बकरी पालन एक लाभदायक व्यवसाय

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हम जानते हैं, कि भारत उन विकासशील देशों में है। जिसकी जनसंख्या का एक बड़ा भाग कृषि एवं पशुपालन पर निर्भर है। इसी कारण भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता है। वर्ष 2022 तक किसान की आय दोगुना करने के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु किसान भाई अपनी फसलों के साथ-साथ बकरी पालन करके अपनी आय को दोगुना कर सकते हैं।

बकरी पालन

सामान्य तौर पर बकरी को गरीबों की गाय कहा जाता है। बकरी निर्धन, भूमिहीन एवं सीमांत किसानों के लिए निमित आय का स्रोत है। बकरी पालन किसानों के लिए एक लाभदायक व्यवसाय है। बकरी पालन को मिश्रित खेती में अच्छी तरह से सम्मिलित किया जा सकता है। बकरी गर्म, सूखे, बंजर, नम, शीतोष्ण एवं शुष्क जलवायु वाली परिस्थितियों में अपने आप को ढालने में सक्षम होती है। इसी गुण की वजह से बकरियाँ मैदानी, पहाड़ी, रेगिस्तानी एवं अधिक ऊँचाई वाले स्थानों में भी पाली जा सकती है। बकरी का दूध गाय के दूध की तुलना में अधिक पाच्य होता है। बकरी के दूध में विटामिन बी-काम्प्लैक्स और फास्फेट की मात्रा अधिक होती है। जिस कारण गम्भीर बीमारियों जैसे- टी.बी., मधुमेह, पेप्टिक अल्सर, यकृत रोग, पीलिया, पित्त विकार एवं डेंगू आदि बीमारियों में बकरी के दूध को आयुर्वेदिक औषधि के रुप में इलाज हेतु सेवन के लिए सलाह दी जाती है। बकरी की खाद में नत्रजन और फास्फोरस की मात्रा भी गाय की खाद की तुलना में 2.5 प्रतिषत अधिक पायी जाती है। बकरी के बालों का उत्पादन दरी, कम्बल एवं रस्सी आदि के बनाने में किया जाता है। आइये बकरी पालन में प्रमुख नस्लों, आवास प्रबन्धन, रोगों आदि के वारे में जानते है:

बकरियों की प्रमुख नस्लें

भारत में कुल 34 बकरी की देसी नस्ले है। जिनमें से प्रमुख नस्ले क्षेत्रवार निम्नलिखित सारणी में दी गई है।

क्र.सं. क्षेत्र नस्ल
1 पूर्वी ब्लैक बंगाल, गंजम, आसाम हिल
2 उत्तरी चोगु, चांगथांगी, गद्दी, पंतजा
3 उत्तर-पश्चिमी बीटल, जमुनापारी, बरबरी, सिरोही, मारवाड़ी, जखराना, गोहिलवाड़ी, सुरती, कच्छी, झालावाड़ी, मेहसाना
4 दक्षिणी सागंमनेरी, उस्मानाबादी, कनाईअडू, मालाबारी, कोकनकनियाल, बेरारी, कोडि अडु, टेरेस्सा
बरबरी (नर)
बरबरी (नर)
ब्लैक बंगाल (मादा)
ब्लैक बंगाल (मादा)

बकरियों हेतु आवास प्रबंधन

वातावरण के अनुसार बकरियों के लिए आवास की व्यवस्था करनी चाहिए। बकरियों को गर्मी, सर्दी, वर्षा तथा जंगली जानवरों से बचाने के लिए उचित आवास की आवश्यकता होती है। आवास के लिए सस्ती से सस्ती स्थानीय तौर पर उपलब्ध सामग्री का प्रयोग करना चाहिए ताकि आवास की लागत कम आये। 10 बकरियों के परिवार के लिए 100-120 वर्ग फीट यानि 10X12 फीट जमीन की आवश्यकता होती है। बकरा एवं बकरी को अलग अलग रखना चाहिए। बकरियों के लिए आवास के किनारों पर 1.5 फीट ऊँचा तथा 2.5 से 3 फीट चैड़ा मचान बना देना चाहिए। मचान बनाने में यह ध्यान रखना चाहिए, कि 2 लकड़ी या बांस के टुकड़ों के बीच इतनी कम जगह हो कि बकरी या बकरी के बच्चों का पांव उसमें न फंसें। अगर संभव हो तो घर की दीवार से या किसी चारदीवारी से सटाकर बकरी गृह का निर्माण करें जिससे लागत कम आयेगी। पीछे वाली दीवार की ऊँचाई 8 फीट तथा आगे वाली 6 फीट रखनी चाहिए। आवास हवादार व साफ-सुथरा रखना चाहिए। आवास का फर्ष ढलानदार होना चाहिए ताकि सफाई आसानी से हो सके साथ ही बकरी के बच्चों को ठंड (सर्दी) से बचाने की व्यवस्था आवास में ही होनी चाहिए।

