पशुओं की बीमारियाँ

मादा पशुओं में बांझपन कारण एवं बचाव

पशुओं में बच्चा ना पैदा होना या कम बच्चे पैदा होना ही बांझपन कहलाता है यानी प्रजनन शक्ति का ह्रास होना ही बांझपन कहलाता है। सामान्यत: प्रजनन अंगों में कोई बाधा या रूकावट होने से बांझपन की स्थिति पैदा हो जाती है। >>>

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पशुओं में फास्फोरस की कमी से होने वाला पाईका रोग

बहुधा यह रोग कैल्शियम, फास्फोरस, नमक व अन्य खनिज तत्व तथा विटामिन की कमी के कारण होता है। इसके अलावा पाइका, के यह लक्षण जठरशोथ, अग्न्याशय की बीमारी रेबीज एवं मसूड़ों की सूजन आदि में भी होते हैं। >>>

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पशुपालकों की आय बढ़ाने हेतु दुधारू पशुओं में कृमिनाशक का महत्व

कृमिनाशक या एन्थलमेंटिक्स दवाओं का एक समूह जो आंतो के कृमि को मारती है तथा ऐंसी दवाओं को रोगनिरोधी उपयोग में लाने की प्रक्रिया को डीवार्मिंग कहते है। >>>

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पशुओं में अंत: परजीवी रोग, उपचार एवं बचाव

अपना देश भारत दुग्ध उत्पादन में विगत कई वर्षों से विश्व में प्रथम स्थान पर है परंतु हमारे देश में प्रति पशु उत्पादकता अत्यंत न्यून है। किसी भी पशु की उत्पादकता को बनाए रखने के लिए उसका स्वस्थ होना नितांत आवश्यक है। >>>

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गलाघोंटू/ घुरका पशुओं की अति संक्रामक एवं जानलेवा बीमारी

गलघोटू अर्थात  हेमोरेजिक सेप्टीसीमिया रोग गाय, भैंस, ऊंट भेड़, बकरी तथा सूअरों में पाई जाने वाली तीव्र सेप्टीसीमिक बीमारी है। >>>

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पशुओं की अतिसंक्रामक बीमारी: खुरपका मुंहपका रोग

यह अति घातक शीघ्रता से फैलने वाली छूतदार / संक्रामक बीमारी है। इस रोग में पशुओं के मुंह, पैरों तथा थनों पर छाले पाए जाते हैं। यह रोग विश्व के अधिकांश देशों में पाया जाता है। >>>

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मादा पशुओं में फिरावट अर्थात पुनरावृति प्रजनन की समस्या एवं समाधान

ऐसी गाय एवं भैंस जिनका मदकाल चक्र अर्थात ऋतु चक्र निश्चित अविध का होता है और उनके जनन अंग सामान्य लगते हैं परंतु उनको अधिक प्रजनन क्षमता के, सांड या उच्च गुणवत्ता के वीर्य से कम से कम  3 बार प्राकृतिक अथवा कृत्रिम गर्भाधान कराने के पश्चात भी गर्भधारण नहीं करती है तो वह पुनरावृति प्रजनन या फिरावट की श्रेणी में आती है। >>>

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पशुयों में चयोपचय व अल्पता रोग एवं बचाव

पशुयों में भोजन के विभिन्न अवयवों की आवश्यकता पशुयों की वृद्धि, दुग्ध उत्पादन, मांस उत्पादन एवं जनन क्रियाओं के लिए आवश्यक होती है। >>>

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विभिन्न संचारी रोगों के कारण, लक्षण एवं नियंत्रण

बरसात के शुरू होते ही जब पानी जगह-जगह भर जाता है इससे तरह-तरह के नए कीटाणु, जीवाणु एवं विषाणु तथा प्रोटोजोआ रुके हुए पानी से उत्पन्न होने लगते हैं जो अपने साथ अनेक रोगों को जन्म देते हैं जिसका प्रभाव न केवल मानव शरीर पर पड़ता है बल्कि इससे बच्चे अधिक प्रभावित होते हैं। >>>

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पशुओं में होने वाला अफारा एवं उससे बचाव

अफारा या पेट फूलने या फुगारे की समस्या रोमांथी पशु जैसे कि गाय, भैंस, बकरी, भेड़ इत्यादि में आजकल प्रायः देखने में आती है। रोमांथी पशु या जुगाली करने वाले पशुओं का पेट चार भागों में विभाजित होता है, 1. रूमन 2. रेटिकुलम 3. ओमेसम 4.अबोमेसम। >>>

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थनैला रोग एवं इससे बचाव

थनैला रोग के कारण पशुओं के दुग्ध उत्पादन तथा दुग्ध वसा में कमी आ जाती है साथ ही साथ पशुओं को अनुउत्पादक भी बना देता है जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव डेरी उद्योग पर पड़ रहा है। >>>

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पशुपालक भी समझें पशुओं के मौलिक स्वास्थ्य निरीक्षण का महत्व

स्वस्थ पशुधन, पशुपालक की खुशहाली का प्रतीक है। सभी पशुपालक चाहते हैं कि उनका पशुधन स्वस्थ रहे ताकि उनका पशुधन निरोगी रहे और रोगों पर खर्च होने वाले धन को कम किया जा सके। >>>

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गाय भैसों में रिपीट ब्रीड़ींग की समस्या: कारण व निवारण

भारतीय कृषकों की आय के प्रमुख स्रोत खेती व पशु उत्पाद, मुख्यतः दुग्ध है। अतः पर्याप्त आय हेतु उच्च खेती के साथ रोग मुक्त पशुधन भी आवश्यक है। गोपशुओं की दुग्ध अत्पादकता व अन्ततः कृषक आय प्रभावित होने पर दुग्ध उत्पादकता व अन्ततः कृषक आय प्रभावित होती है। >>>

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दुधारू पशुओं में बढ़ती बांझपन की समस्या एवं उसका समुचित प्रबंधन

दुधारू पशु हमारे गांव की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है वे वास्तव में गांव की तरक्की की कुंजी है। पशुपालक भाइयों के लिए पशुधन से बड़ा कोई धन नहीं होता है। पशुपालन पशुपालकों की आमदनी और रोजगार का विश्वस्त माध्यम है। >>>