दुधारु पशुओं में बांझपन, कारण तथा प्रबंधन

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सामान्य परिस्थितियों में एक स्वस्थ संकर नस्ल की बछड़ी को 18 माह या उससे पहले ही गर्मी में आ जाना चाहिए। भैंस और गाय की देशी नस्ल वयस्क होने में इससे अधिक समय (24 माह तक) लेती हैं। सामान्य परिस्थितियों में मादा पशु का प्रसव बच्चे देने के उपरांत पुनः 12 से 14 माह में हो जाना चाहिए। बांझपन का मतलब प्रजनन क्षमता में अस्थाई बाधा की अवस्था होता है, जिसमे मादा पशु गर्भधारण नहीं कर पाता है। भारत में डेयरी पालन में बड़े नुकसान के लिए पशुओं का बांझपन ज़िम्मेदार है। बांझपन की वजह से पशु के गर्भधारण, प्रसव तथा दुग्ध उत्पादन में देरी होती है जिस वजह से पशुपालक को आर्थिक हानि का सामना करना पड़ता है। बांझपन से प्रभावित पशु को पालना पशुपालक के लिए एक आर्थिक बोझ होता है, इसलिए ज्यादातर बांझ पशुओं को बूचड़खानों में भेज दिया जाता है। जिन प्रदेशों में गौ हत्या पर प्रतिबन्ध है वहां इन पशुओं को सड़को पर निराश्रित छोड़ दिया जाता है। इस वजह से भारत में निराश्रित पशुओं की एक भारी समस्या है। पशुओं में बांझपन न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व में डेरी व्यवसाय के लिए समस्या है। हालांकि उत्तम प्रबंधन अपनाकर इस समस्या का निदान बहुत हद तक किया जा सकता है।

बांझपन के कारण
बांझपन के अनेक कारण होते हैं, मादा पशु में कुपोषण, संक्रमण, जन्मजात दोषों, प्रबंधन त्रुटियों और अंडाणुओं या हार्मोनों के असंतुलन के कारण हो सकता हैं। बांझपन मुख्यतौर पर निम्नलिखित कारणों से हो सकता है।

  • कुपोषण।
  • पेट में कीड़े होना।
  • प्रजनन अंगों के रोग।
  • संक्रामक बीमारियाँ।
  •  पशु का गर्मी में न आना, मूक (अस्पष्ट) गर्मी अथवा पशु का बार बार गर्मी में आना।
  • अंडाशय में छाले होना (सिस्टिक ओवेरी)।
  • पशु की शारीरिक रचना में जन्मजात किसी त्रुटी का होना।
  • त्रुटिपूर्ण कृत्रिम गर्भाधान तकनीक।
और देखें :  मादा पशुओं में गर्भ निर्धारण की विधियां

