मुर्गियों में होने वाले सामान्य रोग का प्रभाव मुख्यतः एक या दो मुर्गियों तक ही सीमित रहता है। इनके द्वारा यह रोग फैलता नहीं है तथा महामारी के रूप में नहीं होता है। मुर्गियों में होने वाले कुछ प्रमुख सामान्य रोग निम्नलिखित हैं:
1. अतिसार या दस्त
जब मुर्गियों के द्वारा निकलने वाला बीट पतला तथा हरे, पीले या सफेद रंग का होता है तब इसे अतिसार या दस्त कहते हैं। इसका मुख्य कारण मुर्गियों को दाना-चारा खराब देने के कारण या विषाणु, जीवाणु या परजीवी के संक्रमण के कारण होता है।
रोग के लक्षण
मुर्गियाँ लगातार पतला बीट करती रहती हैं जो कि हरे पीले तथा सफेद रंग के हो सकते हैं। कभी-कभी दस्त खून मिला हुआ हो सकता है। लगातार दस्त होने के कारण मुर्गियां अत्याधिक कमजोर हो जाती हैं तथा सुस्त रहती हैं।
उपचार
दस्त से प्रभावित मुर्गियों का उपचार दस्त के कारणों के अनुसार करना चाहिए। दस्त से प्रभावित मुर्गियों को सल्फाड्रग्स जैसे सल्फागुआडीन, सल्फामेथाजीन या थालाजोल की आधी ग्राम मात्रा की आधी टिकिया दिन में 2-3 बार पानी के साथ पिलाना चाहिए। यदि दस्त में खून मिला हुआ है तो पाउडर नेबलोन की 0.5 ग्राम मात्रा पानी के साथ देने से लाभ मिलता है।
2. मुर्गियों में होने वाला सर्दी जुकाम का रोग
मुर्गियों में सर्दी जुकाम का रोग सर्द गर्म लगने के कारण होता है। रोग से ग्रसित मुर्गियों की आँख तथा नाक से पानी बहता रहता है तथा सूजन भी आ जाती है। यह रोग पोक्स रोग के साथ भी हो जाता है।
उपचार
प्रभावित मुर्गियों को सल्फाडिमीडीन के 16% घोल को 10 मिलीलीटर मात्रा को 1 लीटर पानी में घोलकर या एवीसोल 50 मिलीलीटर मात्रा को 4 लीटर पानी में घोलकर पिलाना चाहिए। रोग से प्रभावित मुर्गियों को टेरामाइसीन, या स्टेक्लीन इत्यादि की एक चौथाई टिकिया सुबह शाम देते रहना चाहिए। रोग से प्रभावित मुर्गियों को, वेटापेन, विस्टरपेन, डाइक्रिस्टीसीन इत्यादि में से किसी एक का 1-2 लाख यूनिट की मांस में सूई देना चाहिए।
3. बम्बल फूट
यह मुर्गियों में पाये जाने वाली पंजे की गद्दी या अंगुलियों के बीच फोड़े की बीमारी होती है। जिसके कारण मुर्गियाँ लंगड़ाने लगती हैं। तथा पैर उठा कर चलती है।
रोग का कारण
यह रोग स्टाफाइलोकोकस औरियस नामक जीवाणु के कारण होता है। यह जीवाणु पंजे की गद्दी में किसी प्रकार की चोट लगने, खरोच पड़ने या रगड़ लगने से प्रवेश कर जाता है और संक्रमण का कारण बनता है।
रोग के लक्षण
इससे प्रभावित मुर्गियों के पैरों में सूजन आ जाती है जो कि धीरे-धीरे फोड़े का रूप ले लेती है। दर्द के कारण मुर्गियां लंगड़ाने लगती हैं और पैर जमीन पर नहीं रखती हैं।
रोग का उपचार
मुर्गियों के पैरों में पाये जाने वाली सूजन यदि कड़ी हो तो गरम पानी में नमक या बोरिक ऐसिड डालकर सिकाई करनी चाहिए। यदि सूजन में मवाद भरा हुआ है, वह फोड़े का रूप ले चुका है तो उसे अच्छी तरफ से साफ कर ब्लेड से चीरा लगाकर मवाद को बाहर निकालना चाहिए तथा घाव की वीटाडीन से ड्रेसिंग करनी चाहिए। घाव को जल्दी भरने के लिए उस पर जीवाणु नाशक मलहम जैसे पेनिसिलीन, टेरामाईसीन लौरेक्सेन या हीर्मेक्स क्रीम लगाया जा सकता है तथा साथ में ऐन्टीबायोटिक सूई का उपयोग किया जा सकता
3. मुर्गियों में अण्डा फॅसना
मुर्गियों में कभी-कभी ऐसा पाया गया है कि गुदा मार्ग में अण्डा फॅस जाता है जो कि बाहर नहीं निकल पाता है।
कारण
