भारत वर्ष विविध प्रकार के प्राकृतिक संम्पदा से परिपूर्ण है। पशु गणना में हमारा देश विश्व में प्रथम है। हमारे देश में ही हरियाणा, पंजाब एवं गुजरात के किसान औसतन अपनी कुल आमदनी का 20% से ज्यादा पशुपालन से प्राप्त करते है जो उनकी खुशहाली का प्रमुख कारण है। पशुपालन से हुई आमदनी छोटे एवं मझोले किसान भाइयों के लिये है। जो परिवार की जरुरत तथा अन्य कृषि कार्य के लिये जरुरी पूँजी प्रदान करती है जिससे वो कर्जे के चंगुल से बचे रहते हैं।
अतः पशुपालन किसानों की जीवन स्तर सुधारने का एक प्रमुख साधन हो सकता है। अगर नई एवं पुरानी वैज्ञानिक विधियों का समुचित मिश्रण से पशुपालन किया जाय तो पशुपालन एवं संम्बधित व्यवसायी इस व्यवसाय से अधिक एवं नियमित मुनाफा कमा सकते हैं। हमारे देश में ऐसे कई पशुपालन संबधिंत परम्परागत ज्ञान है जो सदियों से जानवरों को स्वस्थ एवं उत्पादक बनाये रखने में मदद करते हैं। यह परम्परागत ज्ञान किसी विषेष भौगोलिक वातावरण में वहाँ के स्थानीय लोगों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है। इस लेख में हम ऐसे ही पौधों या उनके हिस्से के प्रयोग के बारे में उल्लेख करेंगे जिनका इस्तेमाल हमारे आदिवासी भाई एवं स्थानीय किसान सदियों से जानवरों के अच्छे स्वास्थ एवं ज्यादा उत्पादकता के लिये इस्तेमाल कर रहें हैं।
आजकल इनका इस्तेमाल दवा तथा पशु खाद्य/ राशन बनाने वाली कंपनियां भी करती है क्योंकि ये कम लागत में बिना दुष्प्रभाव से आसानी से मिलने वाले पौधों से बना लाभदायक उत्पाद होता है। इस लेख में हम सिर्फ वैसे ही प्राकृतिक पदार्थो या परम्परागत पदार्थों का उल्लेख करेंगें जिसका आदिवासी तथा स्थानिय लोग एवं कम्पनियां करती हों और जिसका वैज्ञानिक प्रमाणीकरण किया गया हो। इन उत्पादों के इस्तेमाल से पहले स्थानीय पशु चिकित्सक से सलाह अवश्य लें।
गैलोक्टोगॉग (दूध बढ़ाने वाले पदार्थ)
कम लागत में ज्यादा दूध उत्पादन डेरी अर्थशास्त्र एवं किसान भाई के मुनाफे के लिये मूल जरुरत है। गैलोक्टोगॉग, ऐसे पदार्थ है जिनका इस्तेमाल पशुओं एवं इसांन के दूध को बढाने और ज्यादा वक्त तक पाने के लिये किया जाता है। बहुत सारे पौधे जैसे सतावर/ सतबलि, सतमूल (Asparsgusracemosus) के जड़, मेथी बीज, टारबैंगम मिल्क यीसल (Silykum Marianum) के बीज एवं पत्ते, चेस्टबेरी फल (vitex agnus castus), अल्फा अल्फा (Alfa alfa) के पत्ते इत्यादि ऐसे कुछ जड़ी-बूटी/ पौधे हैं जिनका इस्तेमाल दूध बढाने के लिये किया जाता है। कंपनियां भी अपने ऐसे कई दवा या पोषण पूरक (supplement) बनाती है। जो इन्हीं तथा अन्य पौधों के हिस्सों से बना होता है। जैसे- मिल्क प्लस (30 ग्रा./दिन/जानवर), गैलेक्टिन वेट बोलस 0.5 गोली जानवर, रुचा मैक्स 30 ग्राम/ दिन/ जानवर, मिल्कों मैक्स 1 केक/दिन/ जानवर, पायाप्रो 5 गोली/दिन/ जानवर ऐसे कुछ उदाहरण है जो गाय एंवभैंस में अगर समुचित राशन के साथ दिये जाये तो दूध की उत्पादकता 20% तक बढ़ा सकते है।
