हरितगृह प्रभावी गैसों के संख्या के कारण 21वीं सदी में भूमंडलीय सत्य ही तापमान में 1 से 6 डिग्री सेल्सियस वृद्धि का अनुमान है । जलवायु परिवर्तन के अनुमानों के अनुसार भारत में यह तापमान वृद्धि 2.3 से 4.8 डिग्री सेल्सियस तक होने की संभावना है। तापमान वृद्धि से पशुओं के उत्पादन में कमी तथा प्रजनन क्रियाओं से संबंधित विभिन्न समस्याएं उत्पन्न हुई है । इस प्रकार भूमंडलीय उषमीकरण उत्पादन में एक विकट समस्या है। सभी जीव जंतु इस जलवायु परिवर्तन से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होते जा रहे हैं। पशुओं में गर्मी के तनाव जैसी मुख्य समस्या पाई जाती है। गर्मी का तनाव एक ऐसा समय होता है जब पशु वातावरण की भीषण गर्मी में अपने शरीर के तापमान को सामान्य करने में असमर्थ होता है।
वर्तमान परिदृश्य में बढ़ता हुआ वैश्विक तापमान एक अत्यंत ज्वलंत समस्या है जिसका प्रमुख कारण है जलवायु परिवर्तन। इस वैश्विक गर्मी का सीधा प्रभाव पशुधन स्वास्थ्य एवं उत्पादन दोनों पर ही पड़ता है। तापमान में हो रही उच्च वृद्धि के कारण पशुओं की शारीरिक क्रियाओं पर भी दुष्प्रभाव पड़ेगा जिसके परिणाम स्वरूप मांस,ऊन और वाहक ऊर्जा की उत्पादकता में गिरावट आएगी। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के परिणाम स्वरूप विभिन्न प्रजातियों की संरचना एवं नस्लों की गुणवत्ता में भी परिवर्तन दिखाई देगा। कृषि संसाधनों की उपलब्धता मैं भी बदलाव होगा। इसके साथ साथ अनुकूलित प्रजातियां अपने अस्तित्व को बनाए रखने में सक्षम होंगी। उच्च उत्पादकता वाली नस्लों के आपस में मिश्रित होने व बदलने की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता। विभिन्न मौसमों के दौरान उच्च तापमान कीट तथा परजीवी रोगों जैसे कि प्रोटोजोआ जनित रोगों में भी वृद्धि की संभावना है। अपर्याप्त संसाधन एवं सुविधाएं अधिक आर्द्र-गर्म दिनों में पशुधन एवं पशुधन उत्पादन प्रणाली को लगभग 160% तक प्रभावित करेंगे। भारत में पानी की उपलब्धता एक बड़ा संकट हो सकता है जोकि पशुधन एवं पशुधन उत्पादन प्रणाली को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है, भविष्य में वैश्विक तापमान के बढ़ने से पानी का संकट गंभीर रूप से प्रभावित हो जाएगा। इस कारण से गैर पशुधन उत्पादों की उपलब्धता में कमी आएगी जिसके परिणाम स्वरूप कुपोषण, आहार में असंतुलन और भुखमरी का खतरा भी बढ़ जाएगा।
गर्मी के तनाव के मुख्य कारण
अत्याधिक तापमान, अत्याधिक गर्मी, अत्याधिक सूर्य की रोशनी
जलवायु परिवर्तन से पशुओं पर निम्नलिखित मनोवैज्ञानिक प्रभाव होते हैं:
- अत्यधिक पसीना आना, तेजी से सांस लेना।
- चपापचय दर का कम होना।
- त्वचा की सतह पर रक्त के तेज प्रवाह से वाहिका विस्फर होना।
- इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन होना तथा पानी की मांग में वृद्धि होना आदि।
