पशु पालन में दिखी जीने की राह

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भूतपूर्व सैनिक, कैप्टन खुशी राम सुपुत्र श्री रघुनाथ सिंह, गाँव व डाकखाना हरसर, तहसील ज्वाली, ज़िला कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश के स्थायी निवासी हैं। पशु पालन के नाम पर उन्होने घर पर एक देसी गाय रखी हुई थी जिसका पालन-पोषण वो बरसों से चले आ रहे पारंपरिक ढंगों से करते थे। सेवानिवृति के बाद वे अपने भरे-पूरे परिवार के साथ एक समृद्ध जीवन व्यतीत कर रहे थे। परंतु भाग्य को तो कुछ और ही मंज़ूर था। वर्ष 1999 के कारगिल युद्ध में इनका जवान पुत्र धरती माँ की सेवा में शहीद हो गया। इस घटना ने खुशी राम जी को पूरी तरह से तोड़ दिया। उनके जीवन में चारों ओर अँधियारा ही छा गया।

पशु पालन में दिखी जीने की राह

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तब एक दिन वे पशु चिकित्सालय भरमाड़ में अपनी देसी गाय को पड़े हुये चिचड़ों को मारने की दवा लेने के लिए आए। बातों ही बातों में उन्होने पशु चिकित्साधिकारी से अपने दिल का दु:ख सांझा किया। तब पशु चिकित्साधिकारी ने उन्हे अपना ध्यान पशु पालन के कार्यों में लगाने का सुझाव दिया जिससे की उनका समय भी सही ढंग से व्यतीत हो जाए और घर में ही साफ-सुथरा व शुद्ध दूध प्राप्त हो सके। साथ ही गऊ माता की सेवा का पुण्य तो मिलना ही था। यह बात खुशी राम जी को कुछ जच गई। उन्होने पशु चिकित्साधिकारी की सलाह पर अब पशु पालन वैज्ञानिक ढंग से करने का निश्चय किया। इस के अंतर्गत उन्होने उक्त देसी गाय का कृत्रिम गर्भाधान करवाया। उससे जो संकर नस्ल की बछड़ी उत्पन्न हुई, उसका भी हमेशा कृत्रिम गर्भाधान ही करवाया। इस प्रकार उनके पास पशुओं की संख्या बढ़ने लगी। उन्होने पशुओं के लिए एक स्वच्छ तथा आरामदायक आवास बनवाया व उसमें घास व पानी के लिए खुरलियाँ बनवाईं। वे वैज्ञानिक दृष्टि से दुधारू पशुओं के शरीर के भार व आवश्यकता अनुसार उन्हे संतुलित आहार देते हैं। बछड़ियों को सींग रहित करना, पेट के कीड़ों की दवा देना व पशुओं को संक्रामक रोगों के विरुद्ध टीके लगवाना तो वे कभी नहीं भूलते। उनकी पशु पालन में इतनी रुचि बढ़ गई कि उन्होने और अधिक उन्नत नस्ल के पशु खरीदने का निश्चय किया।

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पशु चिकित्साधिकारी ने उन्हे दूध गंगा परियोजना के बारे में जानकारी उपलब्ध करवाई। इस परियोजना के अंतर्गत बैंक से ऋण लेकर इन्होने वर्ष 2010 में 10 उन्नत नस्ल के पशु खरीदे। आजतक वे 6 उन्नत नस्ल की गाय व बछड़ियाँ अच्छे दामों पर बेच कर लगभग एक लाख रुपये कमा चुके हैं जिससे बैंक से लिया ऋण भी काफ़ी हद तक अदा कर चुके हैं। आज भी उनके पास 5 उन्नत नस्ल की गायें हैं जिनमें 2 दूध देती हैं, 1 गाभिन होने के साथ-साथ दूध भी दे रही हैं, 1 पहली बार गाभिन है व 1 बछड़ी है। इनसे वे प्रतिदिन लगभग 25 लीटर दूध प्राप्त कर रहे हैं। भरे-पूरे परिवार में खुला दूध इस्तेमाल करने के बाद भी वे हर रोज़ 10 लीटर दूध 40/- रुपये प्रति लीटर के हिसाब से बेच कर प्रतिदिन 400/- रुपये कमा रहे हैं। उन्हे दूध बेचने के लिए कहीं जाना नहीं पड़ता, लोग घर से ही दूध ले जाते हैं। वह अपने इस व्यवसाय से (जिसे खुशी राम जी गऊ माता की सेवा बताते हैं) पूरी तरह से संतुष्ट व प्रसन्न हैं। परंतु अब बढ़ती आयु उनका साथ नहीं दे रही। अत: अब वे पशुओं की संख्या को कम करने की सोच रहे हैं ताकि जितने भी पशु हों, उतनों का पालन-पोषण सही ढंग से कर सकें। उन्हे केवल इस बात का दुख है कि युवा लोग पशु पालन को एक अच्छा व्यवसाय नहीं मानते और पैसा कमाने के लिए शहरों में जा कर बड़ी-बड़ी कंपनियों में ‘बेगारी’ कर रहे हैं। वहाँ उन्हे न तो खाने को अच्छा मिलता है और न ही रहने को, परंतु फिर भी वे वहाँ खुश हैं।

कैप्टन खुशी राम युवाओं को यही संदेश देना चाहते हैं कि पशु पालन को यदि वैज्ञानिक ढंग से अपनाया जाए, तो इससे लाभप्रद व्यवसाय घर बैठे और कोई नहीं हो सकता और साथ ही गऊ माता की सेवा का पुण्य भी मिल जाता है।

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