दुधारू पशुओं का प्रजनन प्रबंध डेयरी व्यवसाय की सफलता का मूल मंत्र

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दुधारू पशुओं के समुचित प्रजनन प्रबंध के बिना डेयरी व्यवसाय में लाभ कमाना मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव है।डेयरी व्यवसाय मे सफल प्रजनन व्यवस्था का , अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है, पशुशाला में रहने वाले वयस्क पशुओं में से अधिकाधिक संख्या समयानुसार गर्वित  होकर सामान्य तथा स्वस्थ बच्चे को जन्म देती रहे तभी दूध उत्पादन का क्रम निरंतर चलता रह सकता है तथा पशुपालक डेयरी व्यवसाय से नियमित आय भी प्राप्त कर सकता है। आज के परिवेश में दुधारू पशुओं के प्रजनन संबंधी बढ़ती समस्याएं पशुपालकों के लिए विकराल समस्या बनती जा रही है क्योंकि पशुओं में प्रजनन क्षमता में कमी से उनके दूध उत्पादन पर सीधा असर पड़ रहा है इसके कारण पशुपालकों को काफी आर्थिक हानि उठानी पड़ती है, यह नितांत आवश्यक हो जाता है कि पशुपालकों को पशु प्रजनन के संबंध में अधिकाधिक जानकारी हो ताकि वे स्वयं अपने स्तर पर समस्याओं से बचाव/ समाधान कर सके।

प्रथम बार गर्वित करने का समय

पशुओं में न केवल आयु से वरन शरीर के वजन विशेष पर पहुंचकर ही शुक्राणु और डिंब की उपज प्रारंभ होती है। इस प्रकार उचित आहार  व्यवस्था से यौवनावस्था पहले भी हो सकती है। यौवनावस्था के समय संकर नस्ल की बछिया का वजन 250 किलोग्राम तथा भैंस का वजन 300 किलोग्राम होना चाहिए।

इस बात का विशेष ध्यान रखें कि मात्र यौवनारंभ ही पशु समागम के लिए अनुकूल नहीं है इसके लिए पशु को शारीरिक रूप से भी परिपक्व होना चाहिए।

प्राय भैंसों को 3 वर्ष की आयु तक एवं संकर नस्ल की बछियों को 18 से 20  महीने व की आयु में गर्वित हो जाना चाहिए। मादा पशुओं का सही उम्र पर गर्वित होकर स्वस्थ बच्चे को जन्म देना तथा दो-तीन महीने के अंदर दोबारा गर्वित होकर इसी प्रक्रिया से गुजरना उसकी अच्छी प्रजनन क्षमता को दर्शाता है। इस प्रकार एक व्यात से दूसरे व्यात का अंतराल १२ से १३ महीने होना चाहिए वास्तव में सफल डेअरी व्यवसाय का रहस्य इसी तथ्य में तथ्य में निहित है कि उसके दुधारू पशु साल दर साल बच्चा देते रहे। लेकिन यदि किन्ही कारणवश पशु प्रजनन क्षमता पूर्ण न होने की दशा में यह अंतराल काफी बढ़ जाता है तो व्यवसाय को आर्थिक हानि की संभावना भी बढ़ जाती है।

और देखें :  दुधारू पशुपालकों की आमदनी निर्धारित करती फैट की मात्रा एवं उससे जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

मादा पशु सामान्यता एक निश्चित समय पर 21 दिन के अंतर में गर्मी या मदकाल में आती है। मदकाल का समय लगभग 24 से 36 घंटे रहता है। मदकाल के समय मादा नर को संभोग करने के लिए अनुमति देती है। कृत्रिम गर्भाधान भी उसी समय कराया जाता है।मदकाल के मध्य समय से आखरी एक तिहाई समय में पशुओं का गर्भाधान कराना सफल प्रजनन हेतु अत्यंत आवश्यक है। एक ही समय पर कई बार गर्वित कराना प्रायः निरर्थक होता है। समयानुसार निश्चित अंतराल पर गर्वित कराने से ही शुक्राणुओं वह अंडे के मिलने व निषेचन की संभावनाएं प्रबल होती हैं।

प्रत्येक पशुपालक को मदकाल या गर्मी में आने के सामान्य लक्षणों से अवगत होना नितांत आवश्यक है ताकि वह अपने पशुओं को समय पर गर्वित करवा सकें।

