पशु स्वास्थ्य कर्मियों का कोविड-19 महामारी के दौरान पशु और मानव स्वास्थ्य में सुरक्षात्मक योगदान

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सार

एक ओर जहां 21वीं सदी के प्रारंभ से कोरोनावायरस के सार्स और मर्स जैसे संक्रमणों से झेला है और अब कोविड-19 से जूझ रहा है। वर्ष 2019 के दिसंबर माह की शुरूआत में उत्पन्न हुए मौजूदा विश्वव्यापी कोविड-19 महामारी का अंदाजा लगाया जा रहा था कि यह वर्ष 2020 की गर्मियों में समाप्त हो जायेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ और दोबारा वर्ष 2021 की गर्मियां शुरू होते ही इसके संक्रमण ने गति पकड़ ली है। अब यह अंदाजा लगा पाना मुश्किल है कि इसका प्रकोप कब खत्म होगा और कितने मनुष्यों को मृत्यु का ग्रास बनायेगा। लेकिन, इतना अवश्य है कि इस वायरस के संक्रमण ने वैश्विक स्तर पर आर्थिक कमर जरूर तोड़ दी है। पिछले वर्ष जब सभी औद्योगिक संस्थान बंद हो गये थे और बहुत से लोग बेरोजगार हो चुके थे, तब कृषि और पशुपालन ने ही राष्ट्र की अर्थ-व्यवस्था को संभालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिनका कोविड-19 की चल रही दूसरी लहर में भी महत्वपूर्ण योगदान रहेगा और पशु चिकित्सा कर्मी पहले की भांति अपना संपूर्ण योगदान दे रहे हैं।

नोवेल कोरोना वायरस – 2019

विश्व व्यापी कोविड-19 महामारी वर्ष 2019 में खोजे गये नोवेल कोरोनावायरस-2019 (2019-nCoV) के संक्रमण से होता है जो अभी भी बहुत तेज गति से मनुष्यों से मनुष्यों में फैल रहा है (OIE 2020)। इस वायरस का 75 से 80 प्रतिशत जिनोम सार्स वायरस के जिनोम के समान है और इसके जैसे लक्षण उत्पन्न करता है जिस कारण इस वायरस को सार्स कोरोनावायरस-2 (सार्स-कोवि-2) भी कहा जाता है (Zhou et al. 2020)।

कोरोनावायरस आर.एन.ए. (राइबोन्यूक्लिक एसिड) वायरस का एक परिवार है। इस वायरस के बाहरी आवरण के ऊपर स्पाइक प्रोटीन की एक विशेष ‘क्राउन’ (कोरोना) जैसी सरंचना होती है जिस कारण इस समूह के वायरसों को कोरोनावायरस कहा जाता है। आमतौर पर पशुओं और मनुष्यों में कोरोनावायरस का संक्रमण सामान्य घटना है जिनमें से कुछ वायरस नुकसान नहीं पहुंचाते हैं तो कुछ वायरस बहुत ही घातक होते हैं। कोरोना वायरस के कुछ उपभेद (स्ट्रेन) जूनोटिक हैं, जिसका अर्थ है कि ये पशुओं और मनुष्यों के बीच फैल सकते हैं, लेकिन कई स्ट्रेन जूनोटिक नहीं हैं (OIE 2020)।

आमतौर पर कोविड-19 का संक्रमण लाक्षणिक और अलाक्षणिक कोविड-19 संक्रमित व्यक्तियों के प्रत्यक्ष सपंर्क से होता है। यह वायरस संक्रमित व्यक्तियों के छींकने पर निकलने वाली छींटें हवा में फैल जाती हैं या किसी सतह पर गिरती हैं और इनके संपर्क से होने वाले संकमण को अप्रत्यक्ष संपर्क कहा जाता है। यह वायरस नेत्रश्लेष्मा एवं एयरोसोल (धूलकण) से भी फैलता है। छींक और अनुनासिका निर्वहन के अतिरिक्त यह वायरस मल में लंबे समय तक विसर्जित होता है (Hindson 2020)।

कोविड-19 महामारी की स्थिति

दिसंबर 2019 के प्रारंभिक दिनों में चीन के हुबेई प्रांत में कोरोनावायरस के कुछ मामले सामने आये जो बहुत शीघ्र और तीव्र गति से विश्व के अन्य भागों में कोविड-19 महामारी के रूप में फैल गया। कोविड-19 महामारी की घातकता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 6 अप्रैल 2020 तक विश्व के 12,44,421 व्यक्ति संक्रमित और 68976 व्यक्तियों ने जान गंवाई (ECDC 2020) जबकि अप्रैल 14, 2021 तक कुल 29,44,827 व्यक्ति मृत्यु का ग्रास बन चुके हैं (ECDC 2021)। मौजूदा विश्वव्यापी कोविड-19 संक्रमण का अंदाजा लगाया जा रहा था कि यह वर्ष 2020 की गर्मियों में समाप्त हो जायेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ और दोबारा वर्ष 2021 की गर्मियां शुरू होते ही इसके संक्रमण ने तीव्र गति पकड़ ली है। यह सार्स-कोवि-19 वायरस में द्विगुण उत्परिवर्तन (डबल म्यूटेशन) के कारण हुआ है। द्विगुण उत्परिवर्तन तब होता है जब वायरस के दो उत्परिवर्तित उपभेद एक साथ मिलकर तीसरा उपभेद बनाते हैं। जैसा कि भारत में ‘ई484क्यू’ और ‘एल452आर’ दो उपभेदों ने एक नया उपभेद बनाया है, जिसे अब ‘बी.1.617’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

