पशुपालन में पशु एक जीव मात्र है इसलिए पशु में सामान्य या कभी कभी असामान्य मृत्यु का होना, आम बात है। मृत पशुओं एवं इनसे पनपने वाले रोग के नियंत्रण के लिए पशु के मृत शरीर का उचित निपटान बहुत ही आवश्यक है। पशुपालन करने का तरीका भिन्न भिन्न देशों में अलग अलग है इसलिए पशु के मृत शरीर का निपटान भी अलग अलग तरीके से किया जाता है।
भारत जैसे विकासशील देशों में सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली मृत शरीर के निपटान की विधियाँ पारंपरिक तरीके की हैं जैसे की मृत शरीर को दफनाना, जलाना, भस्मीकरण, प्रतिपादन और खाद बनाना। परन्तु इन तरीकों से जुड़े कुछ पर्यावरणीय, जैव विविधता, सामाजिक और आर्थिक मुद्दे भी हैं। इन विधियों से जुड़ी पर्यावरणीय बाधाएँ जैसे कि विशेष रूप से कुछ संक्रमणों जैसे टी.एस.ई. (ट्रांसिमिसिबल इसपंजीफॉर्म इनसेफलाइटिस) पशु के मस्तिष्क मे सूजन जैसी गंभीर बीमारी पनप सकती है। और अन्य रोगकारक विषाणु जैसे कि प्रियांन के संक्रमणों की दृढ़ता के कारण हवा, मिट्टी और पानी के दूषित होने का खतरा रहता है। यदि पशु के मृत शरीर का निपटान सही विधियों के साथ नहीं किया जाता है तो वातावरण मे अत्यधिक गंध, मक्खी का खतरा और पीने के पानी का दूषित होना जाना आम बात है, जो कि सामान्य जन जीवन के लिए बहुत बड़ा खतरा है।
संक्रामक बीमारी से मरने वाले जानवरों के शवों का उचित निपटान बीमारियों के प्रसार को रोकने में सबसे महत्वपूर्ण है, और एंथ्रेक्स जैसे बीमारी के मामले में तथा मानव संक्रमण को रोकने के लिए शवों को बहते पानी की एक धारा में या उसके पास जमा करके कभी नहीं छोड़ना चाहिए, क्योंकि यह संक्रमण को बहने वाले बिंदुओं तक ले जाएगा और बीमारी का प्रकोप चारों ओर फैल जाएगा। एक संक्रामक बीमारी से मरने वाले पशु को शेड में अधिक समय तक रहने नहीं देना चाहिए क्योंकि कीड़े, कृंतक, आदि उस तक पहुंच सकते हैं और बीमारी का प्रसार स्वास्थ्य पशुओं मे कर सकते हैं। मृत पशुओं के शव का निपटान निम्न बिधियों द्वारा किया जाता है।
पशु के शव को दफनाना
यह तरीका शव के निपटान करने में सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाता है। शव को गहरे गड्ढे मे मिट्टी में दफनाना एक सुरक्षित तरीका है, परन्तु यह ध्यान देना चाहिए की आस पास के स्थानों पर जल निकासी न हो नहीं तो जल के दूषित होने का खतरा बना रहता है। गड्ढे की गहराई इतनी होनी चाहिए की कीड़े, जीवाणुओं को सतह पर ना ले जा सके और मांसाहारी जानवर शव को ना खोद सकें।
शव को कभी भी जमीन पर नहीं खींचना चाहिए उसे ट्रॉली में लादकर दफन स्थान तक ले जाना चाहिए। शव को वहां ले जाने से पहले दफन गड्ढे को तैयार किया जाना चाहिए। गड्ढे को इतना खोदा जाना चाहिए कि शव का उच्चतम हिस्सा आसपास के इलाके के जल स्तर से कम से कम 1.5 मीटर नीचे होना चाहिए, शव के आकार के आधार पर दफन गड्ढे की चौड़ाई और लंबाई होनी चाहिए। मरे हुए जानवरों के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला बिस्तर, उसका मलमूत्र, उसके द्वारा बचा हुआ चारा और शीर्ष 5 सेमी मिट्टी का रूप जहाँ जानवर मृत हुआ था (यदि फर्श पक्का ना हो) भी शव के साथ दफनाया जाना चाहिए।
दफन जगह का चुनाव हमेशा आस पास के जल स्तर जमीन से कम से कम 2.5 मीटर नीचे होना चाहिए। शव पर चूने का पाऊडर डाला जाना चाहिए तथा मिट्टी और कुछ चट्टानों के साथ शव को अच्छी तरह ढक देना चाहिए।
शव को जलाना
