झल्लरिका कम होते हैं जो अण्डों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। डिंबग्रंथियों का रंग गुलाबी होता है जो आयु बढ़ने के साथ-साथ हल्के सफेद का हो जाता है। वृद्वावस्था में यह सिकुड़कर छोटी हो जाती है। इनका प्रमुख कार्य डिंब (अण्डे) तथा उत्तेजित द्रव और हार्मोन्स बनाना होता है। डिंबग्रंथियों के मुख्य हार्मोन्स एस्ट्रोजन और प्रोजैस्ट्रोन हैं। मदकाल के समय इनमें प्रत्येक 21वें दिन डिंब बनते और मुक्त किये जाते हैं, जो शुक्राणुओं के साथ मिलकर गर्भधारण करते हैं।
और देखें :  पशुपालन से सही लाभ अर्जित करने हेतु आवश्यक है तकनीकी ज्ञान

गाय या भैंस के मद में आने के लक्षण

डेयरी व्यवसाय में उचित लाभ अर्जित करने के लिए गाय व भैंस में मद के लक्षणों की पहचान होना एक अतिआवश्यक कार्य है। यदि मद में आई मादा पशुओं के लक्षण समय पर नहीं पहचाने जाते हैं तो वह 21 दिन तक दोबारा उसके मद में आने का इन्तजार करने के साथ-साथ पशुपालकों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। इसलिए सही समय पर पशु की सही मदावस्था की पहचान अनिवार्य है ताकि गाय/भैंस सही समय पर ग्याभिन हो सके। जब गाय/भैंस मद में आती है तब वह अन्य पशुओं से अलग हो जाती है और खाना-पीना कम (या छोड़) देती है। दुधारू मादाओं का दुग्ध उत्पादन कम हो जाता है। आमतौर पर मद में आई गाय/भैंस रंभाने लगती है लेकिन कुछ मादाओं में रंभाने की प्रक्रिया सुनने को नहीं मिलती है। वह अन्य पशुओं को सूंघती है और योनि से तरल चिपचिपा पदार्थ (जिन्हें आमतौर तारें कहते हैं) निकलने लगता है जो कई आमतौर पर लंबा, पारदर्शी, योनि द्वार से लटकता हुआ दिखायी देता है। योनी के बाह्य भागों में सूजन आ जाती है तथा योनी अंदर से नम व लालिमायुक्त हो जाती है। 12 घण्टे बाद गाय या भैंस दूसरे पशुओं को ऊपर चढ़ने देती है और खड़ी हो जाती है। यह पशु का मद में आने का सही समय होता है। गाय व भैंस में मद में थोड़ा अन्तर होता है। गाय की मदावस्था का समय अधिक और भैंस की मदावस्था छोटी होती है और जल्दी ही खत्म हो जाती है। गायों/भैंसों में अलग-अलग समय में मद के अलग-अलग लक्षण इस प्रकार हैं:

और देखें :  गाय एवं भैंस में मसृणित गर्भ की पहचान एवं उपचार

गाय में मद के लक्षण

लक्षण

मद का प्रथम चरण मद का द्वितीय चरण

मद का तृतीय चरण

समय 0 से 8 घण्टे 8 से 18 घण्टे 18 से 24 घण्टे
खड़े होना/चढ़ना दूसरे पशुओं पर चढ़ना रूकना दूर होना
उत्तेजना शुरू होती है बढ़ जाती है शांत हो जाती है
तौरतरीके बेचैन, दूसरों से अलग पशुओं में जाना चुप होना
रंभाना थोड़ा ज्यादा कभी-कभी
भूख कम नहीं खाती सामान्य
दूध कम कम सामान्य
दूसरे पशुओं से मेल सामान्य ज्यादा कभी-कभी
शरीर की गर्मी थोड़ी अधिक ज्यादा सामान्य
योनी श्राव पानी की तरह साफ, पारदर्शी, पूंछ व कूल्हों पर चिपका हुआ गाढ़ा, रस्सी की तरह लंबा और जाले की भांति मरोड़ीदार कम ही ​दिखाई देती है
योनी द्वार पर सूजन सूजन होती है ज्यादा कम हो जाती है
योनि द्वार के बाल कम सीधे खड़े सीधे खड़े कम सीधे खड़े
पेशाब करना बार-बार बार-बार सामान्य
बच्चेदानी सख्त व कठोर पूरी कठोर कठोरता कम हो जाती है

भैंस में मद के लक्षण

लक्षण

मद का प्रथम चरण मद का द्वितीय चरण

मद का तृतीय चरण

समय 0 से 12 घण्टे 12 से 20 घण्टे 20 से 24 घण्टे
उत्तेजना शुरू होती है बढ़ जाती है शांत हो जाती है
रंभाना कभी-कभी ज्यादा चुप हो जाती है
योनी द्वार सूजन व थोड़ा खुला सूजन ज्यादा व पूरा खूला सूजन कम व सख्त हो जाता है
योनि द्वार के बाल कम सीधे खड़े लगभग सीधे खड़े कम सीधे खड़े  
साँड के करीब होना कम होती है पूरी होती है कम होती है
भूख सामान्य कम सामान्य
योनि स्राव पानी की तरह साफ, पारदर्शी, पूंछ व कूल्हों पर चिपका हुआ गाढ़ा, रस्सी की तरह लंबा और जाले की भांति मरोड़ीदार कम ही ​दिखाई देती है

 

दूध कम कम सामान्य
शरीर की गर्मी थोड़ी अधिक ज्यादा सामान्य

डेयरी व्यवसाय में मादा पशुओं की उत्पादकता उनके द्वारा संतान पैदा करने के साथ-साथ उनके पालन-पोषण पर निर्भर करती है। सही पालन-पोषण होने के बावजूद भी मादा गायध्भैंस का गर्भधारण न हो पाना पशुपालकों के लिए आर्थिक नुकसान का कारण बनता है। गर्भाधान करवाने के बाद यदि मादा गर्भ धारण नहीं होता है तो पशुपालकों को प्रतिदिन कम से कम 50 से 60 रूपये का नुकसान होता है। इस नुकसान से बचने के लिए पशुपालक गाय/भैंस में मद के सही लक्षणों की पहचान करके दूर कर सकते हैं। अतः मादा पशुओं में मद के सही लक्षणों को जानने के लिए पशु पालकों को सवेरे-शाम, पशु-शाला का चक्कर अवश्य लगाना चाहिए और मद में आई मादाओं की पहचान करके उनका गर्भधारण करवाना चाहिए।

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