और देखें :  बकरियों में प्रतिरोधक कृमियों की समस्या
जमुनापारी (नर)
जमुनापारी (नर)

प्रजनन प्रबन्ध

बकरियों की नस्लों के अनुरुप 6-12 माह की आयु तक प्रजनन के लिए तैयार हो जाती हैं। अगर शरीर का वजन ठीक हो तो मादा बकरी को 12-14 माह में ही प्रथम बार ग्याभन करवाना चाहिए जिससे बकरी का शारीरिक विकास पूर्ण हो जाये। नर बकरे की प्रजनन क्षमता का उचित विकास लगभग 1.5 से 2.0 वर्ष की उम्र में होता है। अतः इनको इसी उम्र में ही प्रजनन कार्य के लिए लाना चाहिए। बकरियों में मदकाल लगभग 12-36 घंटे का होता है। इस दौरान यदि गर्भ न ठहरे तो 17-21 दिन बाद बकरी पुनः मदकाल में आ जाती है। साधारणतः बकरी में किसी भी माह में गर्मी आ सकती है। अधिकांशतः बकरियां अप्रैल-जुलाई और नवम्बर-फरवरी के माह में गर्मी में आती हैं। यदि बकरी प्रजनन योग्य है, परन्तु गर्मी में नहीं आ रही है, तो नर बकरे की बिछावन को मादा बकरी के बिछावन में डाल देना चाहिए। जिससे बकरी के गर्मी में आने की सम्भावना बढ़ जाती है। ऋतुकाल शुरु होने के 10-12 तथा 24-26 घंटों के बीच 2 बार गर्भाधान करवाना चाहिए, जिससे गर्भ ठहरने की सम्भावना 90 प्रतिषत तक बढ जाती है। जो बकरियाँ अधिक दुग्ध उत्पादन एवं बच्चे देने की क्षमता रखती है। उनके नर बच्चों को ही प्रजनन के कार्य हेतु प्रयोग करना चाहिए। अच्छी प्रबन्धन व्यवस्था अपनाकर 2 वर्ष में 3 बार प्रजनन करा कर अधिक बच्चे लिये जा सकते हैं।

बकरी के ऋतुकाल में होने की लिम्नलिखित लक्षणों द्वारा पहचान की जा सकती है।

  1. लगातार पूछ को हिलाना
  2. चरने के समय इधर-उधर भागना
  3. नर के नजदीक जाकर पूछ हिलाना एवं विशेष आवाज निकालना
  4. दुग्ध उत्पादन में कमी
  5. योनि द्वार का लाल हो जाना
  6. योनि से साफ द्रव्य का निष्कासन
और देखें :  भारत में बकरियों की प्रमुख नस्लें
मालाबारी (मादा)
मालाबारी (मादा)

प्रजनन हेतु चयन एवं प्रबन्धन

प्रजनन हेतु नर एवं मादा बकरी स्वस्थ एवं अच्छी शारीरिक विशेषताओं वाली होनी चाहिए। बीमारियों से बचाने हेतु बकरियों में टीकाकरण करवाना चाहिए। प्रजनन हेतु 6 वर्ष से अधिक उम्र वाली बकरियों को नहीं चुनना चाहिए।

