कोविड-19 संकट से उबरने मे पशुचिकित्सक की भूमिका

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पूरे विश्व ने पिछले वर्ष 2020 में कोविड-19 महामारी से संघर्ष किया तथा चालू वर्ष 2021 में फिर से कोविड-19 का दूसरी लहर शुरू हो गया है। कोविड-19 महामारी के कारण बहुत सारे सेक्टर का आर्थिक विकास बुरी तरह प्रभावित हुआ है। इसके कुप्रभाव से महत्वपूर्ण सेक्टर पशुपालन भी अछूता नही रह पाया। भारत एक कृषि प्रधान देश है। कृषि को भारत की आर्थिक विकास की रीढ़ की हड्डी माना जाता है क्योंकि कृषि एवं इससे संबंधित क्षेत्रों का भारत के सकल घरेलू उत्पादों में योगदान 25.60 प्रतिशत 2017-18 में था। इसमें पशुपालन का योगदान 4.11 प्रतिशत  था। भारत की 70 प्रतिशत जनसंख्या कृषि एवं पशुपालन पर निर्भर है। लगभग 20 मिलियन लोग अपने आजीविका के लिए पशुपालन पर निर्भर है। पशुधन सेक्टर लगभग 8.8 प्रतिशत रोजगार  दे रहा है। रोजगार के अलावे पशुपालन सेक्टर पौष्टिक आहार एवं खादय उत्पाद जैसें- दूध, मांस, अंडा, पनीर, चीज, स्किम्ड मिल्क पाउडर आदि भी उपलब्ध कराता है। लेकिन कोविड-19 महामारी के चलते पशुपालन सेक्टर बुरी तरह प्रभावित हुआ। कोविड-19 महामारी के कारण पशुपालन के निम्नलिखित क्षेत्र पर अत्याधिक असर पड़ा हैं:

दूध एवं मांस उत्पादों की विक्री और खपत मे कमी

कोविड-19 वैश्विक महामारी के कारण लॉकडाउन अवधि में होटल, रेस्टुरेंट आदि के बंद कर दिया गया, जिसके कारण दूध उत्पादों जैसे- खेाआ, पनीर, आइसक्रीम, चीज आदि की विक्री एवं खपत बहुत कम गया। ऐसा पाया गया कि कोविड-19 वैश्विक महामारी के फलस्वरूप आइसक्रीम का खपत में 60-70 प्रतिशत की कमी हुई। डेयरी सेक्टर में 30-35 प्रतिशत की कमी शुरूआत के लॉकडाउन में देखा गया है। इसका कारण यह भी है कि कोविड-19 वैश्विक महामारी के दौरान लॉकडाउन रहने के कारण बहुत लोग बेरोजगार हो गए एवं लोगो के आमदनी में भी अत्याधिक कमी हुई, जिसके फलस्वरूप लोगो की क्रय शक्ति घट गई। बाजार बंद रहने के कारण दूधारू पशुओं की दूध की बिक्री में कमी के साथ-साथ पशुपालक को दूध का कम मूल्य पर बेचना पड़ा जिसके कारण पशुपालको को दोहारी नुकसान उठाना पड़ा।

मीट एवं मीट उत्पादों की बिक्री में नुकसान

दूध उत्पादों के अलावे चिकेन मीट, मटन, चेवोन, पोर्क एवं अन्य मांस उत्पादों की विक्री एवं खपत होटल, रेस्टोरेंट एवं अन्य मीट दूकान के बंद रहने के चलते अत्याधिक प्रभावित हुआ। इसके अलावे, सोशल मिडिया में यह अफवाह फैला कि कोविड वायरस का संक्रमण चिकेन मीट खाने से होता है जिसके कारण भी चिकेन मीट की विक्री में बहुत कमी आई जिसके फलरूवरूप मुर्गीयों के व्यवसाय से जुड़े लोंगो को अत्याधिक आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ा। मटन, चेवोन, पोर्क आदि मांस के खपत कम होने से बकरी, भेड़ एवं सूकर पालन पर बुरा असर पड़ा और पशुपालकों को घाटा सहना पड़ा। लॉकडाउन के दौरान आवगमन बंद एवं सुगम नहीं रहने के कारण अंडा उत्पादन एवं बिक्री में भी हुआ जिसके चलते लेयर फार्मिग एवं अंडा व्यवसाय से जुडें लोगों को आर्थिक क्षति का सामना करना पड़ा।