पुरानी यादें ताजा कराता कोविड-19

महामारी के रूप में संक्रमण की घटनाएं अप्रत्याशित नहीं हैं। विश्व कई बार विभिन्न प्रकार की संक्रामक महामारियों का समाना करता आ रहा है। लेकिन इतना अवश्य कहा जा सकता है कि इन महामारियों ने इतिहास के पाठ्यक्रम को अवश्य ही बदला है। उद्दाहरण के तौर पर, 1347 से 1351 के प्लेग ने विश्व के परिदृश्य को ही बदल दिया था, जिसमें तत्कालीन 450 मिलियन विश्व आबादी में से लगभग 100 मिलियन को समाप्त हो गई थी (Nordqvist 2010)। यदि एक सदी पहले के स्पेनिश फ्लू (1918-19) की यादों को ताजा करें तो उसमें इतिहास की सबसे अधिक मौतें हुई थी जिसमें संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में 0.5 मिलियन मानयीय मौतों सहित विश्वभर में 50 मिलियन मौतें हुई थीं। इन मरने वालों में नौजवानों के मरने की संख्या लगभग आधी थी (Brown 2005)। उस समय, किसी भी देश में भारत में सबसे अधिक मौतों (10-20 मिलियन) की संख्या बतायी जाती है और साथ ही दुनिया में सबसे ज्यादा मौतों का प्रतिशत (4.39%) था (Murray et al. 2006, Chandra & Kassens-Noor 2014)। विश्वभर में कोरोना वायरस जिस गति से फैला है वह 1918 के स्पेनिश फ्लू की याद दिलाता है। स्पेनिश फ्लू के बाद से, हालांकि, विश्व ने व्यापक ज्ञान, कौशल और अनुभव के आधार पर किसी भी प्रकोप को रोकने के लिए विजय प्राप्त की है लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि जिस गति से कोविड-19 विश्वभर के देशों में फैला है तो यह कहने में आशंका नहीं होनी चाहिए कि भविष्य की स्थिति मौजूदा स्पेनिश फ्लू से भी अधिक भयावह हो सकती है।

कोविड-19 का पशुजन्य संबंध

अधिकतर (70 प्रतिशत) उभरते हुए संक्रामक रोग (जैसे कि इबोला, ज़िका, निप्पा इन्सेफेलाइटिस) और सभी ज्ञात महामारियाँ (जैसे कि इन्फ्लुएंजा, सार्स, मर्स, एड्स) पशुजन्य (जूनोटिक) रोग हैं, जो मुख्य रूप से वन्यजीवों से उत्पन्न हुई हैं (Daszak et al. 2020)। हालांकि, इस बात के पुख्ता साक्ष्य हैं कि सार्स-कोवि-2 वायरस के चमगादड़ पशु स्त्रोत हैं फिर भी, महामारी विज्ञान के अनुसार रोगवाहक पशु प्रजातियों और सार्स-कोवि-2 वायरस के पशुओं से मुनष्यों में संचरण के बारे में अनिश्तिताएं हैं (Ferri & Lloyd-Evans 2021)।

चीन के हुबेई प्रांत के वुहान शहर में दिसंबर 2019 के अंत में पाये गए कोविड-19 के प्रारंभिक मामलों की महामारी संबंधी जांच में सामुद्रिक आहार और जीवित पशुओं के व्यापार के थोक बाजार के साथ सार्स-कोवि-2 संक्रमण के साथ संबंध पाया गया है (Perlman 2020, Zhu et al. 2020)। हालांकि प्रत्यक्ष पशु नमूनों में वायरस की गैर-मौजूदगी ने इस स्थान पर किसी भी पशु संग्राहक की सही पहचान करना मुश्किल बना दिया था (Zhang & Holmes 2020)। इसके अतिरिक्त, पहली लहर में कोविड-19 के 41 पुष्ट मामलों में से 13 का बाजार से कोई संबंध नहीं था (Li et al. 2020)।

सभी वायरस उत्परिवर्तित होते हैं और उनके नए उपभेद नियमित रूप से बनते हैं। विभिन्न राष्ट्रों में सार्स-कोवि-2 के विभिन्न प्रकार के उपभेद पाये गये हैं। विश्वभर में अब तक लगभग 4000 से भी अधिक उपभेद पाये गये हैं (Dean 2021)। इनमें से भारत में यू.के. वैरिएंट (बी.1.1.7), दक्षिण अफ्रीकी वैरिएंट (बी.1.351) और ब्राजीलियन वैरिएंट (पी1) के अतिरिक्त ‘एन501वाई’, ‘ई484क्यू’, ‘एल452आर’ और ‘एन440के’ म्यूटेंट भी पाये गये हैं (IndianExpress 2021)। इन उपभेदों में से यू.के. वैरिएंट की संचारण क्षमता अधिक है। ऐसा माना जा रहा है कि कोविड-19 की दूसरी लहर में इन उपभेदों के कारण संक्रमण दर में बढ़ोतरी होने के साथ-साथ इसके लक्षणों में भी भिन्नता देखी जा रही है।

पशु चिकित्सक भी समझें कोविड-19 संक्रमण के लक्षण और नैदानिक समस्या

बुखार, मांसपेशियों में दर्द, गले में खराश, सिर दर्द, सूखी खांसी, सांस लेने में परेशानी या तेज सांस चलना, पेय पदार्थ लेने में असक्षमता, शारीरिक थकान, गंद और स्वाद का अभाव इत्यादि लक्षण पाए जाते हैं। रोगी की शारीरिक स्थिति और गंभीर होने पर एक्युट रेस्पायरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम हो जाता है। रोगी की स्थिति बिगड़ने पर उसके शरीर के अन्य अंग भी प्रभावित होने लगते हैं। वयस्कों में मानसिक स्थिरता भंग होना, सांस लेने में परेशानी, मूत्र विसर्जन में कमी, तेज हृदय गति या निम्न रक्तचाप, तेज ठण्ड लगना इत्यादि सम्मिलित हैं। वहीं बच्चों में तापमान और श्वेत रक्त कणिकाओं की संख्या में असमानता दिखायी देती है। अत्याधिक गंभीर अवस्था के दौरान वयस्कों में उच्च रक्तचाप बने रहना, तो वहीं बच्चों में मानसिक भ्रम एवं उच्च रक्तचाप के लक्षण पाये जाते हैं। ये सभी लक्षण मौजूदा वर्ष 2021 में उत्पन्न हुए उपभेदों के संक्रमण में भी देखे जा रहे हैं लेकिन इनके अतिरिक्त इस वर्ष नेत्रश्लेष्माशोथ, त्वचा पर लाल चकते, जठरशोथ, पेट की खराबी, दस्त, उंगलियों और नाखूनों का रंग बिगड़ना इत्यादि लक्षण भी पाए जा रहे हैं। कुछ महिलाओं (तीन लाख में एक) खासतौर से 30 वर्ष से कम आयु की महिलाओं में खून जमने की समस्या भी पायी गई। अध्ययनों में यह पाया गया है कि कोविड-19 से गंभीर रूप से पीड़ित खासतौर से बुजुर्ग रोगियों में हृदयाघात दर अधिक पाया गया है (Hayek et al. 2020)। बीमारी से ठीक होने वाले व्यक्तियों में फेफड़ों की तंतुमयता (फाइब्रोसिस) हो जाती है जिससे उन्हें सांस लेने में परेशानी का सामना करना पड़ता है। बहुत से व्यक्ति अत्यधिक कमजोर हो जाते हैं।

