प्रोटीन, खनिज तत्वों और विटामिन का पशु प्रजनन पर प्रभाव

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पशुओं की प्रजनन क्षमता उनके खान-पान पर निर्भर करती है। शुक्राणु का निर्माण, मद चक्र का उचित समय पर आना तथा स्वस्थ बच्चे का पैदा होना उचित आहार पर ही निर्भर करता है।   अनुचित आहार से शरीर की क्रियाओं की लिए आवश्यक तत्व सम्पूर्ण मात्रा में नही मिल पाता है। ऐसे आहार में प्रोटीन, विटामिन व खनिज प्रदार्थों की कमी रहती है। किसी भी एक तत्व की कमी होने पर शरीर की क्रियाओं पर दुष्प्रभाव पड़ता है तथा उचित ढंग से काम नही कर पाती, जिसका दुष्प्रभाव पशुओं में दुग्ध उत्पादन तथा प्रजनन पर पड़ता है। पशुओं की उत्पादन क्षमता कम हो जाती है तथा बच्चे भी समय पर नही दे पातीं।

प्रोटीन का प्रजनन पर प्रभाव

प्रोटीन पशुओं के विकास के लिए अनिवार्य तत्व है। सांडों में प्रोटीन की कमी से कामुकता में कमी आ जाती है तथा वीर्य की मात्रा भी कम हो जाती है। जहाँ प्रोटीन की मात्रा प्रजनन पर प्रभाव डालती है, वहाँ प्रोटीन की गुणवत्ता भी उतनी ही जरूरी होती है। कम गुणवत्ता का प्रोटीन चाहे पूर्ण मात्रा में भी दिया जाए, फिर भी शारीरिक विकास पूरी तरह नही होता। जबकि जुगाली करने वाले जानवरों में प्रोटीन की गुणवत्ता का इतना असर नही पड़ता क्योंकि इनके रूमेन में रहने वाले सुक्ष्म जीवाणु कम गुणवत्ता युक्त प्रोटीन को उत्तम प्रोटीन में परिवर्तित करने में सक्षम होते हैं। अमीनो एसिड जैसे मेथिओनीन, लाईसीन इत्यादि देने से सांडों के वीर्य में शुक्राणु की संख्या और गुणवत्ता में बढ़ोतरी होती है। नवजात बछड़ियों में प्रोटीन की कमी से उनके भार में वृद्धि कम होती है। निम्न प्रोटीन स्तर पर पाली गई बछड़ियों में मदकाल के लक्षण सामान्य बछड़ियों की तुलना में देर से आते हैं। ऐसे पशु गर्मी में आने पर कई बार गर्भाधान से गाभिन होते हैं। गाभिन पशुओं को ज्यादा प्रोटीन की जरूरत होती है क्योंकि उन्हे शारीरिक आवश्यकताओं क अतिरिक्त, भ्रूण की आवश्यकताओं की पूर्ति भी करनी होती है। इसलिए सामान्यतः गाभिन पशुओं को अन्य पशुओं की अपेक्षा एक किलोग्राम अधिक खल देना चाहिए। खल  में, सूखे एवम हरे चारे की अपेछा अधिक प्रोटीन होती है। गाभिन पशुओं में प्रोटीन इक्कठा करने की क्षमता अधिक होती है। जिससे ब्याने पर वह भंडारित प्रोटीन का दुग्ध उत्पादन हेतु प्रयोग कर सकती है। प्रोटीन की कमी से प्रजनन दर में कमी आती है और पहले ब्यात की आयु भी सामान्य पशुओं की अपेछा 20-40 माह ज्यादा हो जाती है। प्रोटीन का महत्व गाभिन पशुओं में सांडों की अपेछा अधिक होता है। एक 400 व 500 कि. ग्रा. वजन कि गाय/भैंस के रखरखाव के लिए 435 व 515 ग्रा. प्रतिदिन है। जबकि 6-9 महीने वाली गाभिन भैंसो के रखरखाओ के अलावा 200-370 ग्राम अतिरिक्त प्रोटीन देना चाहिए। अतः 6 महीने गाभिन होने के बाद प्रोटीन कि जरूरत बढ़ती है।

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खनिज लवण का प्रजनन पर प्रभाव

