एकीकृत कृषि प्रणाली में बकरी पालन, प्रबंधन एवं आर्थिक विश्लेषण

4.6
(22)

बकरी एक बहुउद्देशीय पशु है जो कि भारत के सभी भौगोलिक क्षेत्रों मे निर्बल, भूमिहीन, कृषि श्रमिक, किसान एवं आर्थिक रूप से पिछड़ी जातियों और सीमान्त कृषकों की जीवन शैली और आकांक्षाओं के साथ बहुत निकट से जुड़ी हुई हैं। आर्द्र वर्षा, प्रचुर वन प्रदेश और शुष्क मरूस्थल क्षेत्रों में बकरियां सरलता से रह रही है। इसी कारण वह प्राचीन काल से मानव जाति की सहचर है। अपने छोटे आकार के कारण इसे गरीब कि गाय भी कहा जाता है। यह निर्बल वर्ग के परिवारों हेतु जीवन निर्वाह का एक सार्थक साधन रही है।

बकरी पालन से महत्वपूर्ण लाभ

  • बकरी पालन व रखरखाव पर प्रारम्भिक खर्च बहुत कम होता है और हानि की संभावना भी कम होती है।
  • बकरी पालन से प्राप्त आहार जैसें की मांस, दूध, महत्वपूर्ण पशु प्रोटीन स्त्रोत है।
  • बकरी पालन से अवैतानिक पारिवारिक श्रम का प्रभावी उपयोग कर रोजगार के नए अवसर उपलब्ध होते है।
  • बकरियां भूमि में मलमूत्र की वापसी कर प्रक्षेत्र उर्वरता स्तर बनाए रखती है।
  • बकरी, मेमने जनने के लिए जल्दी तैयार हो जाती है तथा साल में दो बार बच्चे जन्म देती है।
  • बकरी पालन में कोई भी सामाजिक बाधा नहीं है इसी कारण इनके उत्पादों के विपणन में कोई दिक्कत नहीं आती।
  • बकरी पालन व्यवसाय शुरू करने के लिए कम पूँजी की आवश्यकता होती है इसलिए कोई भी बेरोजगार युवक व किसान इस व्यवसाय को शुरू कर सकता है।
  • बकरी आकार में छोटे और स्वभाव से शांत प्रकृति के होते है।

बकरी पालन की प्रबंध पद्धतियाँ

बकरी पालन की मुख्यतः 5 प्रबंध पद्धतियाँ है।

  1. खूंटे से बांधकर पालनाः यह बकरी पालन की परंपरागत पद्धति है। इसमें एक साथ दो या तीन बकरियों को एक बडी रस्सी द्वारा चराई वाले क्षेत्र मे एक खूंटे के साथ बांध देते है। इसमें बकरियों सीमित परिधि में घूम-घूम कर चरती है। चराई पूरी हो जाने पर अन्य अधिक वनस्पति अथवा घास क्षेत्र में सुविधानुसार ले जाते है। इस विधि मे बकरी पर पूर्ण नियंत्रण रहता है और बकरियां इधर-उधर जा कर नुकसान नहीं कर पाती है।
  2. विस्तृत पद्धतिः यह पद्धति बीहड़ एवं अनुपजाऊ भूमियों में काफी प्रचलित है। इसमें बकरियां समूह में खुले मैदान में दिन भर चरती रहती है। शाम को चरवाहे इन्हें वापस लाकर बाडे में छोड देते है। इसमें श्रम एव लागत कम लगती है।
  3. अर्धसघन पद्धतिः यह पद्धति सघन एवं विस्तृत पद्धति के बीच को पद्धति है। इसमें दिन के कुछ घंटों 4-6 के लिए बकरियों को चरने हेतु बाहर भेज दिया जाता है और वापस आने पर उनको अतिरिक्त हरा चारा एवं दाना मिश्रण सीमित मात्रा में खिलाने की व्यवस्था रहती है इसमें बकरियां अच्छा उत्पादन करती है। जिससे आपेक्षित लाभ होता है।
  4. सघन पद्धतिः यह पद्धति उन क्षेत्रों के लिए उपयोगी है जहां चारागाह के रूप में भूमि की उपलब्धता न के बराबर है। इसमें चराई प्रतिबंधित रहती है एवं बाडो में रखकर उनका पालन पोषण किया जाता है। इस पद्धति में बकरी को सस्ते एवं पौष्टिक आहार खिलाकर अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इस पद्धति में मानव श्रम की अधिक आवश्यकता पडती है एवं चारा, दाना बाडा बनाने की व्यवस्था करने में अधिक खर्च आता है।
  5. समन्वयित बकरी पालनः हमारे देश में कृषि वानिकी के साथ बकरी पालन का समन्विकरण एक नये और आधुनिक विकल्प के रूप में सामने आया है। इस पद्धति में अपेक्षाकृत कम उपजाऊ भूमि पर घास, झाडियां व बडे चारे व वृक्ष लगाये जाते है जिसे तीन स्तरीय पद्धति कहते है। इसमें पूरे वर्ष हरा चारा मिलता है। इसमें चारा वाली घासों को छोटे एवं बडे चारा वृक्षों के मध्य लगाया जाता है। इनकी समुचित वृद्धि हो जाने पर बकरियों को इसमें स्वतंत्र छोड दिया जाता है। जहां वे चरकर व झाड़ियों व वृक्षों के पत्ते खाकर अच्छा प्रोत्साहन मिलेगा जिसका पर्यावरण संरक्षण में विशेष महत्व है। बकरियों का सस्ता एवं उचित पोषण मिल जाता है उन क्षेत्रों में।
और देखें :  उत्तर प्रदेश के विंध्यांचल क्षेत्र में पाली जाने वाली सोनपरी बकरी के लक्षण