पशु दुग्ध उत्पादन पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में भारतीय पशुधन पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर किए गए हालिया अध्ययनों से संकेत मिलता है कि तापमान में वृद्धि एवं परिवर्तन से पशुओं के उत्पादन पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है जो जानकारियां यहां प्रस्तुत की जा रही है वह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के जलवायु परिवर्तन पर नेटवर्क परियोजना एवं अन्य संबंधित परियोजनाओं के हाल में किए गए अध्ययनों पर आधारित है। जलवायु परिवर्तन व पशुओं की अन्य प्रणालियों पर प्रत्यक्ष संभावित प्रभाव का अध्ययन वैश्विक संचालन नमूना द्वारा भविष्य के संभावित जलवायु परिदृश्य का मूल्यांकन करने के लिए किया जा रहा है। यह अध्ययन इंगित करता है कि भारत में मार्च, अगस्त के तापमान में 1 या 1.2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ वर्षा में भी मामूली बदलाव आएगा जो कि दुग्ध उत्पादन को प्रभावित करेगा। तापमान में थोड़ी वृद्धि होने से तापमान आर्द्रता सूचकांक में जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाला परिवर्तन पशुओं के शारीरिक कार्यों को बहुत अधिक प्रभावित नहीं कर पाता क्योंकि इनमें अनुकूलन की पर्याप्त क्षमता होती है। परंतु 2070 से 2099 के बीच तापमान में होने वाली 2 से 4 डिग्री सेल्सियस की संभावित वृद्धि से पशुओं के दूध उत्पादन और प्रजनन दोनों पर ही अत्यंत प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। तापमान वृद्धि के नकारात्मक प्रभाव के फलस्वरूप भारत में दुग्ध उत्पादन में सन 2021 में शंकर गोवंश से 0.4लाख टन, देसी गोवंश से 0.33 लाख टन, और भैसों से 0.89 लॉक टन तक दुग्ध उत्पादन में वार्षिक गिरावट होगी। उत्तर भारत में तापमान में वृद्धि से गाय और भैंस दोनों के दुग्ध उत्पादन में वर्ष 2040 से 2069 व 2070 से 2099 के दौरान गिरावट की सबसे अधिक संभावना है। दुग्ध उत्पादन में सबसे अधिक गिरावट उच्च शंकर गोवंश मैं 0.63% उसके बाद भैंस 0.5% तथा देशी गोवंश 0.4% होने की संभावना है। तापमान में अचानक परिवर्तन अर्थात गर्मियों के दौरान अधिकतम तापमान में वृद्धि जैसे कि गर्मी की लहर या सर्दियों के दौरान न्यूनतम तापमान में गिरावट व शीतलहर से भी दूध के उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। गर्मियों के दौरान अधिकतम तापमान में वृद्धि सामान्य से 4 डिग्री सेल्सियस ऊपर या सर्दियों के दौरान न्यूनतम तापमान में गिरावट सामान्य से 3 डिग्री सेल्सियस नीचे होने पर शंकर गाय और भैंस दोनों के दूध उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जलवायु परिवर्तन के कारण पशुओं के दुग्ध उत्पादन में प्रथम दुग्ध श्रवण काल में 10 से 30% तथा दूसरे और तीसरे दुग्ध श्रवण काल में 5 से 20% तक की गिरावट देखी गई है।भैंसों में गर्मी और शीत लहर का दूध उत्पादन पर असर सिर्फ अगले दिन तक ही नहीं अपितु दीर्घकाल तक दिखाई देता है जिससे यह संकेत मिलता है की गर्मी व शीत लहर का उत्पादन पर असर दीर्घकालिक होगा।
