बेसहारा गाय से बदली अपनी आर्थिकी

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पंकज कुमार पुत्र श्री अजीत लाल, गाँव व डाकघर अमलेला, तहसील ज्वाली, ज़िला कांगड़ा का एक पढ़ा-लिखा सामान्य बेरोज़गार युवा है। परंतु उसकी सोच सामान्य नहीं थी। वह प्रतिदिन अपने सीमित संसाधनों से ही अपने लिए सम्मानजनक आय अर्जित करने के लिए दिन-रात प्रयासरत रहता था। कृषि योग्य भूमि तो थी, परंतु उसपर कड़ी मेहनत से तैयार की गई फ़सल को बंदर, बेसहारा व जंगली जानवर नष्ट कर रहे थे। इन सब से परेशान होकर उसने कृषि विभाग की सहायता से एक पॉलीहाउस बनवा लिया। पहले तो उससे बेमौसमी सब्ज़ियाँ उगाकर काफी लाभ अर्जित किया, परंतु बाद में बंदरों ने उसे भी फाड़ दिया व सब्ज़ियों में कीड़े पड़ने लगे। ऊपर से नज़दीक में कोई खरीददार व सब्ज़ियों का उचित दाम न मिलने के कारण उन्हे दिल्ली की मंडियों में बस में डाल कर भेजना पड़ता था। कभी बस से ही माल गायब हो जाने लगा तो कभी मंडी से फोन आ जाता कि सब्जी सड़ी हुई थी। इन सब बातों से पंकज बहुत परेशान रहने लगा कि इतनी मेहनत के बाद भी वह कोई लाभ अर्जित नहीं कर पा रहा था।

बेसहारा गाय से बदली अपनी आर्थिकी

इसी उधेड़-बुन में एक दिन पंकज पशु चिकित्सालय भरमाड़ आया व पशु चिकित्साधिकारी से अपनी परेशानी सांझी की। पशु चिकित्साधिकारी ने उसे पशुपालन को अपना कर अपनी आर्थिकी मज़बूत करने की सलाह दी। अधिकारी ने पंकज को समझाया कि उपर्युक्त बताई गई उसकी सभी समस्याओं का एक ही उपचार है– दुधारू पशुपालन। यह बात पंकज को काफ़ी हद तक समझ आ गई। वह पशु चिकित्साधिकारी को धन्यवाद देता हुआ चला गया, परंतु जाने से पहले उसने आग्रह किया कि भविष्य में कभी भी पशुपालन से संबन्धित कोई चिकित्सा या प्रसार शिविर लगे, तो उसे भी सूचित किया जाए ताकि वह वैज्ञानिकों/विशेषज्ञों से अपनी समस्या व उसके समाधान के बारे में सीधे संवाद कर सके।

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सौभाग्यवश उसके कुछ दिनों के पश्चात ही पशु चिकित्सालय में राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत एक प्रसार शिविर का आयोजन किया गया जिसमें पंकज भी आया। इस शिविर में पशुपालन विशेषज्ञों ने पशुपालकों को पशुपालन व दुग्ध उत्पादन से संबन्धित जानकारियाँ व लाभ बताए। विशेषज्ञों ने बेसहारा पशुयों की समस्या पर अपने सुझाव देते हुये बताया कि ज़्यादातर गायें जो कि ‘बोलती’ या ‘टिकती’ नहीं हैं, उसका सबसे बड़ा कारण उस पशु में पोषक तत्वों की कमी होना होता है। वही पशु जिसे बेकार मानकर पशुपालक छोड़ देते हैं, वह पशु खेतों में लगी फसलों को चर कर अपनी शारीरिक कमी को पूरा कर गाभिन हो जाता है। यही कारण है कि पौंग बाँध जलाशय के क्षेत्र में काफ़ी संख्या में बेसहारा गायें गाभिन भी होती हैं और ब्याहती भी हैं जिन्हें किसान बांध लेते हैं, परंतु दूध बंद होने पर फिर छोड़ देते हैं। यह बात सुनकर पंकज का माथा ठनका। उसने भी एक बेसहारा होलस्टेन-फ्रीसियन गाय बाँध रखी थी जो उसकी खेती को रोज़ उजाड़ रही थी। उसकी शारीरिक बनावट को देखकर हर कोई कहता था कि यदि यह गाय गाभिन हो जाए, तो 10-15 लीटर दूध देगी। उसने पशु चिकित्साधिकारी को वह गाय दिखाई, तो अधिकारी ने बताया कि इस गाय के जननांग बिलकुल सही हैं व इसको गर्भधारण कर लेना चाहिए। परंतु फिर भी इस गाय को पशु चिकित्सालय में लगने वाले पशु चिकित्सा शिविर में विशेषज्ञ चिकित्सक को दिखा लो। पंकज अपनी उस गाय को लगभग 10 कि.मी. जंगल के रास्ते से हाँकता हुया उक्त शिविर में ले आया। विशेषज्ञ चिकित्सकों ने उस गाय को बिलकुल स्वस्थ पाया व केवल कुछ ताकत की दवाइयाँ (खनिज मिश्रण, अंत: कृमिनाशक इत्यादि) लगातार दरड़ या फीड के साथ खिलाने को बताईं।