मादा पशुओं में मदकाल के मुख्य लक्षण

  • मदकाल में गाय का जोर जोर से चिल्लाना।
  • मदकाल में आया पशु दूसरे पशुओं पर चढ़ता है या चढ़ने की कोशिश करता है।
  • पशु चारा कम खाता है। दुधारू पशु मदकाल के समय दूध कम देता है।
  • इस अवस्था में पशु अपेक्षाकृत अधिक उत्तेजित रहता है पशु बार-बार पूछ हिलाता है व अक्सर पूछ का कुछ भाग ऊपर उठा कर रखता है।
  • पशु बार-बार मूत्र त्याग करता है।
  • पशु डोका करता है इस स्थिति में पशु के थन दूध उतरने की स्थिति जैसे लगते हैं परंतु इनमें दोहन पर दूध नहीं निकलता है।
  • गर्मी की अवस्था में पशु का योनि द्वार सूजा हुआ या उठा हुआ मिलेगा।
  • योनि से पारदर्शक या हल्का सफेद रंग का लेसदार सराव गिरता है जो कि पशु की पूछ या पिछले हिस्से पर लगा हुआ देखा जा सकता है। योनि द्वार की झिल्ली  गुलाबी रंग की दिखाई देती है।
  • गर्मी में मादा पशु सांड को स्वीकार करती है।
  • पशु के तापमान में वृद्धि हो जाती है।
और देखें :  डेयरी पशुओं में शुष्क काल प्रबंधन का महत्व

पशुपालकों को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि जरूरी नहीं कि सभी पशु गर्मी के समय उपरोक्त दिए गए लक्षणों को प्रकट करें। विशेषत: जो पशुपालक पशुओं में गर्मी की ठीक से पहचान नहीं कर पाते वह समय पर गर्भाधान नहीं कराते हैं उनके पशुओं के पहले बयात की आयु अधिक हो जाएगी इसी तरह एक बयात से दूसरे बयात के अंतर का समय भी बढ़ जाएगा। इसके परिणाम स्वरूप गाय काफी समय तक बिना दूध दिए खड़ी रहती है। उसके पूरे जीवन काल में बच्चों की संख्या कम तथा कुल दुग्ध उत्पादन की मात्रा भी कम हो जाती है। जिससे पशुपालकों को बहुत आर्थिक हानि होती है। अतः गर्मी की सही पहचान बहुत जरूरी है । गर्मी की सही व समय पर पहचान मात्र से ही गर्वित दर 20 से 25% तक बढ़ जाती है।

पशुपालकों को आज विभिन्न प्रकार की पशु प्रजनन से संबंधित समस्याओं से जूझना पड़ रहा है जो निम्नवत है:

1. पशुओं में अमादकता:  इसमें पशुओं की डिंब ग्रंथियां कार्यशील नहीं होती तथा पशु गर्मी में नहीं आता है।

2. पशु में फिरावट की समस्या: ऐसी गाय जो कि 3 बार नैसर्गिक  अथवा कृतिम वीर्य दान के बाद भी न ठहरे तो उसे  फिरावट हुई मानी जाती है।

3. बांझपन पशु में दो प्रकार का होता है:

  • अस्थाई बांझपन या अनुउर्वरता/ इनफर्टिलिटी।
  • स्थाई बांझपन या बंधता/ स्टेरलिटी।
और देखें :  दुधारु पशुओं में बांझपन, कारण तथा प्रबंधन

4. .पहले व्यात के समय अधिक आयु

5. एक बयात से दूसरे बयात में अधिक अंतर।

इन समस्याओं के प्रमुख कारण निम्न है

1. पशु के प्रजनन अंगों में दोष

2. हारमोनो का सही मात्रा एवं अनुपात में ना होना

3. जनन अंगों में होने वाली बीमारियां

4. कुपोषण -पशु आहार में पोषक तत्वों की उचित मात्रा तथा सही अनुपात में ना होना

5. अधिक गर्मी या सर्दी का प्रकोप

6. पशुओं की उचित देखभाल व प्रबंध में  कमी।

संदर्भ:

  1. टेक्स्ट बुक ऑफ एनिमल हसबेंडरी द्वारा जी सी बनर्जी
  2. ट्रेनिंग प्रोग्राम इनफर्टिलिटी मैनेजमेंट मैनुअल द्वारा मादा पशु रोग एवं प्रसूति विज्ञान विभाग दुवासु मथुरा उत्तर प्रदेश

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