ग्रोथ प्रोमोटर
सामान्यतः एंटीबायोटिक को मुर्गीपालन एवं अन्य मांस देने वाले जीवों में ज्यादा मांस के लिये ग्रोथ प्रोमोटर के रुप में इस्तेमाल करते हैं। ये हमारे पाचन तत्व एवं प्रतिरोधक क्षमता को बढाकर ज्यादा मांस बनाने में मदद करते हैं। किन्तु, ऐसे कई विधि द्वारा बनाये गये मांसो का मानव शरीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने का खतरा रहता है तथा ये दवाइयां महंगी भी होती है। भारतवर्ष में सदियों से जड़ी-बूटी का इस्तेमाल आदमी तथा जानवरों में ज्यादा प्रतिरोधक एवं ज्यादा उत्पादकता के लिये किया जाता है। उदाहरण के लिये यदि हम पशु एवं पक्षी के खाने में 0.1% की दर से सैजन के पत्ते या उसका पाउडर डाले तो वो जीवाणु एवं कवक विरोधी के रुप में काम करता है। इसके अलवा यह विटामीन ए, बी, सी, राइबोफलेविन, कैल्शियम, आयरन, अलमा-टोकोफेराल (विटामिन ई) का भी अच्छा स्त्रोत है। इसी प्रकार अगर मेथी, लहुसन, अदरक का भी इस्तेमाल मुर्गी पालन में ग्रोथ प्रमोटर के रुप में किया जाता है। बहुत सी दवाई कम्पनियां भी ऐसे जड़ी बुटी वाले उत्पाद भी बनाती हैं जैसे जिंगबीर मुर्गीपालन के लिये (राशन में 0.35%) की दर से दमडिया फोर्ट (1 कि0 ग्रा0/टन राशन में), रुचा मैक्स (5 ग्राम/दिन/बछडा) पकिरीफीट (1 गाली/दिन/बछड़ा) की दर से ग्रोथ प्रमोटर के रुप में इस्तेमान किया जाता है। इस तरह करियत कालमेत, मकोपा/मकोई, चाल मेथी/ हरफास के बीज और पुनवासवा/सथी का मिश्रण भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इसी तरह निसिंदा के पत्ते, कालीमिर्च और दाल चीनी का मिश्रण 3 लीटर पानी में 100 ग्राम को घोलकर पीने के पानी में की दर से ग्रोथ प्रमोटर के रुप में इस्तेमाल कर सकते हैं।
परिजीवी रोधी
जानवरों के ऊपर व अन्दर ऐसे परजीवी पाये जाते हैं जो उनके स्वास्थ्य एंव उत्पादन क्षमता को खराब करते हैं। अन्ततः किसानों की आमदनी को प्रभावित करते हैं। कुछ परजीवी जैसे सुवक्रिमी का संक्रमण गायों एंव भैसों में काफी नुकसान करते हैं इसके उपचार में इस्तेमाल में आने वालीऐलोपैथिक दवाईयां महंगी होती हैं। इसके दवा अवशेषों की वजह से मानवों के स्वास्थ्य पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। हमारे पारम्परिक आर्युवेदिक ज्ञान में ऐसे कई पौधें हैं जो इस परजीवी संक्रमण को कम करते हैं। कसीनी कई/मुदुक्थन केई के पत्ते परजीवी संक्रमण को रोकते हैं जिससे पशु स्वास्थय रहते हैं। उसी तरह सैफेनिन का इस्तेमाल एकासिया कारो/ कीकर/मोरमति/ देवबबूल के पत्ते, शाहवलूत का फल, बू्रूम के पत्ते, किवांच/कोच के रेशे के इस्तेमाल आँत के परिजीवी के संक्रमण को रोकने के लिये भी किया जाता है।
