बैकयार्ड सूकर पालन स्वरोजगार का एक उत्तम उपाय

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सूकर पालन व्यवसाय कम समय में अधिक आमदनी अर्जित करने वाला व्यवसाय है। बढ़ती हुई आबादी के लिए भोजन की व्यवस्था करना  अत्यंत आवश्यक है। भोजन के रूप में  अनाज  एवं मांस,  दूध, मछली,  अंडे आदि का प्रयोग होता है। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं आदिवासी लोग  मुर्गी , गाय, भैंस, बकरी  एवं सूअर  अवश्य पालते हैं  लेकिन  उन्नत नस्ल  तथा उसके वैज्ञानिक तरीके से नहीं पालने  से पूरा लाभ नहीं मिल पाता है। सूअर पालन जोकि अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति के लोगों के जीवन का एक मुख्य अंग है स्वरोजगार के रूप में वैज्ञानिक तरीके से करने से अत्याधिक लाभ कमाया जा सकता है।

2019 की बीसवीं  पशु गणना में सूकरो की संख्या 12.03 फ़ीसदी घटकर 90.60 लाख सूकर हो गई है। सूकर किसी भी अन्य पशु की तुलना में तेजी से बढ़ने वाला पशु है। सूकर अन्य पशुओं की तुलना में कम उम्र पर परिपक्व होने तथा तेजी से प्रजनन करने वाला पशु है। मादा सूअर एक समय में 8 से 14 बच्चों तक को जन्म देती है। एक किलोग्राम  मांस बनाने में  जहां  भैंस आदि  को 10 से 20 किलोग्राम खाना देना पड़ता है  वहां सूअर को  चार से पांच किलोग्राम आहार की आवश्यकता होती है । मादा सुकरी हर छह माह में बच्चा दे सकती है और उसकी देखभाल अच्छे ढंग से करने पर एक बार में 10 से 14 बच्चे लिए जा सकते हैं। सूकरो में कुल उपयोग योग्य मांस और शरीर के कुल वजन का अनुपात अधिक है। एक जीवित सूअर से लगभग 60 से 80% भोजन योग्य मांस प्राप्त होता है। सूअर के मांस में  वसा और ऊर्जा अधिक  तथा पानी कम होता है  जिससे यह मांस  पौष्टिक तथा स्वादिष्ट होता है। पूर्व में देसी नस्ल के शूकर एवं शूकरिया पाली जाती थी परंतु शंकर प्रजनन अर्थात क्रास ब्रीडिंग द्वारा इनकी नस्ल में पर्याप्त सुधार हुआ है तथा आज देसी नस्ल का स्थान क्रॉस ब्रीड प्रजाति के सूकरो द्वारा ले लिया गया है। उत्तम नस्ल का शूकर ही एक ऐसा प्राणी है जो मात्र पांच से छह माह की आयु में 70 से 80 किलोग्राम शारीरिक भार के, उत्तम सुपोषण एवं प्रबंधन की प्रक्रिया के परिणाम स्वरूप हो जाते हैं। यह अपौष्टिक आहार, तथा कृषि जन्य जैव उत्पाद का  उपयोग कर अति पौष्टिक प्रोटीन युक्त मांस में परिवर्तित कर देता है। इस के मांस के उत्पादन में प्रतिवर्ष वृद्धि हो रही है। इसके मांस की मांग में तीव्र गति से उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है तथा निर्यात की मांग में भी वृद्धि हो रही है। इसके लिए डिब्बाबंद मांस के विभिन्न व्यंजन तैयार कर उपलब्ध कराए जा रहे हैं। सूअर के मल का उपयोग मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए खाद के रूप में किया जाता है। सूअर की चर्बी को मुर्गियों के दाने, पेंट, साबुन और रसायनिक उद्योगों में उपयोग किया जाता है। सूअर पालन व्यवसाय प्रारंभ करने के लिए बाड़ा बनाने और उपकरण खरीदने के लिए कम पूंजी निवेश की आवश्यकता होती है। सूअर पालन व्यवसाय छोटे और भूमिहीन किसानों बेरोजगार शिक्षित अथवा अशिक्षित युवाओं और ग्रामीण महिलाओं के लिए आमदनी का एक बड़ा अवसर बन सकता है।