कोविड-19 के निदान के लिए टेस्टिंग किट्स का निर्माण वर्ष 2020 में हुआ था तो कोविड-19 टेस्ट में आ जाता था लेकिन भारत में मौजूद अफ्रीकन और ब्रिटेन स्ट्रेन जम्प कर रहे हैं और डबल म्यूटेशन होने के कारण आरटी पीसीआर परीक्षण में समस्या आ रही है। यदि कोविड-19 के लक्षण दिखायी दे रहे हैं लेकिन आरटी पीसीआर टेस्ट नेगेटिव है तो फेफडों का सीटी स्कैन करवाना चाहिए। वर्ष 2020 के दौरान सीटी स्कैन में लक्षण संक्रमण के दूसरे सप्ताह में दिखायी देते थे लेकिन इस वर्ष 2021 में यह लक्षण संक्रमण के पहले सप्ताह में दिखायी दे रहे हैं। इनके अतिरिक्त खून से ‘सी रिएक्टिव प्रोटीन’ और ‘डी-डिमर’ टेस्ट भी किये जा सकते हैं। लेकिन यह सभी चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही करवाने चाहिए। जब तक आसवस्त रूप से यह साफ नहीं हो जाता है कि कोविड-19 संक्रमण नहीं है तब तक अन्य लोगों के संपर्क से बचना चाहिए।

पशुओं में रोग के लक्षण

पशुओं में सार्स-कोवि-2 वायरस संक्रमण के लक्षण काफी हद तक अपरिभाषित हैं। पालतु पशुओं में, अन्य कोरोनावायरस संक्रमण की तरह सार्स-कोवि-2 संक्रमण के भी श्वसन या जठरांत संबंधी नैदानिक लक्षण हो सकते हैं। पशुओं में बुखार, खांसी, सांस लेने में परेशानी, सुस्ती, छींक आना, नाक और आंख से तरल स्त्राव, दस्त और उल्टी के लक्षण होने पर सार्स-कोवि-2 वायरस संक्रमण होने की संभावना हो सकती है (CDC 2020)।

कोविड-19 संक्रमण के वैश्विक प्रभाव

कोविड-19 वायरस का संक्रमण इतनी तेजी से फैला कि विश्व के सभी राष्ट्रों ने इस महामारी से निपटने के लिए लॉकडाउन सहित कई प्रकार के प्रतिबंध लगा दिये जिसने जनमानस पर गहरा प्रभाव डाला है।

  • आमजन इस कद्र सहमा हुआ है कि सभी का एक-दूसरे के घर आना-जाना कम या बंद सा हो चुका है। सभी अपने आपको बचाने में लगे हुए हैं और वह अपने तक ही सिमटता जा रहा है।
  • रोजी-रोटी कमाने के लिए करोड़ों की संख्या में लोग अपने घर से दूर श्रमिकों के रूप में अन्य स्थानों पर कार्य कर रहे थे जो अब अपने घरों की ओर प्रस्थान कर रहे हैं जिस के कारण कई क्षेत्रों में निर्माण एवं अन्य कार्य बुरी तरह से प्रभावित होंगे।
  • कोविड-19 के कारण बहुत से सुरक्षा कर्मी भी संक्रमित हो चुके हैं जिससे न केवल रक्षा निर्माण का कार्य प्रभावित होगा बल्कि सुरक्षा तन्त्र भी प्रभावित होने की संभावना है।
  • व्यवसाय बंद होने से आमजन बुरी तरह से आर्थिक रूप से धीरे-धीरे कमजोर होता जा रहा है। केवल दैनिक एवं आवश्यक सेवाओं से जुड़े व्यवसाय की कुछ दुकानें ही खुल रही हैं जिससे करोड़ों लोगों की आजीविका के लिए परेशानी हो रही है।
  • अब तक करोड़ों दैनिक वेतन भोगियों के पास खाने को जो था वह अब समाप्त हो गया है और उनके सामने भोजन की समस्या विकराल रूप धारण कर रही है।
  • शिक्षा जीवन की एक अमूल्य धरोहर है लेकिन आज सभी शिक्षण संस्थान बंद पड़ें हैं जिससे सभी विद्यार्थियों की शिक्षा बुरी तरह से प्रभावित हो रही है।
  • इस महामारी के दौरान सरकार द्वारा सभी प्रकार की यात्राओं पर रोक लगा दी गई है या लोग अपने घरों से बाहर निकलने से डर रहें हैं। अत: सभी अपने घरों तक ही सिमट कर रह गये हैं।
  • सरकार प्रतिवर्ष लोगों के उत्थान के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाओं को क्रियान्वित करती थी लेकिन इस महामारी के दौरान जनहित की योजनाओं पर इसका बुरा प्रभाव साफ दिखायी पड़ता है।
और देखें :  सालमोनेलोसिस एक पशुजन्य बीमारी: कारण, उपचार एवं नियंत्रण