कृत्रिम गर्भाधान पशुओं में बांझपन

बांझपन का प्रबंधन

  • पशु की शारीरिक रचना में  गड़बड़ी के कारण भी पशु में गर्भ नहीं ठहरता, इसका पता लगाने हेतु बांझपन से ग्रस्त पशु को पशुचिकित्सक से जांच करवानी चाहिए।
  • प्रजनन अंगो के रोग तथा संक्रामक बीमारियों के लिए पशुचिकित्सक से सही सलाह ले तथा पशु का उपचार करवाना चाहिए।
  • पशु के पेट में कीड़े होने पर अथवा शरीर पर बाहरी परजीवी कीड़े होने पर मादा पशुओं को गर्भधारण में कठिनाई होती है क्योंकि पशुओं के शरीर से आवश्यक पोषण कीड़े खा जाते हैं और पशु कुपोषण का शिकार हो जाता है। पशुओं को पेट के कीड़ो से सुरक्षित रखना चाहिए। प्रभावित पशुओं को हर तीन महीने में कीड़ो की दवा दी जानी चाहिए तथा पशु को शरीर के बाहरी परजीवी कीड़ो से भी सुरक्षित रखना चाहिए।
  • कुपोषण से पशुओं को बचाना चाहिए, पशुओं को  संतुलित मात्रा में उर्जा, प्रोटीन, वसा, खनिज और विटामिन की आवश्यकता होती है। इसलिए पशुओं को संतुलित आहार दिया जाना चाहिए। प्रजनन दर को सुनिश्चित करने हेतु उचित मात्रा में खनिज मिश्रण देना भी आवश्यक होता है। उचित पोषण गर्भाधान की दर में  वृद्धि  करता है साथ ही स्वस्थ गर्भावस्था तथा  सुरक्षित प्रसव सुनिश्चित करता है।
  • समय से पशु की गर्मी की पहचान करना पशुपालक पर निर्भर करता है, इसलिए सतर्कता पूर्वक गहन निरिक्षण की आवश्यकता होती है।
  • पशु को गर्मी के सही समय पर कृत्रिम गर्भाधान कारवाना चाहिए। गर्मी में आने के 12 से 14 घंटे अथवा  18 घंटे के बाद कृत्रिम गर्भाधान करवाना चाहिए।
  • कुछ गायों में गर्मी लंबे समय तक रहती है, उनमे दुबारा कृत्रिम गर्भाधान  आवश्यकता हो सकती है।
  • मूक (अस्पष्ट) गर्मी की पहचान हेतु खासकर भैंसों में सतर्कता पूर्वक गहन निरिक्षण की आवश्यकता होती है।
  • गर्भाधान के 60-90 दिनों के बाद गर्भावस्था की पुष्टि के लिए योग्य पशु चिकित्सकों से जांच करवानी चाहिए।
  • गर्भवती पशु को  उचित पोषण देना चाहिए तथा देखभाल के लिए सामान्य झुंड से दूर रखना चाहिए।
  • गर्भवती पशु का प्रसव से दो महीने पहले पूरी तरह से दूध सुखा लेना चाहिए और उन्हें पर्याप्त पोषण और व्यायाम दिया जाना चाहिए।
  • गाय के लिए गर्भावस्था  अवधि लगभग 285 दिनों की होती है और भैंसों के लिए 300 दिनों की होती है, गर्भावस्था के अंतिम चरणों में अनुचित तनाव और परिवहन से परहेज किया जाना चाहिए।
  • वीर्य का सही प्रबंधन, सही समय पर गर्भाधान, सही कृत्रिम गर्भाधान तकनीक और वीर्य को जनन अंग में सही स्थान पर डालना कृत्रिम गर्भाधान कार्यकर्त्ता पर निर्भर करता है इसलिए कृत्रिम गर्भाधान कुशल कृत्रिम गर्भाधान कार्यकर्ता से ही करवाना चाहिए।
और देखें :  पशुओं में क्षयरोग (ट्यूबरक्लोसिस) एवं जोहनीजरोग (पैराट्यूबरक्लोसिस) के कारण, लक्षण एवं बचाव

इस लेख में दी गयी जानकारी लेखक के सर्वोत्तम ज्ञान के अनुसार सही, सटीक तथा सत्य है, परन्तु जानकारीयाँ विधि समय-काल परिस्थिति के अनुसार हर जगह भिन्न हो सकती है, तथा यह समय के साथ-साथ बदलती भी रहती है। यह जानकारी पेशेवर पशुचिकित्सक से रोग का निदान, उपचार, पर्चे, या औपचारिक और व्यक्तिगत सलाह के विकल्प के लिए नहीं है। यदि किसी भी पशु में किसी भी तरह की परेशानी या बीमारी के लक्षण प्रदर्शित हो रहे हों, तो पशु को तुरंत एक पेशेवर पशु चिकित्सक द्वारा देखा जाना चाहिए।

और देखें :  पशुपालन एवं डेयरी विभाग हरियाणा द्वारा संचालित पशुपालक हितैषी योजनाएं

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