पशु आहार की उपलब्धता में कमी

कोविड-19 महामारी के चलते लॉकडाउन के दौरान पशु आहार बनाने वाले कारखानों में मजदूर की कमी, सामाजिक दूरी बनाए रखना, कच्चा माल की उपलब्धता में कमी आदि के कारण पशु आहार के उत्पादन में कमी हुआ। इसके अलावे, किसान लॉकडाउन के दौरान खेती बारी  भी ठीक से नही कर पाए, जिसके चलते पशुपालक को पशुओं को पर्यात मात्रा में हरा चारा भी नही मिल पाया। पशु आहार एवं हरा चारा की अनुलब्धता का पशुओं के दूध उत्पादन, प्रजनन क्षमता एवं कार्य करने वाले पशुओं की कार्य करने की क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ा, जिसके फलस्वरूप अन्तोगत्वा पशुपालक को आर्थिक नुकसाान उठाना पड़ा।

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सप्लाई चेन का टूट जाना

डेयरी सेक्टर में अन्य क्षेत्रों की तरह पशु उत्पादों को ग्राहक तक सप्लाई चेन के द्वारा पहुँचाया जाता है। परन्तु कोविड-19 महामारी के कारण लॉकडाउन के दौरान सप्लाई चेन टुट गया जिसके चलते दुध एवं मांस उत्पादों का खपत एवं विक्री नही होने के चलते  उत्पादनकर्ता के पास ही खराव हो गया और फलस्वरूप दूध एवं मांस उत्पादों के उत्पादनकर्ता को आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ा।

मुर्गीयों एवं पशुओं के प्रजनन में कमी

राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय आवागमन में प्रतिबंध के चलते मुर्गीपालन उद्योग पर दुष्प्रभाव पड़ा क्योकि  पोल्ट्री व्यवसाय हेतु डे -ओल्ड चूचें नही मिल पा रहे थें। गाय-भैंस के कृत्रिम गर्भधान हेतु उन्नत नस्ल के वीर्य भी आवागमन में प्रतिबंध के कारण सुगमता से उपलब्ध नही हो  पा रहा था, जिसके कारण पशुपालक अपने पशुओं को सही समय पर गर्भधान नही करवा पाने के चलते आर्थिक घटा का सामना करना पड़ा था।

बेरोजगारी में बढोंतरी

कोविड-19 के चलते पशुपालन सेक्टर से जुड़ें लोगों को बेरोजगाार होना पड़ा क्योंकि इस सेक्टर के सप्लाई चेन, प्रोसेसिग प्लांट, वधशाला, मिल्क कोपेरेटिव, डेयरी प्लांट, मीट प्लांट आदि में  बहुत लोग काम कर रहे थे। पर कोविड-19 महामारी के चलते  पशुपालन सेक्टर संे संबंधित व्यवसाय बंद हो गया जिसकं फलस्वरूप इसमें कार्य कर रहे लोगों को बेरोजगार होना पड़ा।

कोविड-19 संकट से आए उपरोक्त कमियों को दूर करने में पशुचिकित्सक की भूमिका

कोविड-19 महामारी के कारण पशुपालन सेक्टर से संबंधित व्यवसाय में आए कमी को पशुचिकित्सक समुचित पशुचिकित्सा उपलब्ध कराकर दूर कर सकते है। डेयरी व्यवसाय से जुड़े पशुचिकित्सक, दूधारू पशुओं के दूध उत्पादन में आए कमी को आहार, समुचित पशुचिकित्सा आदि उपलब्ध कराकर दुध उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है। इसके अलावे, सरकार के पशुपालन विभाग से सम्पर्क कर गायपालन, बकरीपालन, सूकरपालन, भेड़पालन, मुर्गीपालन आदि व्यवसाय हेतु आर्थिक सहायता दिलाने मे मददगार साबित हो सकते है। ऐसा करने से डेयरी व्यवसाय के अलावे अन्य पशुपालन व्यवसाय में कोविड-19 के चलते हुए नुकसान की भरपाई किया जा सकता है। इसके अलावे पशुपालन सेक्टर से अनुभव प्राप्त कर बेरोजगार हुए लोगों को पुनः रोजगार मिल जाएगा, जिससे लोगों के जीवन-स्तर में सुधार तेजी से हो सकेगा।

पशु चिकित्सक पशु आहार की कमी को दूर करने हेतु पशुपालकों को साइलेज, हे एवं संतुलित आहार बनाने एवं इसके संरक्षण के बारे में प्रशिक्षित कर सकते है। पशुपालकों द्वारा अपने पशुओं को सीधे कच्चे माल खिलाने के बजाए संतुलित आहार बनाकर खिलाने हेतु प्रेरित करना चाहिए जिससे कि पशुओं की उत्पादन क्षमता विपरीत परिस्थितयों में प्रभावित न हो पाए। इसके अलावे पशु आहार हेतु एजोला एवं हाइड्रोपोनिक्स के उत्पादन के लिए पशुपालको को प्रेरित पशु चिकित्सक ही कर सकते हैं।