आमतौर पर आहार में खनिज प्रदार्थों की कमी होती है। पशुओं में इनकी आवश्यकता भी प्रोटीन व ऊर्जा मुक़ाबले बहुत ही कम होती है। फिर भी शरीर की सभी क्रियाओं के लिए इनकी जरूरत होती है। इनकी कमी से भार मेँ वृद्धि, दुग्ध उत्पादन, स्वास्थय व प्रजनन सभी प्रभावित होते हैं, सभी खनिज प्रदार्थ प्रजनन को प्रभावित नही करते। मुख्यता कैल्शियम, फास्फोरस, कॉपर, कोबाल्ट, ज़िंक, मैगनीज, आयोडीन और सेलिनियम ही प्रजनन पर प्रभाव डालते हैं। आहार में कैल्शियम और फास्फोरस का अनुपात 2:1 होना चाहिए। असंतुलित अनुपात होने पर दोनों ही खनिजों की अवशोषण क्षमता कम हो जाती है। गाभिन और दुधारू पशुओं में कैल्शियम की आवश्यकता बढ़ जाती है। इसलिए ऐसे पशुओं को दाने में खनिज मिश्रण देना आवश्यक है। फास्फोरस की कमी में शुक्राणु बनना कम हो जाते हैं। कैल्शियम और फास्फोरस की कमी से परिपक्वता और मद काल में देरी हो जाती है। कॉपर, कोबाल्ट, ज़िंक, मैंगनीज और आयोडीन प्रजनन क लिए आवश्यक है और इनकी कमी होने पर पशु अनियमित रूप से गर्मी में आने लगते हैं या बंद हो जाते हैं, जिससे प्रजनन दर में कमी आ जाती है। इन परिस्थितियों में जो पशु गाभिन हो जाते हैं, उनमें गर्भपात की संभावना अधिक रहती है और ब्याने पर कमजोर या मृत बच्चे पैदा होते हैं। दूध में कुछ अनिवार्य खनिज कॉपर, ज़िंक और मैंगनीज काफी मात्रा में पाये जाते हैं। पशु के आहार मेँ कैल्शियम और फास्फोरस की जरूरत क्रमशः 0.5%-0.7% व 0.25% हैं जबकि ज़िंक, कॉपर, मैंगनीज, कोबाल्ट, आयोडीन एवं सेलिनियम की जरूरत 40-80, 10, 40, 0.10 एवं 0.25, 0.3 mi. ग्रा. शुष्क प्रदार्थ अन्तःग्रहण है।  इसलिए नवजात बछड़े/बछडियों को दूध क साथ 10-15 ग्राम खनिज मिश्रण प्रतिदिन देना बहुत जरूरी है ताकि उनके विकास में कमी न आए। वयस्क पशुओं को 30-50 ग्राम खनिज मिश्रण प्रतिदिन देना चाहिए। दुधारू पशुओं मेँ खनिज मिश्रण की आवश्यकता बढ़ जाती है। प्रत्येक 100 कि.ग्रा. दाना बनाने के लिए उसमें 3 कि.ग्रा. खनिज मिश्रण जरूर मिलाएँ। जिसके उनका उत्पादन और प्रजनन सही तरीके से हो सके।

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विटामिन का प्रजनन पर प्रभाव

पशुओं के लिए प्रोटीन और ऊर्जा की अपेक्षा विटामिनों की आवश्यकता बहुत कम मात्रा में होती है फिर भी इनका प्रजनन में विशेष योगदान होता है। विटामिन दो तरह के होते हैं। जल घुलनशील और वसा घुलनशील। जल में घुलनशील विटामिन बी-कॉम्प्लेक्स का पशुओं के आमाशय में संश्लेषण हो जाता है किन्तु वसा में घुलनशील विटामिन जैसे विटामिन ए,डी और ई का संश्लेषण नही होता। हमारे पशुओं को विटामिन डी की कमी नहीं होती क्योंकि यहाँ पर्याप्त धूप होती है। जिन पशुओं को दिन में 1-2 घंटे धूप मिल जाती है। उनकी विटामिन डी की पूर्ति स्वयम हो जाती है। विटामिन ई हरे चारे से पर्याप्त मात्रा में मिल जाता है। विटामिन ए हरे चारे से ही मिलता है। जिन पशुओं क आहार में हरे चारे का अभाव रहता है उनमे इस विटामिन की कमी से उत्पन्न लक्षण पाये जाते हैं। पशुओं में अधिकतर विटामिन विटामिन ए की कमी से ही प्रजनन पर प्रभाव पड़ता है।

मादा पशुओं में विटामिन ए या इसके पूर्वरचित विटामिन बीटा कैरोटीन की कमी से गाभिन होने की क्षमता पर प्रभाव पड़ता है। गाभिन पशुओं में इसकी कमी से गर्भपात भी हो जाता है। कई पशुओं में जेर गिरने में बाधा आती है और कई बार कमजोर और अंधे बच्चे पैदा होते हैं या फिर मृत भी हो सकते हैं। लंबे समय तक निम्न विटामिन ए स्टार पर पाले गये पशुओं के अण्डाशय और अंडकोशों की कार्य क्षमता पर प्रभाव पड़ता है। अंडकोशों में वीर्य बनना कम हो जाता है और अत्यधिक कमी वाले सांडों में वीर्य बिलकुल ही नही बनता। विटामिन ए की कमी की से प्रजनन अंगों पर प्रभाव पड़ता है। पशुओं में विटामिन ए, डी व ई की जरूरतें 80-110 इंटरनेशनल यूनिट/ कि. ग्रा. शरीर वजन, 15-30 इंटरनेशनल यूनिट/ कि. ग्रा. आहार अन्तःग्रहण है।

निष्कर्ष

पशुओं के अच्छे रखरखाव, प्रजनन एवं स्वास्थय के लिए प्रोटीन, खनिज लवणों एवं विटामिन कि आहार मेँ पूर्ति करना आवश्यक है।

इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।
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