लॉकडाउन- वरदान या अभिशाप

हालांकि, चीन के हुबेई प्रांत का वुहान शहर कोविड-19 संक्रमण का उत्केन्द्र था (Nacoti et al. 2020), लेकिन वहां पर 76 दिनों के लॉकडाउन ने इसे सफलतापूर्वक आगे फैलने पर नियंत्रण करने की कोशिश की जिसके परिणाम भी वहां पर देखने को मिले (PuneMirror 2020)। वुहान शहर में अभूतपूर्व लॉकडाउन ने कोविड-19 के साथ विश्वभर में लड़ने वाले विभिन्न राष्ट्रों के लिए एक मॉडल के रूप में कार्य किया। इसी प्रकार, भारत में लॉकडाउन करने में भी इसमें सफलता मिली।

हालाँकि, 29 जनवरी 2020 को, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आपातकाल घोषित कर दिया है और 30 जनवरी 2020 को भारत के केरल राज्य में वुहान शहर (चीन) से यात्री की कोविड-19 के मरीज की पहली पुष्टि की गई थी। 19 मार्च, 2020 का दिन था, जब भारत के प्रधानमंत्री ने 22 मार्च, 2020 को “जनता कर्फ्यू” की अपील की थी। भारत में 19 और 22 मार्च, 2020 को कोविड-19 पुष्ट मामलों की संख्या क्रमशः 198 और 402 थी। हालांकि, यह संख्या दूसरे अत्यधिक जनसंख्या वाले राष्ट्रों की तुलना में नगण्य थी, लेकिन, संक्रमितों की संख्या तीन दिन की अवधि में ही दोगुनी हो गई थी। इसलिए, भारत में कोविड-19 से मुकाबला करने के लिए, 25 मार्च, 2020 को पहला पूर्ण लॉकडाउन लगाया गया था। इस प्रकार देखा जाये तो वर्ष 1918-1919 में स्पेनिश फ्लू में करोड़ों लोगों की मृत्यु की तुलना में कोविड-19 के संक्रमण को रोकने के लिए लगाये लॉकडाउन ने मृतकों की संख्या पर नियंत्रण किया है। इसके साथ ही बहुत सी फैक्ट्रियों और यातायात से होने वाले पर्यावरणीय प्रदूषण को भी नियंत्रित कर उनसे होने वाली मृत्युदर को भी कम किया है।

रोग से बचाव

कोविड-19 के संक्रमण के कारण मनुष्यों में तीव्र गति से संक्रमण होता है लेकिन आंकड़ों के अनुसार मृत्युदर बहुत कम है। किसी भी व्यक्ति विशेष को इस महामारी को हल्के में नहीं लेना चाहिए क्योंकि दुनियाभर में कोविड-19 के चल रहे परीक्षणों में अलाक्षणिक मरीजों का अनुपात काफी संख्या में पाया गया है। ऐसे व्यक्ति अधिकतर व्यस्क ही होते हैं। इस रोग के संक्रमण से बचने लिए फेस मास्क पहनने के साथ-साथ एक-दूसरे से 2 मीटर की दूरी, बार-बार कम से कम 20 सेकण्ड तक हाथों को साबुन-पानी से धोना, आवश्यक हो तो हाथों में दस्ताने भी पहनें, भीड़ वाले क्षेत्रों से जाने से बचना, अफवाहों की ओर ध्यान न देना इत्यादि से ही बचाव संभव है। सभी हिदायतों को ध्यान में रखते हुए टीकाकरण भी अवश्य है।

कोविड-19 महामारी के दौरान पशु चिकित्सा कर्मियों की सत्यनिष्ठा

बेशक, पशु चिकित्सा तंत्र को कम आंका जाता रहा है लेकिन साधनों और कर्मियों की कमी होने के बावजूद भी पशु चिकित्सा कर्मियों में कोविड-19 महामारी से जूझते हुए पूरी निष्टा और लगन से अपने कर्तव्य को बहुउद्देशीय कार्यकर्ता के रूप में निभाया है और महामारी के दूसरे चरण में अपनी सेवाओं से जनसाधारण के साथ खडे हुए हैं।

