गर्भित पशुओं में ड्राई पीरियड (सूखी अवधि) करने की विधि एवं पशु का संवर्धन

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पशुपालन को सफल बनाने एवं किसान को और अधिक लाभ पहुचाने में गर्भावस्था के आखिरी के दो महीने के दौरान पशु का ध्यान रखना अति आवश्यक होता है। दुधारू पशुओं मे गर्भावस्था के आखिरी के दो महीने को ड्राई पीरियड या सूखी अवधि कहते हैं। दुधारू पशुओं के दुग्ध उत्पादन चक्र मे ड्राई पीरियड एक महत्वपूर्ण अवस्था होती है। प्रसव (ब्यात) के पश्चात पशु के बेहतर स्वास्थ्य तथा बेहतर दुग्ध उत्पादन के लिए पशुओं को दो ब्यात के मध्य विश्राम देना अति आवश्यक होता है। विश्राम देने से पशु में थन के ऊतकों तथा कोशिकाओं को पुनः नवनिर्मित होने का अवसर मिल जाता है। सूखी अवधि के दौरान दुधारू पशु और उनके थन आने वाले ब्यात के लिए अपने आप को तैयार करते हैं। इसलिए इस अवस्था मे किसी भी प्रकार की लापरवाही से प्रसव उपरांत, पशु के स्वास्थ्य व उसके दुग्ध उत्पादन छमता पर बुरा असर पड़ता है। सूखी अवधि के दौरान ही पशु पिछले ब्यात में दुग्ध उत्पादन के उपरांत शरीर मे हुई कमियों की भरपाई करता है। गर्भावस्था का आखिरी के तीन महीने मे गर्भ मे पल रहे बच्चे का विकास बहुत तेजी से होता है तथा साथ ही थन की दुग्ध ग्रंथियों का विकास भी प्रारंभ हो जाता है जिसके कारण पशु को इस समय अवधि के दौरान उचित देखरेख के साथ अतरिक्त पोषण की भी आवश्यकता होती है।

सूखी अवधि के दौरान पशु की अच्छी देखभाल करने से स्वस्थ्य शावक के साथ अधिक दुग्ध उत्पादन की भी प्राप्ति होती है, और ब्यात के पश्चात पशु का स्वास्थ भी अच्छा हो जाता है। यदि इस समयकाल मे पशु के पोषण या देखभाल मे लापरवाही होती है तो पशु को स्वास्थ्य संबंधी समस्या तथा ब्यात के दौरान समस्या (कठिन ब्यात, ब्यात के बाद बच्चेदानी का बाहर आना और जेर का रुकना इत्यादि) इत्यादि, उत्पन्न होने का खतरा बना रहता है। इसके अलावा दूध उत्पादन मे कमी, शावक और गर्भित मादा की मृत्यु का भय भी बना रहता है।  जिससे किसान को पशु हानि के साथ ही आर्थिक हानि भी होती है जो की बहुत ही कष्टप्रद होता है।

आने वाले दुग्ध उत्पादन काल के लिए और दुग्ध उत्पादन मे बृद्धि के लिए पशु के थन को विश्राम (दूध ना दुहना) देने की आवश्यकता होती है जिससे थन की कोशिकाओं को पुनः स्वास्थ्य होने का समय मिल सके, इस समय काल मे थन मे हॉर्मोन के प्रभाव से नई दूध ग्रंथियों का भी निर्माण होता है जो कि आने वाले दूध उत्पादन समय काल के लिए सहायक और किसान के लिए लाभप्रद होता है।

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सामान्यतः सूखी अवधि 55 से 60 दिन का माना जाता है। यदि यह समयकाल 40 दिन से कम का हो जाता है तो पशु का शरीर अपनी स्वास्थ्य तथा थन ग्रन्थि की क्षति को पूरा करने मे असमर्थ होती है। जिससे ब्यात के पश्चात दुग्ध उत्पादन प्रभावित होने का खतरा बना रहता है। यदि गर्भकाल के समय पशु दुबली पतली है तो उसकी सूखी अवधि और लंबी रखनी चाहिए।

सूखी अवधि के समय काल मे शारीरिक क्रिया परिवर्तन

पशु के थन की शारीरिक क्रिया दूध उत्पादन के समय तथा सूखी अवधि के समय बिल्कुल भिन्न होती है। थन की दुग्ध ग्रंथियों का मुख्य कार्य लगातार दूध को उत्पन्न करना तथा दूध को निकालना होता है। सूखी अवधि के समय दुग्ध ग्रंथियां मुख्यतः तीन चरणों से होकर गुजरती हैं।