गर्भवती बकरी की देखरेख

बर्भवती बकरियों को गर्भावस्था के अंतिम 1.5 माह में अधिक सुपाच्य एवं पौष्टिक भोजन देना चाहिए। एक सामान्य बकरी को एक दिन में 5-6 कि.ग्रा. चारे की आवश्यकता होती है। जिसमें 1 कि.ग्रा. सूखा एवं शेष हरा चारा होता है। इसके अतिरिक्त 300-400 ग्राम रातिब भी देना चाहिए। क्योंकि गर्भावस्था के दौरान भ्रूण का विकास बहुत तेजी से हो रहा होता है। गर्भावस्था के दौरान पशु के पोषण एवं रख-रखाव पर ध्यान देने से स्वस्थ बच्चा पैदा होता है। एवं बकरी भी स्वस्थ रहती है। और दुग्ध उत्पादन भी ज्यादा होता है। ब्याने से 7 दिन पूर्व बकरी को साफ-सुथरे स्थान पर रखना चाहिए। बकरी के ब्याने के बाद गर्भाशय की सफाई हेतु 4-5 दिन तक हरीरा पिलायें अथवा बाजार में उपलब्ध यूट्रोटोन को पिलाये।

स्लैम ब्लैक (मादा)
स्लैम ब्लैक (मादा)

नवजात मेमनों के लिए आहार

जन्म के 4-6 घंटे बाद से अगले 3 दिन तक बच्चों को बकरी (माँ) का ही दूध पिलाना चाहिए, जन्म के 3 दिन बाद मेमनों को आहार के साथ-साथ दूध अवश्य पिलायें। 15 दिन के बाद नवजात को हरा चारा खाने के लिए प्रषिक्षित किया जाना चाहिए।

बकरियों के लिए उपयोगी आहार

  • झाड़ियाँ: बेर, झरबेर, करोंदा
  • पेड़ की पत्तियाँ: नीम कटहल, पीपल, बरगद, जामुन, आम, बकेन, गुलर, पाकर, शीषम आदि
  • चारा वृक्ष की पत्तियाँ: बबूल, सेसबेनिया
  • सदाबहार: दूब, दीनानाथ, गिनी घास, पैरा ग्रास, नेपियर घास
  • हराचारा: लोबिया, बरसीम, लूसर्न आदि

बीमारियाँ एवं उनकी रोकथाम

अन्य पशुओं की तरह बकरियाँ भी बीमार पड़ती हैं। बकरियों में मृत्युदर को कम करके बकरी पालन से होने वाली आय को बढ़ा सकते हैं। बकरियों को रोगों से बचाने हेतु टीकाकरण कराना आवश्यक होता है। प्रत्येक रोग के अनुसार टीकाकरण की जानकारी निम्न तालिका में दी गई है।

क्र.सं.

रोग का नाम समय प्रथम टीका

पुनः टीकाकरण

1 खुरपका-मुहपका (एफ.एम.डी.) जून माह 3 माह की उम्र में प्रत्येक 6 माह में
2 प्लेग (पी.पी.आर.) सितम्बर-दिसम्बर 3 माह की उम्र में प्रत्येक 3 वर्ष बाद
3 आन्त्रविष्ष्क्ता (ई.टी.) फरवरी व दिसम्बर 3 माह की उम्र में प्रत्येक 6 माह में
4 गलघोटू जुलाई 3-6 माह की उम्र में वार्षिक
5 चेचक (गोट पाक्स) किसी भी माह में 3-6 माह की उम्र में वार्षिक
6 ब्रूसेलोसिस किसी भी माह में 6 माह की उम्र के बाद
और देखें :  महिला सशक्तिकरण का एक उत्तम उपाय: पशुपालन

बकरी पालन में आर्थिक व्यय एवं लाभ

एक वार होने वाला अनुमानित व्यय

10 बकरियों का क्रय मूल्य 6000 रुपये प्रति बकरी 60000
1 उन्नत बकरे का क्रय मूल्य 7000
बकरियों के लिए आवास 20000
पात्र (बर्तन) एवं अन्य 2000

योग 

89000

प्रतिवर्ष होने वाला व्यय

दाना, चारा आदि पर 2000 रु प्रति माह (12X2500) 3000.00
दवा एवं टीकाकरण  500 रु प्रति माह (12X500) 6000.00

योग

36000.00

आय

माना 10 नर एवं 10 मादा मेमनों में 10 प्रतिषत की मृत्यु दर से 9 मादा बकरी 5000 रुपये/बकरी 45000
9 नर बकरों की बिक्री 6000 रुपये/बकरा 54000

कुल आय

99000

कुल लाभ

99000-36000=63000.00

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