कॉन्टेजियस बोवाइन प्लूरोन्यूमोनिया, कारण, उपचार एवं बचाव

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इस बीमारी को सीबीपीपी, लंग प्लेग, तथा लंग सिकनेस भी कहते हैं। यह गायों में पाए जाने वाला जीवाणु जनित अत्यंत संक्रामक रोग है। जिसमें फेफड़े व फेफड़ों को  घेरे रहने वाली झिल्ली प्लूरा प्रभावित होती है। भारत में यह रोग पूर्वी राज्य आसाम, अरुणाचल प्रदेश एवं मिजोरम में अधिक पाया जाता है। इस रोग की संक्रमण दर 100% एवं मृत्यु दर 50% होती है।

यह रोग प्रमुख रूप से गायों में पाया जाता है परंतु कभी-कभी भैंस, ठंडे पहाड़ी क्षेत्रों की याक गाय, जंगली भैंस जैसे पशुओं में भी पाया जाता है। सबसे अधिक ब्रह्मपुत्र नदी की घाटी तथा आसपास के चरागाहों मैं पाया जाता है। यह रोग किसी भी मौसम में हो सकता है परंतु इस रोग का प्रकोप वर्षा ऋतु के दिनों में अधिक होता है।

कारण

माइकोप्लाजमा माइकोइडिस वार माइकोइडिस नामक जीवाणु बेवफाई का यह माइकोप्लाजमा वातावरण में गर्मी तेज धूप तथा किसी भी जीवाणु नाशक से नष्ट हो सकते हैं। रोग का संचरण रोगी पशु के संपर्क में आने से सांस द्वारा अर्थात इनहेलेशन द्वारा होता है। जो पशु एक बार रोग से ठीक हो जाते हैं वे 3 साल तक वाहक की तरह दूसरे पशुओं में रोग फैलाते हैं।

पैथोजेनेसिस

रोगी पशु की श्वास में असंख्य माइकोप्लाज्मा रहते हैं इसलिए पशु की स्वास के संपर्क में आते ही अन्य स्वस्थ पशुओं को भी संक्रमण हो जाता है। इसके अतिरिक्त मूत्र में भी भारी संख्या में माइकोप्लाज्मा निकलते हैं इसलिए मूत्र की गंध से भी संक्रमण हो जाता है। यह माइकोप्लाजमा सांस के रास्ते से शरीर में प्रवेश कर जाते हैं जो आगे चलकर सेप्टीसीमिया उत्पन्न करते हैं। इसके पश्चात यह फेफड़ों और पलूरा में  इकट्ठे होकर, लोबार निमोनिया, पलुरिसी और प्लूराइटिस  उत्पन्न करते हैं जिसके परिणाम स्वरूप एनोरेक्सिया के पश्चात टॉकसीमिया में होकर पशु मृत्यु को प्राप्त होता है।

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लक्षण

  • उद्भवन समय 3 से 6 सप्ताह
  • अचानक तेज बुखार 105 डिग्री फारेनहाइट एवं दूध में कमी।
  • चारा खाना बंद, जुगाली करना भी बंद एवं पशु काफी सुस्त हो जाता है। खांसी छाती मैं दर्द , दर्द के कारण चलना फिरना कम हो जाता है। थोरेक्स में दर्द के कारण पशु अगले पैर चौड़े कर खड़ा रहता है। कमर बीच में से दब जाती है। जबकि सिर व गर्दन सीधी रखता है।
  • सांस के दौरान घर घर की आवाज, नथुने फैले हुए तथा तेज सांस जैसे लक्षण मिलते हैं।
  • आसकलटेशन करने पर  प्रारंभिक अवस्था में ड्राई रेलस परंतु अंतिम अवस्था में द्रव की आवाज और गर्गलिंग  मोइस्ट रेलस  पाई जाती हैं। गले में एडीमेटस सूजन, जो कभी-कभी नीचे की ओर अगले पैरों तक उतर जाती है। गंभीर स्थिति में 1 से 3 सप्ताह के अंदर रोगी की मृत्यु जाती है। जो पशु बच जाते हैं उनमें हल्की खांसी सांस संबंधी तकलीफ बनी रहती है। इस बीमारी से पशु कमजोर भी हो जाते हैं तथा लंबे समय तक रोग का संक्रमण अन्य स्वस्थ पशुओं में फैलाते रहते हैं ।
  • विदेशों में ऐसे पशुओं को  समाप्त अर्थात सलॉटर कर दिया जाता है ताकि रोग अधिक न फैले।

निदान

  • इतिहास- लंबा उद्भवन कॉल। सीबीपीपी मैं संक्रमण होने के कई दिनों के पश्चात रोग के लक्षण प्रकट होते हैं।
  • लक्षण- इसमें स्वसन तंत्र के विशिष्ट लक्षण होते हैं।
  • इंट्राडर्मल टेस्ट, सीएफटी, पोस्टमार्टम परिवर्तन एवं कल्चर टेस्ट इत्यादि।
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डिफरेंशियल डायग्नोसिस

न्यूमोनिया, एचएस, पैरासिटिक निमोनिया।

उपचार

  • उपरोक्त बीमारी का उपचार किसी योग्य चिकित्सक से ही कराएं।
  • प्रतिजैविक औषधियां  जैसे ऑक्सीटेटरासाइक्लिन एवं क्लोरमफेनिकाल अधिक असरदार होती हैं।
  • टाइलोसिन टारट्रेट 10 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम शरीर भार के अनुसार इंटरमस्कुलर दिन में दो बार कम से कम 3 से 5 दिन तक दें।
  • अन्य औषधियों लक्षणों के आधार पर दें।

बचाव

  • रोग ग्रस्त पशुओं को समाप्त अर्थात स्लॉटर कर देना चाहिए। यही इसकी रोकथाम का एकमात्र प्रभावी उपाय है। विदेशों में ऐसा ही किया जाता है परंतु भारत में यह फिलहाल संभव नहीं है।
  • पशु बाड़ों को साफ रखें, रोगी व  रोग वाहक  पशुओं को अलग रखें ।
  • रोग से बचाव हेतु टीकाकरण कराएं।

संदर्भ

  1. टेक्स्ट बुक ऑफ प्रीवेंटिव वेटरनरी मेडिसिन द्वारा अमलेंदु चक्रवर्ती
  2. द मर्क वेटरनरी मैनुअल 11 वा संस्करण
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।

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