इसका प्रमुख कारण गुदा मार्ग का संकरा होना तथा मुर्गियों में अण्डा देने की शक्ति क्षीण होना होता है।
लक्षण
प्रभावित मुर्गियों के गुदा मार्ग में अण्डे या तो कुछ बाहर निकलकर फँसे रहते हैं या भीतर ही अटके रहते हैं। जिसके कारण मुर्गियां बेचैन रहती है तथा इधर-उधर घूमती रहती है और अण्डा देने की कोशिश करती हैं परन्तु अण्डा नहीं दे पाती हैं।
उपचार
अण्डे के थोड़ा सा बाहर निकलने की स्थिति में चाकू से या किसी अन्य नुकीली वस्तु से अण्डे को तोड़ देना चाहिए तथा टूटे हुए अण्डे को निकालकर फेंक देना चाहिए। मुर्गियों के गुदा मार्ग से अण्डों को बाहर नहीं दिखायी देने वाली स्थिति में गुदा मार्ग में पैराफिन या अण्डी का तेल लगाकर चिकना करें तथा भीतर के अण्डे को किसी नुकीली वस्तु से तोड़ देना चाहिए तथा अण्डा निकालकर फेंक देना चाहिए। इसके बाद गुदा मार्ग में बोरोग्लीसरीन लगाना चाहिए। प्रभावित मुर्गियों को दाने में अनाज की मात्रा बढ़ा देना चाहिए।
5. मुर्गियों में नाल का उलटना या बाहर निकलना
मुर्गियों में कभी-कभी यह देखा गया है कि अण्डे की नाल मुर्गियों के गुदा मार्ग से बाहर निकल आती है जिसके कारण मुर्गियों को काफी कष्ट का अनुभव होता है तथा खून बहता रहता है।
कारण
गुदा मार्ग में अण्डे के फॅस जाने के कारण कभी-कभी नाल अण्डे के साथ बाहर आ जाती है। मुर्गियों के द्वारा बहुत अधिक अण्डे देने के कारण नाल कमजोर हो जाती है तथा गुदा मार्ग से बाहर आ जाती है।
उपचार
बाहर निकली हुई नाल को पोटैशियम परमैगनेट या एक्रीफ्लेविन विलयन से धोकर पैराफिन लगाना चाहिए तथा अंगुली के सहारे धीरे-धीरे भीतर डाल देना चाहिए। इसके बाद गुनगुने पानी में बोरिक ऐसिड डालकर रूई भिगोकर गुदा मार्ग की हल्की सेकाई कर देना चाहिए। प्रभावित मुर्गियों को सल्फाडिमीडीन की 16% घोल का 10 मिली लीटर मात्रा 1 लीटर पानी में घोलकर 3 दिनों तक पिलाते रहना चाहिए।
6. गुदा का घाव
मुर्गियों में सामान्यतः यह देखा गया है कि कभी-कभी गुदा के भीतर घाव हो जाता है जिसके कारण उसमें से पीले लस्सेदार मवाद निकलता रहता है जिसके कारण गुदा के चारों तरफ सूजन आ जाती है जो कि अत्याधिक कष्टदायक होती है और यह घाव आसानी से अच्छे नहीं होते हैं।
उपचार
घाव को अच्छी तरफ से साफ कर जीवाणु नाशक मलहम जैसे लोरेक्जेन या हीमैक्स क्रीम, टॉपिक्योर जेल, सिफ्लाडीन, सोफ्रामाइसीन, नेवासल्फ या टेरामाइसीन इत्यादि लगाते रहना चाहिए। प्रभावित मुर्गियों के स्टेक्लीन या अलसाइक्लीन की एक चौथाई टिकिया दिन में दो बार देते रहने से लाभ मिलता है।
7. दुमकांटा या थोर्न
मुर्गियों के दुम के पिछले भाग में तेल ग्रन्थि पायी जाती है कभी-कभी उसका मुँह बन्द हो जाने के कारण मवाद भर जाता है।
रोग के लक्षण
प्रभावित मुर्गियों को तेज बुखार हो जाता है मुर्गियां बेचैन रहती हैं तथा तेल ग्रन्धि का मुँह बन्द रहता है जिसके कारण उसके चारों तरफ सूजन आ जाती है।
उपचार
तेल ग्रन्थि के बन्द मुँह को अच्छी तरह से साफ कर ब्लेड से चीरा लगाकर मवाद को बाहर निकाल देना चाहिए तथा उसके बाद उसके ऊपर विषनाशक मलहम जैसे हीमैक्स क्रीम लगाते रहना चाहिए। घाव को जल्दी भरने के लिए ऐन्टीबायोटिक्स की टिकिया खिलाना चाहिए।
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए। |
Hamari murgiya achanak se sust pad ja rhi hai ek jagah par hi baithi rahti hai. Ankhe band hi rakhti hai. Kya kare?