पशुओं में होनें वाले रूमन अम्लीयता रोग एवं उससे बचाव

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रूमन अम्लीयता

यह रोमन्थी पशुओं का वह रोग है जो कि उन पदार्थो के अधिक मात्रा में खाने से होता है जिसमें बहुत ज्यादा कार्बोहाइड्रेट सर्करा पाया जाता है। यह स्थिति मुख्यतः किसी किसी त्योहार या समारोह के बाद उत्पन्न होती है जिसमे पशु को बचा हुआ चावल पूडी एवं रोटी आदि अधिक मात्रा में खिला दिया जाता है। भूखा पशु यदि अनाज के भण्डार गृह में प्रवेश या जाए या फिर यदि पशु के आहार में एकदम से बदलाव ला कर उसे अधिक अनाज खिला दिया जाए, तब भी अम्लीयता हो सकती है। पेट में  पाए जाने वाले, पाचन के लिए लाभदायक जावाणु व प्रोटोजोआ की संख्या पशु के आहार पर निर्भर करती है। यदि आहार में एकदम से बदलाव लाया जाए तो 2-6 घंटे में पेट के वातावरण में परिवर्तन आ जाता है जिससे रूमन की गति शून्य हो जाती है। अधिक मात्रा में बना अम्ल खून में प्रवेश कर जाता है जिससे इस रोग के अन्य प्रमुख  लक्षण उत्पन्न होते हैं। पिसा हुआ अनाज खाने से यह लक्षण शीघ्र दिखाई देते हैं।

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पशुओं में होनें वाले रूमन अम्लीयता रोग एवं उससे बचाव

कारण

अत्यधिक मात्रा में अनाज या अन्य सर्करा मुक्त आहार खाने के उपरान्त अधिक अम्ल बनने से यह रोग होता है।

लक्षण

कम गंभीर स्थिति में पशु खाना कम कर देता है तथा पतला गोबर करने लगता है। उसके रूमन की गति कम हो जाती है। पशु जुगाली करना बन्द कर देता है तथा उनका पेट थोड़ा सा फूल जाता है। पशु पानी पीने के लिए इच्छुक रहता है।

गंभीर अवस्था में पशु सुस्त व बेहाल हो जाता है तथा कई रोगी पशु बहुत निद्रालू अवस्था में आ जाता है। उसे चलने में परेशानी होती है तथा वह चलते समय लड़खड़ाने लगता है। उसका पेट फूल जाता है तथा उसे सांस लेने में कठिनाई होने लगती है। शरीर में पानी  की मात्रा में 8-12 प्रतिशत कमी आ जाती है। इस रोग की गंभीरता के अनुकूल ही हृदय गति तथा स्वास गति में परिवर्तन होता हहै। जैसे जैसे पशु की स्थिति गंभीर होती रहती है, उसी गति से उसकी हृदय गति बढ़ती है तथा स्वास गति कम होती है। हृदय गति  बढ़कर 110-130 प्रति मिनट तक हो जाती है। शरीर ठंडा पड़ने लगता है तथा समय पर इलाज न करवाने पर पशु की मृत्यु हो जाती है।

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उपचार

उपचार का मुख्य उद्देश्य

  1. शरीर में अम्ल बनने से रोकना तथा बन चुके अम्ल को उदासीन करना ।
  2. शरीर में पानी की कमी को पूरा करना।
  3. पेट की गति को बढ़ाकर सामान्य स्तर तक लाना।

इन उद्देश्य की पूर्ति हेतु, पास के पशु चिकित्स से तुरन्त परामर्श कर उपचार करवाना चाहिए। सोडा पिलवाने से पशु को आराम मिलता है।

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इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।

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