अनुवांशिकी उन्नयन में कृत्रिम गर्भाधान की भूमिका

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रोग प्रतिरोधक क्षमता या प्रतिरक्षा शरीर के रोगजनकों से लड़ने की क्षमता को कहते हैं यह पशु को प्रतिरक्षा तंत्र से प्राप्त होती है। पशु का स्वास्थ्य व रोग प्रतिरोधक क्षमता उनके सही प्रबंधन व आहार की गुणवत्ता पर निर्भर करता है। दुधारु पशुओं में विशेषतया ब्याने के समय के आस-पास पोषण पर विशेष ध्यान देने की जरुरत होती है। प्रायः देखा गया है कि हमारे किसान भाई दुधारु पशु पर जितना ध्यान देते हैं उतना ध्यान शुष्क काल में गाभिन पशु पर नहीं देते हैं। शुष्क काल, पशु जिस समय दूध देना बन्द कर देता है उस समय से लेकर जब पुनः दूध देना आरम्भ करता है के बीच के समय को कहते हैं। प्रायः यह समय पशु का गर्भकाल होता है और इस समय पशु के शरीर में उपापचयी, होरमोन एवं एन्जाइम संबन्धित बहुत सारे परिवर्तन होते हैं। पशु के ब्याने के तीन सप्ताह पहले व तीन सप्ताह बाद तक का समय स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। इस दौरान पशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। इसी अवधि में ऊतको में अभिक्रियाशील प्रकार की ऑक्सीजन भी बढ़ जाती है। इस कारण पशुओं के थन में संक्रमण होने की संभावना बढ़ जाती है जिससे कि थनैला रोग व प्रजनन संबन्धी समस्याएं होने की आशंका होती है तथा दुग्ध उत्पादन में भी कमी हो जाती है। इस समय विरल तत्व संपूरण का अधिक लाभ होता है।

अनुवांशिकी उन्नयन में कृत्रिम गर्भाधान की भूमिका

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अनुवांशिकी उन्नयन में कृत्रिम गर्भाधान की भूमिका

  1. पशु हमारे देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था का तथा कृषि का मुख्य आधार है। पशु से अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करना उनकी नस्ल और उनकी मूल क्षमता पर निर्भर करता है। इसलिए पशु विकास हेतु नस्ल सुधार कार्य को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है।
  2. कृत्रिम गर्भाधान के समय पशुओं की जाँच होने से उनका प्रजनन स्वास्थ्य के आधार पर चुनाव छटनी इलाज कराना संभव होता है। जिससे पशुओं में प्रजनन कराने पर प्रत्येक पशु के जाँच न होने के कारण प्रजनन की क्षमता में विकास संभव नहीं होता है।
  3. उन्नत नस्ल के चुने हुए उच्च कोटि के सांड से प्राप्त बछड़े बछियों में अधिक उत्पादन क्षमता होती है। इसलिए निरंतर पशु विकास हेतु हर समय उन्नत कोटी के सांड़ से पशुओं का प्रजनन कराना चाहिए। कृत्रिम गर्भाधान विधि से पशुओं में गर्भाधान के लिए कम साड़ों की आवश्यकता होती है। क्योंकि एक सांड़ द्वारा कृत्रिम गर्भााधान विधि से 10,000 तक मादा पशुओं में प्रजनन कर सकते है। इसलिए उच्च कोटि के साड़ों का चयन करना चाहिए।
  4. कृत्रिम गर्भाधान विधि में उच्च कोटि के साड़ों के प्रयोग करने से उन्नत प्रजाति के बछड़े बछिया प्राप्त होते है। इसलिए कृत्रिम गर्भाधान को पशु विकास के मुख्य आधार तथा पशु विकास की कुंजी कहा जाता है।
  5. कृत्रिम गर्भाधान के कारण सांड़ों का चयन करना संभव होता है। क्योंकि अनेक पशुओं में प्रजनन हेतु कम सांड़ों की आवश्यकता होती है।
  6. उच्च कोटि के सांड़ों का उपयोग अनेक पशुओं में करके ही हजारों की संख्या में उन्नत बछड़े-बछियों को पैदा करना कृत्रिम गर्भाधान से ही संभव है।
  7. कृत्रिम गर्भाधान करते समय मादा प्रजनन संबधी जाँच हो जाती है।
  8. कृत्रिम गर्भाधान के समय हजारों पशुओं की जाँच होने से उनका प्रजनन स्वास्थय के आधार पर चुनाव छटनी इलाज कराना संभव होता है। जिससे पशुओं में प्रजनन कराने पर प्रत्येक पशु के जाँच न होने के कारण प्रजनन की क्षमता में विकास संभव नही होता है।
  9. इस प्रकार से कृत्रिम गर्भाधान के कारण सेक्सुअल हेल्थ कंट्रोल संभव होता है। प्रजनन से संबधित बिमारियों की रोकथाम संभव होती है। क्योंकि नर पशु का मादा पशु से सीधा संभव संपर्क नही होता है।
  10. हिमीकृत वीर्य के कारण अब हम दुनिया के किसी भी कोने से उच्च कोटि के सांड़ का वीर्य प्राप्त कर सकते है। और उससे कृत्रिम गर्भाधान के माध्यम से हमारे प्रदेश के पशुओं में प्रजनन करवा सकते है।
  11. संकर नस्ल के हमारे पशुओं से प्रजनन करा कर अधिक दूध देने वाली संकर गायों की उत्पन्न कराना कृत्रिम गर्भाधान से संभव हुआ है।
  12. कृत्रिम गर्भाधान के कारण के प्रजनन के संबंध में सही लेखा जोखा रखना संभव होता है। इससे कौन से सांड़ की संतान अधिक लाभदायक प्रगतिशील है। इसकी प्रोजनी टेस्टिंग कहते है। यह विकास का प्रमुख आधार है। यह कृत्रिम गर्भाधान के बगैर संभव नही है।
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