यह तरीका शवों को नष्ट करने के लिए सबसे सुरक्षित माना जाता है। जलाने के स्थान पर कम से कम 0.5 मीटर गहरी, शव की लंबाई और चौड़ाई के आकार की खाई होनी चाहिए। खाई को पहले लकड़ी से भर दिया जाता है और कुछ लोहे की सलाखों को इसके ऊपर रखा जाता है और शव को उसमें रखा गया है। पशु के साथ उसके इस्तेमाल मे आई सभी सामग्रियों को भी भष्म कर दिया जाता है। विशेष रूप से शहरों में मरे हुए शवों और कत्लखाने के कचरे को निपटाने के लिए आधुनिक विद्युत इंसीनेटर स्थापित किए जा सकते हैं।
शव का प्रतिपादन
प्रतिपादन शब्द का तात्पर्य शवों को तोड़कर कर छोटे आकार में परिवर्तित करना होता है। पीसने के बाद मांस और हड्डी को अलग किया जाता है तथा प्राप्त कणों को गर्म करके, वसा, प्रोटीन पदार्थ, पानी को अलग करते हैं जिससे जरूरत के अनुसार बिभिन्न जगहों पर ईस्तेमाल किया जाता है। मृत पशुधन कार्बनिक पदार्थों का एक जबरदस्त स्रोत है। एक विशिष्ट ताजा शव में लगभग 32% सूखा पदार्थ होता है, जिसमें से 52% प्रोटीन होता है, 41% वसा होता है, और 6% राख होता है। प्रतिपादन प्रक्रिया से सुरक्षित और मूल्यवान उत्पादों का उत्पादन होता है। रेंडरिंग प्रक्रियाओं का हीट ट्रीटमेंट करके कच्चे माल में मौजूद सूक्ष्मजीवों को मारकर तैयार उत्पादों के भंडारण के समय को बढ़ाया जाता है।
मृत शव का खाद बनाना (कंपोस्टिंग)
कंपोस्टिंग की प्रक्रिया में कार्बन-समृद्ध उत्पाद जैसे की धान या गेहूं का भूसा, चूरा या चावल के ढेर के बीच शवों को रखा जाता है, जिसमें मृत पशु के ढेर पर कार्बन-समृद्ध उत्पाद से ढका जाता है। मृत शवों को आमतौर पर एकल परतों में ही रखा जाता है, जबकि पोल्ट्री बहु परत मे रखी जा सकती है। शव के वजन के आधार पर, अपशिष्ट पदार्थ एक उपयोगी उत्पाद में 1-2 किग्रा./ 43 दिन के रूप में उच्च दरों पर विघटित हो जाता है जिसे खाद के रूप में मिट्टी संशोधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
निष्कर्ष
हालांकि शवों को विभिन्न पारंपरिक तरीकों जैसे दफन, भस्मीकरण, प्रतिपादन या लैंडफिलिंग द्वारा निपटाया जाता है, लेकिन इनमें से प्रत्येक विधि में नुकसान भी हैं। शव दफन करने से भूजल प्रदूषण होता है, भस्म में अधिक पूंजी शामिल होती है और वायु को प्रदूषित करती है। शव के प्रतिपादन मे अधिक पूंजी लगती है। लैंडफिलिंग में भूमि की उपलब्धता की कमी का सामना करना पड़ता है।
किसानों द्वारा पालन करने के लिए विभिन्न कानूनी औपचारिकताओं के कारण व्यापक गैर-अनुपालन के परिणामस्वरूप अवैध डंपिंग आदि के कारण संभावित रूप से अधिक पर्यावरणीय जोखिम पैदा हो गया है। रेंडरिंग और कंपोस्टिंग जैसी प्रक्रियाओं ने कई देशों में अपनी अंतिम उत्पाद उपयोगिता के कारण लोकप्रियता हासिल की है। विभिन्न विधानों के अनुसार शवों के निपटान के नए तरीकों को विकसित और मान्य किए जाने की वास्तविक आवश्यकता है। यह महत्वपूर्ण है कि पर्यावरण और जैव विविधता के दृष्टिकोण से सुरक्षित होने के लिए मृत्यु दर निपटान प्रणाली यथार्थवादी दृष्टिकोण पर आधारित है। भविष्य में आगे के अध्ययन और मूल्यवान उत्पादों के निष्कर्षण जैसे कुछ पहलुओं का अध्ययन किया जाना है। निपटान प्रणाली के आर्थिक प्रभावों पर आगे के अनुसंधान की भी आवश्यकता है ताकि उनकी व्यावहारिक उपयोगिता को कृषि के साथ-साथ ऑफ-फार्म पर भी देखा जा सके। इसलिए इस उद्देश्य के लिए तकनीकी रूप से व्यवहार्य और आर्थिक रूप से व्यवहार्य विधि विकसित करने से बड़े और छोटे पैमाने पर पशुधन फार्म और प्रसंस्करण इकाइयों दोनों को लाभ होगा। इस संबंध में कुशल विधि के साथ पशु शवों का शीघ्र निपटान स्वस्थ और लाभदायक पशुपालन गतिविधि को बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण अपशिष्ट प्रबंधन उपकरण है।
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