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यह विदेशी मुद्रा अर्जन में भी सहायक है इस व्यवसाय को अपनाने के लिए निम्न बिंदुओं पर ध्यान आवश्यक है।

  1. कम लागत की आवासीय व्यवस्था।
  2. न्यूनतम उत्पादन लागत।
  3. संतुलित पशु आहार
  4. उत्तम नस्लों का चयन।
  5. लाभप्रद बाजारों कीजानकारी।
  6. प्रभावी रोग नियंत्रण।
  7. सुनियोजित प्रबंधन।

व्यवसाय कैसे प्रारंभ करें

अच्छे आवास का निर्माण सर्वप्रथम आवश्यकता होती है। ग्रामीण परिवेश में सस्ते पक्के आवास का निर्माण किया जाता है क्योंकि वहां पर खुली जगह पर्याप्त रूप से उपलब्ध रहती है।

आवास हेतु 7 से 40 वर्ग फिट प्रति पशु विभिन्न आयु एवं शारीरिक भार के अनुरूप आवश्यक होता है इसके अतिरिक्त जच्चा बच्चा सेड, बच्चों के लिए शेड तथा सूकर बाड़ा  का निर्माण चरही के साथ किया जाता है। आवास हवादार प्रकाश युक्त तथा सफाई के उद्देश्य से पक्के फर्श का निर्माण अति आवश्यक है। आवास में ही जल प्रबंध की भी उचित व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए। 5 से 20 लीटर जल प्रति पशु की आवश्यकता विभिन्न आयु एवं शारीरिक भार के अनुरूप होती है।

उत्तम नस्ल के पशुओं का चयन

इसमें लार्ज वाइट  यॉर्कशायर एवं मिडिल वाइट यॉर्कशायर, लैंड रेस तथा शंकर नस्ल के पशुओं की ही खरीद सूकर पालन व्यवसाय में की जानी चाहिए।

उत्तम आहार व्यवस्था

सूअर पालन का सबसे महत्वपूर्ण घटक आहार है। क्योंकि पशु का विकास उसका उत्पादन और स्वास्थ्य उच्च गुणवत्ता और पौष्टिक आहार खिलाने पर निर्भर करता है। आहार तैयार करने के लिए सबसे किफायती सामग्री का चयन करना चाहिए। शूकर आहार की मूल सामग्री जई, मक्का, गेहूं, चावल और बाजरा है। कुछ प्रोटीन सप्लीमेंट्स जैसे कि आयल केक, फिश मील, और मीट मील भी सूअर के आहार में उपयोग कर सकते हैं। सूअर के आहार में सभी प्रकार के खनिज लवण और विटामिन शामिल कर सकते हैं। विभिन्न आयु वर्ग के सूअरों को अलग अलग रखें और उनकी उम्र और वजन के अनुसार उन्हें आहार दें। पौष्टिक आहार खिलाने के साथ-साथ उन्हें हमेशा पर्याप्त मात्रा में स्वच्छ और ताजा पानी पिलाएं।

चरही का निर्माण शूकर बाड़ो़ में  10 इंच चौड़ी 20 इंच लंबी बड़े पशुओं के लिए तथा 12 से 14 इंच लंबी छोटे बच्चों के लिए प्रति पशु के अनुरूप किया जाता है तथा आहार हेतु ढाई सौ ग्राम से ढाई किलो पौष्टिक आहार प्रति पशु विभिन्न आयु एवं शारीरिक भार हेतु दिया जाता है। दूध देने वाली सुकरियों को 500 ग्राम दाना प्रति पशु प्रतिदिन 60 दिन तक दिया जाता है। इसके अतिरिक्त हरा पोस्टिक चारा बरसीम, रिजका एवं गोभी के पत्ते तथा हरी सब्जियों का बाजार अपशिष्ट, आलू तथा रेस्टोरेंट वेस्ट आहार भी खाने में दिया जाता है।  बच्चों को 30 से 60 दिन तक मां के दूध का सेवन कराया जाता है।तत्पश्चात बच्चों को मां से अलग शिशु आहार पर रखाजाता है। आहार की मात्रा 50 से 100 ग्राम प्रति पशु से प्रारंभ कर धीरे-धीरे बढ़ाकर 500 ग्राम प्रति पशु तदोपरांत एक किलोग्राम से डेढ़ किलोग्राम प्रति पशु वयस्क होने की अवस्था तक दिया जाना चाहिए।

