नियमित ब्यात अधिक उत्पादन

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भारत एक कृषि प्रधान देश है, कृषि व पशुपालन एक दूसरे के पूरक है। पशुपालन को लाभदायक बनाने हेतु हमारे पशुपालक भाइयों को चाहिए कि वे अपने पशुओं से अधिक आय प्राप्त करने के लिए नियमित ब्यात अधिक उत्पादन के नियम का पालन करें।

नियमित ब्यात से तात्पर्य यह है कि प्रत्येक वर्ष एक गौ शिशु अर्थात पशुपालक का पशु प्रजनन प्रबंधन इस प्रकार का हो कि उसे पशु के जीवनकाल से अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए नियमित रूप से पशुओं के प्रजनन पर ध्यान देना चाहिए। सामान्यतः गाय 2.5 से 3.0 वर्ष में तथा भैसा 3.5 से 4.0 वर्ष की आयु में प्रजनन के योग्य हो जाती है। प्रजनन काल में पशु 21 दिनों के अंतराल के पश्चात ऋतुकाल में ऋतुमति होती है।

इस समय पशुओं में निम्न लक्षण दिखाई देते है:

  1. मादा पशु की भूख कम हो जाती है।
  2. दुधारू पशुओं में दूध का उत्पादन कम हो जाता है।
  3. मादा पशु बार-बार पेशाब करती है।
  4. मादा पशु के योनि द्वार से चिपचिपा लसलसा स्त्राव निकलता है।
  5. भग कोष्ठ गुलाबी रंग के हो जाते है।
  6. मादा पशु अन्य साथ में रखे पशुओं पर चढती है।
  7. मादा पशु नर की उपस्थिति में उसके साथ रहना पसंद करती है।
और देखें :  दुधारू पशुओं के प्रजनन में अल्ट्रासोनोग्राफी (अल्ट्रासाउंड) की उपयोगिता

ऋतुकाल में पशुओं को उन्नत नस्ल के सांडों से प्राप्त वीर्य को कृत्रिम गर्भाधान विधि द्वारा पशुओं को गर्भित कराया जाना चाहिए। यदि किसान भाई गाय या भैस की बंधियों के खान-पान एवं आवास प्रबंधन, अच्छी तरह से करें तो इस प्रकार पशुपालक भाइयों को लगभग 3-3.5 वर्ष में गाय और 4-5 वर्ष की उम्र में भैस से दूध मिलना प्रारंभ हो सकता है।

सामान्यतः यह देखा जाता है कि हमारे पशुपालक भाई इस प्रकार दूध देने वाले जानवरों में प्रतिवर्ष एक ब्यात प्राप्त करने का लक्ष्य नहीं रखते एवं कभी-कभी उन्हें द्वितीय ब्यात, प्रथम ब्यात के लगभग 2 वर्ष उपरांत प्राप्त होती है। इस प्रकार पशु का दो ब्यातों का अंतराल एक वर्ष से अधिक होने पर अपरोक्ष रूप से आर्थिक हानि उठानी पडती है।

यदि एक गाय का औसत उत्पादन आयु लगभग 14 वर्ष मानी जाये तो 3 वर्ष की उम्र में प्रथम ब्यात के पश्चात यदि नियमित रूप से प्रतिवर्ष एक बछडा/बछिया प्राप्त की जाये तो उसे कुल 11 वत्स एवं मादा से 11 दुग्ध स्त्रवण काल प्राप्त होगा। परंतु यदि पशु के दो ब्यातों को अंतर 2 वर्ष हो, तो पशुपालक को कुल 6 वत्स व 6 दुग्ध स्त्रवण काल ही प्राप्त होगें। इस प्रकार यदि मादा एक स्त्रवणकाल में लगभग 1800 लीटर दूध देती है तो पशुपालक को एक मादा के जीवनकाल में 7200 लीटर दूध की हानि के साथ साथ 4 बत्सों (बछडा/बंधियो) का भी नुकसान होगा।

और देखें :  दुधारू पशुओं में इस्ट्रस सिंक्रोनाइजेशन की उपयोगिता एवं विधियां

अतएव पशुपालकों को पशु प्रजनन की नियमितता के द्वारा अधिक लाभ अर्जित करने के लिए निम्न सलाह दी जाती है।

  1. मादा पशु को प्रथम ऋतुमति होने पर गाभिन न करायें तथा बच्चा जनने के 65 से 90 दिन के अंदर अवश्य गाभिन कराना चाहिए।
  2. जननोपरांत मादा पशु का दाना धीरे-धीरे तीन माह तक बढाते जाये जब तक पशु अपने अधिकतम उत्पादन बिंदु पर न आ जायें।
  3. मादा पशु से अधिकतम 300 दिनों तक ही दूध प्राप्त करें।
  4. 300 दिनों के पश्चात गाभिन मादा पशु का दूध एक दिन के अंतराल पर करके निकाले एवं कुछ दिनों बाद दूध निकालना बंद कर दें।
  5. मादा पशु के अगली ब्यात के 60 दिन पूर्व पूर्णरूप से दूध लेना बंद कर दें।
  6. मादा पशुओं के गाभिन काल के अंतिम 60 दिनों तक 1-2 किलो अतिरिक्त दाना प्रदान करें।

इस प्रकार पशुओं का प्रबंधन करने से निश्चित रूप से पशुपालक अधिकतम लाभ प्राप्त कर सकते है।

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