एक अनुमान के मुताबिक भूमंडलीय उषमीकरण से विकासशील देशों में जनसंख्या विस्फोट के कारण पशु उत्पादों की बढ़ती मांग को पूरा करना भूमंडलीकरण तापमान की वृद्धि के परिदृश्य में बहुत मुश्किल होगा। गर्मी के तनाव के कारण दुग्ध उत्पादन में 10 से 25% तक कमी आ सकती है।
पशुधन विकास एवं प्रजनन
स्थाई विकास के विश्लेषण से संकेत मिलता है की वैश्विक गर्मी के कारण तापमान में वृद्धि होने से पशुओं के यौवन और विकास पर नकारात्मक असर पड़ता है। उच्च दर 500 ग्राम प्रतिदिन या अधिक से बढ़वार करने वाले पशुओं पर कम दर से, 300 से 400 ग्राम प्रतिदिन वृद्धि करने वाले पशुओं की अपेक्षा अधिक नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। शंकर गोवंश तापमान आर्द्रता सूचकांक में होने वाले परिवर्तन के प्रति देशी गोवंश और भैंसों की अपेक्षा अधिक संवेदनशील होते हैं तथा शंकर गोवंश पर इसका सबसे अधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग का प्रारंभिक विश्लेषण करने से पता चलता है कि वर्ष 2040 से 2069 और 2070 से 2099 के बीच के मौजूदा तापमान से 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होगी जिसके कारण मुर्रा भैंस की प्रजनन क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा जैसे कि मदकाल का देर से आना, मदकाल की अवधि का कम होना और भैंस की प्रजनन क्षमता में गिरावट आने की पूर्ण संभावना होगी।
मदकाल की अवधि घटने की लंबाई और तीव्रता, गर्भाधान दर में कमी, डिंब ग्रंथि के पूर्ण विकास एवं आकार की वृद्धि में कमी। प्रारंभिक भ्रूण की होने वाली मृत्यु का बढ़त खतरा।
प्रजनन का प्रभाव गर्मी के तनाव के काफी समय पश्चात भी पशुओं में बना रहता है।
शारीरिक क्रियाएं
पशुओं की तापमान संवेदनशीलता का मूल्यांकन करने के लिए देसी गोवंश, शंकर गोवंश तथा मुर्रा भैंसों को खुले और बंद परिवेश में तापमान और जलवायु कक्ष में अधिक गर्म परिवेश तापमान 26 से 40 डिग्री सेल्सियस और कम अथवा ठंडा तापमान 6 से 16 डिग्री सेल्सियस पर रखकर शारीरिक प्रतिक्रियाएं जैसे की शारीरिक सतह के तापमान और उच्च तापमान पर पसीने की दर आदि का अध्ययन किया गया। शरीर की गर्मी भंडारण क्षमता के बारे में त्वचा और गुदा तापक्रम में परिवर्तन के आधार पर यह संकेत मिलता है कि शंकर गोवंश और भैंसों में गर्मी सहन क्षमता में वृद्ध विशेष रूप में उन दिनों अधिक होती है जब गर्मी व गर्म आद्र मौसम में तापमान आर्द्रता सूचकांक 80 से अधिक होता है। विभिन्न अध्ययनों से यह पता चला है कि सुस्क गर्म अथवा गर्म आद्र परिस्थितियों में भारतीय गोवंश,शंकर गोवंश व भैंस की अपेक्षा अधिक गर्मी सहन करने की क्षमता होती है। भैसों में देशी गोवंश और शंकर गोवंश की अपेक्षा अधिक गर्मी सहन करने की क्षमता होती है। भैंसे, देसी गोवंश और शंकर गोवंश की अपेक्षा 35 डिग्री सेल्सियस से ऊपर तापमान वृद्धि के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होती हैं। तापमान में वृद्धि के कारण पशुओं में ऊर्जा व ऑक्सीजन की खपत दर में वृद्धि होती है इसलिए जलवायु परिवर्तन परिदृश्य जैसे कि गर्मी, आद्र गरम परिस्थितियों में तापीय