  1. प्रथम चरण के दौरान दुग्ध ग्रंथियां, दूध उत्पादन ना करने की अवस्था मे वापस परिवर्तित हो जाती हैं, और अपने आप को स्वास्थ्य बनाती हैं, इसमें लगभग तीन से चार सप्ताह का समय लगता है।
  2. इस अवस्था मे थन की दूध ग्रंथियां पूरी तरह विश्राम की अवस्था मे चली जाती हैं और थन, आने वाले दूध उत्पादन काल के लिए तैयार हो जाता है ।
  3. इस चरण मे खीस (कोलोस्ट्रम ) का बनना प्रारंभ हो जाता है। यह चरण ब्यात के लगभग एक से तीन सप्ताह पहले सुरू होता है, इस चरण मे दूध उत्पन्न करने वाली ग्रंथिओ का विकास होता है। रोग प्रतिरोधक कोशिकाओं का जन्म होता है, तथा दूध निकलने की भी सुरुआत होती है।

सूखी अवधि प्रारंभ होने तथा समाप्त होने के दौरान दुग्ध ग्रंथियों मे बहुत सारे परिवर्तन होते हैं, जिससे थन, आने वाले उत्पादन काल के लिए तैयार हो सके परन्तु इस परिवर्तन के समय थन मे संक्रमण का खतरा भी बना रहता है ।

थन को संक्रमण से बचाने के लिए सूखी अवधि की प्रक्रिया करने पर पशुचिकित्सक की मदत से थन के सभी चार भागों का समुचित संक्रमण रोकने की दवा से बचाव करना चाहिए।

दुधारू पशुओं मे दूध सुखाने की प्रक्रिया

गर्भित पशुओं मे कभी कभी दूध सुखाने की प्रक्रिया के दौरान अधिक दुग्ध उत्पादन कठिनाई पैदा करती है। इसलिए दूध सुखाने की प्रक्रिया उसके निश्चित तिथि से लगभग 15 दिन पहले ही, उसके संतुलित आहार मे कमी करने के साथ शुरू करनी चाहिए। पशु के खुराक मे ऊर्जा (दान) वाले तत्वों की कमी और अधिक रेशे (फाईबरस) वाले आहार पशु को खिलाने से पशु को दुग्ध उत्पादन के लिए कम पोषण मिल पाएगा और दूध की मात्रा काम हो जाएगी जिससे पशु को सूखा करने मे आसानी होगी। इस तरह से दूध सुखाने की प्रक्रिया प्रभावी व सरल बन जाएगी।

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पशुओं को सामान्यतः 60 दिन तक सूखा रखना चाहिए। यदि पशु को इस समय अवधि से ज्यादा समय तक सूखा रखेंगे तो पशु मोटे (फैटी) हो जाएंगे जिससे सामान्य प्रसव मे कठिनाई आ सकती है।

दूध सुखाने की बिधि

  • जिस गर्भित पशु को ड्राइ करना है उसे बाकी पशुओं से अलग बाड़े में रखना चाहिए और पशु के गर्भकाल की अवधि पुनः सुनिश्चित करना चाहिए।
  • पशु को पशुचिकित्सक की सलाह से आहार एवं पोषक तत्व देना चाहिए और गाय को सातवें महीने से ही सूखा करने की प्रक्रिया प्रारंभ कर देनी चाहिए।
  • दूध सुखाने के दो से तीन सप्ताह पहले ही दाना खिलाना धीरे धीरे कम करना चाहिए।
  • दूध सुखाने के एक से दो सप्ताह पहले दाना खिलाना पूर्णतः बंद करना चाहिए।
  • यदि दूध उत्पादन 12 लीटर प्रतिदिन से अधिक है तो खाने की मात्रा मे कटोती कर देनी चाहिए।
  • दूध सुखाने के तीन दिन पहले पशु की खुराक को केवल निर्वाह के स्तर (मेंटेनेन्स राशन) तक घटा देना चाहिए।
  • दूध की मात्रा जब तीन से चार लीटर या उससे कम हो जाए तब दूध का दोहन बंद कर देना चाहिए, परन्तु पीने के पानी पर रोक नहीं लगानी चाहिए।
  • दूध सुखाने के बाद समय समय पर पशु की जांच तथा थनेला की जांच पशुचिकित्सक से करवानी चाहिए।
  • अदतानुसार दूध सुखाने के बाद एक सप्ताह के लिए पशु को निर्वाह आहार पर रखना चाहिए उसके बाद धीरे धीरे पशु को सामान्य पोषण पर लाना चाहिए।
  • ड्राई किए हुए पशु की अच्छी देखभाल करनी चाहिए और उसको दूध देने वाले पशुओं से अलग रखना चाहिए।
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।
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