15 किलोग्राम शारीरिक भार तक शिशु आहार तथा 15 किलोग्राम से 45 किलोग्राम शारीरिक भार तक बढ़वार राशन पौष्टिक आहार के रूप में दिया जाना चाहिए।

प्रजनन

सूअर की प्रजनन प्रक्रिया अत्यंत आसान और सरल है। नर और मादा सूअर लगभग 8 महीने की उम्र में प्रजनन योग्य हो जाते हैं। इस समय में लगभग 100 से 120 किलोग्राम  वजन तक पहुंच जाते हैं। मादा सूअरी के गर्मी में आने की अवधि 2 से 3 दिनों तक होती है। प्रजनन से 7 से 10 दिन पहले एक अच्छा उत्पादक राशन मादा सूअर को खिलाया जाता है जिससे उसमें अंडछरण की दर मैं वृद्धि होती है।वयस्कता प्राप्त होते ही मादा पशु गर्मी में आती है जिसको उत्तम नस्ल के नर पशु के संसर्ग मैं लाकर प्राकृतिक गर्भाधान कराया जाता है। गर्वित पशु का गर्भकाल 114 से 118 दिनों तक होता है। गर्वित मादा पशुओं को अलग रखा जाता है तथा उनकी समुचित देखभाल बच्चा देते समय की जाती है। प्रजनन के बाद  गर्भावस्था के अंतिम 6 सप्ताह  तक एक सीमित  लेकिन अच्छी  गुणवत्ता का संतुलित आहार खिलाया जाना चाहिए। बच्चों को मां के दूध का सेवन 30 से 60 दिन की आयु तक कराया जाता है वैसे 30 दिन के उपरांत बच्चों की वीनिंग की जा सकती है तथा उन्हें सपरेटा दूध या शिशु आहार दिया जाता है।

और देखें :  सूअर पालन की पूरी जानकारी और महत्व

रोग नियंत्रण

  1. संक्रामक रोग जैसे स्वाइन फीवर, गलाघोंटू, खुरपका- मुंहपका के विरुद्ध प्रति रक्षात्मक टीकाकरण पशु चिकित्सक द्वारा कराना चाहिए।
  2. काकसीडिओसिस तथा अंत:परजीवीयों से बचाव हेतु समय-समय पर औषधि पान कराते रहना चाहिए।
  3. प्रजनन में उपयोग आने वाले सूअरों को प्रयोग में लेने से पहले उनका ब्रूसेलोसिस और लैपटोपायरोसिस का परीक्षण किया जाना चाहिए।
  4. सूकरो को रोग मुक्त फार्म से क्रय किया जाना चाहिए।
  5. नए खरीदे गए सूकरो तो 3 से 4 सप्ताह की अवधि के लिए फार्म में अन्य सूकरो से अलग रखना चाहिए।
  6. किसी भी आगंतुक को फार्म में जाने की अनुमति नहीं देनी चाहिए।

सूकर पालन व्यवसाय के लिए एक नर तथा पांच मादा सूकरियों की  एक यूनिट मानी जाती है। अति-पिछडे, भूमिहीन एवं गरीब पशुपालकों के लिए बैकयार्ड शूकर पालन प्रस्ताव आय का एक महत्वपूर्ण साधन है। शूकर पालन लघु एवं सीमान्त कृषकों के लिए भी एक महत्वपूर्ण आय का स्रोत होने के साथ-साथ पोषण सुरक्षा प्रदान करने तथा सामाजिक स्थिति को मजबूत करने में भी सहायक है। शूकर पालन से प्राप्त होने वाली कार्बनिक खाद, सडी गोबर की खाद्ध मिट्टी की उर्वरा शक्ति और फसल की उपज बढ़ाने के लिए उत्तम जैविक स्रोत है। शूकर पालन कम लागत एवं कम समय में अधिक आय प्राप्त करने का उत्तम व्यवसाय है।

