स्वान पालन से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

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स्वान पालन: जन्म के तुरंत बाद शीघ्र अतिशीघ्र पिल्लो को उसकी मां का पहला दूध पिलाने से पिल्लों या पप के शरीर को रोग प्रतिरोधक क्षमता मिलती है जो उसके जीवन पर्यंत काम आती है। जन्म के 2 सप्ताह बाद से ही पिल्ले को ऑस्टोकेल्शियम सिरप या अन्य कैल्शियम युक्त सिरप अनुमन्य मात्रा में दिया जाना चाहिए जिससे कि वह रिकेट रोग से सुरक्षित हो सके और उनके शरीर की हड्डियां सुदृढ़ एवं सुडोल रहें। नमक युक्त पदार्थ तथा मिष्ठान नहीं दिया जाना चाहिए। 15 दिन में एक बार टेटमोसोल या किसी अन्य डॉग शोप से, स्नान कराकर टर्कीस टोवेल से उसके शरीर को सुखा दें।

स्वान Dog

स्वच्छ ताजा पानी सदैव उपलब्ध रहे तथा प्रातः एवं सायंकाल व्यायाम अवश्य कराएं। लिवर टॉनिक का 1 सप्ताह में कम से कम 2 बार प्रयोग स्वस्थ शरीर के लिए अति आवश्यक है। प्रातः एवं सायंकाल कुत्ते को बाहर निकालने ताकि वह शौच इत्यादि से निवृत हो सके। कुत्तों को कैनाइन डिस्टेंपर, इनफेक्शियस कैनाइऩ हिपैटाइटिस, लेप्टोस्पायरोसिस, पार्बो वायरस डिजीज, कोरोनावायरस डिसीज एवं रेबीज से बचाव हेतु सामयिक सुरक्षात्मक टीके निर्धारित समय से अवश्य ही लगवा लें।
अपने नगर निगम या नगरपालिका मैं कुत्तों को अवश्य पंजीकृत करा लें।

जूं तथा कलीली से बचाव हेतु 10 दिन के अंतराल में टिक पाउडर या टिक स्नान दें, तथा ऐसा करते समय कुत्ते की आंखों में आई ऑइंटमेंट कानों में रुई का फुआ तथा डॉग मजल अवश्य प्रयोग करें। कुत्तों को कृमि नाशक औषधि पान आवश्यक है परंतु अनियमित तथा अनावश्यक ढंग से कृमि नाशक औषधिपान नहीं कराना चाहिए।कुत्ते के शरीर की चमक कम हो जाना, गुदा मार्ग को धरती से रगड़ना, मल पतला तथा रक्त युक्त होना,अनावश्यक पदार्थों को खाना,भूख कम होकर दुर्बल हो जाना तथा बमन या वमन की इच्छा आदि अवस्थाएं कुत्ते के शरीर में कृमियों की उपस्थिति के द्योतक हैं। ऐसी स्थिति में भी उसके मल का परीक्षण कराकर ही उसकी डिवर्मिंग करानी चाहिए। अनावश्यक डिवर्मिंग से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

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अपने कुत्तों को दैनिक भोजन निश्चित समय पर नियमित रूप से देना चाहिए। प्रथम 3 मास की आयु तक दिन में तीन बार व तदुपरांत 2 बार प्रतिदिन भोजन दिया जाना चाहिए। कुत्ते द्वारा काटे गए स्थान को साफ करके फिनोल या पोटेशियम परमैंगनेट के दानों को लगाने के उपरांत घाव पर अन्य औषधि लगाएं। यदि पागल कुत्ते ने काट लिया हो तो तुरंत ही उसकी चिकित्सा के साथ-साथ टीकाकरण का पूरा कोर्स लगवाना अति आवश्यक है। अपने कुत्ते को अच्छी आदतें डालें एवं उसे पर्याप्त प्रशिक्षण दें।

कुत्ते में किसी भी परेशानी के लिए अपने निकटवर्ती पशु चिकित्सा अधिकारी से परामर्श अवश्य लें। अपने कुत्तों का प्रजनन अभिलेख अवश्य विधिवत रखें। कैनाइऩ डिस्टेंपर, इनफेक्शियस कैनाइन हेपिटाइटिस, पार्बो वायरल डिजीज का प्रथम टीका 6 से 8 सप्ताह की आयु पर एवं दूसरा बूस्टर टीका 12 सप्ताह की आयु पर तदुपरांत प्रत्येक वर्ष के अंतराल पर। रेबीज का पहला टीका 3 माह की आयु पर एवं दूसरा बूस्टर टीका 4 माह की आयु पर तदुपरांत प्रति एक वर्ष के अंतराल पर लगवाना सुनिश्चित करें।उपलब्ध वैक्सीन के साथ लगे निर्देशों को भी  अवश्य देखें।

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इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।

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