संतुलन पशुओं के शारीरिक कार्यों और उत्पादकता को प्रभावित करते हैं। जिससे भैंस और उच्चतम संकर नस्ल के पशुओं पर भारतीय गोवंश से अधिक विपरीत प्रभाव पड़ने की संभावना है। अधिक गर्म दिनों में विशेषकर जब पानी की कमी होती है पशुओं के शारीरिक कार्यों पर प्रतिकूल असर होगा। तनाव उत्पन्न करने वाले हार्मोन जैसे कि एपीनेप्रीन, नॉरएपीनेप्रीन व कॉर्टिसोल के स्तर में परिवर्तन होने से संकेत मिलता है की वैश्विक गर्मी के कारण भैंस और गोवंश में पशुओं के अभिवर्गीय कार्यों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। भैंसों को 45 डिग्री सेल्सियस तापमान पर रखने पर भी उनके प्लाज्मा कॉर्टिसोल के स्तर पर कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं होता परंतु एपीनेप्रीन व नारएपीनेफरिन के स्तर में वृद्धि पाई गई। ताप तनाव की प्रतिक्रियाओं का इन विट्रो लिंफोसाइट्स में अध्ययन से पता चलता है कि अचानक तापमान वृद्धि से लिंफोसाइट के प्रसार और इंटरलिव्यूकिन के उत्पादन पर प्रभाव पड़ता है। यकृत से स्रावित होने वाले विभिन्न एंजाइम जो शारीरिक क्रियाओं के लिए अत्यंत उपयोगी होते हैं उनका श्रावण घटने बढ़ने लगता है जिससे विभिन्न शारीरिक क्रियाएं नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है।
आहार पर प्रभाव
गर्मी में बरसात के मौसम में जैसे ही औसत तापक्रम व तापक्रम आद्रता सूचकांक में वृद्धि होती है या सर्दियों के दौरान न्यूनतम तापमान में गिरावट आती है पशुओं में शुद्ध पदार्थ ग्रहणता में गिरावट दिखाई देने लगती है गर्मी और बरसात के मौसम में तापक्रम वृद्धि से दुधारू पशुओं में आहार ग्रहणता में कमी आ जाती है जिसके परिणाम स्वरूप दूध के उत्पादन में भी कमी आ जाती है। गर्मी के तनाव से पशुओं में शुष्क पदार्थ का सेवन 10 से 20% कम हो जाता है। जिससे पशुओं को आवश्यक पोषण नहीं मिल पाता है और उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
पशु रोग
ग्लोबल वार्मिंग के कारण हो रही तापमान वृद्धि की वजह से बीमारी फैलाने वाले कीट, पतंगों की वृद्धि और वेकटर से रोग फैलने की संभावना बढ़ जाती है क्योंकि तापमान और आद्रता में वृद्धि कीड़ों और वेकटर की संख्या में वृद्धि में सहायक होती है। प्रोटोजोआ और विषाणु रोगों के संवेदनशील पशुओं की आबादियों में अधिक फैलने का खतरा बढ़ जाता है। कुछ संकर नस्ल के पशुओं में प्रोटोजोआ रोगों की घटनाएं जैसे सर्रा एवं बबेसियोंसिस मैं वृद्धि की संभावना होती है। कुछ विषाणु रोग जैसे पीपीआर या बोवाइन वायरल डायरिया के छोटे और बड़े पशुओं में दोबारा फैलने का भी खतरा होता है। तापमान और आर्द्रता में वृद्धि के कारण थनैला, खुरपका मुंहपका जैसे रोगों की घटनाओं में वृद्धि होने की भी संभावना है।
पशुओं के लिए जल की उपलब्धता