05 मादा शूकरी एवं 01 नर शूकर के पालन में होने वाले लाभ व्यय की गणना

A प्रारम्भिक खर्च लागत (In Rs.)
1 शूकर बाडा़ बनाने में अनुमानित खर्च
1 नर शूकर हेतू बन्द जगह @ 7m² , 5 फैरोईंग पेन @7m², 50 वीनर पिगलेट्स @1.5 m² = 1X7+5X7+50X1.5= 49.5 m² कुल बन्द/कवर्ड क्षेत्रफल 117 m2 @ Rs. 117000
i) शूकर बाडा़ बनाने में खर्च 117000.00
2 शूकर क्रय में खर्च परिवहन व्यय सहित

05 मादा एवं 01 नर यार्कशायर/लैंडरेस/संकर नस्ल का अपने घर के पिछवाडें में बैकयार्ड फार्मिंग के द्वारा पालन किया जायेगा, जिससे प्रार्थी के जीविकोपार्जन एवं आर्थिक आय का उचित माध्यम प्राप्त होगा।

i) 05 मादा शूकरी एवं 01 नर शूकर की खरीद

  • 05 मादा शूकरी की खरीद एवं परिवहन में व्यय (@Rs. 8000 प्रति मादा शूकरी 5X 8000= Rs. 40000)
  • 01 नर शूकर की खरीद एवं परिवहन में व्यय (@Rs. 10000 प्रति मादा शूकरी 1X 10000= Rs. 10000)
50000.00
3 मशीनरी एवं औजार के क्रय में अनुमानित खर्च 15000.00
  कुल प्रारम्भिक लागत (1+2+3) 182000.00
B वित्तीय योजना  
  बैंक लोन 150000.00
  मार्जिन मनी 32000.00
  Total 182000.00
C खर्च अथवा व्यय विवरण  
1 फिक्स्ड मद में खर्च  
i) बैंक की ब्याज 10.00 प्रतिशत वर्षिक की दर से 15000.00
ii) भवन अथवा बाडे में 5.00 प्रतिशत वार्षिक दर से मूल्य हरास 5850.00
iii) औजार एवं मशीनरी में  15.00प्रतिशत वार्षिक दर से मूल्य हरास 2250.00
  वार्षिक बीमा  प्रीमियम / 4.00 प्रतिशत वार्षिक 2000.00
  कुल फिक्स्ड मद में खर्च 25100.00
2 वैरियेबल खर्च

  • स्थानीय स्तर पर उपलब्ध सामाग्रियों, रसोई घर के कचरे एवं होटल से फीड घटक की चीजें प्रयुक्त की जायेंगी, जिसमें अनुमानित रू. 10,000 का खर्च होगा वार्षिक
  • 05 मादा शूकरी के खाने में लगने वाला औसत फीड @ 1 kg/day /pig for 365 days = 1825 kg
  • 01 नर शूकर के खाने में लगने वाला औसत फीड @ 2.5 kg / day / boar for 365 days = 1825 kg
  • औसत 40 पिगलेट्स @ 0.5 kg / piglet for 180days = 3600 kg
  • कुल आवश्यक आहार की मात्रा  = 72.50 qtls
 
i) स्थानीय स्तर पर उपलब्ध सामाग्रियों में लगने वाली लागत 10000.00
ii) कुल आहार क्रय करने में लगने वाली लागत @ Rs.3000/qtl. = 72.50 X 3000 217500.00
iii) विविध खर्च जैसे विद्युत, दवा एवं टीकाकरण आदि 10000.00
  कुल वैरियेबल खर्च 237500.00
  कुल खर्च (1+2) 262600.00
D आय प्राप्ति  
1 पिगलेट्स की 6माह की उम्र में बिक्री से अर्जित आय 70 किग्रा. वजन @ Rs. 150/kg (40x70x150) 420000.00
2 खाद की बिक्री से प्राप्त आय, अनुमानित 5 ट्रैक्टर-ट्राली @ Rs.400/trolley 2000.00
3 खाली बैग की बिक्री से प्राप्त आय @ Rs. 10/bag 1450.00
  Total returns/ annum 423450.00
E प्राप्ति /आय प्रति वर्ष – (कुल प्राप्ति – कुल वैरियेबल खर्च ) 186450.00
F शुद्ध प्राप्ति /आय प्रति माह 15537.00
G शुद्ध प्राप्ति /आय प्रति शूकर प्रति वर्ष 31075.00

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