साउदर वुड के टहनी का पाऊडर 10 से 20 ग्राम नीम के तेल तथा बीज, कद्दू का बीज (60 ग्राम/तीन बार) तेल में मिलाकर, कमाला पौधा का पाऊडर किया हुआ फल, वकार्स के पत्ते का इस्तेमाल भी अन्य परिजीवी के खिलाफ किया जाता है। करौंजी तथा काला जीरा के बीज का पाऊडर भी परिजीवी रोधक है जिनका इस्तेमाल मोनेजिया एंव टेपवर्म परजीवी के खिलाफ होता है।
पौधा | इस्तेमाल में आने वाला भाग | Botanical Name |
ऐलो वीरा | पत्ति (Leaves) | Aloe Veera |
गंदरमान/चोरा | जड़ (Roots) | Angolica Giyas |
कतीरा | जड़ (Roots) | Astragalus Membonaceus |
रेइसी/लिंगजी | फल देने वाला केसर (Fruiting Bodies) | Gomadema Lucidum |
अश्वगंद्या | जड़ एंव पत्ति | Panax Ginsery |
बौकाल | राइजोम (Rizome) | Seutellaria poiolens |
अदरक | राइजोम (Rizome) | Zingber officinde |
पौधा | इस्तेमाल में आने वाला भाग | इस्तेमाल |
ऐलो वीरा (Aloe Vera app.) | पत्ती (Leaves) | ऊपरी/सतहीः चकले, कटे या जडें अन्दरुनीः पाचन तंत्र में सहायक अकड़न प्रतिरोधी तथा प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ाना |
काला संकर जड (Black cohosh cimicifuga) | राईजोम (Raizom) | प्रजनन |
काले अखरोट Black walnut (juglans nigra) | छिलका (Hulls) | आँत के परजीवी तथा डायरिया के खिलाफ पाचन तंत्र में सहायक |
Bonest (eupatorium parfotiatum) | पत्ती एवंम फूल (Leaves and flower) | पाचन तंत्र में सहायक, हड्डियों के दर्द, बुखार |
जंगली कच्छ Burdock (Arctium app.) | जड़ पत्ती (Roots, Leaves) | रक्त रोधक, मुव वर्धक त्वचा की बिमारियाँ |
गेंदा Calendula (calendulaofficinals) | फूल (Flowers) | मलहम त्वचा के लिये आँख की सफाई मुहं में छाले |
पौधा | Botanical Name | इस्तेमाल में आने वाला भाग | इस्तेमाल |
लालमोच | Cayenne ccapisom app. | जमीनी फूल (Ground fruit) | दर्द, जीवाणु/रोधी |
सीदार | cedar ( Thuja) | पत्ती (Leaves, tuiges) | स्वशन में समस्या |
बबूंना/बबूनी के फूल | chomomila ( matricaria Recutita) | फूल का सिर (Flowers Head) | पाचन में गडबड़ी |
पत्थर समा या संदमकन | comfrey officinale | पत्ती, जड़ (Leaves, Roots) | हड्डी |
दूधी | Doandetim ( Taraxacum officinale) | पत्ती, जड़ (Leaves, Roots) | सकृत बल वर्धक |
हल्पत्रि | Foxglore ( Digitals lanata) | पत्ती, जड, बीज (Leaves, Roots, Seeds) | दिल की बिमारी |
लहसुन | Garlic ( Allium Sativam) | Parb, Cloves | एंटिबायोटिक, कवकरोधी |
अदरक | Ginger ( Gingriber oficinale) | जड़ (Roots) | अपच |
अश्वगंद्या | Ginseng ( Panax Ginseng) | जड़ (Roots) | प्रतिरोधी क्षमता को बढाना, Mastitis, प्रजनन क्षमता को बढाना |
पीत कंद | Goldenseat ( Hydrastis Canadensis) | पूरा पौधा Whole Plant) | जीवाणु रोधी, सूजन रोधी, पाचन में गडबडी, पित्त के लिये |
खतानी | Marshmallow ( Althrea officinalis) | जड़ (Roots) | पाचन एंव मुव सम्बन्धी गडबड़ी, डायरिया, दीर्धक के लिये |
Be the first to comment