  1. पशुओं से संबंधित संभावित अफवाहों को दूर करनाः जैसा कि कोविड-19 संक्रमण मनुष्य से मनुष्य में फैलने वाला रोग है लेकिन प्रारंभिक शोधों के अनुसार यह पशुजन्य रोग है, ऐसे में सभी पशु चिकित्सा कर्मी अपने-अपने क्षेत्रों में सचेत रहे और पशुपालकों सहित जनसाधारण में पशुओं में कोविड-19 संक्रमण की अफवाहों को दूर करने में सक्षम भूमिका निभाते रहे हैं।
  2. पशुस्वास्थ्य कर्मियों की पशु सेवाः हालांकि, वर्ष 2020 और 2021 में बहुत से पशु स्वास्थ्य कर्मी कोविड-19 से संक्रमित हुए हैं फिर भी उन्होंने इस महामारी के दौरान पशुओं को होने वाली समस्याओं को दूर करने के लिए सामान्य दिनों की तरह ही विशेष भूमिका निभायी है जो विश्वव्यापी महामारी की दूसरी लहर आने पर भी बेजुबान पशुओं की सेवा करके पशुपालकों को पूर्ण सहयोग दे रहे हैं।
  3. पशुओं में टीकाकरणः टीकाकरण एक ऐसा निर्धारित कार्य है जिसे समय बीत जाने पर करने से पशु हानि होने के साथ-साथ पशुपालकों को अर्थिक हानि भी उठानी पड़ती है। अतः पशुधन को विभिन्न रोगों से बचाने के लिए निर्धारित समयानुसार पशुपालकों के घर-घर जाकर टीकाकरण के कार्य को पूरा किया गया।
  4. पशुपालकों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ीकरणः कोविड-19 महामारी के दौरान पशुपालकों की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए हरियाणा सरकार ने पशुधन किसान क्रेडिट कार्ड बनाने का निर्णय लेते हुए बहुत बड़े पैमाने पर पशुपालकों के आवेदन पत्र भरने का कार्य पशु चिकित्सा कर्मियों को दिया गया। हालांकि, आवेदन भरते समय ऐसे हालात भी बने रहे जिसमें मास्क और दो गज की दूरी के नियम भी टूटते नजर आये फिर भी पशु चिकित्सा कर्मियों ने सावधनीपूर्वक इस कार्य को पूरा किया और फिर स्वीकृत आवेदकों के पशुओं के स्वास्थ्य प्रमाण पत्र और बीमा करवा कर पशुधन किसान क्रेडिट कार्ड बनवाने में पशुपालकों की सहायता की।
  5. जनहित योजनाओं का क्रियान्वयनः सरकार का लक्ष्य जनहित योजनाओं को लागू करके जनसाधारण लाभ पहुंचाना होता है जिन्हें क्षेत्रीय स्तर पर कार्य करने वाले कर्मचारी पूर्ण सहयोग देते हैं। पशुपालन विभाग के माध्यम से सरकार की बहुत सी योजनाएं जैसे कि बीमार पशुओं का उपचार, कृत्रिम गर्भाधान, एकीकृत मुर्राह विकास परियोजना, गौसंवर्धन, दुधारू पशु डेयरी, भेड़-बकरी, सुअर पालन योजनाएं क्रियान्वित हैं जिन्हें पशु चिकित्सा कर्मियों द्वारा समय पर पूरा किया गया।
  6. जागरूकता शिविरों का आयोजनः प्रतिवर्ष की तरह वैश्विक कोविड-19 महामारी के दौरान सावधनियों को ध्यान में रखते हुए जनसाधारण को पशुपालन संबंधी जानकारी देने के लिए जागरूकता शिविर आयोजित करके उनका ज्ञानवर्धन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
  7. पशुओं में महामारी के दौरान उपचारः यह कह पाना कि कब, कहां और कौन सा रोग किसी को हो जाये, आसान नहीं है। मनुष्यों में होने वाली कोविड-19 महामारी के दौरान पशुओं में लम्पी स्कीन डीजिज का संक्रमण भारत के महाराष्ट्र, ओडिशा और मध्यप्रदेश में हुआ। हालांकि, कोविड-19 के कारण इस रोग से निपटना आसान नहीं था फिर भी पशु चिकित्सा कर्मियों की सहायता से पशुपालन विभाग ने इस रोग के नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
  8. रोगी पशुओं का उपचारः रूग्णावस्था जीवन की एक ऐसी घटना है जिसकी कोई निर्धारित समयावधि नहीं होती है, यह कभी भी हो सकती है। इस महामारी के दौरान पशुओं में होने वाली बीमारियों के उपचार हेतु पशु चिकित्सा कर्मियों ने नियमित रूप से अपनी सेवाएं देकर पशुधन को बचाने में मुख्य भूमिका निभायी।
  9. पशुओं के लिए आहारीय व्यवस्थाः हालांकि ग्रामीण आंचल में पशुओं के लिए हरे चारे की परेशानी प्रतीत नहीं हुई लेकिन दाना-मिश्रण के लिए उनको बाजार पर निर्भर रहना पड़ता है जहाँ उनको आसानी से कोविड-19 का संक्रमण होने का खतरा है और उनके संपर्क में आने से पशु स्वास्थ्य कर्मी भी इस रोग की चपेट में आ सकते थे फिर पशु स्वास्थ्य कर्मियों ने पशुधन सेवा के लिए हमेशा ही अपने कदम आगे बढ़ा कर रखे हैं। कोविड-19 की पहली लहर के दौरान लॉकडाउन के समय ऐसे हालात भी हुए जब पशुओं के लिए खासतौर से पोल्ट्री फार्मों के लिए खाद्य आहार की समस्या आ गई थी, तब पशुपालन विभाग ने उनकी सहायता में कदम बढ़ाते हुए उनके पशुधन के लिए आहार की व्यवस्था करके नवजीवन देने का कार्य किया।
  10. पशुस्वास्थ्य कर्मियों का पशुपालक प्रेमः यह सर्वविधित है कि ‘जान है तो जहान’ इसी प्रकार ‘पशु हैं तो पशुपालक हैं’। जब कोई भी स्वास्थ्य कर्मी अपने क्षेत्र में कार्य करता है तो पशुपालकों के साथ उसके पारिवारिक संबंध जैसे हो जाते हैं। पशु स्वास्थ्य कर्मी हमेशा ही अपने पशुपालकों के साथ एक परिवार के सदस्य के रूप में खड़े रहे और उनको कोविड-19 संक्रमण के बारे में सचेत करते रहे हैं। शायद यही कारण है कि ग्रामीण आंचल में कोविड-19 संक्रमण के मामले कम ही देखने में आये हैं और जो थोड़े-बहुत आये भी हैं तो वे शहरी क्षेत्र से आने वाले सगे-संबंधियों के मिलने से आये हैं।
  11. टेलीमेडिसिन के रूप में परंपरागत पशु चिकित्साः पशुओं की ऐसी कई व्याधियों जैसे कि अपच, अफारा, सामान्य बुखार इत्यादि का सफल इलाज टेलीमेडिसिन के माध्यम से पशुपालकों के घर में मसालों के रूप में मौजूद जड़ी-बूटियों के उपयोग से बहुत कम खर्च पर करके पशुधन को बचाने में पशु चिकित्सकों ने योगदान दिया।
  12. ज्ञान वर्धक वेबीनारः आमतौर पर किसी भी सेमीनार का आयोजन किसी एक स्थान पर होता था जिसमें दूर-दराज से भागीदार को अपने गृह स्थान से गन्तवय स्थान पर जाकर शामिल होते थे। लेकिन कोविड-19 महामारी ने इसके अर्थ बदल कर सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से घर या अपने गृह क्षेत्र से उस सेमिनार, ट्रेनिंग में उपस्थित हुए और ज्ञान अर्जित करने के साथ-साथ ज्ञान भी बांटने में विशेष भूमिका निभाई।
  13. पशुधन उत्पादों को बढ़ावाः पशु चिकित्सा कर्मी मुश्किल दौर में भी पशुपालकों की सेवा के लिए उनके पशुधन उत्पादों को बढ़ावा देते रहें। जब लोगों को इस बात का पता लगा कि कोविड-19 वायरस पशुओं खासतौर से चमगादढ़ों से मनुष्यों में आया है तब ऐसे हालात बने कि आम जनता ने पशु उत्पादों जैसे कि दूध और अण्डों का सेवन बंद कर दिया था। ऐसे में पशु चिकित्सा अनुसंधान क्षेत्र में कार्यरत वैज्ञानिकों ने इस बात की पुष्टि की कि यह वायरस बेशक कुछ पशु प्रजातियों में मिला है लेकिन यह वायरस गाय, भैंस, मुर्गियों को संक्रमित नहीं करता है और न ही इन पशुओं से मनुष्यों में फैलता है। क्षेत्रीय स्तर पर कार्य करने वाले चिकित्सा कर्मियों ने भी अपने स्तर और समाचार माध्यमों से जनसाधारण को अवगत कराया कि दूध और अण्डों का सेवन शरीर में रोगप्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने के लिए आवश्यक है, अतः इनका सेवन अवश्य करें।
  14. शहरी क्षेत्र में आहार व्यवस्था में सहयोगः शहरी क्षेत्र में रहने वाली आबादी खाद्यान्न आपूर्ति के लिए ग्रामीण आंचल पर निर्भर होती है। अनाज के अतिरिक्त दैनिक जीवन में उपयोग किया जाना वाला दूध प्रतिदिन ग्रामीण क्षेत्र से शहरी क्षेत्र में पहुंचता है। लॉकडाउन के प्रारंभिक चरण में दूध की आपूर्ति कुछ दिनों के लिए आंशिक रूप से प्रभावित रही है जिसे शहरी क्षेत्र में दूध वितरित करने वाले दूधियों को परमिट देकर दूर किया गया। इसमें पशुपालन विभाग के कर्मियों की मुख्य भूमिका रही है।
  15. कोविड-19 निदान में सहयोगः पशु चिकित्सा से संबंधित प्रयोगशालाएं पशुजन्य अर्थात पशुओं से मनुष्यों में होने वाले रोगों के निदान के लिए कार्य करती हैं। बरेली में स्थित भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, नागपुर पशु चिकित्सा महाविद्यालय और उत्तर प्रदेश पंडित दीन दयाल उपाध्याय पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय एवं गौ अनुसंधान संस्थान, मथुरा सहित राष्ट्र के कई पशु चिकित्सा संस्थानों ने कोविड-19 से संक्रमित व्यक्तियों में रोग निदान के लिए पूर्ण सहयोग दिया।
  16. कोविड-19 वैक्सीन विकास में योगदानः कई पशु चिकित्सकों ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोविड-19 वैक्सीन के विकास में योगदान दिया है। सीरिया के हम्सटर मॉडल में कोवाक्सिन के पशु परीक्षण करने वाली एक महत्वपूर्ण पशु चिकित्सक डॉ. श्रीलक्ष्मी मोहनदास ने भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, बरेली, उत्तर प्रदेश से पशु चिकित्सा विकृति विज्ञान में पीएचडी पूरी की, और वर्तमान में आईसीएमआर-एनआईवी, पुणे, महाराष्ट्र में एक वैज्ञानिक के रूप में काम कर रही है। उन्होंने प्रयोगशाला के जानवरों में कोविड-19 के बारे में कई शोध पत्र भी प्रकाशित किए।
  17. कोविड-19 वैक्सीन का वितरणः चूंकि पशु चिकित्सकों को पशु वैक्सीन के उत्पादन, हैंडलिंग, भंडारण, परिवहन और टीकाकरण के क्षेत्र में व्यापक अनुभव होता है, इसलिए कोविड-19 वैक्सिन के वितरण और लगाने के लिए उनकी सेवाएं सार्वजनिक स्वास्थ्य के दृष्टिकोण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। अमेरिका के कुछ भागों में अमेरिकी सरकार ने कोविड-19 वैक्सीन वितरण के लिए पशु चिकित्सकों को अस्थायी आपातकालीन प्राधिकृत किया है (AVMA 2021)।
  18. भविष्य की महामारियों की रोकथामः पशु चिकित्सकों ने घरेलू और जंगली जानवरों में संक्रामक और स्पर्शजन्य रोगजनकों के कारण होने वाली महामारी के प्रबंधन और नियंत्रण का अनुभव संचित किया है। वे पशुजन्य रोगों को नियंत्रित करने के विशेषज्ञ भी हैं। वे सार्स-कोवि, और मर्स-कोवि वायरस के कारण होने वाली पशुजन्य रोगों के उद्भव को रोकने में मदद की है और सार्स-कोवि-2 संक्रमण में भी कर रहे हैं।
  19. रोजगार सृजनः लॉकडाउन के दौरान बेरोजगार हुई जनता के सामने रोजी-रोटी की समस्या देखने में आयी। ऐसे विपरित हालात में कृषि और पशुपालन ने जनसाधारण के लिए रोजगार सृजित कर इस समस्या को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
  20. अर्थ व्यवस्था में सहयोगः जैसा कि कोविड-19 महामारी के कारण सभी औद्योगिक क्षेत्र बंद हो गये थे लेकिन कृषि और पशुपालन ऐसे क्षेत्र रहे हैं जिसमें कोई बाधा नहीं हुई और उनमें सभी कार्य समयबद्ध हुए हैं। इस महामारी के दौरान सभी राष्ट्रों की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। भारत जैसे कृषि प्रधान राष्ट्र में कृषि और पशुपालन जैसे इसके अभिन्न अंगों ने भारत की अर्थ व्यवस्था में पूर्ण सहभागिता प्रदान की है।
  21. मानसिक दशा सुधारने में सहयोगः किसी भी असामान्य घटना में किसी भी जनसाधारण पर मनोवैज्ञानिक रूप से कुप्रभाव पड़ता है। कोविड-19 महामारी के दौरान भी जनसाधारण में ऐसे हालात देखने में आये हैं। ऐसे हालात में पशु चिकित्सा कर्मियों ने स्वयं को बचाते हुए पशुपालकों की मानसिक दशा को भी सुधारने में कार्य किया।
  22. पारिवारिक जिम्मेवारी का निर्वहनः कोविड-19 महामारी के दौरान पशु चिकित्सा कर्मियों को स्वयं संक्रमण का खतरा होने के साथ-साथ उनके परिवारों को भी पूर्ण खतरा रहा जिसमें बहुत से चिकित्सक और उनके परिवार के सदस्य भी इस गंभीर रोग की चपेट में आये। फिर भी, सभी पशु चिकित्सा कर्मियों ने महामारी से बचाव करते हुए न केवल स्वयं और पशुपालकों को बचाया बल्कि अपने परिवारों को बचाने में अहम् भूमिका निभाने में सक्षम रहे।
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पशुओं में कोविड-19 संक्रमण और एक स्वास्थ्य परिकल्पना