विभिन्न पद्धतियों में बकरियों की आहार व्यवस्था

  • सघन पद्धति: 4-8 घंटे चराई- 50 ग्राम दाना मिश्रण प्रति बकरी
  • अर्द्धसघन पद्धति: 4 घंटे चराई- हरा चारा स्वेच्छानुसार, 100-ग्राम दाना प्रति बकरी
  • सघन पद्धति: दाना व चारा स्वेच्छानुसार

बकरीयों की उन्नत नस्लेंः हमारे देश में बकरीयों की उन्नत नस्लों में जमुनापारी, बरबरी, सिरोही, बीटल, ब्लैक बंगाल, ओसमानाबादी नस्लें प्रमुख हैं। जिन्हें दुग्ध व मांस उत्पादन के उद्धेष्य से पाला जाता है।

बकरी पालन

बकरियों की आहार व्यवस्था-बकरी पालन में आहार व्यवस्था का बहुत महत्व है उनका आहार संतुलित होना आवष्यक है, जिससे उनकी शारीरिक एवं उत्पादकता में वृद्धि होती रहती है।

(अ) बकरियों हेतु चारे की मात्रा

क्रमांक

आयु वर्ष (महीने में)

हरे चारे/पत्तियों की मात्रा (कि.ग्रा.)

1

6 महीने की उम्र तक स्वेच्छानुसार

2

6-9 2-2.5

3

9-12 3-3.5

4

1-2 3.5-4

5

2 साल से ऊपर 4-4.5

हरे चारे के साथ 500 ग्राम सूखा दलहनी भूसा भी देना चाहिए ।

(ब) बकरियों हेतु दाना मिश्रण

बकरियों को दाना मिश्रण उनकी आयु व उत्पादन की दशा को ध्यान में रखकर देना चाहिये। दाना मिश्रण में प्रोटीन, उर्जा व खनिज तत्वों का पर्याप्त मात्रा में समावेश होना चाहिये जो कि उचित वृद्धि व उत्पादन हेतु आवश्यक है। दाने मिश्रण में 15 प्रतिशत तक कच्ची प्रोटीन व 70-75 प्रतिशत कुल पाच्य पोषक उपस्थित रहना आवश्यक है।

कम उम्र की बकरियों हेतु दाना मिश्रण की आवश्यकता

क्रमांक

आयु वर्ष (महीने में)

ग्राम/बकरी/प्रतिदिन

1

0-1 स्वेच्छानुसार

2

2-3 200-250

3

3-6 250-300

4

6-9 300-350

5

9-12 350-400

सूखी बकरी तथा वयस्क बकरे-200-250 दाना/पशु/दिन

दूध देने वाली बकरियां-400 ग्राम/प्रति कि.ग्रा. दूध

निर्वाह राशन

गर्भित बकरियां: गर्भकाल के अंतिम महीने मे 400-500 ग्राम दाना मिश्रण प्रतिदिन प्रति बकरी निर्वाह राशन, इससे गर्भाशय में बच्चे की अच्छी बाड़ि़यों एवं छोटे वृक्षों की पत्तियों की पिछली टांगो पर खड़े होकर खाना अत्यंत प्रिय है। ऐसा देखा गया है कि बकरी चारगाह में औसतन 70 प्रतिशत समय पत्ते व झाड़ियो को खाने में व्यतीत करती है। पेड़ों के पत्ते झाड़ियों एवं चारागाह में मिलने वाली घास में पोषक तत्वों की मात्रा अपेक्षाकृत कम होती है जो कि सिर्फ निर्वाह के लिये उपयुक्त होती है। अतः उत्पादन हेतु बकरियों को अतिरिक्त दाना मिश्रण एवं उचित प्रकार के चारे आदि दिये जाने चाहिये।