बकरी को गरीबो की गाय एवं गरीबो का ए.टी.एम. कहा गया है क्योंकि बकरीपालन गरीब तबके के लोग भी कम लागत मे शुरू कर सकते है और जब आर्थिक जरूरत हो तो बेचकर आर्थिक लाभ कमा सकते हैं। पशुचिकित्सक बकरी पालन से जुड़ें लोगों को या इस व्यवसाय के शुरू करने वाले इच्छूक लोगों को बैंक या पशुपालन विभाग से आर्थिक सहायता दिलाने में मददगाार साबित होगें। इसके अलावा, बकरीपालन से संबंधित वैज्ञानिक जानकारी देकर एवं समुचित पशुचिकित्सा उपलब्ध कराकर बकरी पालन व्यवसाय से अधिक से अधिक लाभ बकरीपालकों को प्राप्त करवा सकते हैं।

पशु प्रजनन के क्षेत्रों एवं कृत्रिम गर्भाधान केन्द्रों से जुड़ें पशुचिकित्सक, पशुपालकों के पशुओं कों उन्नत नस्लों के वीर्य से कृत्रिम गर्भधान करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते है। कोविड-19 के लाकडाउन के दौरान कृत्रिम गर्भधान में आए कमी को इस, क्षेत्र से जुड़ें पशुचिकित्सक पशुपालक के दरवाजे पर जाकर गाय-भैंस को उन्नत नस्लों के वीर्य से कृत्रिम गर्भाधान कराकर समयानुसार पशुपालक को बछड़ें की प्राप्ती सुनिश्चित करवा सकते हैं तथा इसके फलस्वरूप दूध उत्पादन क्षमता में बढ़ोतरी होने से पशुपालक को आर्थिक फायदा मिल सकता है।

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भारत मे पाए जाने वाले कुल गायों की संख्या का 80 प्रतिशत देशी गायों की संख्या है। देशी गायों में अधिक तापक्रम सहने की क्षमता, किलनी (चमोकन) के संक्रमण के प्रति प्रतिरोधक क्षमता का विकसित होना एवं दूध की गुणवता विदेशी नस्ल के गायों की अपेक्षाकृत बहुत ज्यादा होता है। इन सभी गुणेां के कारण भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय गोकुल मिषन के तहत देशी गायों के संरक्षण एवं संख्या बढ़ाने पर जोर दिया गया है। देशी गायों के संरक्षण हेतु  उच्च आनुवंषिकी गुणों वाले उन्नत नस्ल के देशी साढ़ के द्वारा कम दूध देने वाली देशी गायों को प्रजनन कराकर दूध की उत्पादन क्षमता को बढ़ाना एवं नस्ल सुधार करना इस मिषन का प्रमुख उद्देषय हैं। इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु पशु चिकित्सक की सहभागिता महत्वपूर्ण है। इसके द्वारा किसान कम खर्च में उन्नत नस्ल के देशी गायों को रखकर अधिक आर्थिक लाभ कमा पाएगें एवं किसान खुद को एवं देश को आत्मनिर्भर बना सकते है।

दूध एक संतुलित आहार  माना जाता है। मनुष्यों के इम्यून क्षमता को मजबूत बनाने एवं स्वस्थ रखने में दूध की उपलबधता सुनिष्चत किया जाना चाहिए। दूधारू पशुओं  से उचित मात्रा में दूध प्राप्त करने हेतु एवं दूध की उत्पादन क्षमता बनाए रखने में पशु चिकित्सक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते है। पशुपालक को दुधारू पशुओं के रख-रखाव, आहार तथा स्वाथ्य प्रबंधन के बारे में समुचित जानकारी देकर पशुओं के दूध उत्पादन एवं प्रजनन क्षमता को बढ़ाया जा सकता है।

कोविड-19 महामारी के समय स्वस्थ रहने एवं इम्यून क्षमता को मजबूत बनाए रखने में मीट जैसे चिकेन, मटन, पोर्क आदि को मांसहारी लोगों अपने भोजन में शामिल कर, खुद को तंदुरूस्त रख सकते है। मीट (मांस) की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए पशु चिकित्सक मददगार साबित हो सकते है। इसके लिए मुर्गीपालन, बकरीपालन, भेड़पालन, सूकरपालन आदि के प्रति  लोगों को जागरूक करने हेत पशु चिकित्सक मुख्य भूमिका होगी। इन व्यवसाय को शुरू करने के लिए इच्छूक लोगों को पशुपालन विभाग, बैकों, अन्य गैर सरकारी संस्थाओं आदि से आर्थिक सहायता दिलाने में भी पशु चिकित्सक मददगार सिद्ध होगें। इसके अलावे मुर्गीपालन, बकरीपालन, भेड़पालन, सूकरपालन से जुड़े लोगो को वैज्ञानिक विधी से पालन करने में प्रोत्साहित करने में पशुचिकित्सक की भूमिका महत्वपूर्ण है ताकि मांस उत्पादन बढ़ाकर मीट की उपलब्धता को सुनिश्चित किया जा सकें।

