जब गर्भाशय में मवाद या म्यूकस मिली मवाद भर जाती है तो ऐसी स्थिति को पूयगर्भाशयता अथवा पायोमेट्रा कहते हैं। ऐसी स्थिति में अंडाशय पर पीत काय/ कार्पस लुटियम बना रहता है तथा पशु गर्मी में नहीं आता है। अधिकतर कठिन प्रसव के बाद पायो मेट्रो होता है। गर्भाशय का अपनी पुरानी सामान्य स्थिति में आने में अधिक समय लगना, गर्भपात, जेर का रुकना और गर्भाशय शोथ के बाद भी यह स्थिति हो सकती है। यदि सांड में संक्रमण हो तो प्राकृतिक गर्भाधान के बाद तथा असेप्टिक तरीके से कृत्रिम गर्भाधान नहीं करने पर भी पायोमेट्रा हो सकता है।
लक्षण
- गर्भाशय में मवाद।
- पीत काय/ कॉरपस लुटियम का बने रहना।
- पशु का गर्मी में न आना।
कारण
गर्भपात, गर्भकाल पूर्ण होने से पूर्व बच्चे का जन्म होना, असामान्य प्रसव, कठिन प्रसव, जुड़वा बच्चे, जेर का रुकना, सेप्टिक गर्भाशय शोथ, गर्भाशय का संक्रमण इत्यादि।
लक्षण
इस बीमारी में गाय या भैंस गर्मी में नहीं आती है। जब भी पशु बैठता है तो हल्की मवाद बाहर निकलती है। मूत्र करते समय या गोबर करते समय भी जोर लगाने के साथ ही मवाद बाहर आती है। मवाद का रंग हल्का पीला, क्रीम जैसा या सफेद तथा गाढ़ा होता है। कभी-कभी गर्भाशय ग्रीवा बंद रह जाने के कारण मवाद बाहर नहीं आती है लेकिन ऐसा अधिकतर कुत्तिया में ही होता है। अधिकांश गाय-भैंसों में गर्भाशयशोथ या पायोमेट्रा होने पर गर्भाशय ग्रीवा/ सरविक्स का मुंह खुल जाता है और हल्की हल्की मवाद बाहर आती रहती है।
निदान
- पशु के इतिहास एवं गुदा परीक्षण द्वारा।
- पायोमेट्रा का 45 से 120 दिन की गर्भावस्था से भ्रम हो सकता है।
- पायोमेट्रा के कारण गर्भाशय की दीवार मोटी व भारी महसूस होती है जबकि गर्भावस्था में तरल पदार्थ के कारण गर्भाशय की दीवार पानी भरे गुब्बारे जैसी महसूस होती है।
- गर्भाशय को अंगूठे व उंगली के बीच फिसलाने पर अपरा / प्लेसेंटा महसूस नहीं होती है, जबकि गर्भावस्था में फिसलने पर अपरा/प्लेसेंटा महसूस होता है।
- पायोमेट्रा में कोटलीडन, गर्भाशय धमनी तथा बच्चा महसूस नहीं होता है जबकि गर्भावस्था में कोटलीडन – कारकंल कांप्लेक्स अर्थात प्लेसनटोम महसूस होते हैं, गर्भाशय धमनी फूल जाती है और धड़कती हुई महसूस होती है, तथा बच्चा भी महसूस होता है।
बीमारी का भविष्य
पायोमेट्रा में अच्छे परिणाम तभी मिलते हैं जब रोग की शुरुआत में शीघ्र निदान कर सही उपचार दिया जाता है। जब अधिक अवधि तक गर्भाशय में मवाद पड़ी रहती है अर्थात क्रॉनिक पायोमेट्रा में गर्भाशय की अंदर वाली परत एंडोमेट्रियम नष्ट हो जाती है तथा गर्भाशय की दीवाल में फाइब्रोसिस हो जाता है तो वापस सामान्य स्थिति में लाना बहुत मुश्किल होता है। क्रॉनिक केस में पेरीमेट्राइटिस भी हो जाती है, सिरोसा व गर्भाशय के लिगामेंट की सूजन हो जाती है तथा बाद में गर्भाशय, एवं ब्रॉड लिगामेंट की भी सूजन हो जाती है और अंत में गर्भाशय, ब्रॉड लिगामेंट तथा अन्य अंगों के साथ एडहेशन हो, जाने से स्थिति और अधिक बिगड़ जाती है। ऐसे में पशु के जननांगों का वापस सामान्य स्थिति में आना, गर्मी में आना और गर्भधारण करना लगभग असंभव हो जाता है। बीमारी का भविष्य, इस बात पर निर्भर करता है कि गर्भाशय में मवाद की कितनी मात्रा है। यदि कम है और गर्भाशय ग्रीवा भी खुल जाती है तो मवाद शीघ्रता से बाहर आ जाता है, किंतु मवाद की मात्रा अधिक होने पर समय अधिक लगता है।
