पशुओं की बीमारियाँ

पशुओं की प्रमुख प्रजनन समस्याएं: कारण एवं प्रबंधन

भारतीय किसानो की आजीविका में पशुपालन का विशेष महत्व है। पशु प्रजनन को पशु पालन व्यवसाय का आधार स्तम्भ कहा गया है। अतः पशु पालकों को प्रजनन सम्बन्धी समस्याओं एवं उनके समुचित प्रबंधन की जानकारी देना अत्यंत आवश्यक है। >>>

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मादा पशुओं में प्रसव के पहले होने वाले रोग एवं उससे बचाव

मादा पशुओं में गर्भकाल के बाद बच्चों को जन्म देना प्रसव कहलाता है। प्रसव के समय मादा पशु का स्वास्थ्य सामान्य होना चाहिए तथा पशु को अधिक मोटा एंव दुर्बल नही होना चाहिए। >>>

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गाय-भैंसों में बाँझपन की समस्या एवं समाधान

आज बढ़ते हुये डेयरी व्यवसाय के कारण फिर से श्वेत क्रान्ति का दौर आ रहा है, परंतु हमारे देश के पशुयों की उत्पादन तथा पुनरोत्पादन क्षमता सामान्य से कम पाई गयी है। >>>

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पशुओं में फास्फोरस की कमी से होने वाला पाईका रोग

बहुधा यह रोग कैल्शियम, फास्फोरस, नमक व अन्य खनिज तत्व तथा विटामिन की कमी के कारण होता है। इसके अलावा पाइका, के यह लक्षण जठरशोथ, अग्न्याशय की बीमारी रेबीज एवं मसूड़ों की सूजन आदि में भी होते हैं। >>>

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पशुपालकों की आय बढ़ाने हेतु दुधारू पशुओं में कृमिनाशक का महत्व

कृमिनाशक या एन्थलमेंटिक्स दवाओं का एक समूह जो आंतो के कृमि को मारती है तथा ऐंसी दवाओं को रोगनिरोधी उपयोग में लाने की प्रक्रिया को डीवार्मिंग कहते है। >>>

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पशुओं में अंत: परजीवी रोग, उपचार एवं बचाव

अपना देश भारत दुग्ध उत्पादन में विगत कई वर्षों से विश्व में प्रथम स्थान पर है परंतु हमारे देश में प्रति पशु उत्पादकता अत्यंत न्यून है। किसी भी पशु की उत्पादकता को बनाए रखने के लिए उसका स्वस्थ होना नितांत आवश्यक है। >>>

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गलाघोंटू/ घुरका पशुओं की अति संक्रामक एवं जानलेवा बीमारी

गलघोटू अर्थात  हेमोरेजिक सेप्टीसीमिया रोग गाय, भैंस, ऊंट भेड़, बकरी तथा सूअरों में पाई जाने वाली तीव्र सेप्टीसीमिक बीमारी है। >>>

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मादा पशुओं में फिरावट अर्थात पुनरावृति प्रजनन की समस्या एवं समाधान

ऐसी गाय एवं भैंस जिनका मदकाल चक्र अर्थात ऋतु चक्र निश्चित अविध का होता है और उनके जनन अंग सामान्य लगते हैं परंतु उनको अधिक प्रजनन क्षमता के, सांड या उच्च गुणवत्ता के वीर्य से कम से कम  3 बार प्राकृतिक अथवा कृत्रिम गर्भाधान कराने के पश्चात भी गर्भधारण नहीं करती है तो वह पुनरावृति प्रजनन या फिरावट की श्रेणी में आती है। >>>

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पशुयों में चयोपचय व अल्पता रोग एवं बचाव

पशुयों में भोजन के विभिन्न अवयवों की आवश्यकता पशुयों की वृद्धि, दुग्ध उत्पादन, मांस उत्पादन एवं जनन क्रियाओं के लिए आवश्यक होती है। >>>

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विभिन्न संचारी रोगों के कारण, लक्षण एवं नियंत्रण

बरसात के शुरू होते ही जब पानी जगह-जगह भर जाता है इससे तरह-तरह के नए कीटाणु, जीवाणु एवं विषाणु तथा प्रोटोजोआ रुके हुए पानी से उत्पन्न होने लगते हैं जो अपने साथ अनेक रोगों को जन्म देते हैं जिसका प्रभाव न केवल मानव शरीर पर पड़ता है बल्कि इससे बच्चे अधिक प्रभावित होते हैं। >>>

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पशुपालक भी समझें पशुओं के मौलिक स्वास्थ्य निरीक्षण का महत्व

स्वस्थ पशुधन, पशुपालक की खुशहाली का प्रतीक है। सभी पशुपालक चाहते हैं कि उनका पशुधन स्वस्थ रहे ताकि उनका पशुधन निरोगी रहे और रोगों पर खर्च होने वाले धन को कम किया जा सके। >>>

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फूटराट/ खुर पकना/ इनफेक्शियस पोडोडर्मेटाइटिस के कारण लक्षण एवं उपचार

यह पशुओं के खुरों का संक्रामक रोग है जिसमें खुरों के बीच में सूजन, घाव बन जाना तथा कुछ भाग मृत हो जाता है। यह लक्षण खुर के थोड़ा ऊपर वाले कोरोनरी भाग, व पीछे भी दिखाई पड़ते हैं। सामान्य भाषा में इसे खुर पकना कहते हैं। >>>

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पशुओं में क्षयरोग (ट्यूबरक्लोसिस) एवं जोहनीजरोग (पैराट्यूबरक्लोसिस) के कारण, लक्षण एवं बचाव

क्षय रोग अर्थात तपेदिक या टी0बी0/ ट्यूबरकुलोसिस दीर्घकालिक संक्रामक रोग है। पशुओं में यह रोग माइकोबैक्टेरियम बोविस तथा मनुष्यों में माइकोबैक्टेरियम ट्यूबरक्लोसिस नामक जीवाणु से होता है। >>>

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रेबीज (Rabies) एक जानलेवा रोग: कारण, लक्षण, बचाव एवं रोकथाम

रेबीज़ (Rabies)- इसे जलांतक (Hydrophobia) जलभीति और हड़किया रोग के नाम से भी जानते हैं। यह एक ऐसा विषाणुजनित रोग है जिसमें मुख्यतः चमगादड़,  कुत्ते या बंदर के काटने से, उसकी लार के द्वारा विषाणु  मानव/ काटे जाने वाले पशु के मष्तिष्क तंतु कुप्रभावित करते हैं और मष्तिष्कशोथ (Encephalitis) की स्थिति पैदा हो जाती है। >>>