पशुचिकित्सक  सरकार एवं अन्य गैर सरकारी संस्थाओं  और पशुपालक के बीच कड़ी का काम करते है। किसानों को कोविड-19 महामारी के दौरान एवं उपरान्त डेयरी व्यवसाय को बढ़ावा देने हेतु गाय- भैंस पालन, मांस उत्पादन बढ़ाने के लिए मुर्गीपालन, बकरीपालन, सूकरपालन, अंडा की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए लेयर फाार्मिग आदि हेतु उचित दर पर ऋण दिलाने में पशुचिकित्सक मददगार साबित हो सकते है। ऐसा करने से लोगों की आय में आए कमी को बढ़ाया जा सकता है तथा साथ-ही-साथ बहुत सारे लोगों को रोजगाार भी मिल पाएगा एवं पोषणयुक्त आहार (दूध, मांस, अंडा आदि) की उपलब्धता सुनिश्चित हो पाएगी। युवा पशु चिकित्सक को नौकरियों के तलाष के बजाए स्टार्टअप शुरू करना चाहिए। स्टार्टअप इंडिया एवं कई निजी उद्यम पूंजी कम्पनियां पशुपालन क्षेत्र में स्टार्टअप की मदद कर रही है। पशुपालन क्षेत्र में स्टार्टअप के उदाहरण भी हैं, जैसे- हम्पी ए2, जोफ्रेश, तपलू , शकरू, मिल्क मंत्र, सुब्रमन बकरी फार्म, पावरगोथा आदि। स्टार्टअप शुरू कर युवा पशु चिकित्सक कोविड-19 के दौरान बेरोजगाार हुए लोगों को रोजगार देकर उसके आर्थिक हालात को सुधार सकते है। इसके अलावे, पशुपालन के क्षेत्र में सफल हुए लोगों की कहानिया का विडियों बनाना चाहिए जिसे पशुचिकित्सक किसानों को दिखाकर आसानी से प्रेरित कर पशुपालन को शुरू करवा सकते है। इसके अलावे पशु चिकित्सक, पशुपालन के क्षेत्र में सरकार की योजनाओं के बारे में किसानों को जानकारी पहुँचा सकते है जिससे कि पशुपालक इन योजनाओं का लाभ ससमय उठा सकें और कोविड-19 से हुए आर्थिक क्षति की बहुत हद तक भरपाई की जा सके।

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जब देश में कोविड-19 महामारी के दौरान तेजी से कोविड की जाँच की जरूरत थी एवं चिकित्सा महाविद्यालयों में उतनी संख्या में जाँच नही हो पा रहा था। उस समय बहुत सारे पशुचिकित्सा महाविद्यालयों में कार्यरत पशुचिकित्सक प्राध्यापको ने रियल टाइम पी.सी.आर. के द्वारा अपने प्रयोगशाला में बहुत संख्या मे लोगों कीं जाँच कर कोविड के नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया है एवं एक देश एक स्वास्थ्य की अवधारण को चरितार्थ  किया।

पशुपालक मुख्यतः ग्रामीण क्षेत्रों से जुड़े रहते है, जहाँ आज भी कोविड-19 से कैसे  बचा जाए एवं कोविड गाइडलाइनों जैसे- समाजिक दूरी बनाए रखना, मास्क पहनना, हाथ धेाना, सनिटाइजर का उपयोग करना आदि के पालन सुनिश्चित करने एव जागरूक करने में पशुचिकित्सक की भूमिका महत्वपूर्ण होगी क्योंकि पशुचिकित्सक किसानो के दैनिक एवं नियमित आय के साधन (पशुपालन) से सीधा जुड़े होते हैं, जिससे होगा कि पशुचिकित्सक के समझाने पर किसान कोविड गाइडलाइनो का पालन आसानी से कर पाएगें। इस तरह  पशुचिकित्सक कोविड-19 से फलस्वरूप लोगों की आय मे आए कमी, कोविड के चलते बेरोजगार हुए लोगों को रोजगार दिलाने के अलावे कोविड की दूसरी लहर से बचाने हेतु मनुष्यों की इम्यून क्षमता को कोविड के दोरान बनाए रखने के साथ-साथ कोविड गाइडलाइनों केा किसानो के बीच पालन सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है।

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