बकरियों के आहार स्त्रोंतो को मुख्यतः पांच भागों मे विभाजित कर सकते है

  • अनाज वाली फसलों से प्राप्त चारे- ज्वार, बाजरा, मक्का, जई आदि।
  • फलीदार हरे चारे- बरसीम, लोबिया, रिजका आदि।
  • पेड पौधे की पत्तियां- मैदानी क्षेत्रों में- बरगद, गूलर, पीपल, जामुन, बेर, सूबबूल आदि।
  • पेड़ पौधों की फलियां-बबूल, खैर, खेजड़ी आदि।
  • विभिन्न प्रकार की घास- अंजन, नेपियर/हाथी घास, गिनी घास इत्यादि।

बकरियों का प्रबंध

अ. प्रजनन काल के दौरान: 15 दिन पूर्व इन बकरियों को निर्वाह चारा के अतिरिक्त 300-500 ग्राम दाना प्रति दिन बकरी खिलाते है, जिससे वे सही समय पर ऋतु में आ जाये।

गाभिन करवाने का उचित समयः बच्चे जब पैदा हो तो जलवायु समकालीन हो अर्थात अधिक ठंड एव बारिश न हो एवं उचित मात्रा में चारा एवं अन्य खाद्य पदार्थ उपलब्ध हों। इससे मेमने का स्वास्थ्य अच्छा होगा एवं मृत्यु दर कम होगी। अगस्त से नवम्बर में बच्चे पैदा होने का उपयुक्त समय है।

ब. गर्भित बकरी की देख रेख

  • गर्भकाल मे अंतिम माह में निर्वाह राशन के अतिरिक्त 300-500 ग्राम दाना प्रति बकरी दिया जाता है। इससे बच्चे कमजोर नहीं पैदा होंगे तथा दूध की भी उचित मात्रा प्राप्त होगी।
  • एक सप्ताह पूर्व से उन्हें चरने के लिये नहीं भेजना चाहिये। ऐसा करने से बाडे मे देखभाल ठीक से हो जाती है।
  • उनको साफ सुथरे नमी रहित आवास में रखना चाहिये।
  • बकरों से दूर रखना चाहिये।
  • गर्भित बकरी को प्रसूति बाड़े में प्रबंध कर रखना चाहिये।
और देखें :  पशुओं में एसपाईरेट्री/ ड्रेंचिंग न्यूमोनिया: कारण एवं निवारण

स. ब्याने के पश्चात् सावधानियां

  • ब्याने के बाद थन एवं पिछले हिस्से को धोकर साफ कपड़े से पोंछ देते है।
  • रेचक मिश्रण 4-6 दिन तक पिलाना चाहिये इससे पेट साफ होता है। मात्रा 100-150 ग्राम प्रति बकरी प्रति दिन।
  • दूध पूर्ण हस्त विधि अथवा चुटकी विधि से निकालना चाहिये।

द. नवजात बच्चे की देख रेख

  • जन्म के बाद साफ कपड़े से पोंछ देना चाहिये मुंह में उंगली डालकर जमी हुई श्लेष्मा झिल्ली निकाल देना चाहिये।
  • नाल को काटकर बांध देवे और टिंचर आयोडीन के घोल से अच्छी तरह से डुबो कर उपचारित करें।
  • बकरी के ब्याने के 1 घन्टे के अन्दर खीस पिलाना चाहिये।
  • बधिया करना- 7-15 दिन।
  • सींग रोधन- 5-15 दिन।

बकरी के बच्चों की प्रथम तीन माह में आहार व्यवस्था

क्रमांक

आयु (दिनों में) खिलाने की दर प्रति दिन दूध (मिली लीटर) स्टार्टर दाना मिश्रण (ग्राम)

हरा चारा चराना

1

0-4 मादा के साथ खीस

2

5-7 4 बार 500-700 भरपेट भरपेट

3

8-30 4 बार 500-700 60-100 भरपेट

4

31-60 3 बार 400-500 100-200 भरपेट

5

60-90 2 बार 300-400 200-400 भरपेट

बकरियों में जनन व्यवहार

प्रत्येक बकरी पालक को जनन व्यवहार के विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी रखना आवश्यक है। इनकी अज्ञानता से उपयुक्त समय पर प्रजनन न होने से उत्पादन क्षमता में कमी आती है। तथा विकास की गति धीमी पड़ने की संभावना रहती है।