हालांकि कोविड-19 महामारी विशेष रूप से एक मानवीय संक्रमण है, फिर भी मध्यवर्ती पशु प्रजातियों में मूल वायरस के अनुकूलन की सभावनाओं की चिंताएं अभी भी हैं कि यह वायरस मनुष्यों में अधिक संक्रमण दक्षता और तीव्रता और अनियंत्रित समुदाय प्रसार की क्षमता के साथ सार्स-कोवि-2 का उत्पादन कर सकता है, जैसा इस महामारी के दौरान भी पाया गया है जो पहले की तुलना में अधिक संक्रामक दिखायी दे रहा है। कई अध्ययनों के अनुसार चिंता इस आधार पर भी है कि कई पशु प्रजातियां जैसे कि बिल्लियां, कुत्ते, मिंक, शेर, बाघ इत्यादि प्राकृतिक रूप से या प्रायोगिक तौर पर जैसे कि चूहे, बिल्लियां, फेरेट्स, हैम्स्टर, प्राइमेट्स इत्यादि सार्स-कोवि-2 संक्रमण प्रति अतिसंवेदनशील पायी गई हैं (Leroy et al. 2020, Jo et al. 2020, OIE 2021)। उनमें से कुछ मानव-पशु संक्रमण (रिवर्स जूनोसिस) के बाद पशु-मानव संचरण द्वारा महामारी की निरंतरता में योगदान करने में सक्षम हो सकते हैं। रिवर्स जूनोसिस का खतरा, जहां मनुष्य प्रकृति में अन्य जानवरों के लिए कोरोनावायरस पहुंचाता है, इसमें भोले-भाले वन्यजीव और अन्य पशु-पक्षी शामिल हो सकते हैं (Munir et al. 2020)। चमगादड़, प्रतिरक्षात्मक रूप से सार्स-कोवि-2 संक्रमण के प्रति अतिसंवेदनशील हैं, जो कि मनुष्यों से वन्यजीवों तक फैलने की चिंता का एक प्रमुख समूह है। जैसा कि मनुष्यों (पशुपालकों और चिड़ियाघर श्रमिकों) और उनके जानवरों के बीच घनिष्ठ संपर्क मानव-पशु संक्रमण के लिए आवश्यक है (Olival et al. 2020)। अभी तक, संक्रमित पालतू या चिड़ियाघर के जानवरों से पशु-मानव संक्रमण प्रसार के कोई पुख्ता साक्ष्य नहीं है और जानवरों में संक्रमण स्वयं आत्म-सीमित प्रतीत होता है और आमतौर पर घातक नहीं होता है। विशेष रूप से, कुत्तों और बिल्लियों में सार्स-कोवि-2 संक्रमण के छिटपुट मामलों में स्वसन तंत्र और/या मल के नमूनों में आर.एन.ए. वायरस का पता उनमें लाक्षणिक या अलाक्षणिक नैदानिक लक्षणों और उनके रक्तोद (सीरम) नमूनों में विशिष्ट एंटीबॉडी पाये जाने की पुष्टि हुई है (Sit et al. 2020, ProMed 2020, Zhang et al. 2020)। हालांकि, कुत्तों की तुलना में बिल्लियां इस के प्रति अतिसंवदनशील पायी गई हैं लेकिन बिल्ली-मानव संचरण के किसी भी मामले को आज तक प्रलेखित नहीं किया गया है। प्रायोगिक अध्ययनों में सार्स-कोवि-2 के प्रति मार्जारीय (बिल्लियां, बाघ, शेर), मस्टलिड्स (फेरेट्स, मिंक), गोल्डन सीरियाई हैम्स्टर्स, मिस्र के फल खाने वाले चमगादढ़ और मकाक बंदर अतिसंवेदनशील पाये गये हैं (Shi et al. 2020, Wan et al. 2020, Oreshkova et al. 2020, Schlottau et al. 2020)। प्रायोगिक शोधों में गाय और भेड़ को भी संवेदनशील पाया गया है जबकि सुअरों को नहीं (Di Teodoro et al. 2021)।