पंकज की मेहनत रंग लाई व कुछ दिनों के बाद गाय गर्मी में आ गई व कृत्रिम गर्भाधान करवाने पर उसने गर्भधारण भी कर लिया। ब्याहने पर उसने एक बछड़ी को जन्म दिया व लगभग 15 लीटर दूध प्रतिदिन देने लगी। पंकज ने दूध बेचना शुरू कर दिया जोकि लोग उसके घर से ही 35-40 रुपये प्रतिलीटर के हिसाब से ले जाते थे। इससे उसे गाय पर होने वाला सारा खर्चा निकालकर लगभग 5-6 हज़ार रुपये प्रतिमाह आमदनी होने लगी और वो भी घर बैठे। इसके बाद उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा। शिविर में बताई गई बातों को पशुपालन का धर्म मानते हुये पूरी तरह दैनिक दिनचर्या में लागू करने लगा। बछड़ी का वैज्ञानिक तरीके से पालन-पोषण किया जिससे वह 2 वर्ष की आयु में ब्याह भी गई। प्रतिदिन 20 लीटर दूध देने लगी। पुरानी गाय (बेसहारा गाय) जो कि अब कम दूध दे रही थी, उसे 18 हज़ार में बेचकर एक नई जर्सी गाय खरीद ली जोकि 15-16 लीटर दूध प्रतिदिन दे रही है। अब तक पंकज दो गाभिन बछड़ियाँ बेचकर 30 हज़ार रुपये कमा चुका है। इस समय पंकज के पास जर्सी व एच.एफ़. नस्ल की दो दुधारू गायें व दो गाभिन बछड़ियाँ हैं जिनसे वह लगभग 30 लीटर दूध प्राप्त कर रहा है। बेचने के बाद शेष बच जाने वाले दूध की भी कोई चिंता नहीं। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के उस प्रसार शिविर में विशेषज्ञों द्वारा दुग्ध उत्पादों के मूल्य संवर्धन पर बताए गए तरीकों से दूध का पनीर व खोया बनाकर स्थानीय हलवाइयों को बेच रहा है जोकि उसके माल को हाथों-हाथ खरीद रहे हैं।

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इस प्रकार वह आज की तारीख में सब खर्चे निकालकर 10-12 हज़ार रुपये प्रतिमाह कमा रहा है। पंकज का कहना है कि किसी भी काम में सफलता प्राप्त की जा सकती है बशर्ते कोई दिल से मेहनत करे व मेहनत का कोई दूसरा विकल्प नहीं होता। आजकल युवा आसान व ‘साफ’ काम की तलाश में शहरों की ओर प्रस्थान कर रहें हैं व वहाँ पर कम वेतन तथा अत्यधिक प्रदूषित वातावरण में भी काम करने के लिए तैयार हैं, पर अपने गाँव/घर में रखी हुई गाय के गोबर से उन्हे बदबू आती है। गाय माता तो सदा पूजनीय रही है। उसकी सेवा से पुण्य कमाने के साथ-साथ अच्छीखासी आमदनी भी हो जाए तो यह तो ‘सोने पे सुहागा’ वाली बात है। आज भी राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के प्रसार शिविर को याद करके उसकी आँखें खुशी से चमक उठतीं हैं जिसमें उसने मार्गदर्शन पाकर एक बेसहारा गाय से आदर्श पशुपालन की शुरुआत की व दुधारू पशुपालन से अपनी भाग्यरेखा ही बदल ली।

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