  • व्यस्क आयु अर्थात जब नर में शुक्राणु व मादा में डिम्ब के पहले पहल निकलने की आयु 6-8 माह।
  • परिपक्व आयु अर्थात जब जनन अंग पूर्णतः विकसित हो जाते है और प्रजनन हेतु उपयुक्त 15-18 माह।
  • मद चक्र तथा मदकाल: 30 घंटे (12-48 घंटे) छोटे व मध्यम आकार की भारतीय नस्लों में मदकाल के लक्षण पाये जाते है।
  • ठंडी जलवायु की बकरियों मे सामान्यतः शरद एवं बसंत ऋतु में।
  • गर्भधारण की अवधि: औसत 150 दिन (145-155)
  • संतान उत्पत्ति की आयुः 3-5 वर्ष इसके बाद क्षमता धीरे-धीरे कम होने लगती है। इसलिये 6 वर्ष की आयु के पश्चात् बकरी का विक्रय कर देना चाहिये।
  • खुला बाड़ा- शुष्क स्थानों के लिये उपयुक्त है।

विभिन्न आयु वर्ग की बकरियों हेतु बाडे़ में स्थान की आवश्यकता

क्रमांक

बकरियों की श्रेणी

फर्श की आवश्यकता

1

व्यस्क बकरियां 1.25-1.55

2

दुधारू एवं ग्याभन बकरियां 2.0

3

बकरे 2.0

4

7 से 90 दिन की आयु के बच्चे 0.5-0.6

5

3 से 6 माह की आयु के बच्चे 0.7-0.9

6

6 से 12 माह की आयु के बच्चे 1.0

रोग एवं उनकी रोकथाम

डिवार्मिंग- अंतः परजीवी से बचाने के लिये प्रत्येक माह के अंतर पर
डीपिंग- बाहा्र परजीवी से बचाने के लिये
टीकाकरण- इन्टरोटाक्सीमिया
खुरपका मुंहपका- पहला टीका 3 माह की उम्र पर, बुस्टर खुराक
गल घोटू- 14 दिन के बाद तत्पश्चात् प्रत्येक वर्ष

बकरियों की लघु इकाई हेतु आय-व्यय/ आर्थिक विश्लेषण
(25 बकरियों एवं 1 बकरे हेतु)

  1. स्थायी पूंजी

अ. बकरियों की कीमत 3000 प्रतिनग × 25 बकरियां = रू.75000
ब. बकरे की कीमत 5000 × 1 = रू.5000
स. घांस- फूंस एवं बल्लियों से बने आवास
15 व फु./बकरी × 100/ व.फु. × 25 बकरियां = रू.37500
द. खाने पीन के बर्तन एवं अन्य उपकरण = रू.2500
कुल व्यय = रू.1,20,000

  1. अस्थायी पूंजी

अ. चारे की कीमत
(2 कि.ग्रा./बकरी×25× 120 दिन × 2 प्रति कि.ग्रा.) = रू. 12000
ब. दाने की कीमत
(250 ग्रा.×26× 120 दिन × 15 प्रति कि.गा्र.) = रू. 11250
स. मेमनों के लिये 2 से 6 माह तक दाने की मात्रा
(100 ग्रा. प्रतिदिन × 50 मेमने × 120 दिन × 15 प्रति कि.ग्रा. = रू. 9000
द. मेमनों के लिये 6 से 9 माह तक दाने की मात्रा
(250 ग्रा. प्रतिदिन × 50 मेमने × 90 दिन × 15 प्रति कि.ग्रा.) = रू.16875
इ. बिजली पानी एवं दवा हेतु 25/75 वयस्क/माह× 15 माह = रू. 28125
फ. बीमा राशि 13.5% पशुओं की कीमत का 15 माह के लिए = रू.10800
कुल व्यय = रू. 88050

  1. मूल्य ह्रास
और देखें :  बकरियों को होने वाले मुख्य रोग, उनकी पहचान एवं उपचार कैसे करें

अ. आवास की कीमत 10 प्रतिशत वार्षिक से 15 माह के लिये = रू.4700
ब. उपकरणों की कीमत का 10 प्रतिशत वार्षिक से 15 माह के लिये = रू.1000
स. बकरियों की कीमत का 15 प्रतिशत वार्षिक से 15 माह के लिये = रू.16000
कुल = रू. 21700

  1. इकाई की कुल लागत (2+3) रू. 88050 रू. 21700 = रू.109750
  2. इकाई से प्राप्त आय

अ. दुग्द्य विक्रय (75 ली./बकरी × 18 × 20/ली.) = रू.27000
ब. पशु विक्रय से (20 नर एवं 20 मादा 9 माह की आयु में)
5000 प्रति नर @ 20 × 5000 = रू. 100000
3000 प्रति नर @ 20 × 3000 = रू. 60000
स.मेगनी एवं बोरे की बिक्री से आय रू.1000
कुल आय = रू.1,88,000

शुद्ध आय = कुल आय (188000) – कुल व्यय (109750) रू. रू. 78250
प्रतिमाह शुद्ध आय = 87625/15 माह = रू 5216

इस प्रकार हम देखते है कि एक बकरी पालक लगभग 5216 प्रतिमाह एक लघु इकाई से प्राप्त कर सकता है।

इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।

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