कई बार गलत तरीके से उपचार करने पर साधारण केस भी बिगड़ जाता है। इसलिए पशु पर अंधाधुंध तरीके से औषधियों का प्रयोग नहीं करें ध्यान रखें की मवाद को निकालने के लिए गुदा परीक्षण द्वारा गर्भाशय को नहीं दबाए इस से मवाद बाहर आने के साथ-साथ आगे की ओर भी चली जाती है, और फैलोपियन ट्यूब को बंद कर सकती है और पशु हमेशा के लिए बांझ हो सकता है। अतः उपरोक्त बीमारी के बारे में जानकारी होने के बावजूद इसका उपचार स्वयं न करके किसी योग्य और अनुभवी पशु चिकित्सक से कराएं।
उपचार
उपचार का उद्देश्य गर्भाशय के संकुचन को बढ़ाना तथा विशेषकर गर्भाशय ग्रीवा के मुंह को अधिक खोलना ताकि गर्भाशय में भरी हुई मवाद बाहर आ सके। गर्भाशय ग्रीवा की ऑस गर्मी के दौरान खुलती है या फिर औषधि द्वारा। अंडाशय पर पीत काय/ कार्पस लुटियम भी सिकुड़ना चाहिए लेकिन कार्पस लुटियम को हाथ से नहीं फोड़ना चाहिए। सीएल को समाप्त करना उपचार का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए। उपचार का उद्देश यह भी हो की पशु वापस सामान्य मद चक्र में आ जाए। जब कार्पस लुटियम सिकुड़ जाएगा और सामान्य गर्मी होगी तो गर्भाशय ग्रीवा का मुंह खुल जाएगा,गर्भाशय के संकुचन भी बढ़ेंगे और मवाद बाहर आ सकेगी।
इंजेक्शन एस्ट्राडियोल वैलेरेट 30 मिलीग्राम इंट्रामस्कुलर, विधि से किसी योग्य पशु चिकित्सक से दिलवाए। इसके 24 घंटे पश्चात ऑक्सीटॉसिन इंजेक्शन इंट्रा मस्कुलर विधि से किसी योग्य पशु चिकित्सक द्वारा दिलवाए। इस उपचार से 1 से 2 दिन में काफी मवाद बाहर आ जाती है। ध्यान रहे कि अधिक दिनों तक एस्ट्रोजन का इंजेक्शन नहीं लगाएं क्योंकि इससे संक्रमण अंड वाहिनी में चला जाता है जिससे अंड वाहिनी चिपक जाती है और पशु बांझ हो सकता है।
यदि केवल एस्ट्रोजन से सीएल नहीं सिकुड़े, एस्ट्रोजन इंजेक्शन के 1 से 2 दिन बाद ग्लूकोकॉर्टिकॉइड का इंजेक्शन दे सकते हैं। आज के समय में इन सभी इंजेक्शनों के स्थान पर, सीएल को सिकोड़ने तथा गर्भाशय ग्रीवा का मुंह खोलने के लिए पीजीएफ 2 अल्फा इंजेक्शन का प्रयोग करते हैं यह मवाद को निकालने में काफी सफल होता है। उपरोक्त औषधियों के अलावा इंट्रायूटेराइन एवं इंट्रा मस्कुलर प्रतिजैविक औषधि का भी अवश्य प्रयोग करें।
गुदा परीक्षण द्वारा गर्भाशय का मसाज नहीं करें अर्थात मवाद निकालने के लिए गर्भाशय को नहीं दबाए क्योंकि ऐसा करने से गर्भाशय में भरी मवाद बाहर आने के साथ साथ आगे की ओर अंडवाहिनीयों में चली जाती है जिससे वहां आपस में चिपक जाती है और अगली गर्मी में अंडाशय से अंडे के आने का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है तथा गर्भधारण नहीं हो पाता है।
उपचार के बाद गर्भाशय से मवाद पूरी तरह से निकलने के बाद भी गर्भाशय की भीतरी दीवार/ एंडोमेट्रियम सामान्य नहीं हो पाती है तथा काफी समय तक गर्भधारण नहीं हो पाता है। कभी-कभी हल्के एंटीसेप्टिक घोल या नॉरमल सलाइन गर्भाशय में डालकर साइफन द्वारा वापस बाहर निकाला जाता है इससे बचा हुआ सड़ा हुआ भाग भी बाहर आ जाता है। यदि उपचार के बाद पशु गर्मी में आता है तो तुरंत बाद गर्भित करवाने के बजाय दो-तीन गर्मी आराम दें फिर गर्भाधान करवाएं।
संदर्भ
- वेटरनरी औबस्टैटिक्स, एंड जेनाइटल डिसीजेस द्वारा एस.जे. रॉबर्टस
इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए। |
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