हालांकि, पशुओं से मनुष्यों में फैलने के कोई प्रमाणिक साक्ष्य नहीं मिले हैं लेकिन पशुओं में अन्य कई तरह के कोरोनावायरस अवश्य ही हैं जो आसानी से पशुओं एवं मनुष्यों को प्रभावित करते आये हैं। अतः यह ध्यान देने योग्य बात है कि कोविड-19 संक्रमित रोगियों को पशुओं के संपर्क में आने से बचना चाहिए अन्यथा इस वायरस के पशुओं में प्रवेशोप्रांत आनुवंशिक परिवर्तन होने के बाद गंभीर उपभेद पैदा होने की संभावना से नहीं नकारा जा सकता है। कोविड-19 महामारी के दौरान पशुओं की सार्स-कोवि-2 के प्रति संवेदनशीलता पाया जाना ‘एक स्वास्थ्य’ परिकल्पना की ओर संकेत करती है जिसमें पशु चिकित्सा कर्मियों की मुख्य भूमिका हो सकती है।

पशु चिकित्सा कर्मी भी रखें सावधानी

हालांकि समय-समय पर विभागीय परशिक्षणों के माध्यम से पशु स्वास्थ्य कर्मियों को विभिन्न प्रकार के संक्रामक रोगों से बचाव हेतु आपदा प्रबंधन का प्रशिक्षण दिया जाता है। कोविड-19 महामारी की पहली लहर (2020) में पशु चिकित्सा कर्मियों ने बहुत अच्छी भूमिका निभाई। दूसरी लहर (2021) में भी सभी पशु चिकित्सा कर्मी अपने आप को बचाते हुए निम्नलिखित बातों पर अवश्य ध्यान रखें:

  • सभी पशु स्वास्थ्य कर्मी प्रतिदिन अपने-अपने क्षत्रों से चिकित्सालय में आते हैं। इसलिए एक-दूसरे उचित सामाजिक दूरी बनाने का भी प्रयास करें। चिकित्सालय में फेस मास्क, दस्ताने तथा डांगरी या अप्रेन अवश्य पहनें। यदि संभव हो तो इन्हें चिकित्सालय में ही उतार कर साबुन-पानी से धोएं या गृह प्रवेश करने से पहले ही घर के बाहर उतारकर साबुन-पानी से धोएं और परिवार के सदस्यों को मिलने से पहले स्वच्छतापूर्वक स्नान अवश्य करें। चिकित्सालय में हाथ धोने के लिए साबुन-पानी का उपयोग बार-बार करते रहें और हैंड सेनेटाइजर को अपने हाथों पर बार-बार लगाते रहें। बार-बार गुनगुना (हल्का गर्म पानी) पीते रहें।
  • पशु चिकित्सालय में ज्यादा पशुपालकों को एकत्रित न होने दें। पशुओं का उपचार करवाने के लिए चिकित्सालय में आये पशुपालकों को एक-एक करके ही अन्दर आने दें और उसके पशु का उपचार होने के बाद ही दूसरे का प्रवेश करवाएं। एक उपचाराधीन पशु के साथ कम से कम व्यक्तियों को ही अन्दर आने दें। पशुपालकों के चिकित्सालय में प्रवेशोप्रांत उनके हाथों पर हैंड सेनेटाइजर अवश्य लगवाएं। पशुपालकों को फेस मास्क लगाने के लिए प्रेरित करें और बिना फेस मास्क लगाये पशुपालकों को चिकित्सालय प्रवेश की मनाही हो। पशुपालकों से बातचीत करते समय दो मीटर की दूरी अवश्य रखें।
  • पशु चिकित्सालय के प्रांगण में नियमित रोगाणु नाशक घोल का छिड़काव करवाते रहें। पशुपालकों, स्वयं, एवं स्टाफ को चिकित्सालय की दीवारों एवं अन्य वस्तुओं को छूने से परहेज करें। पशुपालकों से कुर्सी पर बैठकर बातचीत होती है तो उन कुर्सियों को पशुपालकों के चिकित्सालय से बाहर जाते ही जीवाणुरहित अवश्य करें। पशु चिकित्सालय में आये पशुओं को छूने से पहले और बाद में साबुन-पानी से हाथ अवश्य धोएं एवं हाथों पर हैंसेनेटाइजर अवश्य लगाएं।
  • लॉकडाउन के कारण पशुपालकों को अर्थिक मंदी जैसी परिस्थितियों का सामना भी करना पड़ रहा है। अतः ऐसे समय में उनके पशुओं के इलाज में भी आर्थिक समस्या को ध्यान में अवश्य रखें।
  • यदि पशुओं के इलाज के लिए पशुपालक के घर द्वार जाना ही पड़े तो उचित सावधानी रखने की कोशिश अवश्य करें और अनावश्यक अन्य लोगों से न मिलें।
  • चिकित्सकीय कार्यों को निपटाने के बाद घर पहुंचने से पहले घर पर फोन पर घर आने की सूचना दें और घर में प्रवेश करने से पहले अपने सामान इत्यादि को बाहर ही रख कर जीवाणुरहित करें और नहाने के लिए बाथरूम में जाते समय घर के दरवाजे, कुण्डे इत्यादि और अन्य सामान को नहीं छूएं और नहाने से पहले साबुन-पानी से अपने हाथों को कम से कम 20 सेकण्ड तक अवश्य धोएं। नहाने से पहले अपने कपड़ों को एक बाल्टी में डिट्रजेंटयुक्त पानी में डाल दें। नहाने के बाद फिर से अपने हाथों पर हैंड सेनेटाइजर लगाएं और कुछ समय बीत जाने के बाद ही परिवार के सदस्यों से मिलें।
  • रोग की संभावना होने के परिस्थिति में अपना परीक्षण अवश्य करवाएं।
और देखें :  कोविड-19 संकट से उबरने मे पशुचिकित्सक की भूमिका

सारांश

कोविड-19 महामारी के दौरान, हर जगह ऐसे हालात थे कि सभी अपने-आपको बचाने में लगे हुए थे तो वहीं दूसरी ओर पशु चिकित्सा कर्मी पशुपालकों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े दिखायी दिये। और जनसाधारण के लिए दूध और अण्डा जैसे खाद्य पदार्थों की आपूर्ति में सहयोग दिया। जनसाधारण के लिए दूध और अण्डा जैसे खाद्य पदार्थों की आपूर्ति में सहयोग दिया और ‘एक विश्व-एक स्वास्थ्य’ परिकल्पना को परिपूर्ण किया है। अंत में यही कहा जा सकता है कि इस विश्व व्यापी कोविड-19 महामारी से जंग जीतने के लिए, मानव एवं पशु भलाई के लिए यही कहा जा सकता है कि स्वयं भी बचें और दूसरों को भी बचाएं। हमें गर्व है कि वैश्विक कोविड-19 महामारी के संकट काल में पशुचिकित्सा कर्मी पशु एवं मानव स्वास्थ्य के लिए सदैव अग्रणी पंक्ति में जनसाधारण के साथ खड़े हैं। इस मुश्किल दौर में अदृश्य स्वरूप कार्य करने वाले पशु चिकित्सा कर्मियों को कोरोना योद्धा कहना गलत नहीं होगा। सभी पशु चिकित्सा कर्मियों को नमन।

टला नहीं है अभी खतरा कोरोना के वार का,
करें निष्क्रिय कोरोना के प्रहार को,
पहने फेसमास्क, इक-दूजे से दो गज दूरी,
साबुन-पानी से धोयें हाथ बार-बार, टीकाकरण भी है जरूरी।

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