भारत विभिन्न कृषि जलवायु क्षेत्रों में विभक्त है इन क्षेत्रों में विभिन्न मौसमों के दौरान जल की उपलब्धता बदलती रहती है। गर्मी के मौसम में विशेषकर मार्च से जून तक प्राकृतिक जल संसाधनों के जलस्तर में कमी आने तथा तालाबों के सूखने के कारण पानी की गंभीर समस्या बनी रहती है। जो कि पशुधन के उत्पादन को भी प्रभावित करता है। जलवायु परिवर्तन के कारण भविष्य में विशेष रूप से अधिक आर्द्र नम उमस वाले तनावपूर्ण दिनों में जल संकट और अधिक गहराने की संभावना है। शारीरिक तापीय संतुलन को बनाए रखने के लिए त्वचा और फेफड़ों से वाष्पीकरण बढ़ जाएगा जिससे पशुओं को और अधिक पानी पीने की आवश्यकता पड़ेगी और खराब गुणवत्ता वाले जल का प्रबंधन न केवल उपलब्धता के संदर्भ में बल्कि गुणवत्ता के संदर्भ में भी एक बहुत बड़ी चुनौती है
पशु पर तापक्रम का प्रभाव कम करने हेतु अनुकूलन रणनीतियां
वातावरण में तापमान वृद्धि के कुप्रभाव को कम करने हेतु बहुआयामी उपायों की आवश्यकता है जिससे पशुओं की उत्पादकता एवं उनके स्वास्थ्य को सही रखा जा सके।
डेयरी पशुओं पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए किसानों को कुछ अनुकूलन रणनीतियों को अपनाना चाहिए। जैसे कि:
- स्थानीय जलवायु तनाव और चारा स्रोत के लिए अनुकूलित स्थानीय नस्लों की पहचान करना।
- स्थानीय नस्लों में सुधार के लिए विशेष प्रजनन विधि अपनाएं।
- गर्मी और ठंड से सहिष्णु नस्लों को अपनाएं।
- गर्मियों में छाया की उपयुक्त व्यवस्था करें।
- गर्मियों में पशु को दो से तीन बार स्नान कराएं।
- पशुओं के लिए स्वच्छ और नियमित रूप से पानी पीने की व्यवस्था करें।
- जल संसाधनों का बेहतर प्रबंधन करें।
- चराई सुबह जल्दी और देर शाम में होनी चाहिए।
- सर्दियों में गुण सरसों का तेल और अदरक खिलाएं।
- जलवायु तनाव में सोडियम और पोटेशियम पूरकता 30 ग्राम प्रति सप्ताह दें।
- नदी या तालाब में पशुओं को कुछ समय छोड़कर।
- अधिक तापक्रम में पशु पर समय-समय पर पानी छिड़के। यदि संभव हो तो कूलर या स्प्रिंकलर का प्रयोग करें।
पशुओं के आहार में परिवर्तन
- पशुओं की राशन में अधिक मात्रा में दाने का समावेश हूं जिससे कि उचित मात्रा में पशुओं को ऊर्जा प्राप्त हो सके।
- पशु आहार में हरी मुलायम घासों का समावेश।
- स्वच्छ पानी की हमेशा उपलब्धता रहनी चाहिए।
- राशन में प्रोटीन युक्त दानों का समावेश करना चाहिए।
- राशन में विभिन्न प्रकार के लवणों जैसे कॉपर, कोबाल्ट, मैग्नीज, जिंक एवं सेलेनियम का समावेश करें।
- राशन में सोडियम क्लोराइड, सोडियम बाई कार्बोनेट एवं पोटैशियम क्लोराइड का समावेश करें।
- राशन में ईस्ट कल्चर का प्रयोग करें।
आहार का प्रबंधन
ताजा, स्वादिष्ट एवं अच्छी गुणवत्ता वाला संतुलित पशु आहार पशुओं को दिया जाना चाहिए।
पशु आवास के प्रबंधन में बदलाव
- पशुओं को अधिक से अधिक जगह दी जाए।
- पशुओं को छाया में रखने की पूरी व्यवस्था हो।
- हवा की गति और दिशा दोनों ही महत्वपूर्ण हैं आवश्यकता पड़ने पर पंखे और कूलर की व्यवस्था करनी चाहिए।
- यदि संभव हो तो फुहारों के माध्यम से पशुओं को ठंडा करने के लिए व्यवस्था की जा सकती है।
- भैंसों को दिन में दो बार नहलाने से गर्मी को बहुत हद तक कम किया जा सकता है।
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